Monday, September 16, 2024
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देश से गद्दारी के आरोप में आईपीएस नेगी की गिरफ्तारी

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देश से गद्दारी के आरोप में आईपीएस नेगी की गिरफ्तारी
2011 बैच के आईपीएस अधिकारी अरविन्द दिग्विजय नेगी गद्दारी के आरोप में गिरफ्तार किये गए हैं| हिमाचल कैडर के इस अधिकारी पर आरोप लगा है कि इसने पाकिस्तानी आतंकी संगठन लश्करे तैयबा को देश की कई खफिया जानकारी साझा की है|
इस गद्दार अधिकारी के साथ सरकार क्या कुछ करेगी यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन सरकार को यह भी समझने की जरूरत है कि देश के साथ गद्दारी कोई भी कर सकता है चाहे वह किसी भी धर्म और मजहब का क्यां न हो|
    एनआईए में सर्विस मेडल से सम्मानित आईपीएस अधिकारी अरविंद नेगी की गिरफ्तारी के बारे में यही कहा जा रहा है कि उन्होंने लश्कर ए तयैबा के आतंकी को खुफिया दस्तावेज दिये है| जिसके बाद नेगी को यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया है| खुफिया जानकारी लीक करने मामले को लेकर नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी ने नेगी के ठिकानों पर छापेमारी की थी|
नेगी के ठिकानों से बेशुमार गोपनीय दस्तावेज मिले| जिसके बाद नेगी को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया गया. वहीं, एनआईए की जांच में भी इसका पता चला है कि नेगी के जरिए सूचनाएं लीक हुई हैं|
    इस मामले को लेकर एनआईए के एक अधिकारी ने बताया कि एनआईए ने लश्कर को सपोर्ट करने वाले ओवरग्राउंड वर्कर्स को गिरफ्तार किया था| ये लश्कर-ए-तय्यबा को मदद करते थे और उन्हें सूचनाएं देने का काम करते थे| इस कड़ी में अरविंद नेगी का भी नाम सामने आया| इस सिलसिले में एनआईए ने नेगी के ठिकानों पर छापेमारी की तो कई दस्तावेज मिले|
     गौरतलब है कि साल 2011 बैच के आईपीएस अधिकारी अरविंद नेगी को गैलेंट्री अवार्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है. इससे पहले अरविंद नेगी नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी में ही बतौर एसपी तैनात थे|जहां से इस मामले की जांच आरंभ होने के बाद उन्हें वापस उनकी कैडर में भेजा गया था| उन्हें 11 साल तीन महीने एनआईए में प्रतिनियुक्ति मिली थी|
    अपने सेवाकाल में नेगी एनआईए के सबसे प्रतिष्ठित अधिकारियों में से एक थे. वो कई प्रमुख मामलों की जांच में शामिल थे| हिमाचल प्रदेश पुलिस में सेवाएं देते हुए अरविंद नेगी ने बहुचर्चित सीपीएमटी पेपर लीक केस की जांच की थी. बहुचर्चित शिमला तेजाब कांड की गुत्थी सुलझाने में भी नेगी ने अहम भूमिका निभाई थी| हिमाचल में नेगी की गिनती तेज-तर्रार अधिकारी में होती थी| उन्हें पुलिस मेडल से भी सम्मानित किया जा चुका है. हुर्रियत नेतृत्व से जुड़े जम्मू कश्मीर टेरर फंडिंग मामले की जांच के लिए वीरता पदक मिला था|
  आइपीएस अधिकारी अरविंद दिग्विजय नेगी की गिरफ्तारी से हिमाचल पुलिस के दामन पर बड़ा दाग लग गया है| अधिकारी ने जिस राष्ट्रीय जांच एजेंसी जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में करीब 11 साल तक सेवाएं दी, अब उसी के कार्यालय में गिरफ्तारी हुई| आइपीएस अफसर नेगी हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले के रहने वाले हैं |
2011 में नेगी ने बतौर आइपीएस अधिकारी ट्रेनिंग शुरू की थी| लंबे समय तक वह एनआइए में रहे| नेगी हिमाचल के जनजातीय एवं सेब उत्‍पादक जिला किन्‍नौर के रहने वाले हैं| अरविंद अगर 48 घंटे से अधिक जांच एजेंसी की कस्टडी में रहते हैं तो उन्हें डीम्ड सस्पेंड माना जाएगा|अरविंद की मुश्किलें बढ़ सकती हैं|
    नेगी को बृहस्पतिवार को शिमला से पूछताछ के लिए हिरासत में लिया था, लेकिन इसकी किसी को भनक तक नहीं लगने दी| इससे पहले नवंबर में एनआइए ने शिमला और किन्नौर स्थित कई ठिकानों पर दबिश दी थी. शिमला स्थित आवास में तो काफी हलचल हुई थी| उसी दौरान सिरमौर के नाहन से एक प्रापर्टी डीलर को भी पूछताछ के लिए हिरासत में लिया गया था| बताया जाता है कि उसी के माध्यम से जांच एजेंसी नेगी तक पहुंची| इसके बाद इसके बैंक खातों की भी जांच की गई|

चारा घोटाला : 45 लोगों पर मनी लाउंड्रिंग का केस दर्ज, लालू प्रसाद की बढ़ेगी मुश्किलें

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बिहार के चारा घोटाला में राजद प्रमुख लालू प्रसाद की मुश्किलें अब और बढ़ेगी|
प्रवर्तन निदेशालय ने बिहार के पूर्व सीएम लालू प्रसाद यादव समेत 45 लोगों पर मनी लाउंड्रिंग के आरोप में प्राथमिकी दर्ज की है| इडी ने यह कार्रवाई सीबीआइ के विशेष न्यायाधीश के आदेश के आलोक में की|
सीबीआइ के तत्कालीन विशेष न्यायाधीश शिवपाल सिंह ने चारा घोटाले के आरसी 38ए-96 और आरसी 45ए-96 मामले में दोषी करार अभियुक्तों और मृत अभियुक्तों द्वारा घोटाले के पैसों से खरीदी गयी संपत्ति को जांच के बाद जब्त करने का आदेश दिया था|
      उन्होंने सीबीआई निदेशक को निर्देश दिया था कि वह इसकी जांच इडी से कराने की व्यवस्था करें| न्यायालय के इस आदेश पर इडी ने पहले चरण में सिर्फ उन्हीं लोगों को नामजद अभियुक्त बनाया है, जिन्हें इन दोनों मामलों में सजा सुनायी जा चुकी है|
उल्लेखनीय है कि मनी लाउंड्रिग के मामले में अभियुक्तों की मृत्यु होने पर भी कार्रवाई करते हुए संबंधित संपत्ति को जब्त करने का प्रावधान है|
             सीबीआई के तत्कालीन न्यायाधीश ने दुमका ट्रेजरी से 3.76 करोड़ की फर्जी निकासी के मामले में 19 मार्च 2018 को फैसला सुनाया था|
इसमें लालू प्रसाद सहित 19 अभियुक्तों को दोषी करार दिया गया था. अदालत ने लालू प्रसाद को सात-सात साल की सजा दी थी और 60 लाख रुपये का दंड लगाया था साथ ही दोनों|
सज़ाओं को अलग-अलग चलाने का आदेश दिया था. इससे लालू प्रसाद की सज़ा कुल 14 साल हो गयी थी. इस मामले में दोषी करार दिये गये अभियुक्तों में पूर्व विकास आयुक्त फूलचंद सिंह भी शामिल है|
बता दें कि आरसी 38ए-96 मामले में कुल 48 लोगों को अभियुक्त बनाया गया था| इसमें 12 को बरी कर दिया गया था|
बरी होने वाले बड़े अभियुक्तों में रांची के तत्कालीन आयकर आयुक्त एसी चौधरी, ध्रुव भगत, जगदीश शर्मा और आरके राणा के नाम शामिल हैं. सुनवाई के दौरान ही 13 अभियुक्तों की मौत हो गयी थी |इसमें पूर्वी मंत्री भोला राम तूफानी और चंद्रदेव प्रसाद वर्मा के नाम शामिल हैं|
                  सीबीआई के विशेष न्यायाधीश ने चारा घोटाले के कांड संख्या आरसी 45ए-96 में नौ अप्रैल 2018 को फैसला सुनाया था. इस मामले में अभियुक्त बनाये गये 60 में से 37 को दोषी करार दिया गया था| इस मामले में पशुपालन विभाग के अधिकारियों के अलावा सप्लायरों को अभियुक्त बनाया गया था| अभियुक्तों पर दुमका ट्रेजरी से ही 34.91 करोड़ रुपये की फर्जी निकासी का आरोप लगाया गया था|
                     गौरतलब है कि तत्कालीन प्रशिक्षु आईएएस अधिकारी राजीव अरुण एक्का (मुख्यमंत्री के वर्तमान प्रधान सचिव) की शिकायत पर यह प्राथमिकी दर्ज की गयी थी| अदालत ने इन दोनों ही मामलों में दोषी करार अभियुक्तों के अलावा मृत अभियुक्तों द्वारा एक जनवरी 1990 के बाद घोटाले की राशि से अर्जित संपत्ति को नियमानुसार, सरकार के पक्ष में जब्त करने का आदेश दिया था| साथ ही सीबीआई के निदेशक को यह आदेश दिया था कि वह इस मामले की जांच इडी से कराने की व्यवस्था करे |
                 अदालत ने दोनों मामलों में कुल 56 अभियुक्तों को सजा दी थी| कुछ अभियुक्तों के दोनों ही मामलों में शामिल होने की वजह से अभियुक्तों की वास्तविक संख्या 45 है|
इसलिए इडी ने पहले चरण में सिर्फ 45 लोगों को ही अपनी प्राथमिकी में नामजद अभियुक्त बनाया है. जांच के अगले चरण में मृत अभियुक्तों और एप्रुवर के मामले को शमिल किया जायेगा|

खूनी हुई हिजाब की राजनीति

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आखिर हिजाब की राजनीति खूनी हो ही गई. हिजाब की राजनीति शुरू करने वाले नेता सफल हो गए|
इस राजनीति ने बीती रात एक इंसान की जान ले ली|
बजरंग दल के 26 वर्षीय एक कार्यकर्ता हर्षा की ह्त्या अज्ञात लोगों द्वारा कर दी गई है| खबरों के मुताबिक ये हत्या चाकू घोपकर की गई है|
हत्या के बाद शिवमोगा में भारी तनाव है और शहर के सीगेहट्टी इलाके में उपद्रवियों ने कई वाहनों में आग लगा दी| बढ़ते हंगामे के मद्देनजर शिवमोगा में दो दिन के लिए स्कूल-कॉलेज बंद कर दिए गए हैं|
पुलिस की भारी तैनाती तो जरूर की गई है लेकिन आगे क्या होगा कोई नहीं जनता| सब डरे-सहमे घरों में बंद हैं| कोई किसी से कुछ भी कहने से बच रहा है|
       शिवमोगा का यह हत्या कांड आगे समाज में कितना असर डालेगा कोई नहीं जनता. लोग यह भी नहीं जानते कि नेता लोग हत्याकांड का कितना राजनीतिक लाभ उठाएंगे|
पांच राज्यों और खासकर यूपी के चुनाव पर शिवमोगा की इस हत्या काण्ड का कितना असर पडेगा और इस असर का ध्रुवीकरण किसके पक्ष में जाएगा इसका गणित तो नेता ही लगाएंगे लेकिन कर्नाटक में जो हो रहा है उसकी भारी कीमत देश को चुकानी पड़ सकती है|
डर है कि हिजाब के नाम पर शुरू हुए खेल में कही कर्नाटक दंगे का केंद्र न हो जाए और फिर इसकी आंच दक्षिण भारत से होते हुए उत्तर भारत तक न पहुँच जाए. इसलिए सबसे ज्यादा जरुरी है कि शिवमोगा कांड की जाँच की जाए और दोषियों को तुरंत गिरफ्तार कर उसे दण्डित किया जाय|
इसके साथ ही सिविल समाज को आगे आकर किसी भी अनहोनी वाली घटना पर विराम देने की जरूरत है|
                लेकिन कर्नाटक सरकार के नेता भी जिस तरह के बोल बोलते नजर आ रहे है उससे परेशानी और भी बढ़ सकती है| कर्नाटक के रूरल डेवलपमेंट और पंचायत राज मंत्री केएस ईश्वरप्पा ने हर्षा की हत्या के मामले में चौंकाने वाला बयान दिया है|
उन्होंने कहा- ‘मैं बजरंग दल कार्यकर्ता की मौत से बेहद दुखी हूं. हर्षा की हत्या मुस्लिम गुंडों ने की है. मैं अभी हालात का जायजा लेने के लिए शिवमोगा जा रहा हूं. हम गुंडागर्दी की इजाजत नहीं देंगे|’
                     इधर, राज्य के गृह मंत्री अरागा ज्ञानेंद्र मारे गए बजरंग दल कार्यकर्ता के परिवार से मिलने उसके घर पहुंचे. उन्होंने कहा, ‘4-5 युवकों के समूह ने एक 26 साल के युवक की हत्या कर दी|
इस हत्या के पीछे किस संगठन का हाथ है, यह अभी नहीं कहा जा सकता. फिलहाल शिवमोगा में कानून-व्यवस्था की स्थिति नियंत्रण में रखने के लिए एहतियात के तौर पर स्कूल-कॉलेज दो दिन के लिए बंद किए जा रहे हैं|
                         शुरुआती जांच में पुलिस इसे हिजाब विवाद से जोड़कर देख रही है, क्योंकि हर्षा ने अपने फेसबुक प्रोफाइल पर हिजाब के खिलाफ और भगवा शाल के समर्थन में पोस्ट लिखी थी|
दरअसल, कर्नाटक के उडुपी में हिजाब विवाद सामने आने के बाद से ही बजरंग दल काफी सक्रिय है. इसीलिए हर्षा की हत्या में साजिश के एंगल का शक गहरा गया है| हालांकि, पुलिस इस पर कुछ भी बोलने से बच रही है|
                           कर्नाटक में चल रहे हिजाब विवाद को लेकर माहौल पहले से तनावपूर्ण है. ऐसे में बजरंग दल की एक कार्यकर्ता की हत्या के बाद हालात और बिगड़ने की आशंका जताई जा रही है. फिलहाल पुलिस अलर्ट है और पूरे राज्य में सुरक्षा व्यवस्था चौकस कर दी गई है|
                           बता दें कि बजरंग दल समेत कई हिंदू संगठन स्कूलों में हिजाब की एंट्री का विरोध कर रहे हैं. इससे पहले कर्नाटक के कोपा में एक सरकारी स्कूल में छात्रों ने भगवा पहनकर हिजाब का विरोध किया था|
आरोप था कि स्कूल प्रशासन ने छात्रों को भगवा पहनकर आने की मंजूरी दी थी और मुस्लिम छात्राओं से कहा था कि वो हिजाब पहनकर न आएं|
इसके बाद स्कूल ने अपने आदेश में कहा कि 10 जनवरी तक स्टूडेंट अपनी इच्छा अनुसार पोशाक पहन सकते हैं. इसके विरोध में छात्रों ने भगवा स्कार्फ पहनना शुरू कर दिया है| दूसरी तरफ कर्नाटक के बजरंग दल संयोजक सुनील केआर ने हिजाब विवाद को हिजाब जिहाद बताया था|
                             हिजाब मामले में कर्नाटक कांग्रेस नेता का एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें वो हिजाब का विरोध करने वालों को धमकी देते हुए नजर आ रहे हैं|
वायरल वीडियो में मुकर्रम खान यह कहते हुए दिखाई दे रहे हैं कि हिजाब का विरोध करने वालों को टुकड़ों में काट दिया जाएगा|
खान ने कथित तौर पर कहा था कि हमारी जाति (धर्म) को चोट मत पहुंचाओ, सभी जातियां समान हैं| आप कुछ भी पहन सकते हैं, आपको कौन रोकेगा? पुलिस ने कांग्रेस नेता के खिलाफ आईपीसी की धारा 153 (A), 298 और 295 के तहत मामला दर्ज कर लिया है|
                            शिवमोगा की घटना की जितनी भी भर्त्सना की जाए कम ही है. लेकिन जिस तरीके से स्थानीय नेता उकसाने वाले बयान देते जा रहे हैं उससे समस्या और भी बढ़ सकती है|

हिन्दू-मुसलमानो के साथ ही समाज के अन्य लोगो को भी अब इस मामले में दखल देने की जरूरत है वरना हिजाब का यह खेल कई और निर्दोषो पर भी भारी पर सकता है. और अगर ऐसा हुआ तो फिर बहुलतावादी संस्कृति पर तो हमला होगा ही, लोकतंत्र भी लज्जित और शर्मसार होगा|

पेगासस पर न्यूयार्क टाइम्स का खुलासा ,कांग्रेस ने कहा चौकीदार ही जासूस

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कड़ाके की ठंढ के बीच पांच राज्यों के चुनाव की बेला में न्यूयार्क टाइम्स की एक खोजी रिपोर्ट ने भारतीय राजनीति का तापमान बढ़ा दिया और बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा दी है. जासूसी सॉफ्टवेयर पेगासस डील पर न्यूयॉर्क टाइम्स की नई रिपोर्ट ने चुनाव से ऐन पहले विपक्षी दलों को सरकार पर हमले करने की वजह दे दी है. कांग्रेस ने पीएम मोदी औऱ बीजेपी पर करारा हमला करते हुए पूछा है कि क्या पीएमओ इन खुलासों पर कोई जवाब देगा?
कांग्रेस के नेता राहुल गांधी, श्रीनिवास बीवी, शक्ति सिंह गोहिल, कार्ति चिदंबरम ने ट्वीट कर कहा है कि इस रिपोर्ट से साबित ह गया है कि सरकार ने करदताओं के पैसे से 300 करोड़ रुपये में पत्रकारों और नेताओं की जासूसी करने के लिए पेगासस स्पाईवेयर खरीदा है.
न्यूयॉर्क टाइम्स ने शुक्रवार को प्रकाशित एक रिपोर्ट में दावा किया है कि जुलाई 2017 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इजरायल यात्रा पर गए थे तब 2 अरब डॉलर में भारत ने इजरायल के साथ एक भारी भरकम रक्षा सौदा किया था. इस डील में मिसाइल सिस्टम के अलावा इजरायली कंपनी एनएसओ द्वारा बनाया गय पेगासस स्पाईवेयर मुख्यआइटम थे। इस रिपोर्ट को अगर सही माने तो साफ़ हो गया है कि भारत सरकार ने पेगासस खरीदा और इसका बेजा इस्तेमाल विपक्ष के नेताओं पर किया या फिर उन हस्तियों पर किया जिससे सरकार को परेशानी होने की संभावना थी.
राहुल ने ट्वीट किया, “मोदी सरकार ने हमारे लोकतंत्र की प्राथमिक संस्थाओं, राज नेताओं व जनता की जासूसी करने के लिए पेगासस ख़रीदा था. फ़ोन टैप करके सत्ता पक्ष, विपक्ष, सेना, न्यायपालिका सब को निशाना बनाया है, ये देशद्रोह है. मोदी सरकार ने देशद्रोह किया है. यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष श्रीनिवास बीवी ने पीएम मोदी पर बड़ा हमला किया है और कहा है कि ‘साबित हो गया है कि चौकीदार ही जासूस है.
न्यूयार्क टाइम्स अखबार के द्वारा की गई साल भर की जांच से पता चला है कि फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन ने भी इस स्पाईवेयर को खरीदा और इसको इस्तेमाल करने के मकसद से इसका परीक्षण किया था।. एफबीआई इस स्पाईवेयर को घरेलू निगरानी के लिए इस्तेमाल करना चाहती थी. रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे दुनिया भर में इस स्पाईवेयर का इस्तेमाल किया गया. जिसमें मेक्सिको द्वारा पत्रकारों और विरोधियों को निशाना बनाना, सऊदी अरब द्वारा महिला अधिकार की पक्षधर कार्यकर्ताओं के खिलाफ इसका इस्तेमाल किया जाना शामिल था. इतना ही नहीं रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सऊदी अरब के गुर्गों द्वारा मार दिए स्तंभकार जमाल खशोगी के खिलाफ भी इजरायली स्पाईवेयर का इस्तेमाल किया गया. रिपोर्ट में कहा गया है कि इजरायल के रक्षा मंत्रालय द्वारा नए सौदों के तहत पोलैंड, हंगरी और भारत समेत कई देशों को पेगासस दिया गया.
बता दें कि जुलाई 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इजरायल की यात्रा की थी. यह किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा इजरायल की पहली यात्रा थी. न्यूयार्क टाइम्स ने रिपोर्ट में कहा कि यह यात्रा तब हुई जब भारत ने फिलिस्तीन और इजरायल संबंधों को लेकर एक नीति बनाई हुई थी.
हालांकि प्रधानमंत्री मोदी की इजरायल यात्रा काफी सौहार्दपूर्ण थी. उस दौरान पीएम मोदी अपने समकक्ष बेंजामिन नेतन्याहू के साथ एक बीच पर टहलते हुए देखे गए थे. हालांकि दोनों के बीच दिखी इस गर्मजोशी का कारण दोनों देशों के बीच हुई डिफेंस डील थी. दोनों देशों के बीच हुए 2 बिलियन डॉलर समझौते में हथियारों और ख़ुफ़िया सिस्टम की खरीद शामिल था. साथ ही इस डील में पेगासस भी शामिल था.
रिपोर्ट में इसका उल्लेख किया गया है कि उस दौरान इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने भी भारत की यात्रा की और जून 2019 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक और सामाजिक परिषद में इजरायल के समर्थन में मतदान किया ताकि फिलिस्तीनी मानवाधिकार संगठन को पर्यवेक्षक का दर्जा देने से इनकार किया जा सके. हालांकि अब तक न तो भारत सरकार और न ही इजरायली सरकार ने माना है कि भारत ने पेगासस को खरीदा है.
मीडिया समूहों के एक वैश्विक संघ ने जुलाई 2021 में खुलासा किया था कि दुनिया भर की कई सरकारों ने अपने विरोधियों, पत्रकारों, व्यापारियों पर जासूसी करने के लिए स्पाईवेयर का इस्तेमाल किया था. भारत में द वायर द्वारा की गई जांच में बताया गया था कि जिन जिन के खिलाफ जासूसी होने की संभावना थी उसमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी, राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर, तत्कालीन चुनाव आयुक्त अशोक लवासा, सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव थे सहित कई अन्य प्रमुख नाम थे. इस सूची में द इंडियन एक्सप्रेस के दो वर्तमान संपादकों और एक पूर्व संपादक सहित लगभग 40 अन्य पत्रकार भी थे.
18 जुलाई को संसद में इजरायली स्पाईवेयर पेगासस को लेकर हुए विवाद पर जवाब देते हुए मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा था कि यह रिपोर्ट भारतीय लोकतंत्र और इसके संस्थानों को बदनाम करने का प्रयास .था. उन्होंने कहा था कि जब निगरानी की बात आती है तो भारत ने प्रोटोकॉल स्थापित किए हैं जो मजबूत हैं और कसौटी पर खरे उतरे हैं. साथ ही उन्होंने कहा कि स्पाईवेयर बनाने वाली कंपनी एनएसओ ने भी कहा है कि पेगासस का उपयोग करने वाले देशों की सूची गलत है. कई देश हमारे ग्राहक भी नहीं हैं. उसने यह भी कहा कि उसके ज्यादातर ग्राहक पश्चिमी देश हैं. यह स्पष्ट है कि एनएसओ ने भी रिपोर्ट में दावों को स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया है.
द इंडियन एक्सप्रेस के आइडिया एक्सचेंज में भारत में इजरायल के राजदूत नाओर गिलोन ने कहा था कि एनएसओ द्वारा किया जा रहा निर्यात इजरायल सरकार की निगरानी में है. यह पूछे जाने पर कि क्या इजरायली सरकार को यह पता चलेगा कि क्या एनएसओ ने भारत सरकार को सॉफ्टवेयर बेचा है तो उन्होंने कहा कि इस निजी कंपनी द्वारा किये गए तकनीक के हर निर्यात को लाइसेंस का पालन करना पड़ता है.
उन्होंने यह भी कहा कि एनएसओ एक निजी इजरायली कंपनी है, जिसने आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए एक उपकरण विकसित किया है और कई लोगों की जान बचाई है. इसकी गंभीरता को समझते हुए इजराइल ने कंपनी के उपकरण पर निर्यात नियंत्रण के कई उपाय किए हैं. इसलिए उनका निर्यात कुछ सरकारों तक सीमित हैं. इसके बारे में सभी अफवाहों या दावों के बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है. जब भारत की बात आती है तो यह एक अंदरूनी राजनीतिक लड़ाई है.
सरकार द्वारा कथित जासूसी के खिलाफ दायर लगभग एक दर्जन याचिकाओं के बाद पिछले साल 27 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने दो विशेषज्ञों के साथ सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति आरवी रवींद्रन की अध्यक्षता में एक स्वतंत्र समिति नियुक्त की. मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा था कि राज्य को हर बार राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर छूट नहीं मिल सकती है. साथ ही इस मामले में पूरी तरह से जांच करने का आदेश भी दिया गया था.

दस मार्च के बाद ‘खेला होबे ‘ की सम्भावना बढ़ी

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दस मार्च के बाद 'खेला होबे ' की सम्भावना बढ़ी
पिछले बंगाल चुनाव के दौरान ममता बनर्जी ने ‘खेला होबे ‘ का नारा दिया था। तब बीजेपी को ममता का वह नारा महज चुनावी नारा लगा था ,उसे जुमला समझा था। लेकिन ममता ने अपने खेला होबे नारे को सार्थक किया और चुनाव में बीजेपी की सारी राजनीति को ध्वस्त कर सत्ता अपने पक्ष में कर लिया। फिर ममता की दूसरी राजनीति शुरू हुई और बीजेपी को तोडना शुरू किया। चुनाव से पहले जिस तेजी से टीएमसी के नेता विधायक बीजेपी में जा रहे थे ममता की सरकार बनते ही उसी तेजी से बीजेपी में गए नेताओं की वापसी होने लगी। दर्जन भर से ज्यादा विधायक और नेता फिर से टीएमसी में लौटे और आज हालत ये है कि बीजेपी अपना सिर उठाने से भी वहाँ कतरा रही है। अब ममता अगले लोक सभा चुनाव की तैयारी में है और उसके टारगेट पर बीजेपी है। लोकसभा चुनाव को लेकर जो खेल होने हैं उसकी पटकथा दस मार्च के बाद लिखी जानी है।
        दस मार्च के बाद जो पटकथा लिखी जानी है उसका इन्तजार कइयों को है। बीजेपी के भीतर के नेता भी उस पटकथा का इन्तजार कर रहे हैं और बीजेपी के सहयोगी दल भी दस मार्च के परिणाम और उसके बाद की रणनीति पर मंथन कर रहे हैं। एनडीए की कुछ राज्य सरकारें भी  दस मार्च के इन्तजार में है। परिणाम बीजेपी के पक्ष में गए तो संभव है कि तत्काल बहुत कुछ शांत हो जाए। लेकिन अगर परिणाम बीजेपी के पक्ष के विपरीत गए तो बीजेपी की मुश्किलें बढ़ेगी और बड़े स्तर पर खेला होबे की कहानी आगे बढ़ेगी।
       पांच राज्यों के चुनाव परिणाम का सबसे बड़ा असर बिहार पर पडेगा। बिहार में जदयू और बीजेपी के बीच जिस तरह के मनमुटाव चल रहे हैं ,लगता है कि दस मार्च के बाद सरकार को चलाना मुश्किल होगा। जदयू भीतर ही भीतर बीजेपी से नाराज है और बीजेपी भी जदयू के कई नेताओं को अब सहने की हालत में नहीं है। इधर कई मसलों को लेकर जदयू और राजद -कांग्रेस के बीच जिस तरह के प्रेमालाप दिख रहे हैं और नीतीश कुमार की केंद्रीय राजनीति को लेकर जदयू के भीतर तैयारी चल रही है उससे साफ़ है कि दस मार्च के बाद बिहार की राजनीति में बदलाव होंगे। बीजेपी भी इसे अब मानकर ही चल रही है। याद कीजिए नीतीश कुमार पिछले चुनाव के दौरान साफ़ किया था कि यह उनका आख़िरी विधान सभा चुनाव है। बीजेपी भी इस बात को समझ रही है। जाहिर है कि पांच राज्यों के चुनाव परिणाम में बीजेपी अपनी जीत वाली भूमिका नहीं निभा पाती तो बिहार का गठबंधन टूट जाएगा।
     उधर हरियाणा की सरकार पर भी इसका असर पडेगा। हरियाणा की सरकार वैशाखी  टिकी है और वह किसी भी क्षण गिर सकती है। खबर यह भी है कि कांग्रेस नेता हुड्डा बड़े स्तर पर बीजेपी में सेंध लगाने की तैयारी में हैं और माना जा रहा है कि दर्जन भर से ज्यादा विधायक कांग्रेस के टच में है। इन्तजार है दस मार्च के परिणाम का।
         दस मार्च के परिणाम का सबसे बड़ा असर गुजरात और हिमाचल चुनाव पर पड़ने वाला है। इन दोनों राज्यों में इसी साल के अंत में चुनाव होने है और गुजरात में बड़ी संख्या में बीजेपी टूट के कगार पर है। अगर पांच राज्यों के चुनाव में बीजेपी बेहतर प्रदर्शन नहीं करती तो इस बार गुजरात बीजेपी के हाथ से निकल सकता है और ऐसा हुआ तो बीजेपी की जमीन खिसक जाएगी।     लेकिन सबसे बड़ा खेल तो बीजेपी के भीतर होगा। बीजेपी के भीतर मोदी और शाह की राजनीति से पार्टी के कई बड़े नेता नाराज है और उनकी नजर भी दस मार्च के परिणाम पर टिकी है। जिस तरह से यूपी चुनाव से बीजेपी के कई नेताओं को चुनाव से काट कर रखा गया है ,अगर यूपी के चुनाव में बीजेपी की जीत नहीं होती तो पार्टी के भीतर कोहराम होगा होगा और फिर टूट की सम्भाना बढ़ेगी। यूपी चुनाव परिणाम का इन्तजार राजनाथ सिंह को है तो नितिन गडकरी को भी है। संघ के कई नेताओं को भी दस मार्च का इन्तजार है तो वरुण और मेनका गाँधी को भी। चुनाव के परिणाम का इन्तजार तो रवि शंकर प्रसाद को भी और जावड़ेकर को भी। इसके अलावे कई और सवर्ण और पिछड़े -दलित नेताओं को भी चुनाव परिणाम का इन्तजार है।
      जिस तरह के फर्जी चुनावी सर्वे सामने आये हैं उसकी सच्चाई से भी संघ और बीजेपी के बहुत सारे नेता अवगत हैं। लेकिन मौन इसलिए हैं कि मोदी और शाह के फर्जी खेल को समझा जा सके। परिणाम अगर फर्जी खेल के जरिये ही बीजेपी के पक्ष में चले जाते हैं तब संभव है कि बहुत कुछ ठीक हो जाएगा और तत्काल कोई बड़ा खेल नहीं हो लेकिन ऐसा दिख नहीं रहा।
       पंजाब के बारे में बीजेपी को सब पता है। वहाँ कांग्रेस आएगी या फिर आप। बीजेपी का खेल वहाँ ख़त्म हो चुका है। उत्तराखंड में बहुकोणीय मुकाबला है लेकिन अभी बीजेपी काफी नीचे जा चुकी है इसलिए बीजेपी की जीत की सम्भावना कठिन है। गोवा में इस बार बीजेपी कोई चमत्कार नहीं कर सकती। खेल चाहे जो भी वहाँ कांग्रेस सरकार बनाती दिख रही है और यही हाल मणिपुर की है। बीजेपी का पूरा फोकस यूपी पर है और यूपी में इस बार बहुकोणीय मुकाबला है। बीजेपी और सपा के साथ सीधी लड़ाई है तो बसपा और कांग्रेस किंग मेकर बनने की तैयारी में है। इसके अलावे और भी कई दल बहुत कुछ करते नजर आ रहे हैं। साफ़ है कि बीजेपी के लिए अब कोई सेफ जोन नहीं बचा है। ऊपर से बीजेपी के भीतर सबकुछ ठीक लगता है लेकिन भीतर से बीजेपी का हर नेता अपना दाव खेलता नजर आ रहा है। बीजेपी की उलझन बढ़ गई है।
        एक नजर फिर से बिहार पर। बिहार एनडीए में सब कुछ सामन्य नहीं है। सरकार के मुखिया नीतीश कुमार वैसे भी बहुत कम बोलते हैं लेकिन उनकी पार्टी जदयू बोलने से बाज नहीं आती। उधर बीजेपी के नेताओं के बोल भी कम नहीं हैं। जातीय आरक्षण , शराबबंदी ,सम्राट अशोक के चर्चे ,बेरोजगारी और यूपी के चुनाव को लेकर जदयू और बीजेपी के भीतर जो उफान जारी है ,उसके परिणाम आगे क्या होंगे कहना मुश्किल है। बीजेपी के खेल से जदयू नेता उपेंद्र कुशवाहा भी घायल है तो पार्टी अध्यक्ष ललन सिंह भी। इधर एक पखवारे के भीतर जदयू और राजद नेताओं के बीच पैबस्त कमरों में जो बाते हुई है उससे बीजेपी भी आहत है। बीजेपी को लगने लगा है कि अब यह गठबंधन लम्बे से तक नहीं चल सकता। बिहार की राजनीति अभी दो मसलों पर चल रही है। एक तो जातीय आरक्षण को लेकर जदयू और राजद एक साथ है और बेरोजगारी को लेकर जदयू और बीजेपी में कुछ ज्यादा ही रार है।
       मान भी लिया जाय कि बिहार में सत्ता परिवर्तन की सम्भावना दिख रही है तो यह साफ़ है कि नीतीश कुमार को इससे कोई फर्क पड़ता नहीं दिखता। राजद के साथ उनकी सरकार बन सकती है और वे फिर सीएम की कुर्सी पर बिराजमान रह सकते हैं। सवाल तो यह है कि इस खेल में राजद को क्या मिलेगा ? वही डिप्टी सीएम का पद ! और एक बदलाव और यह होगा कि बीजेपी के हाथ से सत्ता चली जाएगी। अगर ऐसा भी होता है तो राजद अपने तमाम तरह के नीतीश विरोध अभियान के बाद भी अब जदयू का सहयोग लेकर सरकार बनाने से बाज नहीं आएगी। लेकिन अंदरखाने एक और कहानी पनप रही है। राजद और जदयू के शीर्ष नेताओं के बीच इस बात को लेकर भी मंथन जारी है कि बिहार की सरकार तेजस्वी के हवाले किया जाए और नीतीश कुमार केंद्र की राजनीति में जाएँ। ऊपर से देखने में यह सब वही बाते लग रही है जो काफी समय से कही और समझी जा रही है। लेकिन अब यह खेल मूर्त रूप भी लेता नजर आ रहा है। इस खेल में कांग्रेस भी सहभागी है। कांग्रेस के एक बड़े नेता कहते हैं कि ऐसा हो सकता है। और होना भी चाहिए। नीतीश को बिहार के लिए जो करना था कर चुके हैं। अब वे एक भूमिका केंद्र में फिर से निभा सकते हैं। यह भूमिका किस तरह की होगी यह देखने की बात है लेकिन कोई असंभव भी नहीं।
खबर यह भी मिल रही है कि इस खेल को अंजाम देने में जदयू के भी कई नेता भूमिका निभा रहे हैं। जदयू के दो बड़े नेता पिछले दिनों कांग्रेस के नेताओं से मिले हैं और गंभीर बातचीत हुई है। माना जा रहा है कि कांग्रेस आला कमान अगर इस नयी राजनीति पर सहमत होता है तो बिहार में सरकार भी बदलेगी और केंद्र की राजनीति में एक नया खेल शुरू होगा। बता दें कि जातीय आरक्षण के मसले पर नीतीश कुमार को राजद ,कांग्रेस , लेफ्ट ,हम और वीआईपी का साथ है। इधर राजद के साथ वीआईपी और हम नेताओं की जुगलबंदी भी बढ़ती जा रही है। लेकिन जदयू और हम ,वीआईपी सरकार के साथ है।
जदयू ने नेता मानकर चल रहे हैं कि चुकी  यह सरकार हम और वीआईपी की वैशाखी पर टिकी है और अगर ये दोनों पार्टी सर्कार से समर्थन वापस लेती है तब कुछ नया खेल हो सकता है। लेकिन जानकार मान रहे हैं कि ये सब ऊपरी बाते हैं। राजद ,कांग्रेस नेता  जब चाहेंगे हम और वीआईपी के साथ बात करके खेल को अंजाम दे सकते हैं। ऐसे में बड़ा सवाल है कि जब सब कुछ राजनीति में संभव है और जदयू -बीजेपी में तल्खी बरकरार है तब इन्तजार क्यों ?
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक़ यूपी चुनाव के बाद कोई बड़ा उलटफेर बिहार में संभव है। हालांकि ऊपर से देखने में यूपी चुनाव का बिहार से कोई लेना देना नहीं लगता लेकिन राजनीतिक रूप से देखा जाए तो यूपी चुनाव का असर बिहार पर पडेगा ,ऐसा संभव दीखता है।
बिहार के की अधिकांश पार्टियां इस बार यूपी में चुनाव लड़ने पहुँच गई है। और मजे की बात तो यह है कि बिहार एनडीए की गैर सभी बीजेपी पार्टियां यूपी में अकेले दम पर चुनाव लड़ रही है। यह भी कम अनोखी बात नहीं। बिहार में साथ -साथ का राग है तो यूपी में एक दूसरे के दुश्मन। यूपी में बीजेपी के साथ गठबंधन नहीं होने के कारण बिहार एनडीए के घटक दलों, जेडीयू, वीआईपी और हम, ने अकेले चुनावी मैदान में उतरने का निर्णय ले लिया है। पहले इन दलों को लगता था कि बीजेपी से गठबंधन हो जाएगा लेकिन बीजेपी ने इनको कोई भाव नहीं दिया। अब बीजेपी द्वारा भाव नहीं देने की कहानी बहुत कुछ कहती है। हम और वीआईपी को भले ही चोट कम लगी हो लेकिन जदयू के साथ जो बीजेपी ने किया है उससे नीतीश कुमार काफी आहत बताये जा रहे हैं। बता दें कि जेडीयू के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय इस्पात मंत्री आरसीपी सिंह ने यूपी में विधानसभा चुनाव से पूर्व गठबंधन को लेकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और बीजेपी यूपी प्रभारी और केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के साथ कई दौर की बातचीत की, लेकिन बीजेपी नेतृत्व की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। जदयू के भीतर इस बात को लेकर अपमान का भाव है। पूर्वी यूपी के इलाको में बिहार से जुडी पार्टियों का जातीय दबदबा है। और माना जा रहा है कि अगर बिहार एनडीए से जुड़े इन दलों को कुछ सीटें मिल गई तो ये फिर बीजेपी से नहीं जुड़ेंगे। या तो विपक्ष की भूमिका में रहेंगे या फिर गैर बीजेपी दलों के साथ गठबंधन कर सरकार बनाने की कोशिश करेंगे। और फिर एक नयी राजनीति की शुरुआत होगी जो अगले लोक सभा चुनाव में दिखेगी।
बता दें कि हम यानी  हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) के नेता और बिहार सरकार में मंत्री संतोष सुमन मांझी ने अगस्त 2021 में लखनऊ में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और अन्य भाजपा नेताओं से मुलाकात की थी। पार्टी ने यूपी में बीजेपी के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया था। हम का पूर्वी यूपी में बसे मांझी, मछुआ और केवट समुदायों पर प्रभाव है। हम के एक नेता ने कहा कि भाजपा से कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिलने के बाद पार्टी ने यूपी विधानसभा चुनाव अपने दम पर लड़ने का फैसला किया है। अब हम बीजेपी से लड़ेंगे। अपनी जाति का वोट कम से कम बीजेपी को न जाए इस पर काम करना है।
उधर ,वीआईपी पार्टी के नेता और बिहार के पशुपालन मंत्री मुकेश साहनी ने यूपी में 165 विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारने का ऐलान किया है। इनमें से अधिकांश सीटें निषाद समुदाय के प्रभुत्व वाले पूर्वी यूपी में स्थित हैं। वीआईपी ने पिछले साल 25 जुलाई को डाकू से नेता बनी फूलन देवी की पुण्यतिथि के अवसर पर विभिन्न जिलों में कार्यक्रम आयोजित करके यूपी में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी।
बता दें कि पूर्वी यूपी बीजेपी का गढ़ रहा है और पिछले चुनाव में बीजेपी को यहां बड़ी संख्या में सीट हाथ लगी थी। मोदी और योगी के नाम पर सभी जाति के लोगों ने बीजेपी को वोट दिया था लेकिन इस बार जातीय वोट पर पकड़ रखने वाले नेता अपनी जाति के वोट बैंक को अगर रोक लेते हैं तो बीजेपी की मुश्किलें बढ़ सकती है। बिहार एनडीए से जुड़े दलों की यही भूमिका इसबार यूपी में होने जा रही है।
उधर लोकजनशक्ति पार्टी के नेता चिराग पासवान भी यूपी की सौ सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। खबर के मुताबिक चिराग ने 60 से ज्यादा उम्मीदवारों की सूचि भी तैयार कर ली है। बिहार की ये पार्टियां यूपी में कितना करतव करती है ,यह देखना होगा लेकिन असली खेल तो चुनाव के बाद होगा जब इन बिहार की पार्टियों को कुछ सीटें हाथ लग जाएगी। मार्च के बाद बिहार की राजनीति में भूचाल की सम्भावना है और लगता है कि तब नीतीश को बड़ा फैसला लेंगे।

यमन की मानवीय त्रासदी में देवदूत बनकर खड़ी यूएई सरकार

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यमन की मानवीय त्रासदी में देवदूत बनकर खड़ी यूएई सरकार
अरब देशों में सबसे गरीब देशों में गिने जाने वाले यमन में क़रीब सात साल से जारी संघर्ष से मानवता तार-तार हो गई है. युद्ध और भुखमरी की वजह से जहां लाखों लोगों की जाने गई है वहीं कुपोषण की मार से अभी महिलायें और बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं| युद्ध और मानवीय त्रासदी का सबसे ज्यादा असर महिलाओं और बच्चो पर पड़ा है| बच्चों का भविष्य आज भी अधर में हैं| आगे इन कुपोषित बच्चे और और महलाओं की जिंदगी कैसी होगी, कहना मुश्किल है|
              बता दें कि अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त, राष्ट्रपति अब्दरब्बू मंसूर हादी की सरकार और उनके प्रति वफ़ादार सैनिकों और शिया हूती विद्रोहियों के बीच मुख्य लड़ाई लम्बे समय से चल रही है है| ये लड़ाई कबतक खत्म होगी कोई नहीं जानता| लेकिन इस लड़ाई ने यमन के सामने अब मानवीय संकट पैदा कर दिया है|पूरी दुनिया यमन की मानवीय त्रासदी को लेकर चिंतित तो है, लेकिन इस संकट से यमन कैसे बाहर निकले इस पर होता हुआ कुछ नजर नहीं आ रहा है|
    हूती विद्रोही यमन में उत्तरी इलाके के शिया मुसलमान हैं| माना जा रहा है कि हूती विद्रोहियों को शिया देश ईरान का समर्थन हासिल है| हूती विद्रोहियों के समर्थन में बार बार ईरान के बयान भी सामने आते रहे हैं|जबकि सरकारी सेनाओं को दक्षिणी यमन के कुछ लड़ाकों और पड़ोसी सुन्नी देश सऊदी अरब से पूरा सहयोग मिल रहा है| यह यूएई और सऊदी अरब देश ही हैं जिसके बल पर आज यमन टिका हुआ है वरना यमन के हालात और भी ख़राब होते|
     सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ मार्च, 2015 से अब तक यमन में ढ़ाई लाख लोग अपनी जान गवां चुके हैं और लाखों लोग घायल हुए हैं. लेकिन युद्ध की इस विभीषिका का सबसे ज्यादा असर बेवा महिलाओं और बच्चो पर पड़ा है| बच्चों का तो भविष्य ही चौपट दिख रहा है| यमन में जारी जंग में, मानव जीवन और मर्यादा बहुत बुरी तरह से आहत हुई है| पाँच वर्ष से कम उम्र के लगभग 2.3 मिलियन बच्चों के कुपोषण के शिकार होने का अनुमान है और इनमें से लाखों बच्चों के दवा और उपचार के अभाव में काल के गाल में समा जाने की आशंका जताई जा रही है| आलम ये है कि करीब 20 प्रतिशत लोगों को बुनियादी हेल्थकेयर की सुविधा नहीं मिल रही है और आधी आबादी को शुद्ध और सुरक्षित पेयजल तक नहीं मिल पा रहा है|यमन बर्बाद हो चुका है और निकट भविष्य में उसके आबाद होने की संभावना भी नहीं दिख रही हैं|
      पिछले सात साल में यमन में कई सौ गुना बढ़े कुपोषण के मामलों ने दुनिया भर को चिंता में डाल दिया है| दुनिया के कई देश यमन में जारी मानवीय त्रासदी पर चिंतित ज़रूर हैं लेकिन यमन की रक्षा में देवदूत बनकर केवल यूएई और सऊदी अरब जैसे सहयोगी देश ही खड़े हैं|यमन में हूती विद्रोहियों के खिलाफ जारी सैन्य कार्रवाई के बीच संयुक्त अरब अमीरात ने यमन में अपने राहत प्रयासों का ब्योरा जारी किया है| यूएई सरकार के अनुसार, उसने 2015 से लेकर 2021 तक यमन में राहत और बचाव कार्यों पर 6.25 बिलियन डॉलर से अधिक खर्च किए हैं. यूएई सरकार के मुताबिक, उसने कोरोना महामारी से निपटने के लिए छह विमानों से 122 टन दवा, चिकित्सा उपकरण और अन्य सामान यमन में भेजा है| संयुक्त अरब अमीरात ने यमन  में कुपोषण से निमटने के लिए 230 मिलियन डॉलर की भी मदद दी है| यूएई सरकार ने यमन के अन्य क्षेत्रों में भी राहत और इमदादी कार्यों को लेकर विस्तृत ब्योरा जारी किया है. संयुक्त अरब अमीरात के इस मानवीय पहल से यमन को जिंदगी जीने का लाभ तो मिला है लेकिन यह काफी नहीं है| लेकिन संयुक्त अरब अमीरात ने जितना किया है यमन उसका सदा ऋणी बना रहेगा|
      हालांकि यमन के छत्रछाया बने संयुक्त अरब अमीरात को भी हूती विद्रोहियों के आक्रमण का सामना करना पड़  रहा है लेकिन सब कुछ सहकर भी यूएई यमन के साथ हर तरह से खड़ा है|
       हाल के महीनों में, जायंट्स ब्रिगेड्स, एक मिलिशिया समूह, जो बड़े पैमाने पर दक्षिणी यमनियों (यूएई द्वारा समर्थित) से बना है और संयुक्त बलों (मारे गए पूर्व राष्ट्रपति सालेह के भतीजे के नेतृत्व में मिलिशिया) ने हूती विद्रोहियों के खिलाफ बंदूक उठा ली थी| ऐसा प्रतीत होता है कि हूती विद्रोहियों ने अमीरात को एक स्पष्ट संदेश भेजा है कि वह यमन से दूर रहे या अधिक हमलों का सामना करें|
   बता दें कि यमन रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह लाल सागर को अदन की खाड़ी से जोड़ने वाले जलडमरू मध्य पर स्थित है, जिसके माध्यम से दुनिया के अधिकांश तेल शिपमेंट गुज़रते हैं|यह अल-कायदा या आईएस से जुड़े-देश के हमलों के खतरे के कारण भी पश्चिम को चिंतित करता है जो अस्थिरता को उत्पन्न करते हैं| अमेरिका द्वारा विद्रोहियों को आतंकवादियों के रूप में सूचीबद्ध करने और सात साल से संघर्ष को कम करने के प्रयासों के बाद भी हूती विद्रोहियों ने राज्य पर सीमा पार हमले तेज़ कर दिये हैं| यही वजह है कि यमन बर्बादी के कगार पर है| यमन को बचाने के लिए यूएई कोशिश तो कर रहा है लेकिन यमन को और मदद की ज़रूरत है|
   याद रहे इस संघर्ष को शिया शासित ईरान और सुन्नी शासित सऊदी अरब के बीच क्षेत्रीय सत्ता संघर्ष के हिस्से के रूप में भी देखा जाता है|
    यमन का संघर्ष भारत के लिए भी कम चुनौती नहीं. भारत के लिये यह एक ऐसी चुनौती है जिसे तेल सुरक्षा और इस क्षेत्र में रहने वाले 8 मिलियन प्रवासियों को ध्यान में रखकर नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता है जिनसे सालाना 80 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का प्रेषण होता है| भारत ने भी अतीत में यमन को भोजन और चिकित्सा सहायता प्रदान की है और पिछले कुछ वर्षों में हजारों यमन नागरिक भारत में शिक्षा और चिकित्सा उपचार का लाभ भी उठाते रहे हैं|
   अभी जिस तरह से यूएई यमन के साथ खड़ा है और यमन त्रासदी में अपनी भूमिका निभा रहा है, वह अपने आप में एक मिसाल है| यूएई की तरह ही बाकि दुनिया के देश यमन त्रासदी में अपनी भूमिका निभाएं तो यमन का कायापलट हो सकता है|

और टाटा ने फिर संभाली एअर इंडिया की कमान

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Tata again took over the command of Air India
69 साल बाद एयर इंडिया की कमान आज 27 जनवरी से फिर से टाटा ने संभाल ली है. घाटे से परेशान सरकार ने पिछले साल एयर इंडिया को टाटा के हाथ बेच दिया था. आज से इसका संचालन टाटा करेगा. सरकार को इससे अब कोई मतलब नहीं रहा. टाटा के हाथ में जाते ही एयर इंडिया के ऑपरेशन में कई तरह के बदलाव की खबरें भी आनी शुरू हो गई हैं. माना जा रहा है कि आने वाले समय में टाटा एयर इंडिया, देश-दुनिया की बेहतर सेवा कर सकेगी.
        गुरुवार को टाटा संस के चेयरमैन एन चंद्रशेखरन ने पीएम नरेंद्र मोदी से मुलाकात की. मुलाकात के बाद चंद्रशेखरन ने एअर इंडिया के अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी होने और एयरलाइन के वापस टाटा ग्रुप के पास आने पर खुशी जताई. इसके साथ ही करीब 69 साल बाद एयर इंडिया की कमान फिर से टाटा के हाथों में आ गई है. सरकार ने अक्टूबर 2021 में एअर इंडिया की 100% हिस्सेदारी टाटा को बेच दी थी.
     बता दें कि सरकार के साथ डील के तहत टाटा ग्रुप को एयर इंडिया और एयर इंडिया एक्सप्रेस का पूरा मालिकाना मिलेगा. इसके अलावा टाटा के पास पहले ही एयर एशिया और विस्तारा एयरलाइंस की अधिकांश हिस्सेदारी है. माना जा रहा है कि टाटा अपने सभी एयरलाइंस बिजनेस को मर्ज करके उसे एक कंपनी बना सकती है. ऐसा करने से उसे अतिरिक्त खर्च में कमी करने के साथ ज्यादा रेवेन्यू कमाने का मौका मिलेगा. हालांकि इस मामले को लेकर स्थिति एयर इंडिया की कमान पूरी तरह से टाटा के हाथों में आने के बाद उसे संभालने वाले नए मैनेजमेंट के फैसले से साफ होगी.
    नमक से लेकर स्टील तक बनाने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में शुमार टाटा समूह परफेक्शन के लिए जानी जाती है, ऐसे में एयर इंडिया के कामकाज में आने वाले महीनों में इसकी छाप देखने को मिल सकती है।जहां तक एयर इंडिया की कमान टाटा के संभालने पर कस्टमर्स पर पड़ने वाले असर की बात है तो फ्लाइट के ऑपरेशन में फौरन कोई बदलाव शायद न हो, लेकिन कुछ महीने बाद किराए से लेकर खाने तक हर चीज के और बेहतर होने की संभावना जताई जा रही है. साथ ही एयर इंडिया के विमान के अंदर और बाहर की ब्रांडिंग में भी बदलाव होगा.
   एयर इंडिया पिछले एक दशक के दौरान भारी नुकसान में रही है. इस पर 31 मार्च 2020 तक 70 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज था. एयर इंडिया को 2020-21 फाइनेंशियल ईयर में 7 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का घाटा हुआ है. टाटा ने एयर इंडिया को 18 हजार करोड़ रुपए में खरीदा है. साथ ही उसे एयर इंडिया का 23 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज भी चुकाना है. टाटा के सामने सबसे बड़ी चुनौती एयर इंडिया को घाटे से उबारकर मुनामा कमाने वाली कंपनी बनाना है.
     पिछले एक दशक के दौरान एअर इंडिया ने नए इंडियन एविएशन मार्केट में अपना हिस्सा तेजी से गंवाया है। एअर इंडिया अभी इंडियन एविएशन मार्केट में 11% की हिस्सेदारी के साथ तीसरे नंबर पर है।पहले नंबर पर इंडिगो (48% हिस्सेदारी) और दूसरे नंबर पर स्पाइसजेट (16% हिस्सेदारी) है। टाटा के सामने सबसे बड़ी चुनौती इन प्राइवेट कंपनियों की प्रतिस्पर्धा से निपटकर एअर इंडिया को टॉप पर पहुंचाने की होगी।
      टाटा को एयर इंडिया का मुंबई और दिल्ली स्थित एयरलाइंस हाउस भी मिलेगा. अकेले मुंबई ऑफिस की मार्केट वैल्यू 1,500 करोड़ रुपए से ज्यादा की है. एयर इंडिया की शुरुआत 1932 में टाटा समूह के चेयरमैन जेआरडी टाटा ने ही टाटा एयरलाइंस के रूप में की थी. ये देश की सबसे पुरानी एयरलाइन है. 1946 में इसका नाम बदलकर एयर इंडिया कर दिया गया. 1948 में एयर इंडिया ने मुंबई से लंदन के बीच पहली इंटरनेशनल उड़ान भरी थी. इसके साथ ही एशिया और यूरोप के बीच उड़ान भरने वाली एयर इंडिया न केवल भारत बल्कि पहली एशियाई एयरलाइन भी बनी थी.
   1953 में सरकार ने एयर इंडिया का राष्ट्रीयकरण करते हुए उसे सरकारी कंपनी बना दिया और इसे इंटरनेशनल फ्लाइट्स के लिए इंडियन एयरलाइंस और डोमेस्टिक फ्लाइट्स के लिए एयर इंडिया में बांट दिया. 2007 में सरकार ने इंडियन एयरलाइंस और एयर इंडिया का विलय कर दिया. इसके बाद से एयर इंडिया कर्ज में डूबने लगी. 2006-07 तक एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस का संयुक्त घाटा 770 करोड़ रुपए था और विलय के दो साल बाद ही मार्च 2009 तक यह बढ़कर 7200 करोड़ रुपए हो गया. मार्च 2020 तक एयर इंडिया पर 70 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज था. 2020-21 में भी इसे 7 हजार करोड़ से ज्यादा का घाटा हुआ है. अक्टूबर 2022 में टाटा ने एयर इंडिया की 100% हिस्सेदारी खरीद ली थी और जनवरी 2022 में उसे इसकी कमान मिल गई.

काफी रोचक होगा गोरखपुर में सीएम योगी को घेरने का खेल

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काफी रोचक होगा गोरखपुर में सीएम योगी को घेरने का खेल
यह बात और है कि गोरखपुर बीजेपी का अभेद्य किला है और सीएम योगी को यहां से हराना कठिन है। लेकिन असंभव भी नहीं। जनता का मूड बदल जाए तो कुछ भी संभव है। योगी को घेरने के लिए समाजवादी पार्टी ने गोरखपुर सदर सीट पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ दिवंगत भाजपा नेता उपेंद्र शुक्ला की पत्नी सुभावती शुक्ला को मैदान में उतारा है। उधर भीम आर्मी वाले चंद्रशेखर आजाद भी योगी के खिलाफ चुनाव लड़ने की दुदुम्भी बजा चके हैं। योगी के खिलाफ कांग्रेस और बसपा भी उम्मीदावार उतारेगी। उस पर मंथन चल रहा है। इसके अलावे आम आदमी पार्टी भी गोरखपुर से चुनाव लड़ेगी। कह सकते हैं कि इस बार गोरखपुर राजनीति का केंद्र बन गया है ,सीएम योगी की राह आसान नहीं रह गई है।
        बता दें कि कल गुरुवार को सुभावती शुक्ला अपने दोनों बेटों अरविंद और अमित शुक्ला के साथ सपा में शामिल हुईं। सपा में शामिल होने के बाद मीडिया से बात करते हुए सुभावती शुक्ला और उनके बेटे भाजपा के ऊपर उपेक्षा का आरोप लगाते हुए कैमरे के सामने रो पड़े।
मीडिया से बात करते हुए सुभावती शुक्ला के बेटे अरविंद शुक्ला ने कहा कि मेरे पिता उपेंद्र शुक्ला अपने मृत्यु तक भाजपा में ही रहे। वे प्रदेश स्तर से लेकर मंडल स्तर तक सबको साथ लेकर चले। लेकिन उनकी मृत्यु के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हमारे परिवार से मिलने तक नहीं आए। मैं और मेरे भाई कई बार मिलने गए। इसके बाद वे भाजपा के ऊपर उपेक्षा का आरोप लगाते हुए भावुक हो गए और कहने लगे कि आखिर मेरे परिवार का अपराध क्या है। इन्होंने हमारे परिवार को क्या दिया। इस दौरान सुभावती शुक्ला भी भावुक हो गईं।
वहीं उनके छोटे बेटे अमित शुक्ला ने कहा कि मैं कुछ मांगने नहीं गया था। एक छोटी सी चीज कि मेरे पिता की किसी पार्क में मूर्ति लगा दी जाए या कोई रोड का नाम रख दिया जाए। क्या 40 साल की तपस्या का फल इतना भी उनके हिस्से में नहीं आ सकता था। लगातार हो रहे अपमान और तिरस्कार ने इस तरह का निर्णय लेने पर मजबूर कर दिया। मैंने सब जगह जाकर अपनी पीड़ा रखी लेकिन कुछ नहीं हुआ। सपा में शामिल होने को लेकर अरविंद शुक्ला ने कहा कि एक नेता को एक नेता ही तलाश लेता है। एक जननेता की पहचान जननेता को ही होती है। वो जननेता मेरे पिता के बाद सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव हैं।
बता दें कि उपेंद्र शुक्ला उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बेहद करीबी थे। वे गोरखपुर क्षेत्र में पार्टी का ब्राह्मण चेहरा थे। वह पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष और गोरखपुर के क्षेत्रीय अध्यक्ष जैसे महत्‍वूपर्ण पदों भी रहे। सीएम योगी आदित्यनाथ के लोकसभा से इस्तीफा दिए जाने के बाद उपेंद्र शुक्ला ने ही गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव लड़ा लेकिन वे सपा के प्रवीण निषाद से चुनाव हार गए। उपेंद्र दत्त शुक्ला का मई 2020 में ब्रेन हेमरेज से निधन हो गया था। उपेंद्र शुक्‍ला कौड़राम विधानसभा सीट से तीन बार चुनाव लड़े थे, लेकिन वह तीनों बार हर गए थे।
यह भी सच है कि  गोरखपुर सदर सीट पर बीजेपी का पलड़ा हमेशा से भारी रहा है। 1989 के बाद से अब तक हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने सात बार इस सीट पर अपना कब्जा जमाया है और एक बार यह सीट हिंदू महासभा के पास रही है। वर्तमान में राधा मोहन दास अग्रवाल इस सीट से विधायक हैं। राधा मोहन दास अग्रवाल साल 2007 से भाजपा के टिकट पर इस सीट से विधायक चुने जाते रहे हैं।
जहां तक इस सीट पर जातीय समीकरण की बात है तो  4 लाख से अधिक मतदाताओं वाली गोरखपुर सदर सीट में निषाद/केवट/ मल्लाह मतदाता 40 हजार से अधिक हैं। 30 हजार दलित वोटर भी हैं जिनमें पासवान समाज की संख्या सर्वाधिक है।  वैश्य वोटरों में बनिया के अलावा जायसवाल 20-25 हजार हैं, ब्राह्मण 30 हजार से अधिक हैं साथ ही इतनी ही संख्या में राजपूत वोटर भी हैं। 20 – 25 हजार मुस्लिम वोटर भी हैं।  लेकिन सबसे अधिक संख्या में यहां कायस्थों के वोट हैं जो बीजेपी को हर हाल में जाते हैं।
      माना जाता है कि मल्लाह, ब्राह्मण, राजपूत, कायस्थ एवं बनिया समेत आधे से अधिक संख्या में दलितों का वोट मठ की आज्ञा के अनुसार ही वोट करेगा और इस बात पर फिलहाल कोई संशय नहीं है। यही अबतक होता रहा है। लेकिन सपा के ब्राह्मण उम्मीदवार के बाद स्थिति अब पहले वाली नहीं रही। यहां खेल तो होगा। इसके बाद आजाद के खड़े होने के बाद दलित वोटों में भी सेंध लगेगी। इसके अलावे कई और जातियों के वोट भी आजाद को मिल सकते हैं। इसके अलावे कांग्रेस और बसपा की उम्मीदारी भी यहां होनी है। अगर सारे दलों के उम्मीदवार खड़े होते हैं तो योगी की परेशानी बढ़ेगी। हालांकि यह भी माना जा रहा है कि सपा की उम्मीदवारी योगी पर सबसे ज्यादा भारी है। लेकिन देखना होगा कि इस सीट का अंतिम  परिणाम क्या होता है।

यूपी की खातिर, भाजपा का विशेष प्लान

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For UP's sake, BJP's special plan
उत्‍तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा ने पूरी ताकत झोंक दी है. चुनाव आयोग द्वारा रैली और सभाओं पर रोक बढ़ाए जाने के बाद, भाजपा डोर टू डोर कैंपेन पर फोकस कर रही है. इसकी कमान खुद भाजपा के वरिष्ठ नेता और गृह मंत्री अमित शाह ने सभांल रखी है. इस सिलसिले में अमित शाह ने अपने अभियान की शुरुआत पश्चिम यूपी के कैराना से की. भाजपा इस क्षेत्र में एक खास मिशन पर काम कर रही है. सुरक्षा और सुशासन के नाम पर भाजपा इस इलाके में वोटों के ध्रुवीकरण में लग गयी है. इसके साथ ही भाजपा वोटरों तक सीधे पुहँच पाने के लिये घर घर पहुँचने का भी प्लान बना रही है.
 12 करोड़ वोटरों तक पहुँचने का है लक्ष्य
2022 में जीत के लिए बीजेपी एक खास प्‍लान पर अमल कर रही है. इसके तहत पार्टी ने प्रदेश के 12 करोड़ वोटर्स तक पहुँच रही है. इस प्रोग्राम का नाम है- ‘हर घर भाजपा’. बीजेपी डोर टू डोर कैंपेन के तहत ऐसे 4 करोड़ घरों तक पहुंच रही है, जिन्‍हें केंद्र की मोदी सरकार और यूपी की योगी सरकार की योजनाओं का किसी न किसी रूप में फायदा मिला हो. बीजेपी नेता उन्‍हीं 4 करोड़ घरों में जाएंगे, जिनमें कम से कम 3 वोटर अवश्‍य हों. इस तरह बीजेपी को 12 करोड़ वोटर तक सीधे पहुंचने का मौका मिलेगा.
 अमित शाह और सीएम योगी का विशेष अभियान
जहां मुख्यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने गाजियाबाद से, तो गृह मंत्री अमित शाह ने कैराना से इस डोर टू डोर प्रोग्राम ‘हर घर भाजपा’ की शुरुआत की है. इस कार्यक्रम की शुरुआत भाजपा ने पश्चिमी यूपी से की है. इसके पीछे दो प्रमुख कारण माने जा रहे हैं.
पहला – फर्स्‍ट फेज़ की वोटिंग पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश से ही होनी है.
दूसरा – किसान आंदोलन के चलते भाजपा की स्थिति पश्चिमी यूपी में कमजोर मानी जा रही है, इस लिये भाजपा पश्चिमी यूपी में ध्रुवीकरण पर पूरा जोर लगा रही है, और यही वजह है कि अमित शाह ने कैराना से अपने कैंपेन की शुरुआत की.
 ‘हर घर भाजपा’ संपर्क अभियान
भाजपा ‘हर घर भाजपा’ कैंपेन को यूपी विधानसभा की सभी 403 सीटों पर चलाएगी. इसके लिए यूपी के भाजपा कार्यकर्ता 1,74,000 बूथों पर जाएंगे और घर-घर प्रचार करेंगे. केंद्र और राज्‍य की भाजपा सरकार की योजनाओं के लाभान्वितों के घरों पर जाने के लिए भाजपा ने पांच-पांच कार्यकर्ताओं की टीमें गठित की हैं. मतलब एक टीम में एक नेता और पांच कार्यकर्ताओं को रखा गया है. ये टीमें कोरोना के इस काल में मास्‍क और सैनिटाइजर का भी वितरण करेंगी.
 भाजपा ने अन्‍य राज्‍यों से बुलाए विशेष प्रचारक, दलित और अति पिछड़ों पर होगा फोकस
भाजपा ने दलित और अति पिछड़ी जातियों पर भी खास तौर से ध्‍यान केंद्रित किया है. पार्टी ने ऐसे इलाकों में फोकस करने के लिए अन्‍य राज्‍यों से भी विशेष प्रचारक बुलाए हैं. ये प्रचारक और कार्यकर्ता विशेष तौर से दलित और अति पिछड़े वोटरों को लुभाने का प्रयास करेंगे.

अपने पति दयाशंकर सिंह से प्रताड़ित होती है यूपी की मंत्री स्वाति सिंह !

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UP minister Swati Singh gets harassed by her husband Dayashankar Singh!
योगी सरकार के सामने एक नयी मुसीबत सामने आयी है। यूपी चुनाव को लेकर जहां बीजेपी एक -एक सीट पर अपनी ताकत आजमा रही है और विपक्ष की  घेरेबंदी से बहार निकलने की कोशिश कर रही है वही लखनऊ की सरोजनी नगर की विधायक और सूबे की महिला विकास मंत्री स्वाति सिंह के घरेलु झगडे योगी सर्कार के लिए मुसीबत बनते जा रहे हैं। एक तो स्वाति सिंह और उनके पति दयाशंकर सिंह के बीच सरोजनीनगर सीट को लेकर आपस में ही खींचतान है तो दूसरी तरफ एक ऑडियो ने स्वाति और उनके पति के बीच के सम्बन्धो को तार -तार कर बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा दी है। विपक्ष अब सवाल उठा रहा है कि जब कोई मंत्री ही  अपने घर में हिंसा की शिकार है तब भला आम महिलाओं की हालत प्रदेश में क्या होगी ,सोंचने की बात है। हालांकि जो ऑडियो सामने आया है कि उसकी सत्यता की पुष्टि हम नहीं कर सकते लेकिन जो बातें उस में दर्ज है उससे साफ़ पता चलता है कि मंत्री स्वाति सिंह अपने पति और बीजेपी नेता दयाशंकर सिंह से प्रताड़ित होती है और अपनी दवंगई के बल वे दयाशंकर सिंह कई ऐसे काम करते हैं जो एक बाहुबली करता है। इस ऑडियो के सामने आने के बाद बीजेपी परेशान है और सरोजनी नगर सीट को लेकर पति -पत्नी के बीच तनाव की जो कहानी दबी जुबान से गढ़ी जा रही थी ,अब सच्चाई में परिवर्तित होती जा रही है।

अब सबसे बड़ा सवाल है कि क्या योगी सरकार की एक महिला मंत्री को उनके पति प्रताड़ित करते है? महिला बाल-विकास मंत्री स्वाति सिंह के ऑडियो से तो यही बात साबित हो रही है। यह बात अलग है कि यह ऑडियो कैसे सामने आया यह भी एक राजनीतिक खेल माना जा रहा है। माना जा रहा है कि स्वाति सिंह ने ही अपनी राजनीति को आगे बढ़ाने और अपने पति की सरोजनी नगर से की जा रही दावेदारी को ख़त्म करने के लिए ही यह ऑडियो जारी करवाया है। इसमें सच्चाई जो भी हो लेकिन  इस ऑडियो में दो बातें बहुत साफ है कि एक तो उनके पति किसी अवस्थी के मकान पर जबरन कब्जा करते हैं, पुलिस भी उनकी मदद करती है। पीड़ित की सुनवाई नही होती और दूसरा सच यह है कि खुद मंत्री भी अपने पति के हाथों मजबूर हैं, वो उनके साथ मारपीट भी करते हैं।

इस ऑडियो में स्वाति कहती है कि उनके पति दयाशंकर सिंह उनके साथ मारपीट करते है। इतना ही नही वे उनसे किस कदर डरती हैं, इसका अंदाजा भी इस ऑडियो को सुन कर लगाया जाता है। स्वाति सिंह कहती है कि कि हमारी और आपकी बातचीत का पता दयाशंकर सिंह को नहीं चलना चाहिए। उन्हें पता चलेगा तो क्या होगा आप समझ सकते है। हालांकि मंत्री स्वाति सिंह पीड़ित को इंसाफ दिलाने की बात भी कह रही हैं।

स्वाति सिंह के मंत्री बनने से पहले ही दोनों के रिश्ते खराब थे। दयाशंकर के एक करीबी बताते हैं कि साल 2008 में स्वाति ने पति दयाशंकर के खिलाफ मारपीट की एफआईआर भी दर्ज कराई थी। हालांकि दोनों ने कभी इस झगड़े को सार्वजनिक मंच पर सामने नहीं आने दिया।

इससे पहले स्वाति सिंह पर भाभी के साथ मारपीट करने, बिना तलाक लिए भाई की दूसरी शादी कराने और भाभी को घर से निकालने का आरोप लगा था। स्वाति के खिलाफ मुकदमा उनके अपने सगे भाई की पत्नी आशा सिंह ने दर्ज कराया था। ये मामला करीब 11 साल पुराना है।

2017 विधानसभा चुनाव से पहले दयाशंकर सिंह ने बसपा सुप्रीमो मायावती पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। इसके बाद बसपा कार्यकर्ताओं ने नसीमुद्दीन सिद्दीकी की नेतृत्व में लखनऊ में बड़ा विरोध प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन के दौरान बसपा कार्यकर्ताओं ने दयाशंकर सिंह की पत्नी स्वाति सिंह और बेटी पर गलत कमेंट किए थे। इनके जवाब में स्वाति मैदान में आईं और महिला सम्मान के नाम पर मायावती सहित बसपा के 4 बड़े नेताओं के खिलाफ हजरतगंज थाने में केस दर्ज कराया।
मायावती के खिलाफ जिस तरह से स्वाति मुखर हुईं, उससे भाजपा को एक संजीवनी मिलती दिखी। इसी का नतीजा था कि जिस सीट पर बसपा की जीत पक्की मानी जा रही थी, वहां स्वाति ने बाजी पलटी और जीत हासिल की। इसके बाद भाजपा ने स्वाति को मंत्री पद का तोहफा दिया।

     हालांकि स्वाति सिंह पर कई और आरोप लगे हैं। लेकिन जिस तरह से स्वाति की राजनीतिक हैशियत यूपी में बढ़ती जा रही है उससे शायद उनके पति नाराज माने जा रहे हैं। दयाशंकर सिंह को लग रहा है कि जब तक स्वाति सिंह राजनीति करेगी तब तक वे विधायक और मंत्री नहीं बन सकते। यही वजह है कि दयाशंकर सिंह इस बार किसी भी सूरत में सरोजनी नगर सीट अपने पाले में करना चाहते हैं। उधर स्वाति को अब राजनीति का स्वाद लग चूका है। देखना होगा कि इस खेल का बीजेपी पर क्या असर होता है और विपक्ष इसे कैसे भुनाता है।