Sunday, October 6, 2024
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देश में नफरत भरे बयान और बुलडोजर अत्याचार पर हो सख्त कार्रवाई: जमात-ए-इस्लामी

नई दिल्ली: जमात-ए-इस्लामी हिंद ने देश में बढ़ती नफरत और बुलडोजर के जरिए की जा रही कार्रवाई पर गहरी चिंता जताई है। संगठन के नायब अमीर प्रोफेसर सलीम इंजीनियर और केंद्रीय सचिव शफी मदनी ने नई दिल्ली में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस मुद्दे पर गंभीरता से चर्चा की।

प्रोफेसर सलीम इंजीनियर ने कहा, “देश में नफरत भरे अपराधों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। कुछ ताकतें जान-बूझकर मुस्लिम समुदाय को उकसाने की कोशिश करती हैं, ताकि समाज में तनाव और हिंसा फैल सके। यह दुखद है कि समाज विरोधी तत्व बिना किसी डर के इन अपराधों को अंजाम दे रहे हैं, मानो उन्हें पुलिस और राजनीतिक संरक्षण प्राप्त हो। ऐसे में, सरकार और प्रशासन को चाहिए कि वे तुरंत कार्रवाई करते हुए इन अपराधियों को सजा दिलाएं।”

बुलडोजर के जरिए संपत्तियों के ध्वस्तीकरण पर उन्होंने कहा, “यह पूरी तरह से गैरकानूनी प्रक्रिया है, जो देश के विभिन्न हिस्सों में तेजी से फैल रही है। विशेष रूप से धार्मिक अल्पसंख्यक, खासकर मुस्लिम समुदाय, इस कार्रवाई का मुख्य निशाना बन रहे हैं। इसे ‘बुलडोजर न्याय’ का नाम देकर एक अमानवीय और तानाशाही रवैया अपनाया जा रहा है।”

प्रोफेसर सलीम ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले की सराहना करते हुए कहा, “सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बी.आर. गवई और के.वी. विश्वनाथन की बेंच ने इस तरह की गैरकानूनी ध्वस्तीकरण पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की है, जिसमें कहा गया है कि केवल अपराध के आरोप में किसी व्यक्ति की संपत्ति को नष्ट नहीं किया जा सकता। हमें उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में देशभर के लिए दिशा-निर्देश जारी करेगा और सभी संबंधित अधिकारी इसका पालन करेंगे।”

महाराष्ट्र में पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ आपत्तिजनक बयान देने वाले एक धार्मिक नेता और सत्ताधारी दल के एक नेता द्वारा भड़काऊ बयानबाजी का हवाला देते हुए प्रोफेसर सलीम ने कहा, “इस तरह के बयान जानबूझकर सांप्रदायिक तनाव और हिंसा फैलाने के लिए दिए जाते हैं। यह देश की शांति और सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा है, और न्यायालय को स्वतः संज्ञान लेते हुए कार्रवाई करनी चाहिए।”

असम की स्थिति पर बात करते हुए, शफी मदनी ने कहा, “फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल ने 28 बंगाली भाषा बोलने वाले मुसलमानों को विदेशी घोषित करके ट्रांजिट कैंपों में भेज दिया है, जो उनके मौलिक अधिकारों का हनन है। यह निर्णय स्पष्ट रूप से ‘मियां बंगाली मुसलमानों’ को गलत तरीके से निशाना बनाता है।”

उन्होंने आगे कहा, “जमात-ए-इस्लामी हिंद इन सभी व्यक्तियों की तुरंत रिहाई की मांग करती है और फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के फैसले पर रोक लगाने का आह्वान करती है। हम प्रभावित लोगों को कानूनी और नैतिक रूप से हरसंभव मदद देने के लिए तैयार हैं।”

शफी मदनी ने सरकार से इस मामले पर तुरंत संज्ञान लेने और यह सुनिश्चित करने की अपील की कि किसी भी नागरिक को अनुचित रूप से प्रताड़ित न किया जाए, क्योंकि सभी नागरिकों के सम्मान और अधिकारों की रक्षा करना सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है।

Anzarul Bari
Anzarul Bari
पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.
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