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और टाटा ने फिर संभाली एअर इंडिया की कमान

और टाटा ने फिर संभाली एअर इंडिया की कमान
69 साल बाद एयर इंडिया की कमान आज 27 जनवरी से फिर से टाटा ने संभाल ली है. घाटे से परेशान सरकार ने पिछले साल एयर इंडिया को टाटा के हाथ बेच दिया था. आज से इसका संचालन टाटा करेगा. सरकार को इससे अब कोई मतलब नहीं रहा. टाटा के हाथ में जाते ही एयर इंडिया के ऑपरेशन में कई तरह के बदलाव की खबरें भी आनी शुरू हो गई हैं. माना जा रहा है कि आने वाले समय में टाटा एयर इंडिया, देश-दुनिया की बेहतर सेवा कर सकेगी.
        गुरुवार को टाटा संस के चेयरमैन एन चंद्रशेखरन ने पीएम नरेंद्र मोदी से मुलाकात की. मुलाकात के बाद चंद्रशेखरन ने एअर इंडिया के अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी होने और एयरलाइन के वापस टाटा ग्रुप के पास आने पर खुशी जताई. इसके साथ ही करीब 69 साल बाद एयर इंडिया की कमान फिर से टाटा के हाथों में आ गई है. सरकार ने अक्टूबर 2021 में एअर इंडिया की 100% हिस्सेदारी टाटा को बेच दी थी.
     बता दें कि सरकार के साथ डील के तहत टाटा ग्रुप को एयर इंडिया और एयर इंडिया एक्सप्रेस का पूरा मालिकाना मिलेगा. इसके अलावा टाटा के पास पहले ही एयर एशिया और विस्तारा एयरलाइंस की अधिकांश हिस्सेदारी है. माना जा रहा है कि टाटा अपने सभी एयरलाइंस बिजनेस को मर्ज करके उसे एक कंपनी बना सकती है. ऐसा करने से उसे अतिरिक्त खर्च में कमी करने के साथ ज्यादा रेवेन्यू कमाने का मौका मिलेगा. हालांकि इस मामले को लेकर स्थिति एयर इंडिया की कमान पूरी तरह से टाटा के हाथों में आने के बाद उसे संभालने वाले नए मैनेजमेंट के फैसले से साफ होगी.
    नमक से लेकर स्टील तक बनाने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में शुमार टाटा समूह परफेक्शन के लिए जानी जाती है, ऐसे में एयर इंडिया के कामकाज में आने वाले महीनों में इसकी छाप देखने को मिल सकती है।जहां तक एयर इंडिया की कमान टाटा के संभालने पर कस्टमर्स पर पड़ने वाले असर की बात है तो फ्लाइट के ऑपरेशन में फौरन कोई बदलाव शायद न हो, लेकिन कुछ महीने बाद किराए से लेकर खाने तक हर चीज के और बेहतर होने की संभावना जताई जा रही है. साथ ही एयर इंडिया के विमान के अंदर और बाहर की ब्रांडिंग में भी बदलाव होगा.
   एयर इंडिया पिछले एक दशक के दौरान भारी नुकसान में रही है. इस पर 31 मार्च 2020 तक 70 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज था. एयर इंडिया को 2020-21 फाइनेंशियल ईयर में 7 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का घाटा हुआ है. टाटा ने एयर इंडिया को 18 हजार करोड़ रुपए में खरीदा है. साथ ही उसे एयर इंडिया का 23 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज भी चुकाना है. टाटा के सामने सबसे बड़ी चुनौती एयर इंडिया को घाटे से उबारकर मुनामा कमाने वाली कंपनी बनाना है.
     पिछले एक दशक के दौरान एअर इंडिया ने नए इंडियन एविएशन मार्केट में अपना हिस्सा तेजी से गंवाया है। एअर इंडिया अभी इंडियन एविएशन मार्केट में 11% की हिस्सेदारी के साथ तीसरे नंबर पर है।पहले नंबर पर इंडिगो (48% हिस्सेदारी) और दूसरे नंबर पर स्पाइसजेट (16% हिस्सेदारी) है। टाटा के सामने सबसे बड़ी चुनौती इन प्राइवेट कंपनियों की प्रतिस्पर्धा से निपटकर एअर इंडिया को टॉप पर पहुंचाने की होगी।
      टाटा को एयर इंडिया का मुंबई और दिल्ली स्थित एयरलाइंस हाउस भी मिलेगा. अकेले मुंबई ऑफिस की मार्केट वैल्यू 1,500 करोड़ रुपए से ज्यादा की है. एयर इंडिया की शुरुआत 1932 में टाटा समूह के चेयरमैन जेआरडी टाटा ने ही टाटा एयरलाइंस के रूप में की थी. ये देश की सबसे पुरानी एयरलाइन है. 1946 में इसका नाम बदलकर एयर इंडिया कर दिया गया. 1948 में एयर इंडिया ने मुंबई से लंदन के बीच पहली इंटरनेशनल उड़ान भरी थी. इसके साथ ही एशिया और यूरोप के बीच उड़ान भरने वाली एयर इंडिया न केवल भारत बल्कि पहली एशियाई एयरलाइन भी बनी थी.
   1953 में सरकार ने एयर इंडिया का राष्ट्रीयकरण करते हुए उसे सरकारी कंपनी बना दिया और इसे इंटरनेशनल फ्लाइट्स के लिए इंडियन एयरलाइंस और डोमेस्टिक फ्लाइट्स के लिए एयर इंडिया में बांट दिया. 2007 में सरकार ने इंडियन एयरलाइंस और एयर इंडिया का विलय कर दिया. इसके बाद से एयर इंडिया कर्ज में डूबने लगी. 2006-07 तक एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस का संयुक्त घाटा 770 करोड़ रुपए था और विलय के दो साल बाद ही मार्च 2009 तक यह बढ़कर 7200 करोड़ रुपए हो गया. मार्च 2020 तक एयर इंडिया पर 70 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज था. 2020-21 में भी इसे 7 हजार करोड़ से ज्यादा का घाटा हुआ है. अक्टूबर 2022 में टाटा ने एयर इंडिया की 100% हिस्सेदारी खरीद ली थी और जनवरी 2022 में उसे इसकी कमान मिल गई.
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पिछले 30 वर्षों से मिशनरी पत्रकारिता करने वाले अखिलेश अखिल की पहचान प्रिंट, टीवी और न्यू मीडिया में एक खास चेहरा के रूप में है। अखिल की पहचान देश के एक बेहतरीन रिपोर्टर के रूप में रही है। इनकी कई रपटों से देश की सियासत में हलचल हुई तो कई नेताओं के ये कोपभाजन भी बने। सामाजिक और आर्थिक, राजनीतिक खबरों पर इनकी बेबाक कलम हमेशा धर्मांध और ठग राजनीति को परेशान करती रही है। अखिल बासी खबरों में रुचि नहीं रखते और सेक्युलर राजनीति के साथ ही मिशनरी पत्रकारिता ही इनका शगल है। कंटेंट इज बॉस के अखिल हमेशा पैरोकार रहे है।

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