बिहार की राजनीति फिर से नए उफान पर जाती दिख रही है. नीतीश कुमार ने बीजेपी से अलग होने के बाद जातिगत जनगणना पर ज़ोर दिया था. उनकी समझ रही है कि इससे जातियों का पता ही नहीं चलेगा, बल्कि आरक्षण में भी इस से सहूलियत होगी. इसके साथ ही समाज के विकास के लिए योजना बनाने में भी मदद मिलेगी. हालांकि बीजेपी हमेशा इसका विरोध करती रही है. लेकिन नीतीश कुमार नहीं माने और अब पूरे बिहार में अगले सात जनवरी से जातिगत जनगणना की शुरुआत होने जा रही है. बिहार से शुरू हुई यह गणना अब देश की राजनीति को प्रभावित भी करेगी. देश के तमाम राज्यों में इसकी मांग बढ़ेगी और फिर एक नयी राजनीति की शुरुआत होगी. इसे आप मंडल पार्ट 2 की राजनीति भी कह सकते हैं.
आगामी सात जनवरी से शुरू होने वाले जाति गणना में लोगों से 26 तरह के सवाल पूछे जायेंगे. लोगों को अपनी जाति संबंधी प्रमाण पत्र की प्रति लगानी होगी. संभवत: जाति प्रमाण पत्र का नंबर कालम में अंकित करना होगा. जिन लोगों के पास जाति प्रमाण पत्र नहीं उपलब्ध होगा, उनकी जाति की प्रमाणिक पुष्टि आस पड़ोस के लोगों से पूछ कर की जायेगी.
जाति गणना के लिए सभी जिलों को 26 सवालों का प्रोफार्मा उपलब्ध कराया गया है. जाति गणना करने वाली टीम के सदस्यों की 15 दिसंबर से ट्रेनिंग आरंभ हो रही है. जाति आधारित गणना को पूरी तरह जमीन पर उतारने के लिए एक एप भी बनाया जायेगा. बेल्ट्रॉन को इसकी जिम्मेवारी भी सौंप दी गयी है.
इसकी अहम बातें ये है कि, जाति गणना के लिए रखना होगा जाति प्रमाण पत्र का नंबर. जिनके पास नहीं होगा जाति का प्रमाण पत्र उनके बारे में पड़ोसियों से जानकारी ली जायेगी. जाति गणना में लोगों से सरकार 26 सवाल पूछेगी और सात जनवरी से गणना आरंभ होगी.
सामान्य प्रशासन विभाग के प्रधान सचिव बी राजेंद्र ने कहा कि जाति गणना के लिए डाटा शीट करीब-करीब तैयार हो गया है. लोगों से आमदनी, जीवन स्तर और शैक्षणिक योग्यता को लेकर भी सवाल पूछे जायेंगे. राज्य सरकार ने जाति गणना के लिए सामान्य प्रशासन विभाग को नोडल विभाग बनाया है.
गौरतलब है कि बिहार में जातीय जनणणना को लेकर 1 जून, 2022 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में हुई. सर्वदलीय बैठक में सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया था. बैठक में बिहार में सभी धर्मों की जातियों और उपजातियों की गणना कराने को लेकर फैसला किया गया था.