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आखिर क्यों चुनाव लड़ने के लिए आयु सीमा घटाने पर मंथन कर रही है सरकार ?

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आखिर क्यों चुनाव लड़ने के लिए आयु सीमा घटाने पर मंथन कर रही है सरकार ?

बाकी तमाम मसलों पर सत्ता पक्ष और विपक्ष में भले ही खींचतान चलती हो लेकिन जब सबके लिए लाभ की बात हो तो सारे दल एक हो जाते हैं. सभी के सुर भी एक ही होते हैं. राजनीति में सबके अपराधी चुनाव लड़ेंगे, चुनाव में सारे दल करोड़पति उतारेंगे और आर्थिक लाभ सब लेंगे. इन मसलों पर आपसी सहमति होती है. अब सरकार लोकसभा और विधान सभा चुनाव में उम्मीदवारों की आयुसीमा कम करने पर विचार कर रही है. कई राजनीतिक दल इसके पक्ष में हैं. कहा जा रहा है कि देश में युवाओं की आबादी 65 फीसदी है. और जब 18 साल में कोई मतदान दे सकता है तो फिर चुनाव लड़ने के लिए 21 और 25 साल की उम्र सीमा क्यों ?

देश की 65% युवा आबादी को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार लोकसभा और विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी की आयु सीमा घटाने पर विचार कर रही है. कई राजनीतिक दल इसके पक्ष में हैं. ये दल तर्क दे रहे हैं कि अगर नगर निगम-परिषद में चुनाव लड़ने के लिए उम्र सीमा 21 साल है तो फिर विधानसभा और लोकसभा के लिए यह उम्र सीमा 25 साल क्यों होनी चाहिए.

बता दें कि रालोद, एमआईएम, वाईएसआरसीपी, राजद, बीजद, शिवसेना (उद्धव गुट) समेत कुछ दल आयु सीमा घटाने के पक्ष में हैं. बीजेपी और कांग्रेस के कई सांसद भी चाहते हैं कि आयु सीमा घटाने का वक्त आ चुका है. सूत्रों का कहना है कि केंद्र सरकार इस बारे में गंभीरता से मंथन शुरू कर चुकी है. भारत युवा देश है, लेकिन सरकार का मानना है कि 2030 के बाद देश के लोगों की औसत उम्र बढ़नी शुरू हो जाएगी. इसलिए अगले 7-8 साल ही ऐसे हैं, जिनमें ज्यादा से ज्यादा युवाओं को जनप्रतिनिधि के रूप में संसद या विधानसभाओं में पहुंचने का मौका मिल सकता है.

इसलिए इस मुद्दे पर जल्दी ही कोई फैसला लेना जरूरी है. देश की आबादी की औसत उम्र 25 साल है, जो कि चीन से 10 साल और अमेरिका से 15 साल कम है. यानी दुनिया के किसी भी बड़े देश के पास भारत जैसी युवा शक्ति नहीं है. आने वाले 20 साल में भारत के पास भी नहीं बचेगी. इसलिए सरकार का मानना है कि युवाओं को ज्यादा से ज्यादा मौके देने से क्रांतिकारी बदलाव हो सकते हैं.

राष्ट्रीय लोकदल के नेता जयंत सिंह चौधरी ने इस संबंध में संसद में एक निजी विधेयक पेश किया है. उनके इस विधेयक पर बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता मानते हैं कि कोई भी राजनीतिक दल युवाओं को रिझाने के लिए इस मुद्दे को बड़ा बनाकर पेश कर सकता है. इसलिए हमें पहल करनी चाहिए कि समय रहते विधायक या सांसद बनने की न्यूनतम उम्र 21 साल हो जाए.

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पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.

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