अखिलेश अखिल
दो दिन पहले भारत ने तत्काल प्रभाव से गेहूं निर्यात पर रोक लगाने की बात कही है. भारत के बदले इस रुख से दुनिया के कई देश अचंभित हैं और भारत के भीतर भी इसको लेकर सवाल उठ रहे हैं. दरसल पिछले महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ बातचीत के दौरान कहा था कि, यदि विश्व व्यापार संगठन यानी डब्लू टी ओ अनुमति देता है तो वो दुनिया को भारत के खाद्य भंडार की आपूर्ति करने की पेशकश करेंगे. मोदी ने गुजरात में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा था कि, यूक्रेन में युद्ध के कारण दुनिया के विभिन्न हिस्सों में खाद्य भंडार घट रहा है. आज दुनिया एक अनिश्चित स्थिति का सामना कर रही है, क्योंकि किसी को वह नहीं मिल रहा है जो वह चाहता है. पेट्रोल, तेल और उर्वरक की खरीद मुश्किल हो रही है क्योंकि सभी दरवाजे बंद हो रहे हैं. मोदी ने कहा कि इस (रूस-यूक्रेन) युद्ध शुरू होने के बाद से हर कोई अपना स्टॉक सुरक्षित करना चाहता है. मोदी ने कहा दुनिया अब एक नई समस्या का सामना कर रही है. दुनिया का अन्न भंडार खाली हो रहा है. मैं अमेरिकी राष्ट्रपति से बात कर रहा था, और उन्होंने इस मुद्दे को भी उठाया. मैंने सुझाव दिया कि अगर विश्व व्यापार संगठन अनुमति देता है, तो भारत कल से दुनिया को खाद्य भंडार की आपूर्ति करने के लिए तैयार है.
मोदी ने कहा था कि हमारे पास अपने लोगों के लिए पहले से ही पर्याप्त भोजन है. हमारे किसानों ने दुनिया को खिलाने की व्यवस्था की है. हालाँकि, हमें दुनिया के कानूनों के अनुसार काम करना है, इसलिए मुझे नहीं पता कि विश्व व्यापार संगठन कब अनुमति देगा और हम दुनिया को भोजन की आपूर्ति कर सकते हैं.
लेकिन 13 मई को अचानक भारत सरकार ने गेहूं के निर्यात पर रोक लगा दी है. भारत के इस खेल पर दुनिया के कई देश अचंभित हैं. सात औद्योगिक देशों के समूह ने भारत सरकार के गेहूं के निर्यात पर रोक लगाने के फैसले की निंदा की है. जर्मनी के कृषि मंत्री केम ओजडेमिरो ने शनिवार को कहा कि अगर हर देश निर्यात पर रोक लगाने लगेगा और बाजार बंद कर देगा तो इससे आपदा और बढ़ेगी. गौरतलब है गेहूं के बढ़ते दाम और कम पैदावार की आशंका के चलते शनिवार को भारत ने सरकार के अनुमति के बिना गेहूं निर्यात पर रोक लगा दी है. ऐसे में रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते खाद्य संकट झेल रहे कई देशों के लिए मुश्किल खड़ी हो गई है.
दूसरी तरफ सरकार ने दुनिया की परवाह किए बिना देश में महंगाई को काबू करने और खाद्य पदार्थों की कीमत स्थिर रखने के उद्देश्य से गेहूं कि निर्यात पर रोक लगा दी है. पिछले कुछ समय में आंटे की कीमत में जबर्रदस्त तेजी देखने को मिली है. यही वजह है कि सरकार गेहूं के निर्यात पर रोक लगाकर ये सुनिश्चित करना चाहती है कि देश में आंटे की कमी ना हो और कीमतें नियंत्रित रहें.
गौरतलब है कि भारत गेहूं का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक देश है लेकिन इस साल गेहूं की कम पैदावार और रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते वैश्विक कीमतों में जबर्रदस्त उछाल के चलते सरकार ने गेहूं निर्यात ना करने का फैसला किया है. सरकार ने आदेश में कहा है कि शुक्रवार तक जो भी एक्सपोर्ट डील साइन हुई है उसे पूरा किया जाएगा लेकिन शनिवार से गेहूं का निर्यात करने के लिए सरकार की अनुमति लेनी होगी.
सरकार ने अपने फैसले में स्पष्ट रूप से कहा है कि सिर्फ उनके आदेश के बाद ही गेहूं का निर्यात किया जा सकेगा. माना जा रहा है कि जरूरत पड़ने पर विकासशील देशों को सरकार गेहूं का निर्यात कर सकती है. हालांकि सरकार के इस फैसले से ये भी साफ है कि सरकार देश में आटे के दाम को और बढ़ने नहीं देना चाहती और पहले ये सुनिश्चित करना चाहती है कि देश में आटा पर्याप्त मात्रा में मौजूद हो.
बताते चलें कि रूस-यूक्रेन युद्ध का वैश्विक कृषि बाजार पर गहरा असर पड़ा है. यूक्रेन का ट्रेड रूट खत्म हो चुका है और वो अब जी-7 देशों के पास वैकल्पिक व्यापार रूट बनाने की मांग कर रहा है. यूक्रेन का कहना है कि उनके पास 20 मिलियन टन गेहूं है जिसे तुरंत निर्यात किए जाने की जरूरत है लेकिन युद्धग्रस्त देश में माल ढुलाई का कोई रास्ता नहीं बचा है.
विपक्षी पार्टियां पीएम मोदी के इस खेल को हास्यास्पद बताया है. विपक्ष का कहना है कि प्रधानमंत्री बिना कुछ सोंचे ही फैसला लेते हैं और प्रचार करते हैं. अपने देश में लोग परेशान है और उन्होंने बिना कुछ समझे ही खुद पहल की और फिर उस पर रोक भी लगा दी. इससे देश के मान सम्मान पर असर पड़ता है. सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए.