शुक्रवार को चुनाव आयोग ने हिमाचल प्रदेश विधान सभा चुनाव की घोषणा कर दी है. लेकिन गुजरात चुनाव के तारीखों की घोषणा नहीं गई. क्या इसके पीछे कोई रणनीति है ? या फिर आयोग को किसी के इशारे का इन्तजार है ? इसी तरह के कई और सवाल अब उठने लगे हैं. गुजरात चुनाव की घोषणा पर आयोग की चुप्पी कई सवालों को जन्म दे रही है.
हिमाचल के चुनाव बहुत जल्द कराये जा रहे हैं. 24 से 26 अप्रैल तक देश में दिवाली और भैया दूज का त्यौहार है. घोषणा के मुताबिक़ हिमाचल में 12 नवम्बर को चुनाव होने हैं, और मतगणना 8 दिसंबर को होनी है. यानी केवल 15 दिनों का समय चुनाव प्रचार के लिए रखा गया है. हो सकता है कि चुनाव आयोग गुजरात का चुनाव कई चरणों में कराने की तैयारी कर रहा हो. ऐसे गुजरात के चुनाव को लेकर कई तरह के कयास भी लगाए जा रहे हैं. कहा जा रहा है कि गुजरात के चुनाव तीन चरणों में हो सकते हैं. एक तारीख नवम्बर में और दो तारीख दिसंबर में निर्धारित हो सकती है.
हिमाचल में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधी लड़ाई है. कहा जा रहा है कि हिमाचल में जल्द चुनाव कराने के पीछे बीजेपी की रणनीति है. अधिकतर नेता कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष के चुनाव में लगे हुए हैं. जबकि आधा कांग्रेस के नेता भारत जोड़ो यात्रा में लगे हुए हैं. इसी का लाभ बीजेपी उठाने की तैयारी में है. कहा जा रहा है कि बीजेपी इसका लाभ उठाना चाह रही है. उधर आप जैसी पार्टी भी हिमाचल में चुनाव लड़ रही है.
बीजेपी को लगता है हिमाचल में आप पार्टी बीजेपी को नुक्सान नहीं पहुंचा सकती. कांग्रेस का ही वोट वह कटेगी. कहा यह भी जा रहा है कि सत्ता में रहते हुए बीजेपी एक लोकसभा और दो विधान सभा सीट हार चुकी है. बीजेपी का मत है कि वीरभद्र सिंह के निधन के बाद ये चुनाव हुए थे. इसलिए परिणाम कांग्रेस के पक्ष में चले गए.
लेकिन इस बात का अनुमान भी है राजस्थान की तरह ही हिमाचल में भी सरकार रिपीट की सम्भावना कम ही है. आप पार्टी ने हिमाचल में घमासान मचा रखा है. इसलिए इस बार का चुनाव बीजेपी के लिए भी आसान नहीं है और न ही कांग्रेस के लिए ही.
गुजरात में पिछले चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस में बड़ी लड़ाई थी. कांग्रेस सरकार बनाने से तो चूक गई. लेकिन बीजेपी की भी हालत ख़राब हो गई. इस बार बीजेपी की परेशानी आप से ज्यादा है. बीजेपी की रणनीति यही है कि पार्टी के अधिकतर नेता आप को हराने के लिए गुजरात में ज्यादा समय देंगे. यही वजह है हिमाचल और गुजरात के चुनाव की तारीख लम्बे गैप के तहत रखने की रणनीति है.