Thursday, September 19, 2024
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अब देश में हिन्दुओं को भी मिलेगा अल्पसंख्यक का दर्जा

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अखिलेश अखिल

केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका में पूछे गए सवाल पर दिए गए जवाब पर गौर करें तो इस देश की राज्य सरकारें हिंदुओं, धार्मिक और भाषाई समुदायों को भी अल्पसंख्यक का दर्जा दे सकती हैं. केंद्र के इस जवाब के लिहाज से देखें तो भारत में हिंदुओं को भी अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जा सकता है. बता दें कि भारत में अभी तक मुसलमान, सिख, इसाई, जैन, पारसी और बौद्धों समेत कुछ अन्य समुदाय के लोगों को अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त है.
मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को यह जानकारी दी है कि राज्य सरकारें भी अपनी सीमा में हिंदू सहित धार्मिक और भाषाई समुदायों को अल्पसंख्यक घोषित कर सकती हैं. केंद्र सरकार ने यह दलील अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका के जवाब में दी है. इस याचिका में उन्होंने अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के लिए राष्ट्रीय आयोग अधिनियम-2004 की धारा-2 (एफ) की वैधता को चुनौती दी है.
सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने अपनी अर्जी में धारा-2 (एफ) की वैधता को चुनौती देते हुए कहा कि यह केंद्र को अकूत शक्ति देती है, जो साफ तौर पर मनमाना, अतार्किक और आहत करने वाला है. याचिकाकर्ता ने देश के विभिन्न राज्यों में अल्पसंख्यकों की पहचान के लिए दिशानिर्देश तय करने के निर्देश देने की भी मांग की है.
अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में दलील दी है कि देश के कम से कम 10 राज्यों में हिंदू भी अल्पसंख्यक हैं, लेकिन उन्हें अल्पसंख्यकों की योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है. अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने अपने जवाब में कहा है कि हिंदू, यहूदी, बहाई धर्म के अनुयायी इन राज्यों में अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना कर सकते हैं और उन्हें चला सकते हैं. साथ ही, राज्य के भीतर अल्पसंख्यक के रूप में उनकी पहचान से संबंधित मामलों पर राज्य स्तर पर विचार किया जा सकता है.
अश्विनी उपाध्याय की दलील पर अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने कहा कि यह (कानून) कहता है कि राज्य सरकार भी राज्य की सीमा में धार्मिक और भाषाई समुदायों को अल्पसंख्यक समुदाय घोषित कर सकती हैं. मंत्रालय ने कहा कि उदाहरण के लिए महाराष्ट्र सरकार ने राज्य की सीमा में ‘यहूदियों’ को अल्पसंख्यक घोषित किया है, जबकि कर्नाटक सरकार ने उर्दू, तेलगू, तमिल, मलयालम, मराठी, तुलु, लमणी, हिंदी, कोंकणी और गुजराती भाषाओं को अपनी सीमा में अल्पसंख्यक भाषा अधिसूचित कर रखी है. केंद्र ने कहा कि इसलिए राज्य भी अल्पसंख्यक समुदाय अधिसूचित कर सकती हैं.
याचिकाकर्ता का आरोप है कि यहूदी, बहाई और हिंदू धर्म के अनुयायी जो लद्दाख, मिजोरम, लद्वाद्वीप, कश्मीर, नगालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब और मणिपुर में वास्तविक अल्पसंख्यक हैं. अपनी पसंद से शैक्षणिक संस्थान की स्थापना और संचालन नहीं कर सकते, यह गलत है. इस आरोप के जवाब में मंत्रालय ने कहा कि यहूदी, बहाई और हिंदू धर्म के अनुयायी या वो जो राज्य की सीमा में अल्पसंख्यक के तौर पर चिह्नित किए गए हैं, उल्लेखित किए गए राज्यों में क्या अपनी पसंद से शैक्षणिक संस्थान की स्थापना और संचालन कर सकते हैं. इसपर विचार राज्य स्तर पर किया जा सकता है.
मंत्रालय द्वारा दाखिल हलफनामें में कहा गया कि अल्पसंख्यकों के लिए राष्ट्रीय आयोग अधिनियम-1992 को संसद ने संविधान के अनुच्छेद-246 के तहत लागू किया है, जिसे सातवीं अनुसूची के तहत समवर्ती सूची की प्रवेशिका 20 के साथ पढ़ा जाना चाहिए. मंत्रालय ने कहा कि अगर यह विचार स्वीकार किया जाता है कि अल्पसंख्यकों के मामलों पर कानून बनाने का अधिकार सिर्फ राज्यों को है, तो ऐसी स्थिति में संसद इस विषय पर कानून बनाने की उसकी शक्ति से उसे वंचित कर देगी, जो संविधान के विरोधाभासी होगा. केंद्र ने कहा कि अल्पसंख्यकों के लिए राष्ट्रीय आयोग अधिनियम-1992 न तो मनमाना है या न ही अतार्किक है और न ही संविधान के किसी प्रावधान का उल्लंघन करता है. मंत्रालय ने उस दावे को भी अस्वीकार कर दिया, जिसमें कहा गया कि धारा-2(एफ) केंद्र को अकूत ताकत देती है.
अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय के जरिये दाखिल अर्जी में कहा गया कि ‘असली अल्पसंख्यकों को लाभ देने से इंकार और योजना के तहत मनमाना और अतार्किक’ वितरण उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. अर्जी में कहा गया कि वैकल्पिक तौर पर निर्देश दिया जाए कि लद्दाख, मिजोरम, लक्षद्वीप, कश्मीर, नगालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब और मणिपुर में रहने वाले यहूदी, बहाई और हिंदू धर्म के अनुयायी अपनी इच्छा और टीएमए पई के फैसले की भावना के तहत शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और संचालन कर सकते हैं.
बताते चलें कि सर्वोच्च अदालत ने टीएमए पई फाउंडेशन मामले में व्यवस्था दी थी की राज्य को अपनी सीमा में अल्पसंख्यक संस्थानों में राष्ट्रहित में उच्च दक्षता प्राप्त शिक्षक मुहैया कराने के लिए नियामकीय व्यवस्था लागू करने का अधिकार है, ताकि शिक्षा में उत्कृष्टता प्राप्त की जा सके. अदालत ने इससे पहले केंद्र द्वारा पांच समुदायों मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी को अल्पसंख्यक घोषित किए जाने के खिलाफ विभिन्न उच्च न्यायालयों में दाखिल याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित करने और मुख्य याचिका के साथ शामिल करने की अनुमति दी थी.

नीतीश कुमार को लेकर बड़े डील की शुरुआत

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क्या पटना, राजनीतिक डील का बड़ा केंद्र बन गया है ? क्या ये सारे राजनीतिक डील नीतीश कुमार को लेकर चल रहे हैं ? और क्या ये डील सफल हो गई तो नीतीश कुमार केंद्र में आकर 2024 के चुनाव का बड़ा चेहरा होंगे ? क्या नीतीश कुमार पीएम मोदी के 2024 मिशन के सारथि होंगे या फिर विपक्ष का चेहरा ? पटना की राजनीतिक गलियारों में इसी तरह की कई बातें गर्दिश कर रही हैं. इन बातों को बल तब और भी मिल गया जब नीतीश कुमार योगी के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने लखनऊ पहुंचे और अपना सर झुका कर पीएम मोदी का अभिवादन किया. अब से पहले सीएम नीतीश कुमार को कभी भी पीएम मोदी के सामने सर झुकाकर अभिवादन करते नहीं देखा गया था. पटना में चल रही संभावित डील की हम चर्चा करेंगे लेकिन सबसे पहले पांच राज्यों के चुनाव परिणाम से उपजी राजनीति पर एक नजर.
पांच राज्यों के चुनाव में बीजेपी चार राज्यों में वापस कर गई. पंजाब में आप ने कांग्रेस को बेदखल कर दिया. इन पांचों राज्यों के चुनाव परिणाम ने कांग्रेस की साख पर न सिर्फ बट्टा लगा दिया बल्कि उसके भविष्य पर भी सवाल खड़ा कर दिया है. कांग्रेस का भविष्य क्या होगा इस पर मंथन जारी है लेकिन पार्टी के भीतर जिस तरह के मौकाटेरियन नेताओं की भरमार है, उसे देखते हुए निकट भविष्य में कांग्रेस के भीतर किसी बड़े बदलाव और बड़ी उपलब्धि की सम्भावना नहीं की जा सकती. हाँ एक बात साफ़ है कि अगले लोक सभा चुनाव तक कांग्रेस अपना परफॉर्मेंस नहीं सुधारती है तो फिर उसका मर्सिया पढ़ते लोगों को देर नहीं लगेगी और बीजेपी को रोक पाना हर किसी के लिए और कठिन हो जायेगा. अगर ऐसा हुआ तो भारतीय लोकतंत्र के लिए यह सब चुनौती भरा होगा, क्योंकि बीजेपी के सामने अगर कोई मजबूत विपक्ष नहीं रहेगा तो संसद से सड़क तक सत्ता सरकार के खिलाफ फिर कौन बोलेगा.
यह बात और है कि भारत में कई ऐसे राज्य हैं जहां आज क्षेत्रीय दलों की मजबूती बढ़ी है. लेकिन ऐसे सूबों की संख्या आखिर कितनी है ? दक्षिण में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु में क्षेत्रीय दलों की सरकार है और वहां के क्षत्रप भी मजबूत हैं तो ओडिशा, बंगाल में नवीन पटनायक और ममता की मजबूत मौजूदगी है. इधर दिल्ली, पंजाब में आप की सरकार है. लेकिन इन दलों की इतनी हैसियत नहीं कि अगले चुनाव में बीजेपी को चुनौती दे सकें. बिहार, महाराष्ट्र और झारखंड में जो सरकारें चल रही हैं वह साझा सरकार है और इन तीनों राज्यों में भी बीजेपी की मजबूत पकड़ है. कभी भी कोई बड़ा खेल हो सकता है. समय पलटते ही यहां बीजेपी कोई भी खेल कर सकती है. जिस तरह की राजनीति दिख रही है और जिस तरह से बीजेपी के भीतर रणनीति बन रही है, ऐसे में यह भी कहा जा सकता है कि आने वाले समय में बिहार, झारखंड और महाराष्ट्र की राजनीति में कई बड़े बदलाव के संकेत मिल रहे हैं.
खैर, अब डील की बात. जानकारी के मुताबिक़ इन दिनों बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार गदगद हैं. बीजेपी के सहयोग से वो बिहार सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं. यह बात और है कि जदयू और बीजेपी के बीच भिड़ंत चलती रहती है और बीजेपी के कई नेता अक्सर नीतीश सरकार को घेरते भी रहते हैं, लेकिन व्यक्तिगत रूप से ईमानदार, मेहनती और हमेशा बिहार के विकास के बारे में सोचते रहने वाले नीतीश कुमार बीजेपी को ज्यादा कुछ कहने से बचते रहते हैं. इसके कारण भी हैं. एक तो उनकी पार्टी के पास पहले वाला संख्या बल नहीं है और दूसरी संभावना रहते हुए भी अभी वो राजद के साथ नहीं जाना चाहते, और तीसरी बात यह है कि एनडीए में रहकर ही अपनी अंतिम इच्छा की पूर्ति की तलाश करते हैं.
किसी भी राजनेता की अंतिम इच्छा क्या होती है ? प्रधानमंत्री या फिर राष्ट्रपति बनने की. हालांकि विपक्ष की तरफ से पीएम का चेहरा बनने का ऑफर जरूर है लेकिन जीत की सम्भावना से वो सशंकित हैं. और राष्ट्रपति का ऑफर मिल जाए तो फिर क्या कहने ! इस मामले में नीतीश कुमार कुछ ज्यादा ही तेज हैं और मौजूदा देश के नेताओं में सबसे ज्यादा चालाक भी. उनकी समझदारी और चालाकी के सामने शायद ही पीएम मोदी या अमित शाह ठहर पाए. नीतीश कुमार वर्तमान को ज्यादा तरजीह देते हैं और भविष्य पर नजर रखते हैं और भविष्य उनके पाले में कैसे आये इस पर मंथन भी करते रहते हैं.
बिहार से खबर मिल रही है कि अगले महीने चार पांच राज्यों के सीएम बिहार जा रहे हैं. इनकी मुलाकात नीतीश कुमार से होनी है. जाहिर है कि 2024 के चुनाव को लेकर चर्चा होगी. जानकारी के मुताबिक मुख्य मंत्रियों की यह बैठक नीतीश कुमार को अगले पीएम उम्मीदवार को लेकर होनी है. नीतीश कुमार इस पर अपनी राय क्या रखेंगे इस पर अभी कुछ नहीं कहा जा सकता. हालांकि इन बातों की जानकारी बीजेपी के नेताओं को भी है और बीजेपी पार्टी हाई कमान को भी.
उधर बीजेपी भी नीतीश कुमार के सहारे एक तीर से कई शिकार करने के फेर में है. चूंकी नीतीश कुमार एनडीए का हिस्सा हैं इसलिए बीजेपी अब अगले राष्ट्रपति उम्मीदवारी के रूप में नीतीश कुमार के साथ डील कर रही है. इससे बीजेपी को कई लाभ है. एक तो बिहार एनडीए की मजबूती बनी रहेगी और जब नीतीश कुमार केंद्र में आ जायेंगे तब बिहार में बीजेपी का मुख्यमंत्री बन जाएगा. जानकारी के मुताबिक़ अगर कोई बड़ी घटना नहीं हुई और डील में कोई हेरा फेरी नहीं हुई तो नित्यानंद राय को बिहार का सीएम बनाया जा सकता है और जदयू के दो नेता उपेंद्र कुशवाहा और ललन सिंह उप मुख्यमंत्री बनाये जा सकते हैं. जानकारी के मुताबिक उपेंद्र कुशवाहा को लेकर भी एक पेंच फंसा है नीतीश चाहते हैं कि कुशवाहा को केंद्र में समायोजित किया जाय. लेकिन अभी इस पर बात नहीं बनी है. लेकिन ऐसा नहीं भी होता है तो कुशवाहा को बिहार में ही उपमुख्यमंत्री बनाया जा सकता है.
इस डील से बीजेपी को तीसरा लाभ 2024 के लोकसभा चुनाव में भी मिलेगा. नीतीश कुमार और उपेंद्र कुशवाह जिस कुर्मी और कोइरी समाज से आते हैं उसकी देश के कई राज्यों में मजबूत पकड़ है और मजबूत वोट बैंक भी. उत्तरप्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान में कुर्मी और कोइरी समाज की राजनीति में मजबूत पकड़ है और अगर नीतीश कुमार को राष्ट्रपति के तौर पर बैठा दिया जाता है तो उस समाज में इस नियुक्ति का बड़ा प्रभाव पडेगा और अगले लोकसभा चुनाव में उस समाज का वोट बीजेपी के पाले में जाएगा. बीजेपी के इस खेल को संघ कितना मानता है इसे भी देखना होगा लेकिन जब बातें सत्ता में बने रहने की हो तब संभव है कि संघ भी इस पर अपनी मुहर लगा दे.
उधर, नीतीश कुमार अभी इस पर मौन हैं. लेकिन लखनऊ में पीएम मोदी के सामने झुककर अभिवादन करने को आप इसी रूप में देख सकते हैं. जहाँ तक अगले लोक सभा चुनाव में विपक्षी चेहरा बनने की बात है वह भी नीतीश कुमार के लिए कम लुभावना नहीं है. लेकिन नीतीश कुमार को यह अनुमान है कि अगले लोक सभा चुनाव में विपक्ष कोई बड़ा खेल करने की हालत में नहीं है और अभी जिस तरह के हालत हैं और मोदी के प्रति लोगों में रुझान है ऐसे में अगला लोक सभा चुनाव भी बीजेपी के पक्ष में ही जा सकता है. फिर यह चुनाव तो ढाई साल बाद होने हैं जबकि राष्ट्रपति चुनाव तो इसी साल होने हैं. इसलिए निश्चित को छोड़कर अनिश्चित के पाले में नीतीश कुमार नहीं पड़ना चाहते. बावजूद इसके अगर बीजेपी नीतीश कुमार को लेकर कई मसलों पर हिचकती भी है तो नीतीश के रास्ते खुले हुए हैं और एनडीए से हटने के कई बहाने और तर्क भी हैं उनके पास मौजूद हैं.
इस राजनीतिक मिलन और डील का आने वाले दिनों में केंद्र और बिहार की राजनीति पर कितना असर पड़ेगा इसे देखना है.

संघ समर्थित संस्था राष्ट्रीय मुस्लिम मंच की देश व्यापी इफ्तार पार्टी

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अंज़रुल बारी

देश की आगामी राजनीति को साधने और मुस्लिम समाज में अपनी पैठ को और बढ़ाने के लिए संघ अब एक नई राजनीति की शुरुआत करने जा रहा है. दरअसल कुछ बाद से रमजान का पवित्र महीना शुरू होने वाला है. ऐसे में संघ समर्थित संगठन मुस्लिम राष्ट्रीय मंच रमजान के महीने में देश भर में इफ्तार पार्टी का आयोजन करेगा. देश भर में आयोजित होने वाली इफ्तार पार्टी में संघ की केंद्रीय टीमें भी शामिल होंगी. मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के संस्थापक इंद्रेश कुमार आरएसएस की केंद्रीय टीमों से अपने इलाके में आयोजित होने वाली इफ्तार पार्टी में शामिल होने का अनुरोध करेंगे.
रमजान के बाद संघ से जुड़ा संगठन एमआरएम देश भर में ईद मिलन का कार्यक्रम भी आयोजन करेगा. संगठन शांति और सौहार्द का संदेश देने के लिए समाज के विभिन्न वर्गों के प्रतिष्ठित लोगों और संघ के नेताओं को ईद मिलन में शामिल होने के लिए आमंत्रित करेगा.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, एमआरएम का हर कार्यकर्ता पूरे देश में रमजान के पवित्र महीने में कम से कम एक दिन के लिए इफ्तार की मेजबानी करेगा. एमआरएम के संस्थापक और मुख्य संरक्षक इंद्रेश कुमार की अध्यक्षता में शनिवार को हुई बैठक में यह फैसला लिया गया. इसकी जानकारी संगठन के प्रवक्ता शाहिद सईद ने दी है.
शाहिद सईद ने बताया कि इंद्रेश कुमार व्यक्तिगत रूप से आरएसएस की केंद्रीय टीम से अपने-अपने क्षेत्रों में एमआरएम कार्यकर्ताओं द्वारा आयोजित इफ्तार में शामिल होने का अनुरोध करेंगे. उन्होंने बताया कि रमजान के बाद संगठन द्वारा आयोजित होने वाले ईद मिलन समारोह में शामिल होने के लिए आरएसएस के वरिष्ठ नेताओं को भी आमंत्रित किया जाएगा. आरएसएस राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य इंद्रेश कुमार ने देश में मुसलमानों को हिंदुओं के करीब लाने के उद्देश्य के साथ नवंबर 2002 में एमआरएम की स्थापना की थी.
सईद ने कहा कि बैठक में कई महत्वपूर्ण मुद्दों चर्चा की गई. एमआरएम के प्रवक्ता ने कहा कि इस बैठक में संगठन को और विस्तार देने की आवश्यकता पर बल दिया गया. साथ ही भारत और विदेशों में भी सदस्यता अभियान शुरू करने का फैसला लिया गया है. उन्होंने बताया कि इस बैठक में फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ की सराहना की गई जो लोगों के सामने सच्चाई लेकर आई है.

यूपी की योगी सरकार के 22 मंत्रियों पर गंभीर आपराधिक आरोप

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अखिलेश अखिल

यूपी की योगी सरकार के 22 मंत्रियों पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं. योगी मंत्रिमण्डल के कुल 53 मंत्रियों में से 45 के हलफनामे की जांच से पता चला है कि 22 मंत्रियों पर गंभीर आरोप हैं ऐसे में सवाल है कि क्या आरोपी मंत्री कभी जनता के साथ न्याय कर सकेंगे ?
चुनाव अधिकार निकाय एडीआर ने शनिवार को अपनी एक रिपोर्ट में कहा कि उत्तर प्रदेश के 45 नए मंत्रियों में से 22 ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए हैं और उनमें से ज्यादातर पर गंभीर आरोप हैं.
उत्तर प्रदेश इलेक्शन वॉच और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने मुख्यमंत्री सहित कुल 53 मंत्रियों में से 45 के हलफनामों का विश्लेषण किया है. संजय निषाद और जितिन प्रसाद के हलफनामे इस रिपोर्ट को जारी करते समय चुनाव आयोग की वेबसाइट पर विश्लेषण के लिए उपलब्ध नहीं थे, जबकि मंत्रियों जेपीएस राठौर, नरेंद्र कश्यप, दिनेश प्रताप सिंह, दयाशंकर मिश्रा दयालू, जसवंत सैनी और दानिश आजाद अंसारी का विवरण का विश्लेषण नहीं किया गया क्योंकि वो वर्तमान में राज्य विधानसभा या विधान परिषद के सदस्य नहीं हैं.
एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार, 22 (49 फीसदी) मंत्रियों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए हैं और 20 (44 फीसदी) मंत्रियों ने अपने खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले घोषित किए हैं. विश्लेषण किए गए 45 मंत्रियों में से 39 (87 फीसदी) करोड़पति हैं और उनकी औसत संपत्ति 9 करोड़ रुपये आंकी गई है. उनके हलफनामे के अनुसार, तिलोई निर्वाचन क्षेत्र के मयंकेश्वर शरण सिंह के पास सबसे अधिक घोषित कुल संपत्ति 58.07 करोड़ रुपये है और धर्मवीर सिंह, एक एमएलसी, 42.91 लाख रुपये, सबसे कम घोषित कुल संपत्ति वाले मंत्री हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि सत्ताईस मंत्रियों ने देनदारियों की घोषणा की है. भोगनीपुर निर्वाचन क्षेत्र के राकेश सचान पर 8.17 करोड़ रुपये की देनदारी है, जो मंत्रियों में सबसे अधिक है. इसमें कहा गया है कि नौ (20 प्रतिशत) मंत्रियों ने अपनी शैक्षणिक योग्यता कक्षा 8 से 12 के बीच घोषित की है, जबकि 36 (80 प्रतिशत) मंत्री स्नातक और उससे आगे हैं. बीस (44 प्रतिशत) मंत्रियों ने अपनी आयु 30 से 50 वर्ष के बीच घोषित की है जबकि 25 (56 प्रतिशत) मंत्रियों ने कहा है कि उनकी आयु 51 से 70 वर्ष के बीच है. विश्लेषण किए गए 45 मंत्रियों में से पांच (11 फीसदी) महिलाएं हैं.

बिहार में छोटी पार्टियों को निगलती बीजेपी, अब साहनी को पैदल करने की तैयारी

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अखिलेश अखिल

बड़ी मछलियां कैसे छोटी मछलियों को अपना निवाला बनाती हैं इसका उदहारण बिहार में देखने को मिल रहा है. वीआईपी नेता मुकेश साहनी बड़े मजबूत अंदाज में बिहारी की राजनीति में अपनी पैठ बना रहे थे. पिछले चुनाव में चार विधायक जीतकर वह एनडीए का हिस्सा भी बने थे. लेकिन अब पार्टी के अध्यक्ष मुकेश साहनी ही पैदल होने वाले हैं. उनके तीन विधायकों को बीजेपी ने अपना बना लिया है जबकि मुकेश साहनी को अब मंत्रिमंडल से हटाने की तैयारी चल रही है. इसकी विधिवत शुरुआत भी हो गई है. इसके लिए बीजेपी ने अनुशंसा भी कर दी है. जिसके बाद सीएम नीतीश कुमार ने राज्यपाल को इस संबंध में पत्र भेज दिया है.
मिली जानकारी के अनुसार आज ही राज्यपाल, मुकेश साहनी को मंत्रीमंडल से निकालने के संबंध में आदेश जारी कर सकते हैं. बीजेपी में जब से विकासशील इंसान पार्टी के विधायक शामिल हुए थे, तभी से बीजेपी मुकेश सहनी का इस्तीफा मांग रही थी. हालांकि शुक्रवार को साहनी विधानसभा पहुंचे थे, जहां उन्होंने मंत्री के रूप में एक सवाल का जवाब भी दिया था, जदयू-बीजेपी के नेताओं से बात भी की थी.
मुकेश सहनी के पास मत्स्य पालन और पशुपालन विभाग था. विधायकों के भाजपा में जाने के बाद साहनी का जाना तय माना जा रहा था. साहनी खुद पिछला चुनाव हार गए थे, लेकिन उनके चार विधायक विधानसभा पहुंचने में सफल रहे थे, जिसके बाद वो नीतीश सरकार में बने रहे और मंत्री बनें. लेकिन यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ उतरना उनके लिए भारी पड़ गया. सीट तो जीत नहीं पाए, बिहार सरकार से भी बाहर हो गए.
मुकेश साहनी की इच्छा थी कि बीजेपी उन्हें यूपी चुनाव में सीट दे, लेकिन यहां पहले से ही मल्लाह समाज के नेता संजय निषाद की पार्टी का बीजेपी के साथ गठबंधन था, ऊपर से साहनी का यहांं उस तरह से जनाधार भी नहीं था. यूपी में हारने के बाद भी साहनी शांत नहीं बैठे और एमएलसी चुनाव में एनडीए से अलग हो कर उम्मीदवार उतारने लगे.
इसके बाद उनकी पार्टी के सभी तीन विधायक भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए. इसके साथ ही बीजेपी के पास 77 विधायक हो गए और वो बिहार में सबसे बड़ी पार्टी बन गई. बीजेपी में शामिल होने वाले तीन विधायक राजू सिंह, मिश्रीलाल यादव और स्वर्ण सिंह हैं.
साहनी की पार्टी के चौथे विधायक का निधन हो गया था, जहां अभी उपचुनाव की प्रक्रिया चल रही है. इस सीट पर भी विवाद था. यहां से बीजेपी ने अपना उम्मीदवार उतार दिया था, जिसके विरोध में वीआईपी ने भी अपना कैंडिडेट उतारा दिया है.
मुकेश साहनी से पहले उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी का जदयू में विलय हो चुका है तो चिराग पासवान के छह सांसदों में से पांच सांसद बीजेपी में जा चुके हैं. चिराग की पार्टी भी अब उनसे छिन चुकी है. उनकी पार्टी अब उनके चाचा के नाम हो गई है.

क्या यूक्रेन दो टुकड़ों में बंट जायेगा ?

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रूस-यूक्रेन युद्ध का अंत कब होगा अभी किसी को पता नहीं. नाटो और अमेरिका के तमाम पहल और कोशिशों के बाद भी रूस लगातार यूक्रेन को तबाह कर रहा है और उधर यूक्रेन भी अपनी पूरी ताकत के साथ रूस से लड़ता हुआ दिख रहा है. हालात ये हैं कि यूक्रेन पूरी तरह से खंडहर में तब्दील होता हुआ दिख रहा है.
एक महीने से ज्यादा समय से जारी रूस-यूक्रेन युद्ध का अंत किब, कहां और कैसे होगा, इसका अंदाजा लगा पाना मुश्किल है. यूक्रेन के चीफ ऑफ डिफेंस इंटेलिजेंस के मुताबिक रूस-यूक्रेन युद्ध का अंत कोरिया जैसा हो सकता है. यूक्रेन के चीफ ऑफ डिफेंस स्टॉफ किर्लो बुदानोव के मुताबिक एक महीने की लड़ाई के बावजूद रूस की सेना कीव पर कब्जा कर वहां की सरकार को नहीं हटा पाई है. ऐसे में व्लादिमीर पुतिन के पास यूक्रेन के टुकड़े करने का विकल्प है. उन्होंने कहा कि कोई शक नहीं है कि पुतिन कोरिया की तरह दो देशों के बीच एक दीवार खीचेंगे जिसमें एक कब्जे वाला यूक्रेन होगा और एक बिना कब्जे वाला यूक्रेन होगा.
उन्होंने आगे कहा कि हमें लगता है पुतिन कोरिया की तरह ही यूक्रेन का भी विभाजन कर देंगे, जैसे नॉर्थ कोरिया और साउथ कोरिया आपस में बंटे हुए हैं और एक दूसरे से लड़ते रहते हैं. किर्लो बुदानोव ने कहा कि 1950-53 के बीच हुए विवाद के बाद से लेकर अबतक उत्तर और दक्षिण कोरिया आपस में उलझे रहे हैं और वहां शांति नहीं है. पुतिन ऐसा ही कुछ यूक्रेन के साथ भी करना चाहते हैं. गौरतलब है कि पिछले दिनों रूस ने भी ऐसे ही कुछ संकेत दिए थे. रूस ने कहा था कि वो अपनी सेना को पूर्वी यूक्रेन की तरफ फोकस करने को कह सकता है.
किर्लो बुदानोव के मुताबिक रूस यही चाहेगा कि यूक्रेन के भीतर एक अलग देश हो जो अपने आप को स्वतंत्र घोषित कर दे लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से रूस का उसपर कब्जा हो. बुदानोव ने ये भी कहा कि रूस चाहेगा कि उसके कब्जे वाला इलाका यूक्रेन से पूरी तरह कटा रहे. इसके लिए वो ये भी कह सकता है कि उस इलाके में यूक्रेन की करेंसी नहीं चलेगी. यही नहीं, रूस उस इलाके में यूक्रेन की तरह ही अलग सरकार चलाने की कोशिश करेगा. बुदानोव ने कहा कि हाल में रूस के कदम को देखते हुए तो यही लगता है कि वो कब्जे वाले यूक्रेन को ढाल बनाकर बातचीत की टेबल पर बैठेगा और अपने मन मुताबिक मांगे रखेगा.

कोलकाता को चेन्नई सुपर किंग्स के खिलाफ मिली शानदार जीत

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चेन्नई सुपर किंग्स (CSK) के खिलाफ आईपीएल 2022 (IPL) के पहले मुकाबले में मिली जबरदस्त जीत को लेकर केकेआर (KKR) के सलामी बल्लेबाज अजिंक्य रहाणे (Ajinkya Rahane) ने बड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा है कि टीम के सभी खिलाड़ी एक दूसरे की सफलता का पूरा लुत्फ उठा रहे हैं।

आईपीएल 2022 के पहले मैच में कोलकाता नाइट राइडर्स ने चेन्नई सुपर किंग्स को 6 विकेट से हरा दिया। चेन्नई सुपर किंग्स ने पहले खेलते हुए महेंद्र सिंह धोनी के अर्धशतक की मदद से निर्धारित 20 ओवरों में 131/5 का स्कोर बनाया, जिसके जवाब में केकेआर ने 19वें ओवर में चार विकेट खोकर जीत हासिल कर ली। अजिंक्य रहाणे ने केकेआर के लिए सबसे ज्यादा रन बनाए। उन्होंने 34 गेंद पर 44 रनों की पारी खेली और इस दौरान छह चौके और एक छक्का लगाया।

योगी की कैबिनेट में जातीय और भविष्य की राजनीति को साधने की कोशिश

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यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की कैबिनेट में जातीय और भविष्य की राजनीति का पूरा ख्याल रखा गया है. शुक्रवार को लखनऊ के इकाना स्टेडियम में बड़े ही तामझाम के साथ सूबे में योगी ने दूसरी बार पद एवं गोपनीयता की शपथ ली थी. आज योगी कैबिनेट की पहली बैठक है. माना जा रहा है कि अपने इस पहली बैठक में सीएम योगी अधिकारीयों को कई निर्देश देंगे और सत्ता प्रशासन को दुरुस्त करने की बात कहेंगे.
शपथ ग्रहण समारोह में कुल 52 सदस्‍यीय मंत्रिमंडल ने शपथ ली है. दो डिप्‍टी सीएम, 18 कैबिनेट मंत्री, 12 स्‍वतंत्र प्रभार और 20 को राज्‍य मंत्री के तौर पर शपथ दिलाई गई है. इनमें पांच महिला मंत्री भी शामिल हैं. पिछली बार योगी सरकार में डिप्टी सीएम पद पर रहे दिनेश शर्मा को इस बार ड्रॉप कर दिया गया है. उनकी छुट्टी कर बीजेपी ने ब्राह्मण चेहरे के तौर पर बृजेश पाठक को दूसरा डिप्टी सीएम बनाया है. डॉक्‍टर दिनेश शर्मा के अलावा आशुतोष टंडन, श्रीकांत शर्मा, सतीश महाना, सिद्धार्थनाथ सिंह, रामनरेश अग्निहोत्री, महेंद्र सिंह, नीलकंठ तिवारी, जय प्रताप सिंह, नीलिमा कटियार समेत कई का पत्‍ता कट गया है.
सीएम के तौर पर दूसरी बार शपथ लेने वाले योगी आदित्‍यनाथ के मंत्रिमंडल में इस बार कुल 8 ब्राह्मण, को मंत्री बनाया गया है, इसके अलावा 8 मंत्री एससी समुदाय से हैं, 5 जाट, 6 ठाकुर, एक कायस्थ और दो भूमिहार जाति के नेताओं को कैबिनेट में जगह दी गई है. यूपी चुनाव 2022 में बीजेपी के टिकट पर सबसे ज्‍यादा ब्राह्मण विधायक ही जीतकर आए हैं. बीजेपी के पास इस समय 46 ब्राह्मण विधायक हैं, जबकि ठाकुर समाज से 43 विधायक जीतकर आए हैं.
योगी कैबिनेट में इस बार मोहसिन रजा खान को हटाकर दानिश आजाद अंसारी को जगह दी गई है. मंत्रिमंडल में दूसरा चौंकाने वाला नाम जसवंत सैनी का है. इसके अलावा दयाशंकर मिश्र दयालु को भी योगी कैबिनेट में जगह दी गई है. उन्‍हें राज्‍यमंत्री स्‍वतंत्र प्रभार का कार्यभार सौंपा गया है. इससे पहले 2019 में उन्‍हें पूर्वांचल विकास बोर्ड का उपाध्‍यक्ष बनाया गया था. इसके अलावा जेपीएस राठौर का नाम भी चौंकाने वाला रहा. उन्‍हें राज्यमंत्री बनाया गया है, वह बीजेपी के प्रदेश महासचिव और उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्‍यक्ष रहे और युवा मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, आईटी सेल के प्रदेश अध्यक्ष की भी जिम्‍मेदारी निभा चुके हैं. वाइल्‍ड कार्ड एंट्री की लिस्‍ट में पांचवां नाम नरेंद्र कश्‍यप का भी है, जो कि पश्चिमी यूपी के कद्दावर नेताओं में एक हैं. वह राज्‍यसभा सदस्‍य भी रह चुके हैं.
योगी कैबिनेट में इस बार मोहसिन रजा खान की जगह दानिश आजाद अंसारी को मंत्री बनाया गया है. उन्‍हें 2022 चुनाव से ठीक पहले भाजपा अल्‍पसंख्‍यक मोर्चा महामंत्री बनाया गया था. 2017 में पार्टी ने दानिश को उर्दू समिति का भी सदस्‍य बनाया था.

योगी आदित्‍यनाथ के साथ इन मंत्रियों ने ली शपथ

केशव प्रसाद मौर्य (कैबिनेट सीएम)
ब्रजेश पाठक (डिप्‍टी सीएम)
सूर्य प्रताप शाही (कैबिनेट मंत्री)
सुरेश कुमार खन्‍ना (कैबिनेट मंत्री)
स्‍वतंत्र देव सिंह (कैबिनेट मंत्री)
बेबी रानी मौर्य (कैबिनेट मंत्री)
लक्ष्‍मी नारायण चौधरी (कैबिनेट मंत्री)
जयवीर सिंह (कैबिनेट मंत्री)
धर्मपाल सिंह (कैबिनेट मंत्री)
नंद गोपाल गुप्‍ता नंदी (कैबिनेट मंत्री)
भूपेंद्र सिंह चौधरी (कैबिनेट मंत्री)
अनिल राजभर (कैबिनेट मंत्री)
जितिन प्रसाद (कैबिनेट मंत्री)
राकेश सचान (कैबिनेट मंत्री)
अरविंद कुमार शर्मा (कैबिनेट मंत्री)
योगेंद्र उपाध्‍याय (कैबिनेट मंत्री)
आशीष पटेल (कैबिनेट मंत्री)
संजय निषाद (कैबिनेट मंत्री)
नितिन अग्रवाल (राज्‍यमंत्री, स्‍वतंत्र प्रभार)
कपिल देव अग्रवाल (राज्‍यमंत्री, स्‍वतंत्र प्रभार)
रवीन्‍द्र जायसवाल (राज्‍यमंत्री, स्‍वतंत्र प्रभार)
संदीप सिंह (राज्‍यमंत्री, स्‍वतंत्र प्रभार)
गुलाब देवी (राज्‍यमंत्री, स्‍वतंत्र प्रभार)
गिरीश चंद्र यादव (राज्‍यमंत्री, स्‍वतंत्र प्रभार)
धर्मवीर प्रजापति (राज्‍यमंत्री, स्‍वतंत्र प्रभार)
असीम अरुण (राज्‍यमंत्री, स्‍वतंत्र प्रभार)
जेपीएस राठौर (राज्‍यमंत्री, स्‍वतंत्र प्रभार)
दयाशंकर सिंह (राज्‍यमंत्री, स्‍वतंत्र प्रभार)
नरेंद्र कश्यप (राज्‍यमंत्री, स्‍वतंत्र प्रभार)
दिनेश प्रताप सिंह (राज्‍यमंत्री, स्‍वतंत्र प्रभार)
अरुण कुमार सक्सेना (राज्‍यमंत्री, स्‍वतंत्र प्रभार)
दयाशंकर मिश्र दयालु (राज्‍यमंत्री, स्‍वतंत्र प्रभार)

राज्‍य मंत्री के तौर पर इन नेताओं ने ली शपथ

मयंकेश्‍वर सिंह (राज्‍य मंत्री)
दिनेश खटीक (राज्‍य मंत्री)
संजीव गोंड (राज्‍य मंत्री)
बलदेव सिंह ओलख (राज्‍य मंत्री)
अजीत पाल (राज्‍य मंत्री)
जसवंत सैनी (राज्‍य मंत्री)
रामकेश निषाद (राज्‍य मंत्री)
मनोहर लाल मन्‍नू कोरी (राज्‍य मंत्री)
संजय गंगवार (राज्‍य मंत्री)
बृजेश सिंह (राज्‍य मंत्री)
केपी मलिक (राज्‍य मंत्री)
सुरेश राही (राज्‍य मंत्री)
सोमेंद्र तोमर (राज्‍य मंत्री)
अनूप प्रधान वाल्‍मीकि (राज्‍य मंत्री)
प्रतिभा शुक्‍ला (राज्‍य मंत्री)
राकेश राठौर गुरु (राज्‍य मंत्री)
रजनी तिवारी (राज्‍य मंत्री)
सतीश शर्मा (राज्‍य मंत्री)
दानिश अंसारी आजाद (राज्‍य मंत्री)
विजय लक्ष्‍मी गौतम (राज्‍य मंत्री)

देशभक्ति बजट के बाद दिल्ली सरकार ने आज पेश किया रोजगार बजट

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पिछले साल दिल्ली सरकार ने देशभक्ति बजट पेश किया था, इस बार हम रोजगार बजट पेश कर रहे हैं. ये बयान हैं दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया का. उन्होंने कहा कि सरकार अगले पांच साल दिल्ली के लोगों को 20 लाख नौकरियां देगी. केजरीवाल के नेतृत्व में आए 7 बजट से दिल्ली के स्कूल अच्छे हुए, बिजली मिल रही है, लोगों के जीरो बिल आ रहे हैं, मेट्रो का विस्तार हो रहा है. अब लोगों को सरकारी दफ्तर के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे.
दिल्ली के डिप्टी सीएम और वित्त मंत्री मनीष सिसोदिया ने आज विधानसभा में वित्त वर्ष 2022-23 का बजट पेश कर दिया है. दिल्ली के बजट को वो लाल रंग के टैब में लेकर पहुंचे. इस बजट को रोजगार बजट नाम दिया गया है. उन्होंने कहा कि इसका मकसद आर्थिक कल्याण लाना है. उन्होंने अगले पांच सालों में 20 लाख रोजगार देने का लक्ष्य रखा है. डिप्टी सीएम ने बताया कि पिछले सात साल में केजरीवाल सरकार ने 1.78 लाख युवाओं को रोजगार दिया है. उन्होंने विधानसभा में कहा कि हम 2013 में सत्ता में आए थे. उससे पहले नौ सालों तक एक भी रोजगार नहीं दिया गया.
मनीष सिसोदिया ने कहा कि सात सालों में आप सरकार ने एक लाख 78 हजार युवाओं को पक्की नौकरी दी है. इससे पहले की सरकार ने कोई नौकरी नहीं दी थी. इस साल का बजट रोजगार बजट है. वित्त वर्ष 2022-23 के लिए दिल्ली का बजट 75 हजार 800 करोड़ रुपए का है. इस बजट में स्थानीय निकायों के लिए 6154 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं.
सदन में डिप्ट सीएम ने कहा कि रिटेल मार्केट को बढ़ावा देने के लिए दिल्ली सरकार शॉपिंग फेस्टिवल शुरू करेगी. दिल्ली में देश-विदेश के लोगों को बुलाकर शॉपिंग के लिए प्रोत्साहित करने के लिए इस फेस्टिवल का आयोजन किया जाएगा. छोटे-छोटे स्थानीय बाजारों को ग्राहकों से जोड़ने के लिए दिल्ली बाजार पोर्टल की शुरुआत की जाएगी.
मनीष सिसोदिया ने कहा कि सरकार एक स्टार्टअप पॉलिसी लेकर आ रही है. इसके जरिए नौकरी मांगने वाले लोगों की आबादी को नौकरी देने वालों में बदलना है. इसके अलावा दिल्ली में इलेक्ट्रॉनिक सिटी बसाई जाएगी. दिल्ली में अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव का आयोजन किया जाएगा.
डिप्टी सीएम ने कहा कि हमारा मकसद टैक्स कलेक्ट करना नहीं बल्कि रोजगार के अवसर पैदा करना है. उन्होंने कहा कि वर्तमान में दिल्ली के रिटेल बाजार में लगभग 3.50 लाख दुकाने हैं. इनसे 7.50 लाख लोगों को रोजगार मिलता है. दिल्ली सरकार स्थानीय मार्केट एसोसिएशन और दुकानदारों के साथ मिलकर बाजारों को विकसित करेगी. पहले चरण में इसकी शुरुआत पांच बाजारों के साथ की जाएगी. इसके लिए 100 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं. इससे पांच साल के अंदर डेढ़ लाख नई नौकरियों के अवसर पैदा हो सकते हैं.
सदन में वित्त मंत्री ने कहा कि हमने रोजगार पोर्टल के जरिए 10 लाख प्राइवेट रोजगार भी दिए हैं. इसके अलावा 1.78 लाख लोगों को सरकारी नौकरियां दी हैं. राजधानी में ग्रीन जॉब्स पैदा की जाएंगी. दिल्ली में अभी 56 लाख लोगों के पास नौकरी है. पांच साल बाद रोजगार को 76 लाख लोगों तक पहुंचाने का लक्ष्य है.
मनीष सिसोदिया ने कहा कि बिजली पर मिलने वाली सब्सिडी योजना जारी रहेगी. इसके अलावा महिलाओं के लिए डीटीसी की बसों में मुफ्त यात्री की सुविधा भी जारी रहेगी. उन्होंने कहा कि आबकारी नीति से सरकार को 4500 करोड़ रुपए का फायदा हुआ है.
सिसोदिया ने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में 16278 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे. वहीं बजट में अस्पतालों के निर्माण और मौजूदा सरकारी अस्पतालों की रीमॉडलिंग के लिए 1900 करोड़ का प्रावधान किया गया है. दिल्ली आश्रय सुधार बोर्ड के लिए 766 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं. आश्रय घर को बेहतर किया जायेगा.
दिल्ली सरकार 520 मोहल्ला क्लीनिक, 29 पॉलीक्लीनिक, 38 मल्टी सुपर स्पेशलिस्ट अस्पताल के जरिए लोगों को स्वास्थ्य सेवा प्रदान कर रही है. इस वित्त वर्ष के बजट में मोहल्ला क्लीनिक और पॉलीक्लीनिक के लिए 478 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं.
डिप्टी सीएम ने कहा कि दो साल में यमुना को साफ कर दिया जाएगा. दिल्ली सरकार 600 से अधिक दिल्ली की झीलों को पुनर्जीवित करने की योजना शुरू करेगी. इसके लिए 750 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं. वहीं नजफगढ़ ड्रेन को साफ करने का काम शुरू हो गया है.

कांग्रेस में बड़े स्तर पर सर्जरी की तयारी, कइयों की होगी छुट्टी

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पांच राज्यों में अपना सब कुछ खो चुकी कांग्रेस भविष्य को लेकर काफी चिंतित है. पार्टी को लगने लगा है कि अगर अब भी सही निर्णय नहीं लिए गए तो पार्टी को बचा पाना मुश्किल हो जाएगा. यही वजह है कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस संगठन में बड़े स्तर पर सर्जरी की तैयारी चल रही है. अगले 15 दिन के अंदर बड़े बदलाव किए जा सकते हैं. इसके तहत उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में नए प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाएंगे. इसके अलावा कुछ राज्यों में महासचिवों और सचिवों की छुट्‌टी भी हो सकती है.
कांग्रेस की सबसे बड़ी परेशानी पार्टी के भीतर गुटबाजी रही है. पिछले दिनों हरियाणा कांग्रेस की बैठक हुई और बैठक के दौरान ही आपस में ही नेता एक दूसरे के खिलाफ झगड़ने लगे. एक दूसरे पर आरोप लगाने लगे. पार्टी की चिंता अब अगले विधान सभा चुनाव को लेकर है. आगामी विधानसभा चुनावों की लिस्ट में शामिल हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ समेत तमाम अन्य राज्यों में संगठन को मजबूत करने के लिए कांग्रेस आलाकमान के स्तर पर नई रणनीति पर काम चल रहा है. इसमें मुख्य रूप से हर राज्य में संगठन के भीतर नेताओं के आपसी टकराव को खत्म करने पर फोकस है. पंजाब और उत्तराखंड में जिस तरह से कांग्रेस की हार हुई है, उसकी सबसे बड़ी वजह संगठन के भीतर आपसी टकराव को ही माना जा रहा है. चुनावी राज्यों में ये वाकया दोबारा न हो, इसके लिए पार्टी के नेताओं को एकजुट करने की कोशिश की जा रही है.
पार्टी के भीतर गुटबाजी न हो इसको लेकर कई स्तर पर काम किया जा रहा है. लगातार चुनावी राज्यों के नेताओं के साथ बैठक की जा रही है. इस सिलसिले में पिछले दिनों दिल्ली में पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने हिमाचल प्रदेश के नेताओं के साथ मीटिंग की और गुटबाजी खत्म करने की नसीहत दी. वहीं, शुक्रवार को राहुल गांधी ने हरियाणा के नेताओं से इसी सिलसिले में मुलाकात की. राहुल गांधी ने सभी से अपील की कि आपसी तकरार खत्म करके पार्टी के लिए एकजुट होकर काम करें. फिलहाल सभी नेताओं को अपना व्यक्तिगत एजेंडा दरकिनार करने के लिए नसीहत दी गई है, जिससे पार्टी को राज्य में फिर खड़ा करने में मदद मिले.
इसी साल के अंत में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनाव होने हैं. पार्टी को लग रहा है कि पांच राज्यों में मिली हार के बाद अगर गुजरात और हिमाचल में पार्टी की वापसी होती है तो पार्टी को लोकसभ चुनाव के लिए ताकत मिलेगी. गुजरात में भाजपा के मजबूत किले को भेदना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती है. गुजरात को लेकर कांग्रेस की गंभीरता इसी बात से समझी जा सकती है कि वहां संगठन को मजबूत करने के लिए 25 नए उपाध्यक्ष, 75 महासचिव और 17 शहर और जिलाध्यक्ष बनाए गए हैं.
कुछ महीने पहले ही पार्टी ने राजस्थान के रघु शर्मा को गुजरात का प्रभारी बनाया है. देखना दिलचस्प होगा कि रघु शर्मा पीएम मोदी और अमित शाह के गृह राज्य में किस तरह से पार्टी को खड़ा करने में सफल हो पाते हैं और चुनाव में कांग्रेस को कितनी माइलेज दिला पाते हैं.
दिसंबर 2023 में मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होंगे. मध्य प्रदेश में कांग्रेस की कमान अभी कमलनाथ के पास है. वह पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के अलावा नेता प्रतिपक्ष की भी जिम्मेदारी संभाल रहे हैं. चर्चा है कि आने वाले दिनों में कमलनाथ के पास केवल एक ही जिम्मेदारी रह जाएगी। संगठन की जिम्मेदारी किसी नए व्यक्ति को दी जाएगी, ताकि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी में नया जोश भरा जा सके और कांग्रेस भाजपा से मुकाबला कर सके.
कांग्रेस के लिहाज से राजस्थान बेहद महत्वपूर्ण राज्य है, लेकिन इस राज्य में गहलोत और पायलट गुट के बीच टकराव पिछले तीन साल से लगातार जारी है. इस टकराव को खत्म करने के लिए कांग्रेस आलाकमान की ओर से बार-बार प्रयास किया जा रहा है, लेकिन विवाद खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है. पिछले दो दशक से अधिक समय से यहां हर पांच साल पर सरकार बदलने की परम्परा रही है. ऐसे में कांग्रेस यहां दोबारा सत्ता में आने के लिए क्या कदम उठा रही है, यह देखना दिलचस्प होगा.
छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस की सरकार है. 15 साल से जमी भाजपा की रमन सरकार को हटाकर कांग्रेस पूरे बहुमत से सत्ता में आई थी, लेकिन यहां भी कांग्रेस गुटबाजी से अछूती नहीं है. यहां सीएम भूपेश बघेल और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव गुट के बीच विवाद दिल्ली दरबार तक पहुंचा है. इस विवाद को खत्म कराने में कांग्रेस आलाकमान ने पुरजोर कोशिश की है और ये एक्सरसाइज लगातार जारी है. 2023 के विधानसभा चुनाव में इस गढ़ को बचाना कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती है.
कांग्रेस की ओर से कुछ राज्यों के महासचिव और सचिवों को भी बदलने की तैयारी है. इसके लिए पार्टी में होमवर्क किया जा रहा है. जमीन पर कांग्रेस को मजबूती देने की रणनीति तैयार की जा रही है. सूत्रों के मुताबिक 10 से 15 फीसदी तक नए महासचिव बनाए जाएंगे, जबकि 20 से 25 फीसदी नए सचिव बनाए जाएंगे. पुराने पदाधिकारियों को हटाया जाना तय माना जा रहा है. इसके लिए उनके कामकाज का मूल्यांकन किया जा रहा है.