गैंगरेप केस में पीड़िता बिलकिस बानो फिर से सुप्रीम कोर्ट पहुँच गई है. 2002 के गुजरात, गोधरा दंगों के दौरान गैंगरेप और उनके परिवार के सदस्यों की हत्या करने वाले 11 दोषियों की समय से पहले रिहाई को चुनौती देते हुए बुधवार को बिलकिस बानों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. बिलकिस बानो ने सुप्रीम कोर्ट के मई के उस आदेश को चुनौती देते हुए एक समीक्षा याचिका भी दायर की है, जिसमें गुजरात सरकार को 1992 की छूट नीति के लिए आवेदन करने की अनुमति दी गई थी.
इस मामले को सूचीबद्ध करने के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के समक्ष उल्लेख किया गया था. चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया (सीजेआई) ने कहा कि वह तय करेंगे कि क्या दोनों याचिकाओं को एक साथ और एक ही पीठ के समक्ष सुना जा सकता है.
गैंगरेप मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे इन ग्यारह दोषियों ने गुजरात सरकार के सामने रिहाई की अपील की थी. गुजरात सरकार के पैनल ने उनके आवेदन को मंजूरी दी थी. जिसके बाद 15 अगस्त को उन्हें गोधरा उप – जेल से रिहा कर दिया गया था. दोषियों में से एक राधेश्याम शाह के सुप्रीम कोर्ट जाने के बाद गुजरात सरकार ने समय से पहले रिहाई की नीति के तहत दोषियों को रिहा कर दिया था.
शाह को 2008 में मुंबई की सीबीआई अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी और वह 15 साल चार महीने जेल में बिता चुके थे. मई 2022 में, जस्टिस रस्तोगी की अगुवाई वाली एक पीठ ने फैसला सुनाया था कि गुजरात सरकार के पास छूट के अनुरोध पर विचार करने का अधिकार क्षेत्र है, क्योंकि अपराध गुजरात में हुआ था.
लाइव लॉ के मुताबिक इस मामले में दोषियों को दी गई राहत पर सवाल उठाते हुए माकपा नेता सुभाषिनी अली, पत्रकार रेवती लाल, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा, पूर्व आईपीएस कार्यालय मीरा चड्ढा बोरवंकर और कुछ अन्यपूर्व सिविल सेवक, नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वीमेन आदि ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिकाएं दायर की थीं.