पकिस्तान अपने भविष्य की योजना पर काम करना शुरू कर दिया है। पकिस्तान की यह योजना कितना सफल होगा इसे देखना बाकी है लेकिन जिस अंदाज में प्रधानमंत्री इमरान खान ने बीते शुक्रवार को राष्ट्र की नई और पहली रक्षा नीति का एलान किया ,इस पर बहस जारी है। दावा किया जा रहा है कि यह पाकिस्तान का पहला ऐसा रोडमैप है जो देश की तकदीर बदल सकता है। हालांकि इस मसौदे के 100 पेज के ‘ऑपरेशनल पार्ट’ को गोपनीय बता कर सार्वजनिक नहीं किया गया, लेकिन बाक़ी का हिस्सा ज़ाहिर कर दिया गया है। नई सुरक्षा नीति किसी महत्वाकांक्षी रोडमैप की तरह है, जिसमें प्रधानमंत्री इमरान खान को देश के भविष्य का विज़न दिखता है। इस मसौदे को लागू किए जाने को लेकर कोई निर्धारित समय सीमा तो तय नहीं की गई है, लेकिन हर महीने इस नीति की प्रगति की समीक्षा करने के लिए ज़रूर एक कमेटी के गठन पर ज़ोर दिया गया है।
इस मसौदे को लेकर पूर्व वरिष्ठ राजदूत के.पी फाबियान का मानना है कि मसौदे के कुछ पॉइंट्स जरूर सार्वजनिक किए गए है, लेकिन कूटनीति के तहत इसे पूरी तरह से ओपन नहीं किया जा सकता। यही वजह है कि कहने और करने में कई बातो को छुपाया जाता है। उनका मानना है कि पाकिस्तान, इस विज़न डॉक्यूमेंट के साथ भी कुछ ऐसा ही करता नजर आ रहा है। राजदूत फबियान का मानना है कि अफगानिस्तान, चीन, ईरान और रूस का गठबंधन अमेरिका और भारत के हित में नहीं है। वो कहते हैं कि अमेरिका यहां से दूर है इसलिए उस पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा लेकिन भारत इस क्षेत्र की उभरती शक्ति है जो इस गठबंध के असर से नहीं बच सकता है।
उधर ,पाकिस्तान पर गहरी नज़र रखने वाले इंडिया फाउंडेशन के डायरेक्टर प्रो. आलोक बंसल कहते हैं कि इस दस्तावेज को दो तरह से देखने की जरूरत है। एक वो हिस्सा जिसे इमरान खान साहब ने रिलीज़ किया है जबकि दूसरा हिस्सा वो जिसे गोपनीय रखा गया है। प्रो. आलोक कहते हैं कि पाकिस्तान का पूरा ज़ोर इस बात पर दिख रहा है कि राजनैतिक मुद्दों से हट कर आर्थिक मुद्दों की ओर जाया जाए। ताकि पड़ोसी देश से रिश्ते बेहतर हों और कारोबार बढ़े। नतीजा ये होगा कि जो पाकिस्तान जैसे देश जो अलग थलग पड़ा है, जो हमेशा विश्व बैंक से लोन लेने पर मजबूर रहता है, उसके लिए गेम चेंजर साबित हो सकता है।
हालांकि वरिष्ठ पत्रकार और सेंट्रल एशियाई देशों की स्तिथि पर गहरी नज़र रखने वाले रक्षा विशेषज्ञ कमर आगा कहते हैं कि किसी भी देश की आर्थिक नीति उसके बैक बोन की तरह होती है। उसके बगैर कोई भी देश सुरक्षित नहीं रह सकता है। वो कहते हैं कि एक तरफ तो पाकिस्तान ये कहता है कि वो पड़ोसियों से रिश्ते सुधरेगा, कोई जंग नहीं लड़ेगा मगर उसके रक्षा बजट में कोई कटौती होती नहीं दिख रही है। सैन्य बजट कम होने के बजाए बढ़ता ही जा रहा है और ही जो लोन विदेशी मुद्रा में है वो भी बढ़ रहा है। ऐसे में सवाल है कि नीति बनाना आसान होता है लेकिन वो सही लागू हो पाएगा या नहीं या एक बड़ा महत्वपूर्ण सवाल है। पकिस्तान को अपनी नीति साफ़ करनी चाहिए ताकि उसकी तरक्की हो सके और दुनिया के अन्य देशो के साथ कदम मिला सके।
हालांकि, नई नीति के मुताबिक़, पाकिस्तान अब ‘विश्व-अर्थव्यवस्था’ (जियो-इकोनॉमिक्स) पर अपना पूरा ध्यान लगाना चाहता है। अपने रोड मैप ऐसे हालात बना देना चाहता है, जिससे कि पाकिस्तान क्षेत्रीय संपर्क के लिए जोड़ने वाले पुल का काम कर सके।
इस विज़न डॉक्यूमेंट में पड़ोसी देशों से रिश्ता को लेकर किसी का नाम तो नहीं लिया गया है लेकिन ये ज़रूर कहा गया है कि पाकिस्तान साझेदारी बनाने के लिए लगातार कोशिश कर रहा है। उसने कहा है कि उसकी इच्छा अपने पड़ोसियों के साथ शांतिपूर्ण रिश्ते बनाने की है। माना जा रहा है कि इस्लामाबाद को इस बात का बखूबी एहसास है कि क्षेत्रीय संपर्क क़ायम करने वाली भूमिका सही से वो तभी अदा कर पाएगा जब भारत के साथ उसके रिश्ते बेहतर नहीं हो जाते हैं और अफ़ग़ानिस्तान में भी हालात सुधर नहीं जाते। पकिस्तान अगर ऐसा करने में सक्षम होता है तो निश्चित तौर पर पाकिस्तानी आवाम का भी भला होगा और उसके पडोसी देश का भी।