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हर किसी ने मुसलमानों का सौदा किया, समाज की स्थिति पर शोध रिपोर्ट के विमोचन पर बोले पत्रकार आशुतोष

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हर किसी ने मुसलमानों का सौदा किया, समाज की स्थिति पर शोध रिपोर्ट के विमोचन पर बोले पत्रकार आशुतोष

नई दिल्ली: मुस्लिम समाज के नेताओं ने पार्टियों के हाथों मुस्लिम कौम का सौदा किया है, और इसके लिए खुद कौम के लोग ही जिम्मेदार हैं. यह बात वरिष्ठ पत्रकार और सत्य हिंदी डाॅट काॅम के फाउंडर आशुतोष ने इंस्टीट्यूट ऑफ पाॅलिसी एण्ड एडवोकेसी की रिपोर्ट *”मुस्लिम्स ऑफ देहली: ए स्टडी ऑन देयर सोशियो-इकोनोमिक एण्ड पोलिटिकल स्टेटस” के विमोचन के मौक़े पर कही. उन्होंने शोध रिपोर्ट की तारीफ करते हुए मुस्लिम कौम को सुझाव देते हुए कहा कि अब मुसलमानों को अपनी तरक़्क़ी के लिए सरकार से आस लगाने के बजाए समाज को संजीदा होने और ख़ुद से पहल करने की ज़रूरत है.

बता दें कि इस रिपोर्ट में दिल्ली के मुसलमानों के विकास के संदर्भ में अल्पसंख्यक योजनाओं, रोज़गार, स्वास्थ, शिक्षा, रहन-सहन की स्थिति और राजनीतिक प्रभाव के लिए उपलब्ध आंकड़ों का विश्लेषण शामिल है जो जनगणना, एनएसएसओ राउंड, राष्ट्रीय स्वस्थ्य और परिवार सर्वे और आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण सहित कई प्रामाणिक स्रोतों पर आधारित है. प्राथमिक डेटा स्रोत के रूप में एमसीडी के मुस्लिम बहुल वार्डों से आम सोच पर भी खुल कर बात की गई. यह डेटा दिल्ली में कांग्रेस से ‘आप’ के नेतृत्व वाली सरकार में राजनीतिक परिवर्तन की अवधि के साथ मेल खाता है और इस से वो एक नए शासन के तहत इस समुदाय की प्रगति के बारे में एक मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं.

अध्ययन में रेखांकित किया गया है कि अनुसूचित जाति /अनुसूचित जनजाति / अन्य पिछड़ा वर्ग / अल्पसंख्यक विभाग के विकास के लिए समग्र राज्य बजट में वित्तीय हिस्सा, जो सीधे मुसलमानों सहित राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की 83% आबादी की देखभाल करता है, 2013 में 0.98% से कम हो कर 2015 के बाद से लगभग 0.60% रह गया है, हालांकि वास्तविक राशि में समग्र राज्य बजट के साथ-साथ इस मद में भी पिछले वर्षों में आंशिक रूप से वृद्धि हुई है. राज्य में कमजोर वर्गों के लिए सार्वजनिक प्रावधान में स्थिरता दिखाने वाली एकमात्र योजना आरटीई के तहत ईडब्ल्यूएस श्रेणी के लिए वित्तीय सहायता है. रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग, दिल्ली वक्फ बोर्ड, एनएमएफडीसी, उर्दू अकादमी आदि जैसी स्वायत्त एजेंसियां अपने वांछित स्तर पर काम नहीं कर रही हैं.

राज्य के शिक्षा विभाग की विशेष उपलब्धियों के प्रचार के बीच दिल्ली के मुसलमानों का शैक्षिक प्रदर्शन किसी भी आशाजनक स्थिति को प्रकट नहीं करता है, हालांकि उनकी साक्षरता दर कई अन्य राज्यों की तुलना में कुछ बेहतर है. निरक्षरों के मामले में मुस्लिम पुरुषों (15%) और महिलाओं (30%) के बीच एक बड़ा लैंगिक अंतर है, जो राष्ट्रीय औसत के विपरीत है. मुस्लिम इलाकों में सरकारी शिक्षण संस्थानों के वितरण में वर्तमान सरकार के तहत भी सुधार नहीं हुआ है, जैसा कि इस तथ्य से पता चलता है कि राज्य सरकार और एमसीडी द्वारा संचालित मुस्लिम बहुल वार्डों में प्रति वार्ड औसतन 4 स्कूल हैं, जबकि सभी वार्डों में यह संख्या 10 है.

राष्ट्रीय राजधानी में 8.6 की तुलना में मुसलमानों के लिए बेरोजगारी दर 11.8% दर्ज की गई है और वो आमतौर पर कम वेतन वाली नौकरियों और व्यावसायिक गतिविधियों में पाये गये. जबकि दिल्ली में मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) 2015 में 37 से बढ़कर 2020 में 54 हो गई है और राज्य में अच्छी स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढांचे के दावों के बावजूद यह एक चिंता करने वाली स्थिति है. मुसलमान इस स्थिति से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं, क्योंकि ग़ैर – संस्थागत जचगी के मामले में यह सर्वे दिल्ली के आंकड़े 8.2% की तुलना में उनके लिए यह सबसे अधिक,13.7% है.

रहन-सहन की स्थिति के संदर्भ में, रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली के कुल निवासियों के 76.3% के विपरीत केवल 69.70% मुस्लिम पाइप से पीने के पानी का उपयोग करते हैं. अध्ययन में पाया गया है कि दिल्ली में मुसलमानों की गंभीर स्थिति के प्रमुख कारणों में से एक यह है कि निर्णय लेने वाली संस्थाओं में उनका अपर्याप्त प्रतिनिधित्व है. जैसे कि दिल्ली में मुस्लिम विधायकों की संख्या 5.5% के आसपास स्थिर है, जो राज्य में उनकी आबादी का लगभग एक-तिहाई है. एमसीडी में उनका प्रतिनिधित्व और भी कम है.

रिपोर्ट में मांग की गई है कि मुसलमानों सहित दिल्ली के सभी कमजोर वर्गों के तेजी से विकास के लिए राजकोषीय समर्थन में वृद्धि, योजनाओं के बेहतर कार्यान्वयन, उनके प्रति लोक सेवकों का सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण पैदा करने और हर स्तर पर निर्णय लेने वाले निकायों में उनकी उपस्थिति में वृद्धि हो.

याद रहे कि “दिल्ली के मुसलमान: उनकी सामाजिक – आर्थिक और राजनीतिक स्थिति पर एक अध्ययन” के शीर्षक से एक रिपोर्ट दिल्ली स्थित थिंक टैंक, इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिसी स्टडीज एंड एडवोकेसी (IPSA) और इंडियन मुस्लिम इंटेलेक्चुअल्स फोरम (IMIF) ने संयुक्त रूप से रविवार को नई दिल्ली में आयोजित एक समारोह में जारी की गई.

समारोह की अध्यक्षता प्रो. ख़्वाजा मुहम्मद शाहिद, पूर्व पीवीसी एमएएनयूयू हैदराबाद ने की, जबकि सत्यहिंदी डॉटकॉम के मैनेजिंग एडिटर आशुतोष, नयूज़क्लिक से वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, सीनियर जर्नलिस्ट और रक्षा विशेषज्ञ क़मर आग़ा, शाह टाइम्स से जुड़े पत्रकार युसुफ अंसारी, पत्रकार मुज़फ़्फ़र हुसैन ग़ज़ाली वग़ैरह ने रिपोर्ट पर अपने विचार रखे और रिपोर्ट की जमकर प्रशंसा की.

इंस्टीट्यूट ऑफ पाॅलिसी एण्ड एडवोकेसी थिंक टैंक के संयोजक डा. जावेद आलम ख़ान, थिंक टैंक के सदस्य डा. ख़ालिद खान और समाजसेवी कलीमुल हफीज़ ने रिपोर्ट के बारे में विस्तार से बताया.

समारोह में जमाते इस्लामी हिंद तालीमी बोर्ड के चेयरमैन मुजतबा फारूक, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता डॉ. कासिम रसूल इलियास, जमाते इस्लामी हिंद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुहम्मद सलीम इंजीनियर और इंडो मिडिल ईस्ट कोलेब्रेटिव फोरम के महासचिव और फ़्री जर्नल मीडिया नेटवर्क के संपादक अंज़रूल बारी समेत बड़ी संख्या में पत्रकार, शिक्षाविद और बुद्धिजीवी मौजूद रहे. प्रोग्राम का संचालन वतन समाचार के संपादक मोहम्मद अहमद ने किया.

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पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.

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