अंज़रुल बारी
देश का अगला राष्ट्रपति कौन होगा यह तो कोई नहीं जानता, लेकिन देश के भीतर जिस तरह की राजनीति छिड़ी हुई है और बीजेपी जिस तरह से अगले लोकसभा चुनाव में जीत हाशिल करने के लिए जातीय वोट को इकठ्ठा करने में जुटी है, ऐसे में किसी आदिवासी को राष्ट्रपति बनने की सम्भावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है. अभी तक देश को कोई आदिवासी राष्ट्रपति नहीं मिला है. ऐसे में बीजेपी आदिवासियों पर बड़ा दाव लगा सकती है. इससे आदिवासी वोट पर बीजेपी का कब्जा भी हो सकता है और देश – दुनिया को यह मैसेज भी जाएगा कि बीजेपी को आदिवासियों के कल्याण की बड़ी चिंता भी है. अभी देश में केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, जुअल ओरांव, पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू तथा छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनसुईया उइके प्रमुख आदिवासी नेता हैं, जिनके नाम राष्ट्रपति पद के लिए चर्चा में हैं. ऐसा हुआ तो वेंकैया नायडू और राजनाथ सिंह जैसे नाम दौड़ से बाहर हो जाएंगे. बीजेपी के भीतर आदिवासी राष्ट्रपति को लेकर मंथन जारी है. अब देखना ये है कि ये पहल कितनी कामयाब हो पाती है.
सबकी चिंता अब अगले लोकसभा चुनाव को लेकर है. विपक्ष की फ़िक्र अगले लोकसभा चुनाव में कुछ बेहतर करने और बीजेपी को टक्कर देने की है, जबकि बीजेपी की फ़िक्र विपक्ष से भी ज्यादा बड़ी है. बीजेपी को अभी और सत्ता में रहना है इसलिए उसकी कोशिश यह है कि चाहे जो भी हो जाए विपक्ष को ख़त्म कर सत्ता में बने रहना है. पहले जातीय राजनीति से चुनाव पर असर डाला जाता था लेकिन अब धर्म की राजनीति सबपर भारी है. इस धार्मिक खेल में बीजेपी को बढ़त तो मिल रही है लेकिन देश के भीतर जो माहौल बनता दिख रहा है वह आने वाले संकट की तरफ इशारा भी करते हैं.
बीजेपी 2024 के लोकसभ चुनाव में जीत हासिल करने के लिए जातीय और धार्मिक खेल को साध रही है. उसकी नजर पिछड़े ,दलित समाज पर तो है ही आदिवासी समाज को भी अपने पाले में लाने को तैयार है. ऐसे में आगामी राष्ट्रपति कोई आदिवासी समाज से देश को मिल जाए तो कोई बड़ी बात नहीं होगी.
देश में राष्ट्रपति चुनाव को लेकर मंथन शुरू हो गया है. मौजूदा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल 24 जुलाई को खत्म हो रहा है. राष्ट्रपति चुनाव के तमाम समीकरणों के साथ ही बीजेपी की नजर 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों पर भी है. ऐसे में बीजेपी राष्ट्रपति पद के लिए आदिवासी उम्मीदवार उतारने पर विचार कर रही है. ऐसा हुआ तो देश को पहला आदिवासी राष्ट्रपति मिलेगा.
हाल ही में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के घर हुई बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा हुई. लोकसभा की 543 सीटों में से 47 एसटी वर्ग के लिए सीट आरक्षित हैं. 62 लोकसभा सीटों पर आदिवासी समुदाय प्रभावी है. गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में आदिवासी वोटरों का वोट ही निर्णायक है. गुजरात में इसी साल और मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़ में 2023 में चुनाव होना है.
गुजरात के गढ़ में भी बीजेपी आदिवासियों को साधने में सफल नहीं रही. 182 सदस्यीय विधानसभा में 27 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं. बीजेपी को 2007 में इनमें से 13, 2012 में 11 और 2017 में 9 सीटें ही मिल सकी थीं. राज्य में करीब 14% आदिवासी हैं, जो 60 सीटों पर निर्णायक भूमिका में हैं. झारखंड की 81 विधानसभा सीटों में 28 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं.
2014 में बीजेपी इनमें से 11 सीटें और 2019 में 2 सीटें ही जीत सकी थी. मप्र की 230 सीटों में से 84 पर आदिवासी वोटर निर्णायक भूमिका में हैं. 2013 में बीजेपी ने इनमें से 59 सीटें जीतीं, जो 2018 में 34 रह गईं. करीब करीब यही स्थिति छत्तीसगढ़, ओडिशा, महाराष्ट्र में भी है.
महाराष्ट्र में लोकसभा की 4 तथा विधानसभा की 25 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं. ऐसे में एनसीपी और शिवसेना के लिए एनडीए के आदिवासी उम्मीदवार का विरोध करना कठिन होगा. झारखंड में लोकसभा की 5 और विधानसभा की 28 सीट एसटी के लिए आरक्षित हैं. कांग्रेस की सहयोगी झामुमो इसका विरोध नहीं कर पाएगी. ओडिशा में लोकसभा की 5 और विधानसभा की 28 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं. नवीन पटनायक आसानी से एनडीए उम्मीदवार का साथ दे सकते हैं.