भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि अल्पसंख्यकों को ‘दोयम दर्ज के नागरिक’ में तब्दील करने का कोई भी प्रयास देश को विभाजित करेगा. उन्होंने कहा कि भारत का भविष्य उदार लोकतंत्र और उसकी संस्थाओं को मजबूत करने में है, क्योंकि यह देश के आर्थिक विकास के लिए जरूरी है. रघुराम राजन ने ये बातें रायपुर में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कही हैं.
राजन ने बहुसंख्यकवाद के खिलाफ चेतावनी देते हुए कहा कि श्रीलंका इस बात का उदाहरण है कि क्या होता है, जब किसी देश के नेता नौकरी के संकट से ध्यान भटकाने के लिए अल्पसंख्यकों को लक्षित करते हैं. राजन ने ‘भारत के आर्थिक विकास के लिए उदार लोकतंत्र की आवश्यकता क्यों है.’ विषय पर अपने विचार रखते हुए कहा कि ‘इस देश में उदार लोकतंत्र के साथ क्या हो रहा है और क्या यह वास्तव में भारतीय विकास के लिए आवश्यक है? हमें इसे बिल्कुल मजबूत करना चाहिए. आज भारत में कुछ वर्गों में यह भावना है कि लोकतंत्र भारत को पीछे रखता है. भारत के लिए मजबूत, यहां तक कि निरंकुश नेतृत्व भी चलेगा, जिसमें कुछ नियंत्रण और संतुलन हो और ऐसा प्रतीत हो रहा है कि हम इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं.’
राजन ने कहा, ‘मेरा मानना है कि यह तर्क पूरी तरह से गलत है. यह विकास के पुराने मॉडल पर आधारित है, जो लोगों और विचारों पर जोर न देकर वस्तुओं और पूंजी पर जोर देता है.’ उन्होंने कहा कि आर्थिक विकास के मामले में देश का खराब प्रदर्शन ‘उस रास्ते की ओर इशारा करता है, जिस पर हमें पुनर्विचार करने की जरूरत है.
आरबीआई के पूर्व गवर्नर ने कहा, ‘हमारा भविष्य हमारे उदार लोकतंत्र और उसके संस्थानों को मजबूत करने में है, न कि उन्हें कमजोर करने में और यह वास्तव में हमारे विकास के लिए आवश्यक है. इस पर विस्तार से बात करते हुए कि बहुसंख्यकवाद से जुड़ी निरंकुशता को क्यों परास्त किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘अल्पसंख्यकों के एक बड़े वर्ग को दोयम दर्जे का नागरिक बनाने का कोई भी प्रयास देश को विभाजित करेगा और आंतरिक असंतोष पैदा करेगा. ’राजन ने कहा कि इससे देश में विदेशी दखल की आशंका भी बनेगी.
श्रीलंका में जारी संकट का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि यह द्वीपीय देश इस बात का नतीजा देख रहा है, जब देश के नेता रोजगार उत्पन्न करने में असमर्थता से ध्यान हटाने की कोशिश में अल्पसंख्यकों पर निशाना साधते हैं. राजन ने कहा कि उदारवाद एक संपूर्ण धर्म नहीं है और हर प्रमुख धर्म का सार यह है कि वह हर किसी में यह खोजे कि उसमें क्या अच्छाई है, जो कई मायनों में उदार लोकतंत्र का सार भी है. उन्होंने दावा किया कि भारत की धीमी वृद्धि दर सिर्फ कोविड-19 महामारी के कारण नहीं है, बल्कि अर्थव्यस्था में नरमी पहले से थी.
उन्होंने कहा, ‘वास्तव में लगभग एक दशक के लिए शायद वैश्विक वित्तीय संकट की शुरुआत के बाद से हम उतना अच्छा नहीं कर रहे हैं, जितना हम कर सकते थे. इस खराब प्रदर्शन का प्रमुख कारण हमारे युवाओं के लिए अच्छी नौकरियां पैदा करने में असमर्थता है.
केंद्र की अग्निवीर सैन्य भर्ती योजना के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का हवाला देते हुए राजन ने कहा कि इससे पता चलता है कि युवा नौकरियों के लिए कितने आकांक्षी हैं. उन्होंने कहा, ‘अभी कुछ समय पहले आपने रेलवे की 35,000 नौकरियों के लिए 1.25 करोड़ आवेदकों को देखा है. यह विशेष रूप से चिंताजनक है, जब भारत में नौकरियों की कमी है, जबकि इतनी सारी महिलाएं अपने घरों से बाहर काम नहीं कर रही हैं. भारत की महिला श्रम शक्ति भागीदारी 2019 में 20.3 प्रतिशत है, जो जी-20 में सबसे कम है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली वर्तमान सरकार की ‘विकास की दृष्टि’ के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि यह ‘आत्मनिर्भर’ शब्द के इर्द-गिर्द केंद्रित है. उन्होंने कहा, ‘अब यह बेहतर संपर्क, बेहतर रसद, बेहतर सड़कों पर जोर देती है और इसके लिए अधिक संसाधन समर्पित करती है, किसी तरह से यह (आत्मनिर्भर दृष्टि) पिछले दशकों के सुधार की निरंतरता प्रतीत होती है और यह अच्छा है.
पूर्व गवर्नर ने कहा कि कई मायनों में ‘आत्मनिर्भर’ जो हासिल करने की कोशिश कर रहा है, वह किसी को एक असफल अतीत की ओर ले जाता है, जहां ध्यान भौतिक पूंजी पर था, न कि मानव पूंजी पर, सुरक्षा और सब्सिडी पर था, न कि उदारीकरण पर, सबसे सक्षम को सफल होने देने के बजाय पसंदीदा को आगे बढ़ने के लिए चुनने पर था. उन्होंने कहा कि प्राथमिकताओं की गलत भावना थी. उन्होंने कहा कि देश शिक्षा पर पर्याप्त खर्च नहीं कर रहा है, जिसके ठीक परिणाम नहीं होंगे.
राजन ने कहा, कई बच्चे दो साल से स्कूल नहीं जा रहे हैं. उनकी मानव पूंजी जो उनकी और आने वाले वर्षों में हमारी सबसे महत्वपूर्ण संपत्ति है कुछ ऐसी है जिसकी हम उपेक्षा कर रहे हैं. हम शिक्षा के क्षेत्र में पर्याप्त संसाधन नहीं देकर उन्हें विफल कर रहे हैं.