अखिलेश अखिल
खबरे तो कई तरह को आ रही है. पिछले सप्ताह देश की राजनीतिक गलियारों में खूब सुर्खियां बटोरी गई कि नीतीश कुमार फिर से पलटी मारेंगे. बीजेपी के साथ फिर चले जायेंगे. इस खबर के पीछे चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर का बयान था जिसमे उन्होंने कहा था कि नीतीश कुमार पिछले दरवाजे से बीजेपी से बात कर रहे हैं. लेकिन अब इस पर कोई चर्चा नहीं हो रही है. नीतीश कुमार कह चुके हैं कि अब वो बीजेपी के साथ नही जायेंगे. लेकिन फरेबी राजनीति में कुछ भी संभव है. कुछ भी हो सकता है.
इधर अब लालू यादव की राजद और नीतीश कुमार की जेडीयू के विलय की खबर पटना से लेकर दिल्ली तक तैर रही है. देश के कई प्रतिष्ठित अंग्रेजी अखबार भी इसको लेकर खबर दे रहे हैं. सूत्रों के हवाले से निकल रही इस खबर की पुष्टि न तो अभी तक राजद कर रही है और न ही जेडीयू. लेकिन खबर प्रसारित और प्रचारित हो रही है.
इधर जिस तरह से नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की केमिस्ट्री दिख रही है, उसी के आधार पर कहा जा रहा है कि दोनों दल आपस में विलय करेंगे और कोई तीसरा दल तैयार किया जाएगा. राजद का लालटेन और जेडीयू की तीर की जगह कोई ऐसा चुनाव चिन्ह होगा जो आकर्षक भी होगा और एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में उसकी पहचान भी बनेगी.
दरअसल जदयू के भीतर यह बात बैठ गई है कि बीजेपी ने उसके साथ धोखा किया है. जदयू को तोड़ने के लिए बीजेपी ने जेडीयू के पूर्व अध्यक्ष आरसीपी सिंह को लगा रखा था. वक्त पर नीतीश कुमार इस खेल को नहीं समझते तो पार्टी के टूट गई होती. शिवसेना की तरह. ऐसे
में जदयू फिर से बीजेपी के साथ अभी जायेगी इसकी संभावना अब कम ही दिखती है. अब जेडीयू और राजद का मुख्य फोकस आगामी लोकसभा चुनाव पर है, और जातीय गणना पर. अगले साल के शुरुआत तक जातीय गणना के परिणाम सामने आएंगे और फिर इसके बाद बीजेपी को घेरने की तैयारी नीतीश कुमार करेंगे.
जदयू और राजद के विलय को लेकर दो दिन पहले जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह के बयान से बल मिल रहा है. ललन सिंह ने अपने पोस्ट में सामाजिक न्याय का नारा दिया है जो अभी तक राजद का नारा रहा है. जेडीयू का नारा सुशासन और विकास का रहा है और जेडीयू इसी नारे के सहारे राजनीति करती रही है.
जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह ने पार्टी के 19वें स्थापना दिवस पर ट्विटर पर पोस्ट कर बधाई दी. उन्होंने लिखा कि जेडीयू के 19वें स्थापना दिवस के शुभ अवसर पर बिहार एवं देशभर के कार्यकर्ता और नीतीश कुमार को बधाई, आभार एवं शुभकामनाएं. सब मिलकर ‘सामाजिक न्याय के साथ विकास’ की त्वरित गति में बिहार को विकसित प्रदेश बनाकर रहेंगे.
अक्टूबर 2003 में जेडीयू का गठन हुआ था. उसके बाद नीतीश कुमार इस पार्टी के सर्वेसर्वा बन गए. जेडीयू सुशासन और विकास का नारा देकर बिहार की सत्ता पर काबिज हुई और तब से नीतीश इसी नारे के साथ राजनीति कर रहे हैं. अब जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह ने अपने नारे में विकास के साथ सामाजिक न्याय को भी जोड़ दिया है.
बता दें कि सामाजिक न्याय की अवधारणा भी कोई नई नहीं है. वीपी सिंह जब प्रधानमंत्री थे, तब मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने के साथ ही सामाजिक न्याय पर जोर दिया गया था. पुराने जनता दल में वीपी सिंह ने सामाजिक न्याय का नारा दिया था, बाद में लालू प्रसाद यादव ने आरजेडी का गठन किया तो उसी नारे को अपनाया. आज की आरजेडी की नींव इसी अवधारणा पर टिकी है. अब सीएम नीतीश कुमार की जेडीयू भी सामाजिक न्याय के नारे को अपनाने जा रही है. सामाजिक न्याय का अर्थ समाज के सभी सदस्यों के बीच बिना किसी भेदभाव के समान भाव से उनके अधिकार और गरिमा को बनाए रखने से है.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एनडीए से नाता तोड़कर महागठबंधन के साथ सरकार बनाने के बाद से इस बात के कयास लगाए जा रहे हैं कि आरजेडी और जेडीयू का विलय होगा. सीएम नीतीश और आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव अपनी-अपनी पार्टियों का विलय करके एक नए मजबूत दल का निर्माण कर सकते हैं, जो बिहार ही नहीं बल्कि देशभर में बीजेपी को चुनौती देगा. हालांकि, अभी तक दोनों पार्टियों की ओर से इस पर कोई जानकारी नहीं दी गई है. माना जा रहा है कि अंदरखाने विलय पर बात चल रही है. दोनों ही दल एक नए नाम और नए निशान के साथ नई पार्टी बना सकते हैं.
खबर ये भी है नीतीश कुमार देश की हिंदी पट्टी के साथ ही दक्षिण और पूर्वोत्तर भारत में अपना विस्तार चाहते हैं. हालाकि पूर्वोत्तर के कई राज्यों में जदयू की अच्छी पकड़ है और उसे जीत भी मिलती रही है, लेकिन जो बाते सामने आ रही उसके मुताबिक अगर राजद और जेडीयू एक होकर चनाव लड़ते है तो पार्टी का विस्तार बेहतर होगा. और कई राज्यों में स्थिति पार्टी के अनुकूल भी होगी.
नीतीश कुमार हर हाल में हिंदी पट्टी में बीजेपी को कमजोर करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं और इसके लिए नीतीश कुमार सपा और हेमंत सोरेन से भी लगातार बात कर रहे हैं. ममता बनर्जी को भी अपने साथ लाने की तैयारी हो रही है. इसके साथ ही हिंदी पट्टी के सभी क्षेत्रीय दलों को एक मंच पर लाने की कोशिश भी को जा रही है.