Thursday, November 21, 2024
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म्यांमार की सेना ने चार लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ताओं को दी सज़ा-ए-मौत

 

म्यांमार की सैनिक सरकार ने देश के चार लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ताओं को मौत की सज़ा दे दी है. ये सज़ा वर्ष 2021 में हुए सैन्य तख्तापलट के दौरान के मामले में दी गई है. मौत के घाट उतारे गए पूर्व सांसद फ्यो ज़िया थॉ, लेखक और कार्यकर्ता को जिमी, ला म्यो आंग और आंग थुरा ज़ॉ पर ‘आतंकी गतिविधियों’ को अंजाम देने के आरोप थे.

 

खबरों के अनुसार परिवारों का आरोप है कि मौत की सज़ा दिए जाने के बाद सैन्य सरकार ने उनके अपनों का शव तक परिवार को नहीं सौंपा है. न्यूज एजेंसी रायटर के मुताबिक मौत की सज़ा पाए फ़्यो की पत्नी थाज़िन यंट आंग ने आरोप लगाते हुए कहा कि उन्हें उनके पति को मौत की सज़ा दिए जाने के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई. अब चारों परिवारों ने मौत की सज़ा पर जानकारी मांगी है.

तख्तापलट के विरोध में बनी म्यांमार की सांकेतिक नेशनल यूनिटी सरकार (एनयूजी) ने इन हत्याओं पर दुख और हैरानी जताते हुए निंदा की है. एनयूजी ने कहा है कि मौत की सज़ा पाने वालों में लोकतंत्र के समर्थक, सशस्त्र नस्लीय समूहों के प्रतिनिधि और एनएलडी के सदस्य शामिल हैं. एनयूजी ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील की है कि वो ‘सत्ता में बैठी हत्यारी सैन्य सरकार को उनकी बर्बरता और हत्याओं के लिए सज़ा दे.’ बता दें कि इसी साल जनवरी में बंद दरवाज़ों में हुई सुनवाई के बाद इन चारों लोगों को मौत की सज़ा सुनाई गई थी, जिसे अपारदर्शी बताते हुए मानवाधिकार गुटों ने इसकी कड़ी आलोचना की थी.

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने चारों एक्टिविस्ट को मौत की सज़ा दिए जाने को ‘जीवन, आज़ादी और सुरक्षा के अधिकार’ का घोर उल्लंघन बताया है. म्यांमार में दशकों बाद मौत की सज़ा दी गई है. सज़ा का एलान सेना ने इसी साल जून महीने में किया था. उस वक्त सैन्य सरकार के इस फैसले की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कड़ी आलोचना हुई थी.

Anzarul Bari
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पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.
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