Saturday, September 7, 2024
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मुफ्त राशन : देश के गरीबो को नए साल का तोहफा

अखिलेश अखिल

मोदी सरकार ने नए साल की शुरुआत से पहले ही देश के गरीबो को बड़ा तोहफा दिया है. यह तोहफा मुफ्त राशन का है. सरकार ने कहा है कि 81.35 करोड़ गरीबों को एक साल तक मुफ्त राशन देगी. सरकार का यह फैसला राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत किया गया है. यह मुफ्त योजना पिछले दो साल से सरकार चला रही है, जिसे अब एक साल के लिए और बढ़ा दिया गया है. इस योजना पर सरकार को दो लाख करोड़ से ज्यादा अतिरिक्त बोझ सहना पडेगा. इस योजना के तहत गरीब लोगों को चावल तीन रुपये प्रति किलो और गेहूं दो रुपये प्रति किलो के हिसाब से दिया जाता है.

सरकार के इस फैसले के कई मायने देखे जा रहे हैं. एक मायने तो यह है कि पिछले लॉक डाउन और नोटबंदी की वजह से लोगों की आय खत्म हो गई है और लोगो बड़ी संख्या में बेरोजगार हुए हैं. इसका असर ये हुआ है कि खाता पिता परिवार भी आर्थिक रूप से कमजोर हुआ है. जाहिर सी बात है कि देश में कोई भूखे न रहे और सबको भोजन मिलता रहे, उस हिसाब से सरकार की ये पहल कबीले तारीफ है. लेकिन इसके पीछे राजनीति भी है. बीजेपी इस मुफ्त योजना के जरिये गरीबो को साध रही है. पूर्व में इसका लाभ भी बीजेपी को चुनाव में मिला हैं. पिछले तीन सालों के भीतर जितने भी चुनाव हुए हैं, उसमे बीजेपी को काफी लाभ हुआ है. और उस लाभ में इस मुफ्त राशन की भागीदारी सबसे ज्यादा है.

आने वाले साल में करीब 9 राज्यों में विधान सभा चुनाव होने हैं. और लोकसभा चुनाव भी 24 में होगा. बीजेपी की नजर इन चुनावों में बेहतर करने की है, ताकि लोकसभा चुनाव में बीजेपी की वापसी फिर से हो सके. बीजेपी को लग रहा है कि जिस तरह से कांग्रेस भारत जोड़ो यात्रा के जरिये लोगों को जगा रही है, और फिर से सक्रिय हो रही है. उससे बीजेपी को जबरदस्त चुनौती मिल सकती है. फिर आम आदमी पार्टी की सक्रियता भी बीजेपी को परेशान किये हुए है. बीजेपी की चिंता संभावित विपक्षी एकता की भी है. ऐसे में मुफ्त अनाज योजना बीजेपी के लिए रामबाण साबित हो सकती है. और यह ऐसी योजना है कि जिसपर विपक्ष भी उंगुली नहीं उठा सकता.

लेकिन असली सवाल तो यही है कि क्या केंद्र की मोदी सरकार यह मानने को तैयार है कि पिछले तीन चार सालों में देश की आर्थिक स्थिति ख़राब हुई है. और देश में जहां पहले गरीबो की संख्या करीब 30 करोड़ के पास थी. अब 80 करोड़ से ज्यादा हो गई है ? बीजेपी के सामने यही संकट है. इसी मसले पर विपक्ष उसे घेर सकता है, और इसका कोई जबाव बीजेपी के पास नहीं है. और न ही मोदी सरकार के पास. इस पर अगली राजनीति निश्चित तौर पर होगी.

बता दें कि एनएफएसए के तहत, जिसे खाद्य कानून भी कहा जाता है, सरकार वर्तमान में प्रति व्यक्ति प्रति माह 5 किलोग्राम खाद्यान्न 2-3 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से प्रदान करती है. अंत्योदय अन्न योजना (एएवाई) के तहत आने वाले परिवारों को प्रति माह 35 किलो अनाज मिलता है.

केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा लिए गए निर्णय के बारे में पत्रकारों को जानकारी देते हुए, खाद्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि एनएफएसए के तहत मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध कराने का पूरा भार केंद्र वहन करेगा. राजकोष की वार्षिक लागत 2 लाख करोड़ रुपये आंकी गई है. सितंबर में सरकार ने इस योजना की समयसीमा को तीन महीने के लिए 31 दिसंबर तक बढ़ा दिया था.

सरकारी अधिकारियों ने नवीनतम कैबिनेट के फैसले को “देश के गरीबों के लिए नए साल का तोहफा” बताया, जिसमें कहा गया है कि अब 80 करोड़ से अधिक लोगों को एनएफएसए के तहत मुफ्त खाद्यान्न मिलेगा. हितग्राहियों को खाद्यान्न प्राप्त करने के लिए एक रुपये का भुगतान नहीं करना होगा.

यह योजना गरीबो के लिए भी अमृत के सामान है. देश में कोई भूखा न रहे इसकी गारंटी इस योजना से तो मिलती है लेकिन योजना के पीछे की कहानी भयावह भी है. यह योजना साफ़ बता रही है कि अगर इसे नहीं चलाया गया तो देश में भुखमरी होगी क्योंकि आमदनी के सारे रस्ते जो बंद हो चुके हैं.

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क्या तमिलनाडु में एलटीटीई को बढ़ावा देने में जुटी है आईएसआई ? द आइलैंड ऑनलाइन की एक रिपोर्ट बताती है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई तमिलनाडु में लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई) को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रही है. राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने इस सप्ताह की शुरुआत में लिट्टे के पुनरुद्धार से संबंधित एक अवैध ड्रग्स और हथियारों के मामले में नौ लोगों को गिरफ्तार किया था. एनआईए ने एक टिप्पणी में कहा है कि यह मामला श्रीलंका के ड्रग माफिया की गतिविधियों से संबंधित है, जो गुनाशेखरन और पुष्पराजाह द्वारा पाकिस्तान में स्थित ड्रग्स और हथियार सप्लायर हाजी सलीम के सहयोग से नियंत्रित है. एनआईए ने कहा कि तमिलनाडु में तमिल शरणार्थियों के लिए एक विशेष शिविर से नौ श्रीलंकाई लोगों को अवैध ड्रग्स और हथियारों के व्यापार में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. गिरफ्तार लोगों में सी गुनाशेखरन उर्फ गुना और पुष्पराजाह उर्फ पुकुट्टी कन्ना शामिल हैं. संघीय आतंकवाद रोधी एजेंसी के एक प्रवक्ता ने कहा कि वो पाकिस्तान स्थित एक दवा और हथियार आपूर्तिकर्ता हाजी सलीम के साथ मिलकर काम कर रहे थे. ये गिरफ्तारियां 8 जुलाई को एजेंसी द्वारा स्वत: दर्ज किए गए एक मामले के सिलसिले में की गई थीं और इसके बाद राज्य में चेन्नई, तिरुपुर, चेंगलपट्टू और तिरुचिरापल्ली जिलों में आरोपियों और संदिग्धों के परिसरों पर छापेमारी की गई थी. एजेंसी के प्रवक्ता ने कहा कि गुनाशेखरन और पुष्पराजाह के अलावा, गिरफ्तार किए गए अन्य लोगों में मोहम्मद अस्मीन, अलहापेरुमागा सुनील गामिनी फोंसिया कोट्टाघामिनी उर्फ सुनील गामिनी उर्फ नीलकंदन, स्टेनली केनेडी फर्नांडो, लादिया चंद्रसेना, धानुका रोशन, वेल्ला सुरंका उर्फ गमागे सुरंगा प्रदीप उर्फ सुरंग और थिलिपन उर्फ दिलीपन शामिल थे. द आइलैंड ऑनलाइन की रिपोर्ट के अनुसार, यह मॉड्यूल भारत और श्रीलंका में काम कर रहा है. और लिट्टे को फिर से जीवित करने के लिए धन जुटाने को कोशिश में दवाओं और हथियारों की तस्करी कर रहा है. पाकिस्तान द्वारा दक्षिण भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देना कोई नई बात नहीं है. 2014 में एनआईए ने एक मॉड्यूल का पता लगाया था जिसे कोलंबो में पाकिस्तान उच्चायोग द्वारा नियंत्रित किया जा रहा था. उच्चायोग तमिलनाडु में कुछ गुर्गों की देखरेख कर रहा था, जो कई लक्ष्यों की टोह ले रहे थे, जिन पर उन्होंने हमला करने की योजना बनाई थी. रिपोर्ट के अनुसार, उस मॉड्यूल के जड़ से खत्म हो जाने के बाद आईएसआई अब देश के दक्षिण हिस्से में सुरक्षा को पटरी से उतारने के लिए तमिलनाडु और श्रीलंका में लिट्टे आंदोलन को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहा है. इंटेलिजेंस ब्यूरो के एक अधिकारी ने मीडिया को बताया कि फरवरी में लिट्टे आंदोलन को तमिल राष्ट्रवाद से जोड़कर इसे पुनर्जीवित करने के प्रयास किए जा रहे थे. एनआईए ने संगठन के पूर्व गुर्गों को गिरफ्तार किया था और जांच के दौरान पता चला था कि ये यूरोप के कुछ व्यक्तियों से जुड़े थे. यह पता चला कि यूरोप में स्थित ये ऑपरेटिव पैसा निकालने और लिट्टे को पुनर्जीवित करने के लिए इसका इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे थे. द आइलैंड ऑनलाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, यह पता चला कि डेनमार्क और स्विट्जरलैंड के बाहर स्थित ये व्यक्ति निष्क्रिय एलटीटीई की गतिविधियों को वित्तपोषित करने के लिए पैसे निकालने की कोशिश कर रहे थे। इसके अलावा यह भी पता चला है कि इन तत्वों के माध्यम से आईएसआई तमिल राष्ट्रवाद का उपयोग करके लिट्टे को पुनर्जीवित करने के लिए ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को निशाना बना रहा था. वो कुछ एनजीओ के भी संपर्क में थे जो लोगों को यह समझाने के लिए वेबिनार और सेमिनार आयोजित करते पाए गए कि लिट्टे का उदय सीधे तौर पर तमिल राष्ट्रवाद से जुड़ा हुआ है. यह मामला श्रीलंकाई नागरिक लेचुमानन मैरी फ्रांसिस्का (50) को चेन्नई एयरपोर्ट से गिरफ्तार किए जाने के बाद सामने आया था. जांच के दौरान पता चला कि आरोपी ने इंडियन ओवरसीज बैंक की मुंबई फोर्ट शाखा से पैसे निकाले थे. द आइलैंड ऑनलाइन की रिपोर्ट के अनुसार, यह स्पष्ट हो गया कि पैसा लिट्टे के पुनरुद्धार पर खर्च किया जाना था.
Anzarul Bari
Anzarul Bari
पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.
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