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मुफ्त राशन : देश के गरीबो को नए साल का तोहफा

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मुफ्त राशन : देश के गरीबो को नए साल का तोहफा

अखिलेश अखिल

मोदी सरकार ने नए साल की शुरुआत से पहले ही देश के गरीबो को बड़ा तोहफा दिया है. यह तोहफा मुफ्त राशन का है. सरकार ने कहा है कि 81.35 करोड़ गरीबों को एक साल तक मुफ्त राशन देगी. सरकार का यह फैसला राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत किया गया है. यह मुफ्त योजना पिछले दो साल से सरकार चला रही है, जिसे अब एक साल के लिए और बढ़ा दिया गया है. इस योजना पर सरकार को दो लाख करोड़ से ज्यादा अतिरिक्त बोझ सहना पडेगा. इस योजना के तहत गरीब लोगों को चावल तीन रुपये प्रति किलो और गेहूं दो रुपये प्रति किलो के हिसाब से दिया जाता है.

सरकार के इस फैसले के कई मायने देखे जा रहे हैं. एक मायने तो यह है कि पिछले लॉक डाउन और नोटबंदी की वजह से लोगों की आय खत्म हो गई है और लोगो बड़ी संख्या में बेरोजगार हुए हैं. इसका असर ये हुआ है कि खाता पिता परिवार भी आर्थिक रूप से कमजोर हुआ है. जाहिर सी बात है कि देश में कोई भूखे न रहे और सबको भोजन मिलता रहे, उस हिसाब से सरकार की ये पहल कबीले तारीफ है. लेकिन इसके पीछे राजनीति भी है. बीजेपी इस मुफ्त योजना के जरिये गरीबो को साध रही है. पूर्व में इसका लाभ भी बीजेपी को चुनाव में मिला हैं. पिछले तीन सालों के भीतर जितने भी चुनाव हुए हैं, उसमे बीजेपी को काफी लाभ हुआ है. और उस लाभ में इस मुफ्त राशन की भागीदारी सबसे ज्यादा है.

आने वाले साल में करीब 9 राज्यों में विधान सभा चुनाव होने हैं. और लोकसभा चुनाव भी 24 में होगा. बीजेपी की नजर इन चुनावों में बेहतर करने की है, ताकि लोकसभा चुनाव में बीजेपी की वापसी फिर से हो सके. बीजेपी को लग रहा है कि जिस तरह से कांग्रेस भारत जोड़ो यात्रा के जरिये लोगों को जगा रही है, और फिर से सक्रिय हो रही है. उससे बीजेपी को जबरदस्त चुनौती मिल सकती है. फिर आम आदमी पार्टी की सक्रियता भी बीजेपी को परेशान किये हुए है. बीजेपी की चिंता संभावित विपक्षी एकता की भी है. ऐसे में मुफ्त अनाज योजना बीजेपी के लिए रामबाण साबित हो सकती है. और यह ऐसी योजना है कि जिसपर विपक्ष भी उंगुली नहीं उठा सकता.

लेकिन असली सवाल तो यही है कि क्या केंद्र की मोदी सरकार यह मानने को तैयार है कि पिछले तीन चार सालों में देश की आर्थिक स्थिति ख़राब हुई है. और देश में जहां पहले गरीबो की संख्या करीब 30 करोड़ के पास थी. अब 80 करोड़ से ज्यादा हो गई है ? बीजेपी के सामने यही संकट है. इसी मसले पर विपक्ष उसे घेर सकता है, और इसका कोई जबाव बीजेपी के पास नहीं है. और न ही मोदी सरकार के पास. इस पर अगली राजनीति निश्चित तौर पर होगी.

बता दें कि एनएफएसए के तहत, जिसे खाद्य कानून भी कहा जाता है, सरकार वर्तमान में प्रति व्यक्ति प्रति माह 5 किलोग्राम खाद्यान्न 2-3 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से प्रदान करती है. अंत्योदय अन्न योजना (एएवाई) के तहत आने वाले परिवारों को प्रति माह 35 किलो अनाज मिलता है.

केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा लिए गए निर्णय के बारे में पत्रकारों को जानकारी देते हुए, खाद्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि एनएफएसए के तहत मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध कराने का पूरा भार केंद्र वहन करेगा. राजकोष की वार्षिक लागत 2 लाख करोड़ रुपये आंकी गई है. सितंबर में सरकार ने इस योजना की समयसीमा को तीन महीने के लिए 31 दिसंबर तक बढ़ा दिया था.

सरकारी अधिकारियों ने नवीनतम कैबिनेट के फैसले को “देश के गरीबों के लिए नए साल का तोहफा” बताया, जिसमें कहा गया है कि अब 80 करोड़ से अधिक लोगों को एनएफएसए के तहत मुफ्त खाद्यान्न मिलेगा. हितग्राहियों को खाद्यान्न प्राप्त करने के लिए एक रुपये का भुगतान नहीं करना होगा.

यह योजना गरीबो के लिए भी अमृत के सामान है. देश में कोई भूखा न रहे इसकी गारंटी इस योजना से तो मिलती है लेकिन योजना के पीछे की कहानी भयावह भी है. यह योजना साफ़ बता रही है कि अगर इसे नहीं चलाया गया तो देश में भुखमरी होगी क्योंकि आमदनी के सारे रस्ते जो बंद हो चुके हैं.

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