Friday, November 22, 2024
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गुजरात में परिवारवाद को बढ़ावा देती बीजेपी और कांग्रेस की राजनीति बेनकाब

अखिलेश अखिल

गजब की राजनीति है। देश के भीतर जब कही चुनावी दुदुम्भी बजती है, वंशवाद और परिवारवाद की राजनीति कुलांचे मारने लगती है. बीजेपी के नेताओं को कौन कहे खुद प्रधानमंत्री मोदी और उनके रणनीतिकार अमित शाह कांग्रेस समेत तमाम क्षेत्रीय पार्टियों को लपेटे मे लेते हैं और हमलावर हो जाते हैं. बीजेपी दावा करती है कि उसकी तरफ से वंशवादी राजनीति को बढ़ावा नहीं दिया जाता. जनता बीजेपी के इस बयान को सुनती है और तालियां भी बजाती है. लेकिन जब चुनाव में उम्मीदवार देने की बात आती है तो बीजेपी की डपोरशंखी आवाज गुम हो जाती है. वह वही करती दिखती है जो अन्य पार्टियां करती है. यह खेल ठीक वैसा ही है, जैसे राजनीति में अपराधीकरण को लेकर है. अदालते और चुनाव आयोग हर बार अपराधियों को टिकट नहीं देने की बातें करती है. लेकिन हर चुनाव में सैकड़ों दागी उम्मीदवार मैदान में खड़े होते हैं और उनमे से अधिकतर चुनाव जीत कर संसद और विधान सभाओं की शोभा बढ़ाते हैं.

अब गुजरात चुनाव में जो हो रहा है उसे देखकर बीजेपी की वंशवादी राजनीति पर हमला तार – तार होते हुए दिखती है. राजनीति में परिवारवाद और वंशवाद कितना हावी है, इसकी बानगी गुजरात में बीजेपी पेश कर रही है. कांग्रेस के बारे में तो पहले से ही कहा जाता है कि वहां परिवारवाद हावी है. लेकिन गुजरात में जिस परिवारवादी राजनीति को बीजेपी आगे बढ़ा रही है, अब कहने के लिए उसके पास कोई तर्क नहीं रह गया है. सच तो यही है कि राजनीति में परिवारवाद की जड़ें काफी गहरी है, इसे शायद की ख़त्म किया जा सकता है.

गुजरात विधान सभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस जैसी मुख्य पार्टियों ने जिन प्रत्याशियों को टिकट दिया है, उनमें से 21 उम्मीदवार राजनेताओं के पुत्र हैं. बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने चुनावी समीकरणों को ध्यान में रखते हुए तमाम राजनैतिक परिवारों के लोगों को मौका दिया है. बीजेपी ने ऐसे सात उम्मीदवारों पर दांव खेला है, जबकि कांग्रेस ने 13 को टिकट दिया है. ये उम्मीदवार सिटिंग या पूर्व एमएलए के पुत्र हैं. इस लिस्ट में समाजवादी पार्टी भी है, जिस पर यूपी में अकसर परिवारवाद का आरोप लगता है. कुतियाना विधानसभा सीट से एसपी ने ‘गॉडमदर’ नाम से चर्चित पूर्व एमएलए संतोखबेन जडेजा के बेटे कांधल जडेजा को टिकट दिया है.

इन उम्मीदवारों का टिकट तय करने में उनके पिता की सियासी विरासत और जिताऊ क्षमता मुख्य वजह रही है. गुजरात के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के बेटों को भी कांग्रेस से टिकट मिला है. अमर सिंह चौधरी 1985 से 1989 तक गुजरात के सीएम रहे थे. उनके पुत्र डॉ. तुषार चौधरी को टिकट मिला है. इसी तरह 1996 से 1997 तक गुजरात के सीएम रहे शंकर सिंह वाघेला के बेटे महेंद्र सिंह वाघेला को भी कांग्रेस ने टिकट दिया है. तुषार खेडब्रह्मा चुनाव लड़ रहे हैं. जबकि से बघेला पुत्र महेंद्र सिंह वाघेला बायड़ सीट से ताल थोक रहे हैं.

उधर, बीजेपी ने पूर्व कैबिनेट मंत्री अशोक भट्ट के बेटे भूषण भट्ट को भी चुनाव में टिकट दिया है. इसके अलावा एक और पूर्व कैबिनेट मंत्री विट्ठल रादडिया के बेटे जयेश रादडिया को मौका मिला है. भूषण बीजेपी के टिकट पर जमालपुर-खाडिया और जयेश जैतपुर सीट से लड़ रहे हैं.

बीजेपी सियासी परिवार से आने वाले सात लोगों को टिकट दिया है. इनमे से अधिकतर कांग्रेस से बीजेपी में आये नेताओं के पुत्र हैं. पिता को जब लगा कि इस बार कांग्रेस उन्हें टिकट नहीं देगी तो वो ईमान बेचकर बीजेपी में चले गए ताकि अपने बेटों को राजनीति में स्थापित कर सके. मोहन राठवा कांग्रेस के बड़े नेता रहे हैं. इस बार पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया. पाला बदलकर बीजेपी में चले गए. गुजरात में उन पर सब हंस रहे हैं. बीजेपी ने अब उनके पुत्र राजेंद्र राठवा को टिकट दिया है. सानंद से बीजेपी ने कनु मकवाना को मैदान में उतारा है. मकवाना भी कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आये हैं. उनके पिता करन मकवाना कांग्रेस के बड़े नेता रहे हैं. योगेंद्र परमार भी कांग्रेस छोड़कर बीजेपी आये हैं. ये रामसिंघ परमार के पुत्र हैं जिनकी कांग्रेस की राजनीति में खूब चलती थी. इसी तरह और से बहुत नाम हैं. परिवारवाद पर बीजेपी अभी कुछ भी नहीं बोल रही है. लक्ष्य केवल चुनाव जीतने का है. वंशवादी राजनीति पर आगे जो भी सवाल उठेंगे उसे हल कर लिया जाएगा. नए तर्क पेश कर दिए जायेंगे. और फिर बीजेपी से पूछेगा कौन ? गोदी मीडिया में इतनी ताकत कहाँ बची है.

याद कीजिए प्रधानमंत्री मोदी के उस बयान को जब राहुल गाँधी कांग्रेस के अध्यक्ष बनने जा रहे थे. राहुल को अध्यक्ष बनते देख बीजेपी परेशान हो गई थी. प्रधानमन्त्री ने उस परिवार की तुलना मुग़ल शासको से की थी. मोदी जी से कौन पूछने जाए कि पिछले कुछ सालों से जिस कांग्रेसी रहे सरदार पटेल को गुजराती अस्मिता से जोड़कर देश की राजनीति को मोदी जी आगे बढ़ा रहे हैं. वह भी कोई आदर्श राजनीति नहीं है. सरदार पटेल को अगर बीजेपी ने अपना आदर्श माना है तो पटेल परिवार की वंशवादी राजनीति से उन्हें कोई परहेज क्यों नहीं ? सरदार पटेल के भाई, उनकी बेटी, उनके बेटे भी तो राजनीति करते रहे हैं और संसद तक पहुंचे हैं. इसीलिए गुजरात के चुनाव के जरिये देश बहुत कुछ सीख रहा है, समझ रहा है. कहते हैं चुनावी राजनीति में सब कुछ जायज है.

राजनीति तो सभी वादों का संगम है. यहां तो धर्म और समाज के जितने तिरस्कृत आचरण होते हैं, सबका मिलन हो जाता है. राजनीति जब ठगों और बेईमानो की पनाहगाह है. तब फिर कैसे किसी वादे को बेहतर माना जा सकता है ? हाँ, अपवाद की गुंजाइस तो हर जगह है. क्या जो लोग धर्म के नाम का चोगा पहने, कीर्तन करते और अल्लाह या फिर अपने अपने ईश्वर का नाप जपते थकते नहीं, उन सबको संत, फ़क़ीर और देव्तुल्य मान लिया जाय ? कदापि नहीं. क्या जो राजनीति करते दिखते हैं और सांसद, विधायक, मंत्री और संत्री बनते दिखते हैं, वो सब हमारे नेता हैं ? क्या वो सब हमारे पथ प्रदर्शक हैं ? कदापि नहीं. तमाम धार्मिक ग्रंथों की हम कस्मे खाते नहीं थकते. लेकिन यह भी सच है कि हम झूठी कस्मे खाकर इन मुकद्द्स ग्रंथों का मजाक भी उड़ाते हैं. फिर सच क्या है ? सच यही है कि जो हम करते दिखते हैं, वैसा हैं नहीं. जो हम बोलते हैं, उस राह पर चलते नहीं. हम ढोंगी हैं और पाखंडी भी. हमारा लोकतंत्र ऐसे ही चल रहा है, और चलता रहेगा.

तो पीएम मोदी और उनके लोगों ने राहुल की राजनीति को मुगलिया वंशवाद का नाम दिया है. सच भी यही है. लोकतंत्र में ऐसा नहीं होना चाहिए. होना तो बहुत कुछ नहीं चाहिए, लेकिन वह भी हो रहा है. होता रहेगा भी. लेकिन बीजेपी क्या है ? बीजेपी भी तो उसी मुगलिया वंशवाद को आगे बढ़ाती चल रही है. चलती भी रहेगी. बीजेपी के भीतर भी राहुल परिवार के वरुण गांधी और उनकी माता मेनका गांधी राजनीति करती दिख रही है. मोदी जी की इस पर क्या राय है ? उसी गांधी परिवार का एक कुनबा बीजेपी की शोभा बढ़ाता दिख रहा है. पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा के बेटे जयंत सिन्हा केंद्र की मोदी सरकार में मंत्री रहे हैं. अब सांसद हैं. केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद भी सियासी वंशबेल पर उगे फूल हैं. केंद्र सरकार में मंत्री पीयूष गोयल के पिता वेद प्रकाश गोयल अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री थे.

बीजेपी के कद्दावर नेता रहे कल्याण सिंह राजस्थान के राज्यपाल रहे हैं. उनके बेटे राजवीर सिंह सांसद हैं. उनकी बहू भी राजनीति में सक्रिय हैं, और चुनाव भी लड़ चुकी हैं. कल्याण सिंह के नाती संदीप सिंह भी विधायक हैं. केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह बीजेपी से विधायक हैं. उत्तर प्रदेश की राजनीति में सक्रिय बहुगुणा परिवार से रीता बहुगुणा जोशी कांग्रेस से बीजेपी में आई हैं. उनकी राजनीति बीजेपी को भा रही है. वो योगी सरकार में मंत्री रही हैं. उत्तराखंड में मुख्यमंत्री रह चुके रीता बहुगुणा के भाई विजय बहुगुणा भी फिलहाल बीजेपी में हैं.

विजयाराजे सिंधिया की बेटियां वसुंधरा और यशोधरा राजनीति में हैं. वसुंधरा राजे दूसरी बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रही हैं. उनकी बहन यशोधरा राजे मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री हैं. वसुंधरा के बेटे दुष्यंत सिंह बीजेपी सांसद हैं. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह के बेटे अभिषेक सिंह राजनीति में हैं. प्रेम कुमार धूमल के बेटे अनुराग ठाकुर भी बीजेपी के कद्दावर नेताओं में गिने जाते हैं.

मध्य प्रदेश में दिलीप सिंह भूरिया की पुत्री निर्मला भूरिया, महाराष्ट्र में दिवंगत प्रमोद महाजन की बेटी पूनम महाजन, गोपीनाथ मुंडे की पुत्रियां पंकजा मुंडे और प्रीतम मुंडे को सक्रिय राजनीति में भागीदारी और पद मिले हैं.

दिल्ली में साहिब सिंह वर्मा के पुत्र प्रवेश वर्मा भी सांसद हैं. सरदार सदाशिव राव महादिक की बेटी गायत्री राजे महादिक, जो दिवंगत तुकोजीराव की पत्नी हैं, उन्हें भी मध्य प्रदेश की राजनीति में उतारा गया.

लाल बहादुर शास्त्री का परिवार भी राजनीति में आया और अभी तक बना हुआ है. शास्त्री की छवि ईमानदार नेता की रही है, वो कांग्रेस पार्टी से प्रधानमंत्री बने थे. लेकिन उनके वंशजों को बीजेपी में सम्मानजनक जगह मिली है. उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह लाल बहादुर शास्त्री की बेटी सुमन शास्त्री के बेटे हैं.

बिहार में लालू को परिवारवाद के लिए कोसा जाता रहा है, लेकिन उसी बिहार में पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी के तीन सांसद पुत्रों को टिकट दिया गया. डॉ. सीपी ठाकुर के पुत्र विवेक ठाकुर, अश्विनी चौबे के पुत्र अर्जित शाश्वत और हुकुमदेव नारायण यादव के पुत्र अशोक कुमार यादव को बिहार विधानसभा चुनाव में उतारा गया. चारा घोटाले में दोषी ठहराए जा चुके जगन्नाथ मिश्र के बेटे नितीश मिश्र भी बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़े.

याद कीजिये मोदी जी ने लोकसभा चुनाव के बाद राज्यों के चुनाव में भी परिवारवाद को मुद्दा बनाया, लेकिन महाराष्ट्र और कश्मीर में बीजेपी उसी परिवारवाद की नाव पर सवार होकर सत्ता के समंदर में सैर कर रही है. कश्मीर में मुफ्ती मुहम्मद सईद और उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती की पार्टी उनकी सहयोगी रह चुकी है. जिस तरह उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह के परिवार से सर्वाधिक सदस्य राजनीति में सक्रिय हैं, उसी तरह बादल परिवार ऐसा है जिसके सदस्य सर्वाधिक मंत्री बन चुके हैं. बीजेपी सालो तक इनके साथ राजनीतिक पारी खेल चुके हैं. दक्षिण की पार्टियां और एनसीपी समेत टीएमसी और बीजू जनता दल सब तो इसी खेल के आदि हैं.

Anzarul Bari
Anzarul Bari
पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.
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