अखिलेश अखिल
क्या बीजेपी ने अपना अगला अध्यक्ष चुन लिया है ? क्या मौजूदा पार्टी अध्यक्ष जे पी नड्डा का सेवा विस्तार अब नहीं होगा, और क्या पार्टी को गुजरात से ही अध्यक्ष मिलेगा ? हालांकि अभी इसकी कोई घोषणा नहीं हुई है, लेकिन गुजरात चुनाव परिणाम के बाद पीएम मोदी ने जो संकेत दिये हैं उसके तो यही मायने निकाले जा सकते हैं कि गुजरात नवसारी के सांसद और सूबे के पार्टी अध्यक्ष सी आर पाटिल बीजेपी के अगले अध्यक्ष हो सकते हैं.
बता दें कि गुजरात में बीजेपी की प्रचंड जीत के लिए पीएम मोदी ने सीधे तौर पर गुजरात के पार्टी अध्यक्ष सी आर पाटिल की सराहना की है. पिछले दिनों पार्टी की संसदीय दल की बैठक में पीएम मोदी ने साफ़ किया कि बहुत से नेता जहां हमेशा अपनी मार्केटिंग करने और फोटो खिंचवाने में जुटे रहते हैं, वही सी आर पाटिल संगठन की मजबूती और कार्यकर्ताओं के निर्माण में जुटे रहते हैं. गुजरात चुनाव में जिस तरह से बीजेपी ने रिकॉर्ड जीत हासिल की है. उसमे पाटिल की भूमिका सबसे ऊपर है. जाहिर है जब पीएम मोदी पाटिल की सराहना कर रहे थे. तब बीजेपी के कई नेता मुँह लटकाये बैठे थे. इन नेताओं में कई ऐसे नेता भी थे, जिनकी चाहत अगले पार्टी अध्यक्ष बनने की थी. पीएम मोदी के बयान के बाद कइयों के सपने टूटे तो कइयों की भविष्य की योजना जमींदोज हो गई.
ऐसे में अब बड़ा सवाल तो यही है कि क्या बीजेपी सी आर पाटिल को पार्टी का अगला अध्यक्ष बनाएगी ? हालांकि इस बात की अभी पूरी गारंटी तो नहीं दी जा सकती है. लेकिन जिस तरह से पाटिल के बारे में पीएम मोदी ने भूरी – भूरी प्रशंसा की है. उससे लगने लगा है कि पाटिल की भूमिका अब बड़ी होने वाली है और संभवतः उन्हें पार्टी की अगली बागडोर थमायी जा सकती है.
सी आर पाटिल कौन है ?
सी आर पाटिल के बारे में तो पहली जानकारी यही है कि वो गुजरात बीजेपी के अध्यक्ष हैं, और नवसारी से बीजेपी के सांसद हैं. लेकिन अहम बात तो ये है कि गुजरात संगठन को मजबूती प्रदान करने में उनका कोई सानी नहीं. संगठन पर उनकी पकड़ शहरी क्षेत्रों से लेकर ग्रामीण इलाकों तक है, और खास बात ये है कि पन्ना स्तर पर पार्टी के लोगों की अच्छाई और बुराई से वो परिचित हैं. सूबे के किस इलाके में किस जगह पर संगठन मजबूत है या कमजोर, इसकी पूरी जानकारी पाटिल रखते हैं. और जहां पार्टी के नेता बढ़चढ़ कर बाते करते हैं, वही पाटिल चुपचाप पार्टी को मजबूत करने में लगे रहते हैं. यही वजह है कि पाटिल पीएम मोदी के ख़ास हैं और मोदी उनपर काफी यकीन भी करते हैं.
लेकिन पाटिल की केवल यही विशेषता नहीं है. उनमे कई और भी गुण है. उनकी राजनीतिक यात्रा की अलग कहानी है, उनके संघर्ष की भी अलग गाथा. आईटीआई करके रोजगार की तलाश में निकले पाटिल आखिर पुलिस कॉन्स्टेबल की मंजिल पा सके थे. लेकिन चुकी वो जुझारू थे और जनता की सेवा के प्रति लालायित, इसलिए 35 साल की उम्र में वो पुलिस की नौकरी छोड़कर बीजेपी से जुड़ गए. तब पार्टी में अटल और आडवाणी की जोड़ी थी और पाटिल को अटल जी ने ही पार्टी में स्वागत किया था. पाटिल की इच्छा थी कि वो सूरत से 1992 में महा नगर पालिका का चुनाव लड़ेंगे, लेकिन ऐसा हो नहीं सका. चुनाव ही टल गया.
पाटिल का संघर्ष जारी रहा. 2009 में पाटिल नवसारी से चुनाव लड़े और जीत गए. इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा. वो लगातार चुनाव जीतते गए और पार्टी को मजबूत भी करते गए. परदे के पीछे रहकर गुजरात बीजेपी को मजबूत करने में पार्टिल की भूमिका को सभी मानते हैं. पाटिल की साफ़ सुथरी छवि और जनता के प्रति समर्पण भाव को गुजरात की जनता भी मानती है. विपक्ष के लोग भी मानते हैं कि पाटिल, कभी भेदभाव किये बिना सबकी समस्यायों को सुनते हैं और हल भी करते हैं. लोगों को आश्चर्य होगा कि पूरे देश में पाटिल का नवसारी स्थित दफ्तर आईएसओ प्रमाणित है. पाटिल का सूरत वाला दफ्तर रेटिंग एजेंसी से हर साल ऑडिट किया जाता है. जनता के लिए काम करने का जो तरिका पाटिल ने ईजाद किया है वह काबिले तारीफ है.
महारष्ट्र में जन्मे पाटिल गुजरात में जेल भी गए
सी आर पाटिल की चर्चा आज दिल्ली तक हो रही है। मौजूदा समय में वे बीजेपी के सबसे चमकते चेहरों में से एक हैं। यह बात और है कि पाटिल की कर्मभूमि गुजरात है लेकिन उनका जन्म महाराष्ट्र जलगांव में 1955 में हुआ था। वे गुजरात पुलिस में ही कॉन्स्टेबल थे और 1989 में वे पुलिस की नौकरी छोड़कर पहले एक कोऑपरेटिव बैंक चलाते थे। बैंक संकट में पड़ा और वे जेल भी गए। जब जेल से निकले तो उनकी राजनीतिक इच्छा बलवती हुई और उनकी नजदीकी सूरत के सांसद कांशी राम राणा से बढ़ी। इसके बाद सूरत के ही विधायक नरोत्तम भाई पटेल का उन्हें सहारा मिला और फिर वे सूरत में समाज सेवा से जुड़ गए। पार्टी के लिए काम करने लगे और लोगों में अपनी पहचान भी बनाने लगे। इस दौरान पाटिल ने अपनी अलग एक टीम बनाई जो कि उस वक्त के स्थापित नेताओं प्रवीण नाईक और अजय चौकसी से अलग थी।
मोदी ने दिया पहली बार चुनाव लड़ने का मौका
गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की नजर पाटिल पर पड़ गई थी। पाटिल के कामो से मोदी काफी प्रभावित थे। मोदी ने पाटिल को 2009 के लोकसभा चुनाव में नवसारी से टिकट दिया और पाटिल भारी मतों से चुनाव जीतकर संसद पहुँच गए। चार लाख वोट मिले थे। इसके बाद पाटिल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भी जीत हाशिल की। पाटिल ने 2019 के चुनाव देशभर में सर्वाधिक मतों से जीतने वाले सांसद बने। उन्होंने 6,89,688 वोटों से कांग्रेस के उम्मीदवार को हराया।
पाटिल सम्हाल चुके हैं वाराणसी की जिम्मेदारी
पाटिल पर पीएम मोदी काफी यकीन करते हैं। गुजरात में पार्टी संगठन के बारे में अगर कोई जानकारी लेनी होती है तो मोदी पाटिल से ही सही जानकारी लेते हैं। पाटिल की सांगठनिक अनुभव को देखते हुए पीएम मोदी ने वाराणसी की जिम्मेदारी भी उनको दी थी। पाटिल लम्बे समय तक वाराणसी को समझते रहे और संगठन को मजबूत कर मोदी की जीत में अहम् भूमिका निभाते रहे हैं। कहा जाता है कि पीएम मोदी की जो कोर टीम है, उसमे पाटिल सबसे ख़ास हैं। हालांकि सिपाही की नौकरी करने से लेकर कोऑपरेटिव बैंक चलाने वाले पाटिल आज गुजरात में बीजेपी के सबसे अमीर नेताओं में शुमार हैं। हालिया एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक पाटिल की संपत्ति करीब 44 करोड़ से ज्यादा की है। विपक्ष हमेशा इस पर सवाल भी खड़ा करता रहा है
2020 में बने प्रदेश अध्यक्ष
किसी का भाग्य कब साथ दे जाए यह कौन जाने ! 2019 के लोसभा चुनाव में पाटिल की जीत रिकॉर्ड मतों से हुई थी और इसके साथ ही पाटिल ने सूरत में पतयय को काफी मजबूत किया था। पाटिल की इस भूमिका को देखते हुए बीजेपी ने 2020 में पाटिल को गुजरात बीजेपी का अध्यक्ष बना दिया। इसके पीची यह भी समझ थी कि पाटिल 2022 के गुजरात विधान सभा चुनाव में कोई करिश्मा करेंगे। कहते हैं कि हालिया संपन्न चुनाव में पीएम मोदी और गृहमंत्री शाह को कांग्रेस और आप की बढ़ती राजनीति से भले ही परेशानी हो रही थी लेकिन पाटिल को अपने संगठन और अपनी तैयारी पर पूरा यकीन था। और अंत में वही हुआ कि पाटिल ने अपनी अध्यक्षता में बीजेपी को उस रिकॉर्ड जीत पर पहुंचा दिया जिसकी अब कल्पना भी नहीं जा सकती। यही वजह है कि पिछले दिनों जब पीएम मोदी संसदीय दल की बैठक को सम्बोधित कर रहे थे तो बार उनकी जुबान पर पाटिल के नाम ही आ रहे थे। ऐसे में अब इसकी सम्भावना ज्यादा हो गई है कि पाटिल बीजेपी के अगले राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाये जाएं।
तो क्या नड्डा की जगह लेंगे पाटिल ?
इस बात का दावा तो नहीं किया जा सकता लेकिन इस बात की सम्भावना जरूर बढ़ गई है कि बीजेपी का अगला अध्यक्ष पाटिल हो सकते हैं। गुजरात की भारी जीत ने मोदी और शाह को पाटिल की सांगठनिक ताकत का अहसास करा दिया है और पीएम मोदी को अब लगने लगा है कि जिस तरह से 2024 के चुनाव में बीजेपी को चुनौती देने के लिए विपक्षी एकता की संभावित तैयारी चल रही है उसमे पाटिल जैसे संगठन कर्ता की भूमिका अहम् है। वाराणसी से गुजरात तक पाटिल ने जो कुछ भी किया है ,संभवतः इसका लाभ उन्हें मिल सकता है।
दरअसल पाटिल को पन्ना प्रमुख मुहीम को आगे बढ़ाने का श्रेय जाता है। यह पाटिल ही है जिन्होंने सबसे पहले अपने इलाके में पेज समिति की शुरुआत की और इसी समिति को प्रचार का प्रमुख बना दिया। इसका लाभ ये हुआ कि पाटिल चुनाव जीतते चले गए। पाटिल के इलाके में कोई बड़ा नेता प्रचार के लिए नहीं गया और सिर्फ पेज समिति के जरिये ही विपक्ष को मात देते रहे। 2019 के बाद बीजेपी ने पाटिल के इस प्रयोग को हर जगह लागू किया और बीजेपी को इसका काफी लाभ मिलता गया। बीजेपी को लग रहा है कि पाटिल के इस प्रयोग को देश के हर इलाके में आजमाने की जरूरत है ताकि बड़ा से बड़ा चुनाव भी स्थानीय लोग सफल कर दे। पाटिल इस तरह के संगठन की खासियत रखते हैं।
अगले साल के अंत में बीजेपी अध्यक्ष का चुनाव होना है। संभवतः 23 जनवरी तक मौजूदा पार्टी अध्यक्ष जे पी नड्डा का कार्यकाल है। पहले इसकी उम्मीद थी कि नड्डा के कार्यकाल को अगले लोकसभा चुनाव तक बढ़ाया जा सकता है लेकिन संघ के लोग ऐसा नहीं मानते। यह बात और है कि नड्डा के कार्यकाल में पार्टी की सफलता काफी बढ़ी है और कई राज्यों में बीजेपी सरकार बनाने में सफल रही लेकिन हिमाचल की हार के बाद अब माना जा रहा है कि नड्डा का सेवा विस्तार अब संभव नहीं।
हालांकि पार्टी अध्यक्ष की दौर में कई नेता संघ से लेकर बीजेपी के बीच आवाजाही जरूर लगा रहे हैं लेकिन जब पीएम मोदी बार -बार किसी नेता की सांगठनिक क्षमता का बखान कर रहे हों तो यह तय माना जा सकता है कि सीआर पाटिल बीजेपी की कमान जल्द ही सम्हाल सकते हैं.