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42 वर्ष की हुई बीजेपी, बीजेपी बढ़ती गई, कांग्रेस पस्त होती गई

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42 वर्ष की हुई बीजेपी, बीजेपी बढ़ती गई, कांग्रेस पस्त होती गई

अखिलेश अखिल

1980 के आम चुनाव में जनता पार्टी को 31 सीटों पर ही जीत हासिल हुई थी. तब जनसंघ भी जनता पार्टी में शामिल था, लेकिन 80 के चुनाव परिणाम के बाद जनसंघ के लोगों को निराशा हुई और फिर 6 अप्रैल 1980 को उन्होंने एक नयी पार्टी की स्थापना की, नाम रखा भारतीय जनता पार्टी. आज वही पार्टी न सिर्फ 42 साल की हो गई है बल्कि यह दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी भी कहलाती है. स्थापना के समय वाजपेयी इसके अध्यक्ष बने थे लेकिन बाद में जब आडवाणी के हाथ में नेतृत्व गया तो बीजेपी की चुनावी राजनीति रंग लाने लगी. अपनी स्थापना के बाद बीजेपी को पहला चुनाव 1984 में लड़ना पड़ा. तब पार्टी का संगठन भी उतना मजबूत नहीं था लेकिन संघ बीजेपी के साथ था. 1948 में इंदिरा गाँधी की हत्या हो गई थी और इसी वजह से कांग्रेस के प्रति एक सहानुभूति लहर देश भर में फैली थी. इस चुनाव में बीजेपी को दो सीटें मिली और यहीं से चुनावी खेल शुरू हो गया.
1989 के चुनाव में बोफोर्स घोटाला की कहानी चरम पर थी. वीपी सिंह ने इस घोटाला को उजागर किया था. चुनाव हुए तो बीजेपी को भारी सफलता मिली और वो लोकसभा की 85 सीटें जीत कर विपक्षी पार्टी हो गई. चुनाव के बाद बीजेपी और वाम दलों ने मिलकर वीपी सिंह की सरकार बनाई. उधर बीजेपी ने राममंदिर आंदोलन की शुरुआत की.
1991 के चुनाव में बीजेपी को 120 सीटें हासिल हुई और मुरली मनोहर जोशी अध्यक्ष बने. इसके तुरंत बाद बीजेपी राष्ट्रीय पार्टी भी बन गयी.
इसके बाद बीजेपी का कारवां बढ़ता ही गया. तीन बार केंद्र में अटल जी के नेतृत्व में सरकार बनी. दो बार की सरकार तो 13 दिन और 13 महीने तक ही चली, लेकिन अटल जी की अंतिम सरकार पांच साल तक चली.
2014 का चुनाव बीजेपी ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लड़ा और भारी सफलता मिली. फिर 2019 के चुनाव में भी मोदी के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत की सरकार बनी और इसके साथ ही देश के अधिकतर राज्यों में बीजेपी की सरकार बनती दिखी. कांग्रेस सिमटती चली गई.
दरअसल, बीजेपी ने अपने स्थापना के बाद पांच मुद्दों पर काम किया और इन मुद्दों को लेकर आंदोलन भी चलाया. यही मुद्दे बीजेपी के लिए रामबाण साबित हुए.
1986 में लालकृष्ण आडवाणी को BJP का अध्यक्ष चुना गया. उस दौरान विश्व हिंदू परिषद अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए आंदोलन चला रही थी. बीजेपी की राजनीति को यहीं से जमीन मिली. पार्टी ने इसका जमकर समर्थन किया. इसका असर ये हुआ कि 1984 में 2 सीटें जीतने वाली पार्टी 1989 में 85 सीटों पर पहुंच गई. सितंबर 1990 में आडवाणी ने अयोध्या में राम मंदिर के समर्थन में एक रथ यात्रा की शुरुआत की. 1992 में बाबरी मस्जिद ढहा दी गई. एक लंबी कानूनी लड़ाई के बाद 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद पर फैसला सुना दिया. फिलहाल, अयोध्या में मंदिर निर्माण हो रहा है.
जनसंघ जो बाद में बीजेपी बनी, उसके अग्रणी नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी जम्मू-कश्मीर को भारत का ‘अभिन्न अंग’ बनाने की वकालत करते थे. अगस्त 1952 में जम्मू में उन्होंने विशाल रैली की. उन्होंने कहा – या तो मैं आपको भारतीय संविधान दिलाउंगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपना जीवन बलिदान कर दूंगा. बीजेपी इस मुद्दे को थामे रही. नरेंद्र मोदी ने दूसरी बार सत्ता संभाली तो 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर राज्य से संविधान का अनुच्छेद 370 हटाने का प्रस्ताव पास कराया गया. इसी के साथ बीजेपी के मैनिफेस्टो का एक जरूरी वादा पूरा हुआ.
बीजेपी शुरुआत से ही परिवारवाद के खिलाफ रही है, लेकिन 2014 में नरेंद्र मोदी ने इसे जोर-शोर से उठाया. 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी ने परिवारवाद, जातिवाद, सांप्रदायिकता और मौकापरस्ती को लोकतंत्र के चार दुश्मन बताया. आज भी पार्टी में बड़े स्तर पर परिवारवाद या वंशवाद मौजूद नहीं है और खुलकर इसकी आलोचना होती है. हालांकि, छोटे स्तर पर इस नीति में फ्लेक्सिबिलिटी आई है.
बीजेपी हिंदुत्व और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की फिलॉसफी से चलती है, इसलिए गाय और गोवंश का मुद्दा इसकी प्राथमिकता में रहता है. केंद्र से लेकर अलग-अलग राज्यों में BJP की सरकार बनने पर गोहत्या रोकने की कोशिश की गई है. अटल सरकार ने गो पशु आयोग बनाया था. गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने गोहत्या पर पूरी तरह से रोक लगा दी. 26 मई 2017 को मोदी सरकार ने पशु बाजारों में हत्या के लिए मवेशियों की बिक्री और खरीद पर रोक लगा दी, लेकिन इसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया.
भारतीय जनता पार्टी ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 2014 का लोकसभा चुनाव जिन मुद्दों पर लड़ा, उनमें भ्रष्टाचार एक प्रमुख मुद्दा था. UPA सरकार के दौरान हुए घोटालों और विदेशों में जमा कालेधन का मुद्दा जोर-शोर से उठाया गया.जनता ने भरोसा करते हुए बीजेपी को जमकर वोट किया.
बीजेपी की जीत में पकड़ में न आने वाले संदेशों का बड़ा योगदान है. हम मीडिया और सोशल मीडिया पर चल रही खबरों को तो देख सकते हैं, लेकिन वॉट्सऐप ग्रुप में क्या परोसा जा रहा है, ये पकड़ से बाहर है. इन ग्रुप्स में किसी भी मुद्दे को ऐसे प्रेजेंट किया जाता है, जिससे BJP के पक्ष में हवा बन सके. इसमें हेट स्पीच भी शामिल होती है. जिनकी कोई मॉनिटरिंग नहीं की जाती.
बीजेपी ने परम्परागत जाति-आधारित राजनीति को भी हाशिए पर धकेला है. ऐसा नहीं है कि बीजेपी ने सोशल इंजीनियरिंग और जाति समीकरणों को छोड़ दिया है, उसने उन्हें केवल ऐसे सांचे में ढाला भर है कि पार्टी को किसी एक जाति से जोड़कर न देखा जाने लगे. इसके बजाय वह हिंदुत्व की बात करती है- यह एक ऐसा राजनीतिक विचार है, जिसमें सांस्कृतिक राष्ट्रवाद शामिल है. इसी के बल-बूते पार्टी ने अपने सामाजिक आधार को विस्तार दिया है.
बीजेपी के बढ़ते प्रभाव के पीछे गरीबों से जुड़ी हुई योजनाएं भी हैं, जिनका मकसद सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों का एक बड़ा वर्ग तैयार करना है. बीजेपी ने टॉयलेट, रसोई गैस, मुफ्त राशन, मुफ्त वैक्सीन और आवास जैसी सुविधाएं देने को अपना राजनीतिक एजेंडा बनाया है. किसी भी राज्य में चुनाव से पहले बीजेपी सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों को बुलाकर बड़ी-बड़ी रैलियां करती है. ये टूल गेमचेंजर साबित हुआ है.

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पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.

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