आज के दिन को सरकार की तरफ से देश भर में हिंदी दिवस के तौर पर मनाया जाता है. 1953 से यह सब चल रहा है। ये बात अलग है कि हिंदी को बढ़ाने, प्रचारित और विस्तारित करने में जितना योगदान देश की मुम्बइया फ़िल्मी जगत को है, उतना बड़ा योगदान करोड़ों खर्च करके भी सरकार नहीं कर सकी है. सरकार अब तक तमाम सरकारी दफ्तरों में बैनर, पोस्टर के जरिये हिंदी सप्ताह या फिर हिंदी पखवाड़ा मनाती रही है लेकिन उस दफ्तर के भीतर का नजारा अंग्रेजी वाला ही रहा है. आगे भी कुछ ही चलता रहेगा.
बहरहाल आज 14 सिंतबर को हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिन को मनाने का मकसद लोगों में हिन्दी भाषा के प्रति जागरूकता लाना है. वैसे तो हमारे देश में कई भाषाएं व बोलियां बोली जाती हैं. लेकिन देश में 77 फीसदी से ज्यादा लोग बोलचाल के लिए सिर्फ हिन्दी का ही इस्तेमाल करते हैं. इसके साथ ही हिन्दी को विश्व में सबसे ज्यादा बोले जाने वाली चौथी भाषा का खिताब भी हासिल है.
साल 1949 में 14 सिंतबर के दिन ही संविधान सभा द्वारा हिन्दी को राज भाषा का दर्जा दिया था. इसके बाद साल 1953 में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति की सलाह पर देश में पहली बार हिन्दी दिवस के मौके पर कार्यक्रमों का आयोजन शुरू किया गया. तभी से हर साल 14 सितंबर को स्कूल, कॉलेजों, शिक्षण संस्थानों में हिन्दी दिवस के अवसर पर निबंध प्रतियोगिता, वाद-विवाद प्रतियोगता, कविता पाठ, नाटक समेत अन्य लेखन प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है. साथ ही सरकारी दफ्तरों में हिंदी पखवाड़े का भी आयोजन किया जाता है.
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 के तहत हिंदी को आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दी गई है. सबसे पहले हिंदी को राज भाषा बनाये जाने का प्रस्ताव साल 1918 में हिन्दी साहित्य सम्मेलन के दौरान महात्मा गांधी द्वारा रखा गया था.
बहुत ही कम लोगों को ये पता होगा कि हिन्दी खुद एक फासरी शब्द है. यह फारसी लोगों द्वारा सिन्धी की जगह पर बोला जाता था. फारसी में ‘स’ वर्ण होता ही नहीं है, वो लोग ‘स’ के जगह पर ‘ह’ का इस्तेमाल करते थे, जिसकी वजह से सिंध-हिन्द हो गया. सिन्धू के क्षेत्र में रहने वाले लोगों को हिन्दू और उनके द्वारा बोली जाने वाली भाषा को हिन्दी कहा जाने लगा.
भाषाविदों की मानें तो हिन्दी के वर्तमान स्वरूप, जिसमें आज हम पढ़ व लिख रहे हैं कि शुरूआत 1900 ईसवी में हुई थी. खड़ी बोली यानी हिंदी में लिखी गई पहली कहानी इंदुमती थी. इसे किशोरीलाल गोस्वामी ने लिखा था. इसकी हिंदी भाषा काफी हद तक वैसी ही है जैसी आज लिखी और बोली जाती है.