अखिलेश अखिल
बीजेपी नेता शाहनवाज हुसैन ने सुप्रीम कोर्ट में अपने ऊपर लगे बलात्कार के आरोप को फर्जी और बदले की भावना से प्रेरित बताया है. दिल्ली हाई कोर्ट ने शहनवाज़ हुसैन के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का फैसला सुनाया था. जिसके खिलाफ हुसैन ने सुप्रीम कोर्ट पहुंचकर अपने ऊपर लगे आरोप को को फर्जी बताया. शहनवाज़ हुसैन की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने प्रधान न्यायाधीश यूयू ललित वाली पीठ से कहा कि यह शिकायत एक नामचीन व्यक्ति के विरुद्ध दुरूपयोग का बड़ा मामला है. रोहतगी ने हुसैन के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश देने के दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले पर आपत्ति जताई है. रोहतगी का तर्क सुनने के बाद जस्टिस ललित, जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस एस आर भट्ट की पीठ ने कहा कि यदि शिकायत है और जांच की अनुमति नहीं दी जाती है तो मामला आगे बढ़ेगा कैसे ?
इस पर रोहतगी ने दलील दी और कहा कि कानून ऐसा नहीं है कि शिकायत दर्ज करने के साथ ही प्राथमिकी भी दर्ज की जाए. उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय इस दिशा में आगे बढ़ा कि यदि कोई आरोप लगाता है तो प्राथमिकी दर्ज की ही जानी चाहिए. उन्होंने अपराध दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 157 का हवाला दिया. जिसका सम्बन्ध जांच की प्रक्रिया से है. इस पर अदालत ने कहा कि यदि कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि से आता है, तो इसका मतलब यह नहीं कि अन्य को शिकायत दर्ज करने का अधिकार नहीं है. मामले की जांच होने दी जाए. कोर्ट ने यह कहते हुए मामले की जांच को 18 नवम्बर तक के लिए टाल दिया. बता दें कि इससे पहले शीर्ष अदालत ने 19 सितम्बर को दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश के विरुद्ध शहनवाज़ हुसैन की अपील पर सुनवाई 23 सितम्बर के लिए टाल दी थी. शीर्ष अदालत ने 22 अगस्त को हाई कोर्ट के आदेश के क्रियान्वयन पर स्थगन लगा दिया था. हाई कोर्ट ने 17 अगस्त को हुसैन की अर्जी को ख़ारिज कर दिया था, जिसमे बीजेपी नेता के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के निचली अदालत के आदेश को चुनौती दी गई थी. हाई कोर्ट ने कहा था कि 2018 के आदेश में दुराग्रह जैसा कुछ नहीं है.
हुसैन पर लगे आरोप सच हैं या गलत ये जांच का विषय है. लेकिन जिस तरह से हुसैन की तरफ से तर्क अदालत में रखे जा रहे हैं वह कम आश्चर्य वाले नहीं. हुसैन की तरफ से अदालत में पेश उनके वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि आरोप की पूरी गाँठ हुसैन के भाई के खिलाफ है. शिकायतकर्ता महिला ने आरोप लगाया है कि हुसैन ने 2013 में शादी का झांसा देकर उसके साथ बलात्कार किया. हालांकि शिकायत 2018 में दर्ज की गई. हुसैन के खिलाफ आरोप यह है कि उसने शिकायतकर्ता को अपने भाई के साथ चीजों को सुलझाने के लिए अपने फार्म हाउस पर बुलाया. हालांकि उसने पीड़िता को शराब पिलाई जिससे वह बेहोश हो गई और उसके बाद हुसैन ने उसका फायदा उठाया.
रोहतगी ने अपना तर्क आगे भी जारी रखा. उन्होंने कहा कि ”यह न केवल शिकायतकर्ता द्वारा बल्कि वकील द्वारा दिल्ली और पटना में मेरे मुवक्किल के सार्वजनिक व्यक्तित्व के खिलाफ दुर्व्यवहार का गंभीर मामला है. याचिकाकर्ता 40 वर्षों से सार्वजनिक जीवन में हैं. यह उसका मामला है, जिसकी जबरन शादी की गई है. कृपया पत्र देखे, जिसमे कहा गया है कि मै अपने भाई के साथ नहीं रह रहा हूँ और उसके दैनिक जीवन से मेरा कोई लेना देना नहीं. वह मेरे परिवार के सदस्यों को बदनाम कर रही है और झूठे, मनगढ़ंत आरोप लगा रही है. मैंने आर्थिक अपराध शाखा को भी लिखा है.”
रोहतगी ने आगे कहा कि 2013 में हुसैन के खिलाफ शिकायत कथित अपराध के पांच साल बाद 2018 में दर्ज की गई. उन्होंने कहा कि हुसैन के भाई के खिलाफ शिकायत 31 जनवरी 2018 को दर्ज की गई और शिकायतकर्ता के खिलाफ हुसैन द्वारा बलात्कार की घटना की कथित तारीख 12 अप्रैल 2018 थी.
”ऐसे में अगर 12 अप्रैल को उसके साथ बलात्कार किया गया तो उसका उल्लेख 25 अप्रैल के शिकायत पर मिलता. हर महीने और हर हफ्ते वह पुलिस स्टेशन का दौरा कर रही है और भाई के साथ विवाद कर रही है. वर्तमान शिकायत बर्खास्तगी से चार दिन पहले 21 तारीख को दर्ज की गई है. क्यों ? क्योंकि उसे बर्खास्तगी की जानकारी है. यह मामला साकेत अदालत में दायर किया गया है. पहला पटियाला हाउस अदालत में. दूसरा साकेत में है. मैं कल्पना करूंगा कि अगर वह ख़ारिज कर दिया गया तो वह फिर से पटियाला हाउस कोर्ट जाएगी, लेकिन यह साकेत कोर्ट में है.” रोहतगी ने कहा कि ”यदि आप फर्जी आरोप लगाते हैं तो इसका परिणाम एफआईआर और जांच में नहीं होगा.”
बता दें कि जून 2018 में बीजेपी नेता शाहनवाज़ हुसैन के खिलाफ आईपीसी की धारा 376, 328, 120 बी और 506 के तहत अपराध करने का आरोप लगाते हुए एक शिकायत दर्ज की गई थी. महिला शिकायत कर्ता ने बाद में सीआरपीसी की धारा 156 [3] के तहत आवेदन दायर कर शहर की पुलिस को एफआईआर दर्ज करने का निर्देश देने की मांग की थी. 4 जुलाई 2018 को मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के सामने शहर पुलिस द्वारा कार्रवाई रिपोर्ट दायर की गई. ये नतीजा निकाला गया कि जांच के अनुसार शिकायतकर्ता द्वारा लगाए गए आरोप सही नहीं पाए गए. विशेष न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ उनकी पुनर्विचार याचिका ख़ारिज करने और एफआईआर दर्ज करने के निर्देश के खिलाफ फिर अपील दायर की गई. फिर मामला हाई कोर्ट के बाद अब सुप्रीम कोर्ट में है.