Friday, November 22, 2024
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लोकनीति सर्वे : गुजरात में हर तीन में से एक व्यक्ति बीजेपी से नाखुश, सूबे के आधे मुसलमान सरकार से असंतुष्ट

गुजरात में चुनाव की घोषणा हो गई है. बीजेपी की सबसे बड़ी परेशानी अपनी सत्ता को बचाने की है. पिछले 27 साल से बीजेपी गुजरात में सत्तासीन है. जिसे वह गुजरात मॉडल के रूप में प्रचारित करती रही है. गुजरात प्रधानमंत्री मोदी का भी गृह प्रदेश है और गृह मंत्री अमित शाह भी गुजरात से ही आते हैं. बीजेपी की पूरी कमान मोदी और शाह के हाथ है. गुजरात में बीजेपी की हार का असर देश की राजनीति को भी प्रभावित करेगी और अगले लोकसभा चुनाव को भी. लेकिन सच यही है कि लम्बे समय से गुजरात में बीजेपी की सरकार से वहां की जनता अब ऊब सी गई है. वह बदलाव चाहती है.

गुजरात चुनाव के परिणाम चाहे जो भी हों लेकिन सीएसडीसी लोकनीति का जो हालिया सर्वे सामने आया है वह बहुत कुछ कहता है. इस सर्वे रिपोर्ट के बाद बीजेपी की परेशानी बढ़ी है. सर्वे से पता चलता है कि राज्य के क‍ितने मतदाता बीजेपी सरकार से खुश और कितने नाखुश हैं. सर्वे के मुताब‍िक हर तीन में से एक व्यक्ति राज्य सरकार से असंतुष्ट है. हालांकि अलग-अलग समुदाय से जुड़े सवाल पर एक दूसरी तस्वीर सामने आती है.

युवाओं के हित पूरा करने के मुद्दे पर सर्वे में शामिल लगभग 49 प्रतिशत लोगों ने माना की सरकार युवाओं के लिए बढ़िया कर रही है, वहीं 40 प्रतिशत ने कहा कि सरकार इस मामले में विफल रही है. 11 प्रतिशत लोगों ने इस सवाल का जवाब नहीं देने का विकल्प चुना.

गुजरात की आबादी में महिलाओं का हिस्सा करीब 57 प्रतिशत है. यह पूछे जाने पर कि क्या राज्य सरकार द्वारा महिलाओं के हितों की सुरक्षा की गई है, लगभग 56 प्रतिशत महिलाओं ने सरकार के कार्यों से खुद को संतुष्ट बताया.

सर्वे के नतीजों से पता चलता है कि राज्य के ज्यादातर दलित, आदिवासी और मुसलमान बीजेपी सरकार के काम से संतुष्ट नहीं हैं. सर्वे में शामिल लगभग आधे मुसलमानों ने कहा कि सरकार उनके समुदाय के हितों की रक्षा करने में विफल रही है. मुस्लिम समुदाय के चार में से एक व्यक्ति ने कोई जवाब नहीं देने का विकल्प चुना. गुजरात की कुल आबादी में करीब 10 फीसदी मुस्लिम हैं.

राज्य की राजनीति में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व लगातार कम हुआ है. 1980 के विधानसभा चुनाव में 12 मुस्लिम नेता निर्वाचित हुए थे. वहीं पिछले चुनाव में मात्र दो मुस्लिम ही विधायक बने थे.

आदिवासी समुदाय ने भी राज्य सरकार से असंतोष व्यक्त किया है. सर्वे में शामिल लगभग 40 प्रतिशत आदिवासियों ने कहा है कि सरकार ने उनकी जरूरतों पर ध्यान नहीं दिया है. वहीं 10 में से तीन ने अपनी राय साझा करने से मना कर दिया. आदिवासी समुदाय भारत की आबादी में 8.1 प्रतिशत और गुजरात की आबादी में 14.8 प्रतिशत हैं.

गुजरात राज्य कृषि विपणन बोर्ड के अनुसार, राज्य के लगभग 90 लाख लोग खेती से जुड़े हैं. यानी किसान हैं. वो राज्य में कुल वर्कफोर्स का लगभग 65 प्रतिशत हैं. सर्वे में शामिल लोगों में से लगभग 51% ने कहा कि सरकार किसानों की आकांक्षाओं की पूर्ति करने में सफल रही है. 2017 में यह आंकड़ा 55 प्रतिशत था. यानी पिछले चुनाव की तुलना में लगभग चार प्रतिशत ज्‍यादा लोग किसानों के मुद्दे पर सरकार से असहमत हुए हैं.

Anzarul Bari
Anzarul Bari
पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.
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