मोरबी पुल हादसे के बाद चौकाने वाले तथ्य सामने आ रहे हैं. ठेका उठाने वाली कंपनी ओरिवा के एक पत्र से पता चलता है कि सरकार के भ्रष्ट अधिकारियों ने किस तरह से इस हादसे को अंजाम दिया है. इस हादसे में अबतक में 141 लोगों की मौत हो चुकी है. इस दर्दनाक हादसे की स्क्रिप्ट तो दो साल पहले ही लिखी जा चुकी थी, लेकिन लापरवाह अफसरों की नींद ही नहीं टूटी और नतीजा देश के सामने है.
दरअसल, पुल के रखरखाव और मरम्मत का काम देखने वाली ओरेवा कंपनी का जनवरी, 2020 का लेटर सामने आया है. यह लेटर मोरबी जिला कलेक्टर को लिखा गया था. इसमें कहा गया है कि हम पुल की अस्थाई मरम्मत करके इसको खोल देंगे. इस पत्र के बाद भी अधिकारी शांत बैठे रहे और इतना बड़ा हादसा हो गया.
जनवरी, 2020 के इस पत्र में ऐसी चीजें सामने आई हैं, जिनसे पता चलता है कि पुल के ठेके को लेकर कंपनी और जिला प्रशासन के बीच एक लड़ाई चल रही थी. पत्र से पता चलता है कि ओरेवा ग्रुप पुल के रखरखाव के लिए एक स्थायी अनुबंध चाहता था. समूह ने कहा था कि जब तक उन्हें स्थाई ठेका नहीं दिया जाता, तब तक वो पुल पर अस्थाई मरम्मत का काम ही करते रहेंगे. इसमें यह भी कहा गया है कि ओरेवा फर्म पुल की मरम्मत के लिए सामग्री का ऑर्डर नहीं देगी और वो अपनी मांग पूरी होने के बाद ही पूरा काम करेंगे.
तमाम लापरवाहियों के बाद भी जिला प्रशासन की ओर से ओरेवा ग्रुप को ही स्थाई टेंडर दिया गया. जनवरी, 2020 में जारी इस लेटर के बाद भी पुल के संचालन और रखरखाव के लिए 15 साल के लिए ओरेवा ग्रुप के साथ अनुबंध पर हस्ताक्षर किए थे. मार्च 2022 में मोरबी नगर निगम और अजंता ओरेवा कंपनी के बीच अनुबंध पर हस्ताक्षर किए गए. यह अनुबंध 2037 तक वैध था.
पुल हादसे के बाद मोरबी नगर पालिका ने हादसे से पूरी तरह से पल्ला झाड़ लिया. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो नगर पालिका के अधिकारी संदीप सिंह ने बताया कि ओरेवा ग्रुप ने अनुबंध के नियम और शर्तों का उल्लंघन किया है. उसने नगर पालिका को सूचित किए बिना ही पांच महीनों में पुल को खोल दिया था. उनका कहना है कि पुल को लेकर उनकी ओर से कोई सर्टिफिकेट भी जारी नहीं किया गया था.
मोरबी पुल हादसे पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने न्यायिक जांच की मांग की है. खरगे ने ट्वीट कर कहा, मोरबी पुल हादसे में 135 लोगों की मौत की जवाबदेही तय होनी चाहिए. नगर पालिका, ओरवा फर्म और दोषी अधिकारियों की जांच होनी चाहिए. उन्होंने कहा, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के जज के नेतृत्व में समयबद्ध न्यायिक जांच ही एक मात्र विकल्प है.