अखिलेश अखिल
अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने महिलाओं का जीना दूभर कर दिया है. संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् ने महिलाओं पर हो रहे जुर्म को लेकर तालिबान सरकार से सवाल किया और उसे रोकने की बात कही है, लेकिन तालिबान सरकार ने संयुक्त राष्ट्र की सलाह को नकार दिया है. तालिबान सरकार ने कहा है कि यहां इस्लामी सरकार है और इस्लाम में महिलाओं को परदे में तो रहना ही होगा साथ ही उसे कई पाबंदियां भी झेलनी होगी. तालिबान की हालत ये हैं कि बुर्के में भी महिलाये जब बाजार में निकलती है तो उन पर कोड़े बरसाए जा रहे हैं.
सच तो यही है कि तालिबान सरकार में महिलाओं की हालत दुनिया से छिपी नहीं है. 15 अगस्त 2021 को सत्ता में वापसी के बाद तालिबानियों ने महिला अधिकारों बरकरार रखने का वादा किया था, लेकिन उनके फरमानों से तालिबानियों की कथनी और करनी में फर्क साफ नजर आता है. तालिबानी प्रवक्ता अब्दुल कहर बालख ने यूएन की सलाह को नकारते हुए कहा- अफगानिस्तान मुस्लिम आबादी का देश है. इसलिए हमारी सरकार महिलाओं के पर्दे और हिजाब को समाज और संस्कृति के लिए जरूरी मानती है.
पिछले साल अगस्त में तालिबान ने काबुल पर कब्जा करने के बाद महिलाओं के ज्यादातर अधिकार सीमित कर दिए हैं. तालिबान ने काबुल के अलावा अधिकतर महिला स्कूल और कॉलेजों को खोला नहीं है. अगर कहीं प्राथमिक स्कूलों को खोला भी गया है, कई तरह के प्रतिबंध लगाकर उन्हें स्कूल जाने की इजाजत दे रही है. तालिबान ने कंधार समेत कई प्रांतो में स्कूल खोलने की बात सामने आई थी, लेकिन कुछ घंटो बाद ही इन्हें बंद रखने का आदेश जारी कर दिया था.
इसके अलावा तालिबान ने महिलाओं के अकेले फ्लाइट में ट्रेवल करने पर भी रोक लगाई है. उन्हें ड्राइविंग लाइसेंस जारी न करने के आदेश दिए गए हैं. साथ ही तालिबान ने कई ऑफिसों में महिलाओं के जाने पर भी रोक लगा दी थी. इन प्रतिबंधों के बाद अफगानिस्तान की महिलाओं ने सड़क पर उतर कर तालिबान के खिलाफ प्रदर्शन भी किए. ये प्रदर्शन अधिकतर काबुल और हैरात जैसे बड़े शहरों में ही हुए थे. इन प्रदर्शनों के बाद कई बार महिलाओं के साथ मारपीट की बात भी सामने आई थी.