अखिलेश अखिल
पहली बार गुजरात चुनाव में उतरी आम आदमी पार्टी बीजेपी और कांग्रेस के सामने मुकाबला करती दिख रही है. पिछले 27 साल से गुजरात में सत्तारूढ़ बीजेपी को चुनौती दे रही ‘आप’ के सामने खोने के लिए तो कुछ नही है. लेकिन अगर बाजी पलट गई तो पंजाब की तरह ही उसे गुजरात भी मिल जायेगा. बीजेपी के साथ ही कांग्रेस की परेशानी भी बढ़ी हुई है.
लेकिन इसी बीच जैसे ही केजरीवाल ने पत्रकार गढ़वी को अपना सीएम उम्मीदवार घोषित किया पार्टी में हलचल मच गई और फिर पार्टी के वरिष्ठ नेता इंद्रनील राजगुरु पार्टी छोड़ कांग्रेस में चले गए है. गुजरात इकाई के महासचिव इंद्रनील राजगुरु एक बार फिर से कांग्रेस में चले जाने से ‘आप’ को झटका तो लगा ही है. उसकी रणनीति भी अब कमजोर होगी ऐसा माना जा रहा है. राजगुरु के इस फैसले से मोमेंटम बनाने में जुटी आम आदमी पार्टी को लेकर पब्लिक परसेप्शन बिगड़ सकता है. खासतौर पर सीएम फेस को लेकर मची रार चिंता बढ़ाने वाली हो सकती है.
अहम बात यह है कि इंद्रनील राजगुरु आम आदमी पार्टी के उन नेताओं में से थे, जिनकी जनता के बीच थोड़ी पहचान रही है. वह उन चंद नेताओं में से थे, जिनके पास पहले चुनाव लड़ने और जीत हासिल करने का अनुभव रहा है. इंद्रनील राजगुरु ने 2012 के विधानसभा चुनाव में राजकोट ईस्ट सीट से कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की थी. इसके बाद 2017 में उन्होंने सीएम विजय रूपाणी के खिलाफ राजकोट वेस्ट से चुनाव लड़ने का फैसला लिया था. यहां इंद्रनील को हार का सामना करना पड़ा था. इसके एक साल बाद राजगुरु ने कांग्रेस से इस्तीफा देते हुए कहा था कि वह पार्टी के कामकाज से खुश नहीं है.
हालांकि 2019 में एक बार फिर से वह कांग्रेस में आ गए थे और लोकसभा चुनाव में पार्टी के उम्मीदवारों के लिए प्रचार भी किया था. इंद्रनील राजगुरु अपनी दौलत को लेकर भी चर्चा में रहे हैं. इस बीच इंद्रनील राजगुरु के पार्टी से जाने पर ‘आप’ का भी बयान सामने आया है. गुजरात इकाई के अध्यक्ष गोपाल इटालिया ने कहा कि इंद्रनील राजगुरु चाहते थे कि उन्हें ही सीएम का फेस बनाया जाए. इसके लिए वह पार्टी पर दबाव भी बना रहे थे, लेकिन ऐसा नहीं किया गया. गोपाल इटालिया ने कहा, ‘आम आदमी पार्टी ने पहले ही कहा था कि जनता ही गुजरात में पार्टी का सीएम फेस चुनेगी. जनता ने गढ़वी को चुना है. इसके चलते राजगुरु ने यह फैसला लिया है. वह तो यह भी चाहते थे कि 15 सीटों पर उनके मुताबिक उम्मीदवारों को चुना जाए.
खैर जो हुआ सो हुआ. माना जा रहा है कि ‘आप’ से कई और नेता कांग्रेस में लौटेंगे. गुजरात में ‘आप’ के साथ पिछले दो साल में बहुत से कांग्रेस नेता जुड़े थे लेकिन अब उन्हें सफोकेशन हो रहा है. यह बात और है कि ‘आप’ ने बीजेपी और कांग्रेस की राजनीति को बिगाड दिया है.
‘आप’ की बढ़ती ताकत से साफ लगता है कि गुजरात में त्रिशंकु विधान सभा की स्थिति होगी और ऐसा भी हुआ तो बीजेपी और कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती है. दिल्ली के बाद पंजाब और अब गुजरात में जहां बीजेपी और कांग्रेस लड़ती थी अब ‘आप’ की मजबूत उपस्थिति एक नई राजनीति को गढ़ रही है.