यह कोई मामूली बात नहीं है कि कांग्रेस के भीतर गाँधी परिवार के सामने ही फेयर चुनाव हो रहे हैं. लम्बे समय के बाद पार्टी के भीतर अध्यक्ष के लिए चुनाव हो रहे हैं और पार्टी के दो उम्मीदवार आमने सामने हैं. एक तरफ खड़गे जैसा नेता हैं तो दूसरी तरफ थरूर जैसे युवा और काफी शिक्षित नेता. लेकिन इस चुनावी लड़ाई में गांधी परिवार मौन है. यह कोई छोटी बात नहीं है. जिस गाँधी परिवार को दबदबे के लिए जाना जाता था आज पार्टी को आगे बढ़ाने के लिए अपना दबदबा दबा दिया है.
कुछ प्रमाण यह भी मिले हैं कि गांधी परिवार के दबदबे के बावजूद यह चुनाव कुछ ‘सामान्य’ ढंग हो रहा है. अभियान के कुछ मुद्दे तय होने लगे हैं. थरूर ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘मेरे अनुसार यदि आप कांग्रेस के काम करने के तरीके से संतुष्ट हैं तो खड़गे साहब को वोट दें. यदि आप बदलाव चाहते हैं तो मैं चुनाव में खड़ा हूं. हम दोनों के बीच विचारधारा के स्तर पर कोई भेदभाव नहीं है.’
खड़गे ने कहा,’ मुझे चुनाव लड़ने के लिए प्रमुख राज्यों के सभी नेताओं, पार्टी कार्यकर्ताओं और प्रतिनिधियों ने प्रेरित किया. मेरे नामांकन पत्र भरने के दौरान जो लोग उपस्थित थे, मैं उनका धन्यवाद देता हूं.’ थरूर के समर्थन में आए जनसमर्थन के बारे में खड़गे ने दबी जुबान में कहा, ‘केरल प्रमुख राज्य नहीं है? ‘
इस चुनाव की रंगत अलग है। बीते चुनावों में तत्कालीन प्रधानमंत्री व पार्टी प्रमुख के पसंद के प्रत्याशी येन-केन प्रकरण से चुनाव जीत जाते थे. इसका एक अच्छा उदाहरण तिरुपति में 1992 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का सत्र था. उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव और कांग्रेस अध्यक्ष को ऐसी पार्टी की जरूरत थी जो उनका सम्मान करे और उनका आदेश माने. उनको कांग्रेस कार्यकारी समिति पर नियंत्रण करने की जरूरत थी.
कांग्रेस में सीडब्ल्यूसी सबसे उच्च कार्यकारी समिति है. कांग्रेस के संविधान के अनुसार पार्टी के अध्यक्ष तथा सत्ता में होने पर प्रधानमंत्री के अलावा 23 सदस्य होते हैं. इनमें 12 सदस्यों का चुनाव अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सदस्य करते हैं. बाकी सदस्यों का सदस्यों का नामांकन पार्टी अध्यक्ष करता है. हाल के समय में सीडब्ल्यूसी का चुनाव केवल दो बार हुआ है.
तिरुपति के सत्र और सीडब्ल्यूसी के चुनाव में राव के खिलाफ विरोध का बिगुल फूंकने वाले दो प्रमुख विरोधी उजागर हुए, अर्जुन सिंह और शरद पवार. राव को लगा कि यदि ये दो नेता फैसले लेने वाली सर्वोच्च संस्था में चुने जाते तो वो हर फैसले पर सवाल व रोड़ा अटका सकते हैं.
राव ने घोषणा की थी कि इस चुनाव में किसी भी अनुसूचित जाति व जनजाति के प्रतिनिधि को चुना नहीं गया. सीडब्ल्यूसी में किसी महिला भी चुनाव नहीं गया. इनका चुनाव नहीं होने पर राव ने शर्मिंदगी जाहिर की. इस दलील के आधार पर उन्होंने सीडब्ल्यूसी के सदस्यों को पद से इस्तीफा देने के लिए कहा गया. हालांकि कांग्रेस के मनोनीत सदस्यों को पद पर बरकरार रखा गया.
साल 1997 में कांग्रेस के अध्यक्ष सीताराम केसरी थे, उस समय कलकत्ता में सीडब्ल्यूसी का चुनाव हुआ था. इस चुनाव में अहमद पटेल, माधव राव सिंधिया और प्रणब मुखर्जी सीडब्ल्यूसी के सदस्य बने. कांग्रेस 1996 का लोकसभा चुनाव हार चुकी थी. इसलिए इस चुनाव पर कोई सवाल नहीं उठाया गया. इसके बाद साल 1997 में सोनिया गांधी औपचारिक रूप से कांग्रेस में शामिल हुईं. केसरी को मार्च 1998 में संदेश भेजे गए कि उन्हें सोनिया गांधी के लिए पद छोड़ना होगा.
सीडब्ल्यूसी ने सोनिया गांधी को पार्टी का अध्यक्ष बनाने के लिए प्रस्ताव पारित किया. केसरी ने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया. सोनिया गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया. इससे पहले सोनिया गांधी ने एक भी चुनाव नहीं लड़ा था.
साल 1999 तक सोनिया गांधी का सिक्का पार्टी में चलता रहा. थोड़ा आश्चर्य तब हुआ जब राजीव गांधी व बाद में नरसिंह राव के पूर्व राजनीतिक सचिव जीतेन्द्र प्रसाद ने कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ा और उसमें बुरी तरह से हार गए थे. इस चुनाव में सोनिया को 7,000 से अधिक मत मिले थे, लेकिन प्रसाद को 100 से कम वोट मिले थे.
सीडब्ल्यूसी ने प्रस्ताव पारित कर सोनिया गांधी को सीडब्ल्यूसी में बदलाव करने की शक्ति प्रदान की. इसके बाद दल में किसी भी पद के लिए कोई चुनाव नहीं हुआ. साल 2017 में आम सहमति के आधार पर राहुल गांधी का चुनाव हुआ था. जी 23 के एक सदस्य ने कहा कि परिवार ऐसे किसी नेता को अध्यक्ष चाहता है जो बहुत जबान और मनमर्जी न चलाए, बहुत जोर न लगाए. असलियत में सवाल नहीं पूछने वाले, खतरा नहीं बनने वाले वफादार की जरूरत है. क्या सीडब्ल्यूसी का चुनाव होगा ? नए अध्यक्ष के लिए मतदान 17 अक्टूबर को होगा. इसका जवाब 19 अक्टूबर को चुनाव नतीजे से मिलेगा.