जब देश में ही कोयला है तो विदेशी कोयले की क्या जरूरत ! जब देशी कोयला विदेशी कोयला से सस्ता है. तब महंगा कोयला लेने की क्या जरूरत ? लेकिन यह सब देश में होता दिख रहा है. कारोबारी अडानी के विदेशी कोयले को लेकर देश के भीतर रार मचा है. विपक्षी दल इसे साजिस मान रहे हैं लेकिन सरकार के लोग इसे देश का कल्याण बता रहे हैं.
कांग्रेस ने कहा कि केंद्र सरकार का घरेलू कोयले के साथ विदेशी कोयले को मिलाने का निर्णय अनोखा ‘मित्र के फायदे का मॉडल’ है. जो कि अडानी ग्रुप को फायदा पहुंचाने के लिए बनाया गया है.
कांग्रेस प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने कहा, “मित्र के फायदे वाला मॉडल के तीन चरण है – पहला: देश के सभी कोयले से चलने वाले पावर प्लांट को 10 फीसदी विदेशी कोयला आयात करने के लिए कहना. दूसरा : 4,035 करोड़ का 2.416 कोयला आयात करने का टेंडर अडानी को देना. जिसमें 16,700 रुपए प्रति टन के हिसाब से कोयला आयत किया जा रहा है. तीसरा: पावर प्लांट की ओर से इस कोयले को 20,000 रुपए प्रति टन के हिसाब से खरीदा जाना.
दूसरी तरफ घरेलू कोयला 1700 रुपए प्रति टन से लेकर 2000 रुपए प्रति टन के बीच उपलब्ध है. अगर विदेशी कोयला 8 से 10 गुना अधिक दाम पर खरीदा जाता है. इससे देश में बिजली के दामों में बड़ी बढ़ोतरी हो सकती है. वल्लभ ने कहा, “क्या आईडिया है! आप राज्यों और पावर कंपनियों पर दबाव बना रहे हैं कि अडानी से महंगा कोयला खरीदे और यहां देखा जा सकता है कि किस तरह से संस्थाओं का इस्तेमाल अपने दोस्त के फायदे के लिए किया जा रहा है.”
बता दें, देश में कोयले की कमी के चलते केंद्र सरकार ने सभी राज्यों और पावर कंपनियों को पत्र लिखा था, जिसमें कहा गया था कि कुल कोयले को उपभोग में कम से कम 10 फीसदी विदेशी कोयले को मिक्स करें. सरकार के इस निर्णय के खिलाफ तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्राशेखर राव ने आवाज उठाते हुए सवाल खड़े किए थे.
ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन ने यह भी आरोप लगाया कि केंद्र राज्यों के अधिकार का अतिक्रमण कर रहा है और थर्मल पावर प्लांटों को घरेलू सूखे ईंधन की आपूर्ति में अपनी अक्षमताओं को कवर करने के लिए उन्हें आयातित कोयला खरीदने के लिए मजबूर कर रहा है.
हालांकि इस बात की पुष्टि अभी नहीं हो पायी है लेकिन इकोनॉमिक टाइम्स ने सूत्रों के हवाले से बताया कि अडानी ग्रुप के इस कॉन्ट्रैक्ट को कोल इंडिया की ओर से रद्द कर दिया गया है.