अखिलेश अखिल
इस बार हिंदी के पहले उपन्यास ‘रेत की समाधी’ को अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार से नवाजा गया है. इस पुस्तक की लेखिका गीतांजलि श्री हैं. पुस्तक को अंग्रजी में टॉम्ब ऑफ़ सैंड नाम से अनुवाद किया गया है. यह एक फिक्शन पुस्तक है जिसे दुनिया की 13 रचनाओं में शामिल किया गया था. यह हिंदी भाषा में पहला ‘फिक्शन’ है, जो इस प्रतिष्ठित साहित्यिक पुरस्कार की दौड़ में शामिल था.
मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, टॉम्ब ऑफ सैंड प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली किसी भी भारतीय भाषा की पहली किताब बन गई है. गुरुवार को लंदन में एक समारोह में लेखिका ने कहा कि वह ‘बोल्ट फ्रॉम द ब्लू’ से पूरी तरह से अभिभूत थीं. उन्होंने 50,000 जीबीपी का अपना पुरस्कार लिया और पुस्तक के अंग्रेजी अनुवादक डेजी रॉकवेल के साथ इसे साझा किया. बता दें कि गीतांजलि की इस पुस्तक को डेजी रॉकवेल ने अंग्रेजी में अनुवाद किया है.
मीडिया से बातचीत करते हुए गीतांजलि श्री ने कहा कि मैंने कभी बुकर का सपना नहीं देखा था. मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं ऐसा कर सकती हूं. कितनी बड़ी बात है, मैं चकित, खुश, सम्मानित और विनम्र हूं. उन्होंने कहा कि मैं खुद को गौरवान्वित महसूस कर रही हूं. उन्होंने कहा कि इस पुरस्कार के मिलने से एक अलग तरह की संतुष्टि है. उन्होंने कहा कि रेत समाधि इस दुनिया के लिए एक शोकगीत है, जिसमें हम निवास करते हैं. बुकर निश्चित रूप से इसे कई और लोगों तक पहुंचाएगा.
गीतांजलि श्री ने कहा कि मेरे और इस पुस्तक के पीछे हिंदी और अन्य दक्षिण एशियाई भाषाओं में एक समृद्ध और साहित्यिक परंपरा है. इन भाषाओं के कुछ बेहतरीन लेखकों को जानने के लिए विश्व साहित्य अधिक समृद्ध होगा. इस तरह की बातचीत से जीवन की शब्दावली बढ़ेगी. अमेरिका के वरमोंट में रहने वाली एक चित्रकार, लेखिका और अनुवादक रॉकवेल ने उनके साथ मंच साझा किया.
निर्णायक पैनल के अध्यक्ष फ्रैंक विने ने कहा कि आखिरकार, हम डेजी रॉकवेल के अनुवाद में गीतांजलि श्री की पहचान और अपनेपन के उपन्यास ‘टॉम्ब ऑफ सैंड’ की शक्ति, मार्मिकता और चंचलता से मोहित हो गए. उन्होंने कहा, यह भारत और विभाजन का एक चमकदार उपन्यास है, जिसकी मंत्रमुग्धता, करुणा युवा उम्र, पुरुष और महिला, परिवार और राष्ट्र को कई आयाम में ले जाती है.