Home देश सुप्रीम कोर्ट का सरकार पर तंज, कहा जुमलेबाजी वाली योजना से सरकार परहेज़ करे

सुप्रीम कोर्ट का सरकार पर तंज, कहा जुमलेबाजी वाली योजना से सरकार परहेज़ करे

सुप्रीम कोर्ट का सरकार पर तंज, कहा जुमलेबाजी वाली योजना से सरकार परहेज़ करे

अखिलेश अखिल

देश की मौजूदा राजनीति और सरकार द्वारा किये जा रहे योजनाओं के ऐलान पर सुप्रीम कोर्ट ने तंज किया है और कहा है कि सरकार योजनाओं का ऐलान तो करती है लेकिन उसके लिए वित्त की व्यवस्था कहाँ से होगी इसकी कोई रूपरेखा क्यों नहीं बनाती. सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी योजनाओं के ऐलान और उनके प्रभावी अमल में बड़ा अंतर होने को लेकर सरकारों को आईना दिखाया है. अदालत ने कहा कि सरकार को किसी भी योजना का ऐलान करने से पहले उसके वित्तीय प्रभावों के बारे में जरूर सोचना चाहिए. कोर्ट ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम का हवाला देते हुए कहा कि यह एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जहां एक अधिकार बना दिया गया है, लेकिन ‘स्कूल कहां हैं’? जस्टिस यूयू ललित की अगुवाई वाली बेंच ने प्रताड़ित महिलाओं को कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए बुनियादी ढांचा विकसित करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कही.
शीर्ष न्यायालय ने कहा, ‘हम आपको सलाह देंगे कि जब भी आप इस प्रकार की योजनाओं या विचारों के साथ आते हैं तो हमेशा वित्तीय प्रभाव को ध्यान में रखें.’ पीठ में न्यायमूर्ति एसआर भट और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा भी शामिल हैं. पीठ ने केंद्र की तरफ से पेश हुईं अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भाटी से कहा कि इसका ‘उत्कृष्ट उदाहरण’ शिक्षा का अधिकार अधिनियम है. बेंच ने कहा, ‘आपने एक अधिकार बनाया है. स्कूल कहां हैं? इसलिए, स्कूलों को नगर पालिकाओं, राज्य सरकारों आदि सहित विभिन्न प्राधिकरणों द्वारा स्थापित किया जाना है. उन्हें शिक्षक कहां मिलते हैं?’
पीठ ने कहा कि कुछ राज्यों में ‘शिक्षा मित्र’ हैं और इन व्यक्तियों को नियमित भुगतान के बदले लगभग 5,000 रुपये दिए जाते हैं. इसने कहा कि जब अदालत राज्य से इसके बारे में पूछती है, तो वो कहते हैं कि बजट की कमी है. पीठ ने कहा, ‘आपको संपूर्णता में देखना होता है. अन्यथा, यह सिर्फ जुमलेबाजी ही बन जाती है.’ सुनवाई की शुरुआत में भाटी ने पीठ को बताया कि उन्होंने एक पत्र दिया है जिसमें अदालत के पहले निर्देश के अनुसार विवरण रखने के लिए कुछ समय मांगा गया है.
शीर्ष अदालत ने फरवरी में केंद्र को एक हलफनामा दाखिल करने के लिए कहा था, जिसमें विभिन्न राज्यों द्वारा डीवी अधिनियम (घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005) के तहत प्रयासों का समर्थन करने के लिए केंद्रीय कार्यक्रमों / योजनाओं की प्रकृति के बारे में विवरण देना शामिल है. इसमें वित्त पोषण की सीमा, वित्तीय सहायता को नियंत्रित करने की शर्तें और नियंत्रण तंत्र भी शामिल हैं. बुधवार को सुनवाई के दौरान भाटी ने पीठ को बताया कि ‘काफी प्रगति हुई है.’ पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल से कहा कि वह विवरण देते हुए एक स्थिति रिपोर्ट दायर कर सकती हैं.

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