ज्योतिर्मठ और द्वारका शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का निधन हो गया है. वो 98 साल के थे. वो लंबे समय से बीमार थे. मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले में परमहंसी गंगा आश्रम में उन्होंने कल दोपहर में अंतिम सांस ली. परमहंसी गंगा आश्रम में ही आज उनको समाधि दी जाएगी.
शंकराचारय स्वरूपानंद सरस्वती हिंदुओं के सबसे बड़े धर्मगुरुओं में से एक माने जाते थे. वो लंबे समय से बीमार चल रहे थे. उनका बेंगलुरू में इलाज चल रहा था. हाल ही में वो आश्रम लौटे थे. शंकराचार्य के शिष्य ब्रह्म विद्यानंद ने बताया- स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को आज सोमवार को शाम पांच बजे परमहंसी गंगा आश्रम में समाधि दी जाएगी. स्वामी शंकराचार्य आजादी की लड़ाई में जेल भी गए थे. उन्होंने राम मंदिर निर्माण के लिए लंबी कानूनी लड़ाई भी लड़ी थी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके निधन पर दुख जताया है. प्रधानमंत्री ट्विट करके कहा- द्वारका शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी के निधन से अत्यंत दुख हुआ है. शोक के इस समय में उनके अनुयायियों के प्रति मेरी संवेदनाएं. ओम शांति! गृह मंत्री अमित शाह ने भी ट्विट कर स्वरूपानंद सरस्वती के निधन पर दुख जताया. उन्होंने ट्विट किया- द्वारका शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी के निधन का दुखद समाचार प्राप्त हुआ. सनातन संस्कृति व धर्म के प्रचार-प्रसार को समर्पित उनके कार्य सदैव याद किए जाएंगे.
बता दें कि शैव, नाथ, दशनामी, अघोर और शाक्त परम्परा के साधु-संतों को भू-समाधि दी जाती है. भू-समाधि में पद्मासन या सिद्धि आसन की मुद्रा में बैठाकर भूमि में दफनाया जाता है. अक्सर यह समाधि संतों को उनके गुरु की समाधि के पास या मठ में दी जाती है. शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को भी भू-समाधि उनके आश्रम में दी जाएगी.
शंकराचार्य श्री स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म मध्यप्रदेश के सिवनी जिले के दिघोरी गांव में ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके माता-पिता ने बचपन में इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा था. महज 9 साल की उम्र में इन्होंने घर छोड़ धर्म की यात्रा शुरू कर दी थी. इस दौरान वो काशी पहुंचे और यहां इन्होंने ब्रह्मलीन श्री स्वामी करपात्री महाराज से वेद-वेदांग, शास्त्रों की शिक्षा ली.
जब 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन का ऐलान हुआ तो स्वामी स्वरूपानंद भी आंदोलन में कूद पड़े. 19 साल की आयु में वह क्रांतिकारी साधु के रूप में प्रसिद्ध हुए. उन्हें वाराणसी में 9 महीने और मध्यप्रदेश की जेल में 6 महीने कैद रखा गया. जगदगुरु शंकराचार्य का अंतिम जन्मदिन हरितालिका तीज के दिन मनाया गया था.
स्वामी स्वरूपानंद 1950 में दंडी संन्यासी बनाए गए थे. ज्योर्तिमठ पीठ के ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दण्ड सन्यास की दीक्षा ली और स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती नाम से जाने जाने लगे. उन्हें 1981 में शंकराचार्य की उपाधि मिली.
शंकराचार्य स्वामी स्परूपानंद सरस्वती ने राम जन्मभूमि न्यास के नाम पर विहिप और बीजेपी को घेरा था. उन्होंने कहा था- अयोध्या में मंदिर के नाम पर बीजेपी-विहिप अपना ऑफिस बनाना चाहते हैं, जो हमें मंजूर नहीं है. हिंदुओं में शंकराचार्य ही सर्वोच्च होता है. हिंदुओं के सुप्रीम कोर्ट हम ही हैं. मंदिर का एक धार्मिक रूप होना चाहिए, लेकिन यह लोग इसे राजनीतिक रूप देना चाहते हैं जो कि हम लोगों को मान्य नहीं है.