Thursday, December 26, 2024
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वर्ल्ड बैंक का खुलासा : शिशु मृत्यु दर कम करने में भारत फिसड्डी, कई राज्यों की हालत ख़राब

अखिलेश अखिल

नीति आयोग ने वर्ल्ड बैंक द्वारा जारी एक रिपोर्ट को प्रकाशित किया है जिससे पता चलता है कि भारत की स्वास्थ्य सेवा आज भी बद से बदतर है. शिशु मृत्यु दर को लेकर जारी इस रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत की स्थिति दुनिया के अन्य देशों की तुलना में काफी ख़राब है, क्योंकि आज भी देश में शिशु मृत्यु दर सबसे ज्यादा है. जहां तक देश के भीतर, राज्यों में शिशु मृत्यु दर की बात है उसमे मध्य प्रदेश, असम और ओडिशा की हालत सबसे ज़्यादा ख़राब बताई गई है. इन राज्यों में बेहतर स्वास्थ्य सेवा होने का ढिंढोरा तो खूब पीटा जाता है, लेकिन सच ये है कि इन राज्यों में शिशु मृत्यु दर अन्य राज्यों की तुलना में सबसे ज्यादा है.
रिपोर्ट के मुताबिक देश में 1000 में से 39 बच्चे 5 साल की उम्र के बाद जीवित नहीं रहते. भारत के कई राज्यों में यह स्थिति और भी बुरी है. खासकर मध्यप्रदेश, असम और ओड़िशा में. ये तीन राज्य ऐसे हैं, जहां 5 साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर 50 से 55 के बीच है.
नीति आयोग की ओर से प्रकाशित की गयी वर्ल्ड बैंक की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि मध्यप्रदेश में 5 साल से कम उम्र के सबसे ज्यादा 55 बच्चों की मौत होती है, जबकि असम में 52 और ओड़िशा में 50 बच्चे दम तोड़ देते हैं. इससे पहले असम और मध्यप्रदेश में 5 साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर 62 थी. झारखंड ने इस मामले में काफी सुधार किया है, जबकि बिहार को अभी बहुत सुधार करने की जरूरत है. बिहार में अब भी यह दर 43 फीसदी है, जो राष्ट्रीय दर से 4 फीसदी अधिक है.
राजस्थान में 45, उत्तर प्रदेश में 47, छत्तीसगढ़ में 49 फीसदी बच्चे 5 साल की उम्र से पहले काल के गाल में समा जाते हैं. उत्तराखंड में 41, आंध्रप्रदेश में 37, हरियाणा में 37, तेलंगाना में 34, गुजरात में 33, कर्नाटक में 29, हिमाचल प्रदेश में 27, पश्चिम बंगाल में 27, जम्मू एवं कश्मीर में 26, पंजाब में 24, महाराष्ट्र में 21, तमिलनाडु में 19 और केरल में मात्र 11 बच्चों की इस उम्र में मौत होती है. यानी केरल, तमिलनाडु और महाराष्ट्र ने छोटे बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य की व्यवस्था कर ली है.
वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट बताती है कि भारत के बड़े राज्यों ने 5 साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर को कम करने में सफलता पायी है. लेकिन, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड दो ऐसे राज्य हैं, जहां इस मामले में वृद्धि हुई है, जो चिंताजनक है. उत्तराखंड में पहले 1000 बच्चों में से 38 बच्चों की मौत होती थी, जो अब बढ़कर 41 हो गयी है. इसी तरह छत्तीसगढ़ में 5 साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर 48 से बढ़कर 49 हो गयी है.
असम और मध्यप्रदेश दो ऐसे राज्य थे, जहां यह दर 62 थी. इन दोनों राज्यों ने काफी मेहनत के बाद इस आंकड़े को प्रभावी तरीके से कम किया. अभी और प्रयास किये जाने की जरूरत है. देश की सेहत सुधारने के लिए सरकार ने नीति आयोग के माध्यम से राज्यों की रैंकिंग शुरू की है. राज्यों को मौका दिया जाता है कि साल दर साल अपनी रैंकिंग में सुधार करें. स्वास्थ्य से जुड़े कई मामलों में बिहार अब भी बहुत पीछे रह गया है. इसके विपरीत बिहार से अलग होकर बना राज्य झारखंड तेजी से सुधार में जुटा हुआ है और विकसित राज्यों के साथ कदमताल करने की कोशिश कर रहा है.

Anzarul Bari
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पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.
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