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लोकतंत्र बनाम पुलिसतंत्र पर सुप्रीम अदालत की तल्ख़ टिप्पणी

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लोकतंत्र बनाम पुलिसतंत्र पर सुप्रीम अदालत की तल्ख़ टिप्पणी

 

पिछले दिनों देश में लगातार हो रही गिरफ्तारियों पर सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों और सरकार पर सख्त टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों से कहा है कि अगर पुलिस अधिकारी आपराधिक प्रक्रिया संहिता यानी सीआरपीसी की धारा 41 और 41ए के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए गिरफ्तारियां करे तो उनकी अच्छे से खबर ली जाए. उसने सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो केस में सुनवाई के दौरान यह भी कहा कि अगर गिरफ्तारी के समय सीआरपीसी की धारा 41 और 41ए के प्रावधानों का पालन नहीं किया गया तो आरोपी को जमानत मिल जाएगी.

सर्वोच्च न्यायाल के दो जजों, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने कहा कि धारा 41 और 41 संविधान के अनुच्छेद 21 के ही पहलू हैं. बेंच ने राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों को सीआरपीसी की इन दोनों धाराओं के तहत पालन की जाने वाली प्रक्रिया के लिए स्थायी आदेशों की सुविधा मुहैया कराने का भी निर्देश दिया.

दरअसल, सीआरपीसी की धारा 41 के तहत उन परिस्थितियों का उल्लेख किया गया है जब पुलिस अधिकारी मजिस्ट्रेट ऑर्डर या वारंट के बिना किसी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है जबकि 41ए के तहत मुख्यतः उन बातों का जिक्र है जिनमें पुलिस अधिकारी के लिए किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के बजाय नोटिस दिए जाने का प्रावधान किया गया है.

पुलिस अधिकारी ऐसे सभी मामलों में जिनमें धारा 41 की उप धारा (1) के उपबंधों के अधीन किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी जरूरी नहीं है, आरोपी या संदिग्ध को अपने सामने हाजिर होने का नोटिस भेजेगा. इसमें यह भी बताया गया है कि पुलिस किसके खिलाफ नोटिस भेजेगा।

इसमें बताया गया है कि पुलिस उसी व्यक्ति के खिलाफ नोटिस भेजगी जिसके खिलाफ उचित शिकायत दर्ज हो. उसके खिलाफ विश्वसनीय जानकारियां मिली हैं और उसके गंभीर अपराध करने का उचित संदेह है.

यह धारा पुलिस को यह निर्देश देने के साथ ही आरोपी को भी तीन निर्देश देती है (पहला) पुलिस जिसे यह नोटिस भेजे, उस व्यक्ति का कर्तव्य होगा कि वह नोटिस में कही गई बातों का पालन करे. (दूसरा) अगर व्यक्ति नोटिस के निर्देशों का पालन करता है और वह पुलिस के सामने हाजिर होता है. तब पुलिस उसे संबंधित शिकायत या संदेह के मामले में गिरफ्तार नहीं करेगी. हालांकि, अगर पुलिस को लगे कि उसे गिरफ्तार करना जरूरी है तो वह लिखित में अपनी दलीलें देकर व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकती है. और (तीसरा) अगर व्यक्ति नोटिस के निर्देशों का पालन नहीं करता है और पुलिस के सामने हाजिर होने से आनाकानी करता है तो पुलिस कोर्ट से गिरफ्तारी वारंट जारी करवा कर उसे गिरफ्तार कर सकती है.

इसके साथ ही देश की जेलों में विचाराधीन कैदियों की बढ़ती संख्या पर चिंता जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि वो अलग से एक जमानत कानून लाने पर विचार करे. अदालत ने कहा कि लोकतंत्र पुलिस तंत्र जैसा नहीं लगना चाहिए क्योंकि दोनों धारणात्मक तौर पर ही एक दूसरे के विरोधी हैं.

अदालत ने बताया कि गिरफ्तारी अपने आप में एक कठोर कदम है. जिसका कम ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए. पुलिस अफसर को सिर्फ इसलिए किसी को गिरफ्तार कर लेने का अधिकार नहीं है. क्योंकि उसे लगता है कि गिरफ्तार कर लिया जाना चाहिए. गिरफ्तारी की कुछ शर्तें होती हैं और उनका पूरा होना आवश्यक है.

अदालत ने आम लोगों की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने में अदालतों की भूमिका पर जोर देते हुए कहा कि अदालतें इस स्वतंत्रता की “लोकपाल” हैं और उसका “पूरे उत्साह से” संरक्षण करना उनका “पावन कर्तव्य” है. सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर चिंता जताई कि देश की जेलों में कुल कैदियों में से कम से कम दो तिहाई विचाराधीन कैदी हैं, जिनमें से अधिकांश ऐसे हैं जिनकी गिरफ्तारी की कोई जरूरत नहीं थी. अदालत ने यह भी कहा कि ये ना सिर्फ गरीब और अनपढ़ हैं, बल्कि इनमें महिलाएं भी हैं. अदालत ने कहा कि भारत की दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 41 और 41ए में गिरफ्तारी की पूरी प्रक्रिया बताई गई है और पुलिस अफसरों को इन धाराओं का अनुपालन सुनिश्चित करना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने सभी अदालतों से कहा कि वो ऐसे अफसरों के खिलाफ कड़ी करवाई करें जो इन धाराओं का अनुपालन किए बिना गिरफ्तारी करते हैं. कोर्ट ने राज्य सरकारों से भी कहा कि इन धाराओं के अनुपालन को सुनिश्चित कराने के लिए वो स्थायी आदेश जारी करें. अदालत ने कहा कि ब्रिटेन समेत कुछ देशों में जमानत के लिए अलग से कानून है. अदालत ने केंद्र सरकार से उसी तर्ज पर एक कानून भारत में भी लाने पर विचार करने के लिए कहा.

इसके अलावा अदालत ने उच्च अदालतों से कहा कि वो अपने अपने अधिकार क्षेत्र में ऐसे विचाराधीन कैदियों का पता लगाएं जिनकी गिरफ्तारी में सीआरपीसी में दी गई शर्तों का पालन नहीं हुआ और उनकी रिहाई की प्रक्रिया को आगे बढ़ाएं. सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्य सरकारों और उच्च अदालतों को निर्देश दिया कि सभी दिशानिर्देशों पर चार महीनों के अंदर हलफनामा या स्थिति रिपोर्ट दायर करें.

सर्वोच्च अदालत की यह टिप्पणी और ये निर्देश ऐसे समय में आए हैं. जब देश के कई कोनों में गिरफ्तारी के कई मामलों का विरोध हो रहा है. फैक्ट चेक करने वाली वेबसाइट ‘ऑल्ट न्यूज’ के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर को दिल्ली पुलिस ने उनके एक ट्वीट के खिलाफ शिकायत आने पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया था.

गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने उनके खिलाफ विदेशी चंदा लेने, सबूत मिटाने और आपराधिक षडयंत्र करने जैसे आरोप लगा दिए. उसके बाद जुबैर के खिलाफ उनके एक और ट्वीट को उत्तर प्रदेश में एक अलग मामला दायर दिया गया. इस मामले में उन्हें सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम जमानत मिली हुई है.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक 2020 में भारत की जेलों में कुल 4,88,511 कैदी थे, जिनमें 3,71,848 यानी करीब 76 प्रतिशत विचाराधीन कैदी थे. इनमें से करीब 68 प्रतिशत या तो अशिक्षित थे या स्कूल छोड़ चुके थे.

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पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.

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