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रूस ने यूक्रेन को बांटा, पूर्वी क्षेत्रों को अलग देश की मान्यता दी

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रूस ने यूक्रेन को बांटा, पूर्वी क्षेत्रों को अलग देश की मान्यता दी

अंज़रूल बारी

रूस के चाल के सामने सब ढेर हो गए. अमेरिका कुछ नहीं कर पाया और पश्चिमी देश मुंह तकते रह गए. दरअसल सोमवार को रूस के राष्ट्रपति विलादेमिर पुतिन ने देश को संबोधित करते हुए यूक्रेन के टुकड़े करने का एलान कर दिया. रूसी राष्ट्रपति ने ऐलान करते हुए यूक्रेन के दो पूर्वी सूबों को स्वतंत्र देश का दर्जा दे दिया. इन दोनों सूबों में रूस समर्थक अलगाववादी पहले ही यूक्रेन से खुद को अलग घोषित कर चुके थे. 2014 में रूस ने पूर्व सोवियत देश यूक्रेन के क्रीमिया पर कब्जा कर लिया था. उस दौरान बड़े पैमाने पर हिंसक झड़पें हुई थी जिसमें हजारों लोग मारे गए थे. इस हिंसा को रोकने के लिए मिंस्क समझौता हुआ था. समझौते के मुताबिक इन क्षेत्रों को यूक्रेन के तहत रहते हुए ही अधिक स्वायत्तता देने की बात थी. रूस ने भी इसे यूक्रेन समस्या का सबसे बेहतर हल बताया था लेकिन अब रूस की तरफ से यूक्रेन के दोनेत्सक और लुहांस्क इलाकों को दो अलग देश घोषित करने के बाद अमेरिका और नाटो देशों ने कहा है कि रूस ने मिंस्क समझौता ख़त्म कर दिया है.
यूक्रेन संकट पर रूस और अमेरिका के बीच हालात संगीन हो गए हैं. इस बीच रूस ने फ्रांस और जर्मनी को बताया कि वह पूर्वी यूक्रेन से अलग होने की घोषणा कर चुके इलाकों को, रूस भी स्वतंत्र देश की मान्यता देने का एलान कर चुका है. माना जा रहा है कि रूस की इस घोषणा का असर दूरगामी होगा.
बता दें कि यूक्रेन के अलगाववादी दोनेत्सक और लुहांस्क क्षेत्रों को एक साथ डोनबास कहा जाता है. यह इलाके यूक्रेनी सरकार के प्रभाव से 2014 में ही अलग हो गए थे. न्यूज़ एजेंसियों के मुताबिक यूक्रेन का दावा है कि 2014 की लड़ाई में हजारों लोग मरे गए थे, रायटर्स ने यूक्रेनी सरकार के हवाले से कहा है कि इस लड़ाई में 15,000 से अधिक लोग मारे गए थे. हालांकि रूस इस लड़ाई में सीधे तौर पर शामिल होने से इंकार करता रहा है लेकिन रूस की तरफ से अलगाववादियों को हथियार और आर्थिक मदद बराबर मिलती रही है. कहा ये भी जाता है कि रूसी सरकार की जानिब से यहां के करीब 8 लाख लोगों को रूसी पासपोर्ट भी दिया जा चुका था. लेकिन फिर भी रूस कहता रहा है कि वो यूक्रेन पर कब्जा करने की योजना नहीं रखता है.
गौर करने की बात तो यह है कि पहली बार रूस ने कहा है कि वो डोनबास को यूक्रेन का का हिस्सा नहीं मानता है. जिसके बाद अब रूस डोनबास में अपनी सेना बगैर किसी परेशानी के भेज सकता है. रूसी संसद के एक सदस्य और दोनेत्सक के पूर्व नेता एलेक्ज़ेंडर बोरोदाई पहले ही कह चुके हैं कि तनाव बढ़ने पर दोनेत्सक और लुहांस्क के लोगों की रूस हर तरह से मदद करेगा. जिसके बाद रूस और यूक्रेन के बीच जंग के हालात बन गए हैं.
उधर पश्चिमी देश लंबे समय से रूस को यह चेतावनी दे रहे हैं कि यूक्रेन के बॉर्डर पर अगर रूस सैन्य कार्रवाई करता है तो उसे सख़्त जवाब मिलेगा और कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए जाएंगे. बावजूद इसके रूस पर इसका कोई असर नहीं है. अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने भी पिछले ही हफ्ते एलान कर दिया था कि अगर रूस यूक्रेन की संप्रभुता और सीमाई अखंडता को कम करने की कोशिश करता है तो इसे अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन माना जाएगा और इस समस्या को कूटनीतिक तरीके से सुलझाने के रास्ते भी बंद हो सकते हैं. साथ ही अमेरिका और उसके सहयोगियों की तरफ से कड़ा जवाब दिया जाएगा.
याद रहे कि रूस पहले भी जॉर्जिया के साथ 2008 में हुई जंग के बाद दो हिस्सों को अलग देश के तौर पर मान्यता दे चुका है. पूर्व सोवियत देश जॉर्जिया भी नाटो में शामिल होने की महत्वकांक्षा रखता था. लेकिन रूस ने जॉर्जिया से उसकी सीमाओं का पूरा नियंत्रण छीन कर नाटो में उसके शामिल होने की संभावनाओं को अनिश्चितकाल के लिए विलंबित कर दिया. अब यूक्रेन के मामले में भी यही होता नज़र आ रहा है.
दूसरी ओर रूस पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध लगेंगे और मिंस्क प्रक्रिया को समर्थन देने के बाद उसे छोड़ देने के लिए कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ेगा. साथ ही आठ साल की जंग के बोझ तले दबे डोनबास में रूस की आर्थिक ज़िम्मेदारी भी बढ़ा जाएगी. अब देखना ये है कि रूस अगला कदम क्या उठता है और दुनिया भर के देश रूस के कदम को किस रूप में लेते हैं. लेकिन सबसे बड़ी बात तो यूक्रेन को लेकर है. यूक्रेन क्या करेगा और उसके साथ कौन खड़ा होता है यह सबसे अहम् है.

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पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.

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