Home चुनाव यूपी में बदलाव की बहार, बीजेपी और योगी नहीं होंगे रिपीट.

यूपी में बदलाव की बहार, बीजेपी और योगी नहीं होंगे रिपीट.

यूपी में बदलाव की बहार, बीजेपी और योगी नहीं होंगे रिपीट.

अखिलेश अखिल

वैसे 1989 के बाद से यूपी की जनता किसी मुख्यमंत्री और पार्टी को रिपीट नहीं करती और बदल-बदल कर सबको आज़माने में यकीन रखती है. यह बात और है कि यूपी की वही जनता 2014 और 2019 में बीजेपी को जिताने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रही और 2017 के विधान सभा चुनाव में भी बीजेपी को पूर्णबहुमत देकर सत्ता तक पहुंचाने में भी आगे-आगे रही. लेकिन लोकसभा को विधानसभा चुनाव से जोड़ने की बात बेईमानी हो सकती है. यूपी की जनता ने दोनों लोकसभा चुनाव में मोदी की ईमानदारी, हिन्दू धर्म के संरक्षक, विकास पुरुष वाली इमेज और बड़े स्तर पर रोजगार देने के ऐलान पर बीजेपी का साथ दिया था. सभी जाति के लोगों ने मोदी को स्वीकार किया था. इसी बीच मोदी की मकबूलियत का लाभ 2017 में यूपी विधान सभा चुनाव में भी बीजेपी को मिल गया और उसकी सरकार भी बन गई. प्रदेश के लोगों ने योगी के नाम पर तब बीजेपी को वोट नहीं दिया था. तब मुख्यमंत्री के उम्मीदवार कोई और थे. जब योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बनाये गए, लोग निराश हुए और कई जातियों के वोटर हताश भी. पार्टी के भीतर अनबन हुई, सीएम योगी और केशव मौर्य के बीच में आज भी अनबन है. आगे भी चलेगा.
उत्‍तर प्रदेश में चौथे चरण का मतदान 23 फरवरी को है. इस चरण में लखनऊ, रायबरेली, हरदोई समेत 9 जिलों की 59 सीटों पर वोटिंग होगी. इन 9 में से 7 जिले अवध इलाके में आते हैं. अवध की जंग में इस बार कौन बाजी मारेगा, यह जल्‍द ही पता चल जाएगा. दूसरी ओर, पांचवें और छठे चरण के लिए चुनावी रैलियां जारी हैं. अयोध्‍या में चुनाव प्रचार करने पहुंचे सीएम योगी आदित्‍यनाथ ने एक बार फिर अखिलेश यादव पर आतंकियों से सहानुभूति रखने का आरोप लगाया है. वहीं, शाम को बहराइच में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जनसभा है. प्रयागराज में अमित शाह रोड शो करने पहुंचे. महाराजगंज में केंद्रीय मंत्री स्‍मृति इरानी, गोरखपुर में दिल्‍ली के मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल तो छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता भूपेश बघेल बाराबंकी में मौजूद रहे. इनके अलावा, भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा देवरिया में जनसभा करने गए हैं.
उधर सोमवार के सुबह में अखिलेश यादव ने पीएम मोदी पर हमला किया. सपा प्रमुख अखिलेश यादव प्रयागराज में जनसभा करने गए और सीएम योगी पर हमले किये. सीएम योगी आदित्‍यनाथ पर प्रहार करते हुए उन्‍होंने कहा कि जो गर्मी निकालने की बात कह रहे थे उन्होंने कभी फौज में भर्ती नहीं निकाली, समाजवादी पार्टी की सरकार बनेगी तो फौज और पुलिस में भर्ती निकालने का काम होगा. ऐसे लोगों का भाप निकलना बहुत जरूरी है.
गौरतलब है कि रविवार को हरदोई में भाजपा प्रत्याशियों के समर्थन में आयोजित एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था, ”जितने भी धमाके हुए सब समाजवादी पार्टी के चुनाव निशान साइकिल पर रखकर किये गये और मैं हैरान हूं कि उन्होंने (आतंकियों) साइकिल को क्यों पसंद किया. 2006 में काशी में बम धमाका हुआ था, संकट मोचन मंदिर में धमाका किया गया, कैंट रेलवे स्टेशन पर हमला किया गया और तब यूपी (उत्तर प्रदेश) में समाजवादी पार्टी की सरकार थी।” उन्होंने कहा था, ”एक समय था जब देश में हर सप्ताह बम धमाके होते थे और हिंदुस्तान के कितने शहरों में निर्दोष नागरिक मारे गये, जब मैं गुजरात का मुख्यमंत्री था और उस दौरान अहमदाबाद में सीरियल बम धमाके हुए थे और उस दिन को कभी भूल नहीं सकता, उस समय जो लोग इन धमाकों में मारे गये थे, मैंने उस रक्त से गीली हुई मिट्टी को उठाकर संकल्प लिया था कि मेरी सरकार इन आतंकवादियों को पाताल से भी खोज कर सजा देगी.” अहमदाबाद सिलसिलेवार बम विस्फोट मामले में अदालत द्वारा 49 लोगों को दोषी ठहराए जाने के अदालत के फैसले का जिक्र करते हुए मोदी ने कहा कि अभी दो दिन पहले ही अहमदाबाद बम धमाके के दोषियों को सजा सुनाई गई है और अनेक आतंकवादियों को फांसी की सजा मिली है.
गौरतलब है कि अहमदाबाद की एक विशेष अदालत ने शहर में 2008 में हुए सिलसिलेवार बम विस्फोट के मामले में 18 फरवरी को आतंकवादी संगठन इंडियन मुजाहिदीन के 38 सदस्यों को मौत की सजा सुनायी है. अदालत ने 11 अन्य दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनायी है.
लेकिन इस पुरे खेल का सच यही है कि अब तक हुए तीन चुनाव में बीजेपी ने बहुत कुछ खो दिया है. कुल 172 सीटों पर हुए अबतक के चुनाव में बीजेपी करीब 100 से ज्यादा सीटें खो सकती है. जिस तरह से मुसलमान और जाट एक होकर बीजेपी के खिलाफ खड़े हुए हैं और फिर जहां यादवो बेल्ट है सपा के साथ खड़े दिखे हैं उससे साफ़ है कि बीजेपी अपना आधार खोती नजर आ रही है. बीजेपी के खिलाफ एक लहर चल गई है और इसका सीधा-सीधा लाभ सपा गठबंधन को होता दिख रहा है. अगर बीजेपी के खिलाफ आगे भी यही लहर चलती रही तो कह सकते हैं कि वह सौ से डेढ़ सौ सीटों पर सिमट सकती है.
बता दें कि तीन चरणों की 172 सीटों पर जहॉं अब तक मतदान हो चुका है, पिछली बार भाजपा को 140 सीटें मिली थीं. केवल 32 सीटें विपक्ष को मिली थीं. जानकारों का मानना है कि इस बार डबल इंजन की सरकार में भाजपा को डबल ऐंटी इंकम्बेंसी का सामना करना पड़ रहा है. इसमें दो राय नहीं कि प्रधानमंत्री मोदी की छवि धीरे-धीरे चंद अडानी-अंबानी जैसे पूँजीपतियों के समर्थकों की हो गई है. अब वह ग़रीबों-पिछड़ों के मसीहा नहीं रहे और न ही गुजरात मॉडल में कोई आकर्षण बचा है. मोदी समर्थक सिर्फ़ इस बात से संतोष कर रहे हैं कि उन्होंने और योगी ने मुसलमानों को सत्ता से दूर और दबाकर रखा है, भले महंगाई बढ़ी या विकास नहीं हुआ पर वह भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने को प्रयत्नशील हैं.
गौरतलब है कि भारतीय जनता पार्टी इस बार एक नई पहचान के दम पर मैदान में चुनौती दे रही है. पहले राज्य में चुनाव दो अस्मिताओं पर होते थे और वो थी जाति और धर्म. जब भी जाति की अस्मिता ज्यादा प्रभावी होती थी बीजेपी रेस से बाहर हो जाती थी और धार्मिक अस्मिता प्रभावी होती थी तो बीजेपी को फायदा होता था. लेकिन इस बार चुनाव में नई पहचान जुड़ी है और वो है लाभार्थी. साल 2017 में लोगों को उम्मीद थी कि बीजेपी अच्छा करेगी. ऐसे में साल 2017 का चुनाव उम्मीद का चुनाव था और 2022 का चुनाव भरोसे का चुनाव है कि सरकार ने जो कहा था वो करके दिखाया. अब इसी का टेस्ट होना है.
छह महीने या साल भर पहले तक सबको लगता था कि उत्तर प्रदेश में विपक्ष बहुत कमज़ोर और निष्क्रिय है और भाजपा सरकार फिर बनेगी. लेकिन एक के बाद एक घटनाक्रम इतनी तेज़ी से बदला कि आज भाजपा की जीत को लेकर संशय भी जताया जाता है. उत्तर प्रदेश का राजनीतिक माहौल बदलने का श्रेय सबसे ज़्यादा पश्चिम में भारतीय किसान यूनियन नेता राकेश टिकैत और पूरब में योगी सरकार में मंत्री रहे सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर को दिया जा सकता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि बिल वापस तो लिया, लेकिन पूरे यूपी में किसान आंदोलनकारियों पर चले दमन चक्र के कारण उसका लाभ नहीं हुआ. राकेश टिकैत के आंसू और जयंत चौधरी पर पुलिस की लाठी से पश्चिम उत्तर प्रदेश में बहुतायत जाट किसान इस बार भाजपा के ख़िलाफ़ लामबंद हो गए. राष्ट्रीय लोकदल और महान दल से समाजवादी पार्टी का गठबंधन हो गया. फिर ओम प्रकाश राजभर, स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान और धर्म सिंह सैनी को तोड़कर सपा अपने साथ लाने में कामयाब हो गई. लालजी वर्मा, राम अचल राजभर, इंद्रजीत सरोज, त्रिभुवन दत्त और पिछड़े तथा दलित समुदाय के कई अन्य नेता पहले ही बहुजन समाज पार्टी छोड़कर समाजवादी पार्टी में आ गए थे.
पिछड़े वर्गों में भाजपा से नाराज़गी का एक कारण जातीय जन गणना से इनकार है. सरकारी कंपनियों का निजीकरण भी आरक्षित वर्गों के लिए चुनाव का मुद्दा है.
इस सबका परिणाम यह हुआ कि सामाजिक न्याय वाली राजनीतिक ताक़तें यानी पिछड़ी जातियों का एक बड़ा हिस्सा एक अरसे बाद समाजवादी पार्टी के साथ फिर से गोलबंद हो गया.
पहले इन ताक़तों को भाजपा ने यह समझाकर अपने पाले में किया था कि पिछड़े वर्गों के सारे लाभ यादव ले जाते हैं. इसका परिणाम यह हुआ कि भाजपा का सामाजिक आधार काफ़ी सिकुड़ गया. न केवल पिछड़े वर्ग का मोहभंग हुआ बल्कि भाजपा समर्थक ऊँची जातियों में भी ब्राह्मण समुदाय को शिकायत है कि मुख्यमंत्री योगी राजपूत ठाकुर बिरादरी को ज़्यादा महत्व दे रहे हैं. एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि इस चुनाव में ऐसे तमाम ग़ैर राजनीतिक संगठन और सिविल सोसायटी के लोग भाजपा के ख़िलाफ़ काम कर रहे हैं जिन्हें लगता है कि मोदी और योगी की जोड़ी देश में लोकतंत्र और सामाजिक सद्भाव के लिए ख़तरा है.
लेकिन इस चुनावी समर में सबसे बड़ी हानि बसपा और कांग्रेस को होती दिख रही है. बसपा ने बड़ी संख्या में मुस्लिम उम्मीदवार खड़े किए, लेकिन अल्प संख्यक समुदाय का रुझान उनकी ओर नहीं हुआ. इसी तरह बसपा ने बड़ी संख्या में ब्राह्मण उम्मीदवार खड़े किए, पार्टी महामंत्री सतीश मिश्र ने राम मंदिर में पूजा कर चुनाव अभियान शुरू किया. लेकिन सत्ता की दौड़ में न दिखायी देने से बसपा के प्रति इस समुदाय का रुझान नहीं हुआ. सच्चाई तो यह है कि तीन फेज के चुनाव में बसपा को अपना कैडर वोट भी नहीं मिला है. बहुत सारे दलित वोटर बसपा को छोड़कर इस बार सपा गठबंधन से जुड़े हैं. यह बसपा के लिए परेशानी वाली बात तो है ही बीजेपी के लिए भी घातक है. उधर, प्रियंका गांधी की तमाम मेहनत के बावजूद कांग्रेस इतनी कमजोर है कि मुस्लिम समुदाय की पसंद नहीं बन सकी. पर कांग्रेस इस बार सभी विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव लड़कर आगे के लिए अपनी चुनाव मशीनरी दुरुस्त कर लेगी और उसके कुछ मतदाता भाजपा से वापस भी आ सकते हैं. 10 फ़रवरी को पहले दौर के मतदान में दिखा कि मुस्लिम समुदाय मुज़फ़्फ़रनगर दंगों का दर्द भुलाकर जाट किसानों के साथ लोक दल और समाजवादी पार्टी गठबंधन के साथ खड़ा रहा. दूसरे दौर में तो मुस्लिम मतदाताओं की तादाद वैसे भी ज़्यादा थी. इसलिए यहाँ भी भाजपा को पहले जीती तमाम सीटें गँवानी पड़ सकती हैं. 20 फ़रवरी को तीसरे चरण के मतदान में झाँसी, जालौन आदि बुंदेलखंड के एक बड़े हिस्से में वोट पड़े. पिछली बार भाजपा ने बुंदेलखंड की सभी 19 सीटें जीती थीं, लेकिनअब ऐसा लगता है कि यहाँ भी भाजपा को आधी सीटों का नुक़सान है.
तीसरे दौर में यादवलैंड के नाम से मशहूर इटावा, फ़िरोज़ाबाद, मैनपुरी, एटा आदि में भी वोट पड़ा. यहीं करहल से अखिलेश यादव पहली बार विधान सभा चुनाव लड़े. भाजपा ने केंद्रीय मंत्री एस पी सिंह बघेल को उतार कर करहल में अखिलेश यादव को घेरने की कोशिश की. लेकिन मुलायम सिंह यादव ने पूरे कुनबे के साथ दौरा करके अखिलेश यादव को जिताने की भावनात्मक अपील की, जिसका असर अगल-बगल के इलाक़ों पर भी पड़ा.
अब चौथे चरण में बीजेपी अपनी खोई प्रतिष्ठा को वापस लाती है या नहीं, कहा नहीं जा सकता. सूबे में बीजेपी के खिलाफ जो लहर चल रही है अगर उसका असर अगले चुनाव तक चलता रहा तो बीजेपी की परेशानी और बढ़ेगी. अगर ऐसा हुआ तो बीजेपी की तमाम साम्प्रदायिक राजनीति को धक्का लगेगा और उसकी अगली राजनीति बाधित होगी.

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