Home ताज़ातरीन बिलक़ीस बानो मुक़दमे के मुजरिमों की रिहाई से क़ानून की सर्वोच्चता अप्रभावी होंगे : जमाअत इस्लामी हिन्द

बिलक़ीस बानो मुक़दमे के मुजरिमों की रिहाई से क़ानून की सर्वोच्चता अप्रभावी होंगे : जमाअत इस्लामी हिन्द

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बिलक़ीस बानो मुक़दमे के मुजरिमों की रिहाई से क़ानून की सर्वोच्चता अप्रभावी होंगे : जमाअत इस्लामी हिन्द

 

नई दिल्ली, 03 अगस्त, बिलक़ीस बानो सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में दोषियों और उम्रकैद की सजा पाने वालों की रिहाई और गुजरात सरकार की भूमिका एक शर्मनाक मामला है. ‘आम माफ़ी’ की आड़ में यह फैसला अपराध करने वालों का हौसला बढ़ायेगा. अफ़सोस की बात यह है कि कुछ लोग इस घिनौने अपराध करने वालों का सामान कर रहे है. ये अनुरोध जमाअत इस्लामी हिन्द के महिला विंग कि ओर से राष्ट्रपति से इस मामले में हस्तक्षेप करने और दोषियों की रिहाई के फैसले को पलटने के लिए पीएम और गृह मंत्री के माध्यम से गुजरात सरकार को निर्देश देने का की है, ताकि न्याय और शासन की व्यवस्था को पंगु और अप्रभावी होने से बचाया जा सके. ये बातें जमाअत इस्लामी हिन्द के उपाध्यक्ष प्रोफेसर मोहम्मद सलीम इंजीनीर जमाअत के मुख्यालय में आयोजित मासिक प्रेस कांफ्रेंस में कहीं. उन्होंने बताया कि देश में आत्महत्या के बढ़ते रुझान ने संवेदनशील शहरियों में चिंता बढ़ा दी है. 1967 के बाद 2021 में आत्महत्या से होने वाली मौतों की उच्चतम दर देखी गई. डेटा से पता चलता है कि आत्महत्या करने वालों में दो-तिहाई हिस्सा समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (जिनकी वार्षिक आय 1 लाख रुपये से कम है) का है. पेशे के अनुसार आत्महत्याओं को वर्गीकृत करने से पता चलता है कि स्वरोजगार (उद्यमियों), छात्रों, किसानों और खेतिहर मजदूरों में आत्महत्या की दर सबसे अधिक थी. आत्महत्या करने वालों में सबसे अधिक प्रतिशत दैनिक मज़दूरों का है. प्रोफेसर सलीम इंजीनीर ने कहा कि 2020 की तुलना में 2021 में एससी और एसटी के खिलाफ भी अपराध में वृद्धि हुई. आंकड़ों से पता चलता है कि उत्तर प्रदेश में एससी के खिलाफ सबसे अधिक अत्याचार हुए, इसके बाद सिलसिलेवार राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार और ओडिशा की स्थिति है. इन पांच राज्यों में अनुसूचित जाति के खिलाफ अत्याचार के 70% मामले दर्ज किए गए. उन्हों ने बताया कि देश में न्याय देने में असाधारण देरी होती है. सरकार ने संसद में स्वयं स्वीकार किया कि देश के विभिन्न न्यायालयों में 4.70 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं. मीडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, कृषि क्षेत्र में हर दिन लगभग 30 लोग आत्महत्या करते हैं. किसान की आत्महत्या का प्रमुख कारण स्थानीय साहूकारों से उच्च ब्याज दरों के ऋणों का प्रचलन है. कई मामलों में किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) नहीं मिलता है. छोटे और सीमांत किसान ज़रुरत भर भी रसायन, उर्वरक, बीज और उपकरण जैसे ट्रैक्टर और सबमर्सिबल पंप खरीदने का का सामर्थ्य नहीं रखते. मीडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, कृषि क्षेत्र में हर दिन लगभग 30 लोग आत्महत्या करते हैं. सरकार को किसानों की आय दोगुनी करने के अपने वादे को पूरा करना चाहिए और कृषि संकट को हल करने की योजना पर एक श्वेत पत्र जारी करना चाहिए.

एक सवाल के जवाब में उन्हों ने कहा कि असं या अन्य राज्यों में मदरसों के खिलाफ बदले कि कार्रवाई या उन्हें बंद करना ग़लत है कुछ मदरसे फ़र्ज़ी हो सकते है. इसका यह अर्थ नहीं कि तमाम मदरसों के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी जाए.

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पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.

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