Sunday, October 6, 2024
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पिछले दो सालों में पुलिस कस्टडी में 4484 मौतें, 233 लोग एनकाउंटर के शिकार 

 

इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के लोकसभा सदस्य, सांसद अब्दुस्समद समदानी के एक प्रश्न का उत्तर देते हुए, गृह मंत्रालय ने लोकसभा में मंगलवार को यह जानकारी दी है कि पिछले दो सालों में पुलिस कस्टडी में कुल 4,484 मौतें हुईं, जबकि 233 लोग एनकाउंटर में मारे गए. इनमें सबसे शीर्ष पर उत्तर प्रदेश, फिर पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश हैं, जहां पुलिस हिरासत में सबसे ज्यादा मौतें दर्ज की गईं.

वहीं, माओवादी प्रभावित छत्तीसगढ़ और जम्मू-कश्मीर में एनकाउंर के कारण सबसे अधिक मौतें दर्ज की गई हैं. बता दें कि ये आंकड़े एनएचआरसी के अनुसार एक रिपोर्ट द्वारा पेश किए गए है. जिसमें 1 अप्रैल, 2020 से 31 मार्च 2022 तक के आंकड़े शामिल हैं.

इसमें कहा गया कि 2020-21 के दौरान कुल 1,940 मौतें हुईं, जबकि 2021-22 में ऐसे 2,544 मामले दर्ज किए गए. 2020-21 में इस मामले में उत्तर प्रदेश शीर्ष पर था और इस दौरान 451 लोगों की मौत हुईं. इसके बाद पश्चिम बंगाल में 185 और मप्र में 163 लोगों की मौत हुई. 2021-22 में यूपी फिर से 501 मौतों के साथ सबसे ऊपर रहा, इसके बाद बंगाल 257 पर और एमपी 201 पर था.

2020-21 में पुलिस एनकाउंटर में 82 मौतें हुईं, जबकि 2021-22 में 151 मामले दर्ज किए गए. 2020-21 में सबसे अधिक पुलिस मुठभेड़ में मौतें माओवादी प्रभावित छत्तीसगढ़ में दर्ज की गईं, जबकि इस दौरान केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर में पुलिस एनकाउंटर में 45 मौतें हुई हैं. मानव अधिकारों के मुद्दे पर मंत्रालय ने कहा कि पुलिस और सार्वजनिक व्यवस्था भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार राज्य के विषय हैं. यह मुख्य रूप से संबंधित राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वह नागरिकों के मानवाधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करे.

मंत्रालय ने कहा कि जब एनएचआरसी को कथित मानवाधिकार उल्लंघन की शिकायतें प्राप्त होती हैं, तो आयोग द्वारा मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के तहत निर्धारित प्रावधानों के अनुसार कार्रवाई की जाती है. जवाब में कहा गया, “मानव अधिकारों की बेहतर समझ और विशेष रूप से पुलिस कस्टडी में लोगों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए लोक सेवकों को संवेदनशील बनाने के लिए एनएचआरसी द्वारा समय-समय पर कार्यशालाएं/सेमिनार भी आयोजित किए जाते हैं.”

Anzarul Bari
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पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.
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