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क्या मुफ्त वादों पर चलेगा सुप्रीम कोर्ट का डंडा ?

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क्या मुफ्त वादों पर चलेगा सुप्रीम कोर्ट का डंडा ?

कहावत है कि जब जनता लोभी हो जाती है तो सरकार ठगी का सहारा लेती है. भारतीय राजनीति का यह अद्भुत सच है. देश की मौलिक समस्या आज तक किसी सरकार ने दूर करने की कोशिश नहीं की. लेकिन हर चुनाव में फ्री के वादे इतने कर दिए जाते हैं कि जनता अपनी मौलिक समस्या को भूलकर फ्री वादों पर वोट डालने पहुँच जाती है. इसे आप फ्री वादों के जरिए लोकतंत्र को हड़पने का खेल कह सकते हैं. अब लम्बे समय के बाद सुप्रीम कोर्ट में यह मामला पहुंचा है और अदालत इस पर सुनवाई भी कर रही है. इस मसले पर लगातार सुनवाई चल रही है और आज भी इस मसले पर सुनवाई होनी है. माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट इस मसले को बड़े बेंच को भेज सकती है.
सुनवाई के दौरान वकील विकास सिंह ने कहा कि मुफ्त वादों के चलते देश दिवालिया होने की स्थिति में है. इस पर सीजेआई रमना ने कहा कि- मान लीजिए कोई वादा कर दूं कि चुनाव जीतने पर लोगों को सिंगापुर भेज दूंगा. तो चुनाव आयोग इस पर कैसे रोक सकता है.
देशभर में फ्री स्कीम्स पर बहस के बीच कोर्ट इसकी परिभाषा तय करने की तैयारी में है. हालांकि तमाम राजनीतिक दल चुनावी मैदान में फ्री स्कीम्स का ऐलान करते रहे हैं. 2014 में जहां बीजेपी और कांग्रेस की तरफ से कम से कम तीन-तीन ऐसी स्कीम्स की बात कही गई थी, जिनमें कुछ न कुछ मुफ्त दिया जाना था. हालांकि, 2019 के चुनाव में दोनों ही पार्टियों की तरफ से ऐसे ऐलान नहीं किए गए, जिन्हें सीधे-सीधे मुफ्त स्कीम्स में शामिल किया जा सके. दोनों ही बार बड़े अंतर से बीजेपी ने जीत दर्ज की.
अब 8 राज्यों के विधानसभा चुनाव को देखकर यह समझने की कोशिश करते हैं कि राज्यों में मुफ्त स्कीम्स या फ्री बीज के वादे से पॉलिटिकल पार्टियों को कितना फायदा मिलता है.
देश में सबसे ताजा विधानसभा चुनाव उत्तर प्रदेश में इसी साल यानी 2022 में हुआ है. कुल 403 सीटों के लिए हुए चुनाव में बीजेपी, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस तीनों ने ही मुफ्त स्कीम्स की झड़ी लगा दी. नतीजे आए, तो कुल 430 सीटों में से बीजेपी को 255 सीटें मिलीं, जबकि सपा ने 111 सीटें हासिल कीं. वहीं, कांग्रेस महज दो सीटों पर सिमट गई.
उत्तर प्रदेश से ठीक पहले 2021 में बिहार विधानसभा के लिए चुनाव हुआ. चुनावी मैदान में आरजेडी, जदयू, बीजेपी और कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टियां थीं. इनमें आरजेडी और कांग्रेस एक साथ थे, तो बीजेपी और जदयू का गठबंधन था. जदयू को छोड़कर बाकी पार्टियों ने नौकरियां, पेंशन, कर्ज माफी जैसे वादे किए थे.
नतीजे आए तो कुल 243 सीटों में से 76 सीटें हासिल कर राजद सबसे बड़ी पार्टी बनी, जबकि बीजेपी 75 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर रही. जदयू को 45 सीटें मिली थीं. वहीं, कांग्रेस 19 सीटों पर ही जीत सकी थी. हालांकि बाद में नीतीश कुमार ने बीजेपी का साथ छोड़कर राजद और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना ली.
मध्य प्रदेश में 2018 में हुए चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच मुकाबला था. कांग्रेस ने किसानों की कर्ज माफी का वादा किया और बेरोजगारी भत्ता देने की बात भी कही. दूसरी तरफ बीजेपी ने भी बेरोजगारी भत्ते को चुनावी स्कीम्स में शामिल तो किया, लेकिन उसका नाम अनुदान कर दिया. साथ ही स्टूडेंट्स को स्कूटी और लैपटॉप देने जैसे वादे भी किए. चुनाव नतीजे आए तो कुल 230 सीटों में से कांग्रेस ने 114 सीटें जीतीं, तो बीजेपी ने 109 सीटों पर जीत दर्ज की. यहां कांग्रेस ने सरकार बनाई, जो 15 महीने बाद गिर गई और राज्य में एक बार फिर बीजेपी की सरकार बन गई.
मध्य प्रदेश के साथ राजस्थान में भी विधानसभा चुनाव हुआ था. इस चुनाव में कांग्रेस का जोर किसानों की कर्ज माफी और बुजुर्ग किसानों को पेंशन देने पर था. वहीं, बीजेपी ने बेरोजगारों को 5 हजार रुपए बेरोजगारी भत्ता देने का वादा किया था. साथ ही हर साल 30 हजार सरकारी नौकरियों की बात भी कही थी. चुनाव परिणाम आए तो कुल 200 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस ने 100 सीटों पर जीत हासिल की, तो वहीं बीजेपी ने 73 सीटें जीतीं. यहां बीजेपी को सत्ता से हटाकर कांग्रेस ने सरकार बनाई.
छत्तीसगढ़ विधानसभा का चुनाव भी 2018 में ही हुआ था. यहां कांग्रेस ने किसानों की कर्ज माफी और बिजली बिल आधा करने का वादा किया. साथ ही राज्य के 10 लाख बेरोजगार युवाओं को भत्ता देने की बात कही. दूसरी तरफ बीजेपी ने दो लाख किसानों को फ्री पंप कनेक्शन देने और भूमिहीन किसानों को हर महीने एक हजार रुपए पेंशन देने की बात कही थी.
चुनाव नतीजों में राज्य की कुल 90 सीटों में से कांग्रेस ने 63 सीटों पर जीत हासिल की, जबकि बीजेपी राज्य में महज 15 सीटों पर सिमट गई. यहां भी बीजेपी को सत्ता से हटाकर कांग्रेस ने सरकार बनाई थी.
अब देश की हिंदी पट्टी के पांच राज्यों से इतर तीन और बड़े राज्यों के विधानसभा चुनाव पर नजर डाल लेते हैं, पिछले विधानसभा चुनाव में इन तीनों ही राज्यों में पहले से सत्ता में काबिज रहीं पार्टियों ने ही जीत दर्ज की है.
मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव से एक साल पहले गुजरात में विधानसभा चुनाव हुआ था. इस चुनाव में कांग्रेस ने किसानों की कर्ज माफी और बिजली बिल आधे करने की बात कही थी. साथ ही गरीब परिवारों के लिए 20 लाख फ्लैट बनाने का वादा भी किया था. इतना ही नहीं, हायर एजुकेशन के लिए जाने वाले स्टूडेंट्स को स्मार्टफोन और लैपटॉप देने को भी कहा था. दूसरी तरफ राज्य की सत्ता पर काबिज बीजेपी ने किसी फ्री स्कीम का वादा तो नहीं किया, लेकिन सस्ती दवा दुकानें और मोहल्ला क्लीनिक खोलने की बात जरूर कही.
चुनाव परिणाम आए तो राज्य विधानसभा की कुल 182 सीटों में से बीजेपी ने कुल 99 सीटें जीतीं, वहीं कांग्रेस के खाते में कुल 82 सीटें ही आईं. चुनाव में कांग्रेस से कड़ी टक्कर मिलने के बावजूद बीजेपी ने राज्य में एक बार फिर सरकार बनाई.
पश्चिम बंगाल में 2021 में विधानसभा चुनाव हुआ. यहां ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने किसानों को सालाना 10 हजार रुपए देने की बात कही. वहीं, एससी -एसटी महिलाओं को सालाना 12 हजार रुपए और ओबीसी महिलाओं को सालाना 6 हजार रुपए देने का वादा भी किया. इधर, बीजेपी ने मछुआरों को सालाना 6 हजार रुपए देने का ऐलान किया. वहीं, महिलाओं को 33% आरक्षण और विधवा पेंशन 3 हजार रुपए करने का वादा भी किया.
चुनाव के नतीजे आए, तो राज्य की कुल 294 सीटों में से तृणमूल कांग्रेस ने 215 सीटों पर जीत हासिल की. वहीं, बीजेपी को 77 सीटें हासिल हुईं. इसके बाद बंगाल में एक बार फिर ममता बनर्जी की अगुआई में तृणमूल कांग्रेस की सरकार बनी.
ओडिशा में 2019 में विधानसभा चुनाव हुआ था. इस चुनाव में बीजू जनता दल (बीजद) ने राज्य के भूमिहीन किसानों को हर महीने 12 हजार रुपए देने का वादा किया था. साथ ही किसानों को भी 10 हजार रुपए की मदद देने की बात कही थी. राज्य के सभी स्कूल-कॉलेजों में मुफ्त वाई-फाई देने का वादा भी किया था. इधर, बीजेपी ने 12वीं पास करने वाली छात्राओं को स्कूटी और किसानों को हर महीने तीन हजार रुपए की पेंशन देने की बात कही थी.
चुनाव नतीजे आए, तो राज्य की कुल 147 सीटों में से बीजद ने 112 सीटें जीतीं, जबकि बीजेपी को 23 सीटें मिलीं. यहां राज्य की सत्ता में रही बीजद ने नवीन पटनायक की अगुआई में एक बार फिर सरकार बनाई.

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पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.

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