बिहार में एक बार फिर से राजनीतिक अपने उबाल है. जदयू के भीतर सबकुछ ठीक नहीं है तो बिहार एनडीए को लेकर भी अब सहज भाव नहीं दिख रहा है. जदयू के पूर्व अध्यक्ष और अनुमति के केंद्र में मंत्री रहे आरसीपी सिंह के इस्तीफे के बाद जिस तरह से आरसीपी सिंह को भ्रष्टाचार के मामले में जदयू ने घेरा है. वह बहुत कुछ कह रहा है. हालांकि इस एक्शन के बाद सीएम नीतीश कुमार पर भी उंगुलियां उठ रही है. लेकिन माना जा रहा है कि अब बिहार में सत्ता बदलाव की तैयारी चल रही है. एनडीए के भीतर सबकुछ ठीक नहीं है. और खबर है कि नीतीश कुमार का भी अब बीजेपी से मोह भंग हो गया है. राजद के साथ नजदीकियां बढ़ रही है. उधर राजद विधायकों की बैठकें जारी है, तो जदयू विधायकों को भी पटना में बुलाया गया है. क्या कुछ होगा कहना मुश्किल है ? लेकिन एक बात तो साफ़ हो गई है कि एनडीए में अब एक दूसरे पर विश्वास नहीं रहा. एक खबर यह भी आ रही है कि नीतीश कुमार ने सोनिया गाँधी से संपर्क साधा है. सच्चाई क्या है? इसकी पुष्टि नहीं जा सकती है. बीजेपी और जदयू में तनाव बढ़ा है. इसे सब जान रहे हैं. जेडीयू और बीजेपी में के बीच का ये तनाव साल 2020 के विधानसभा चुनाव के बाद से ही बढ़ता हुआ दिखाई दिया है. सबसे पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल में हिस्से को लेकर दोनों सियासी दलों में विवाद दिखा था. हालांकि तब जेडीयू ने इशारों में हिस्सेदारी के ऑफर को ठुकरा दिया था. आइए हम आपको बताते हैं कि दोनों दलों के बीच तनाव बढ़ने के 5 बड़े और अहम क्या हैं ?
नीतीश कुमार चाहते हैं कि बिहार विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा को हटा दिया जाए. मुख्यमंत्री ने विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा पर कई बार आपा खोया है. नीतीश कुमार ने अपनी सरकार के खिलाफ विजय कुमार के सवाल उठाकर संविधान का खुले तौर पर उल्लंघन करने का आरोप लगाया है.
नीतीश कुमार अपनी पार्टी जद (यू) को जून 2019 में नरेंद्र मोदी सरकार में केवल एक ही केंद्रीय मंत्री के पद की पेशकश के बाद से परेशान हैं. उन्होंने बिहार के विस्तारित मंत्रिमंडल में अपने पार्टी के आठ सहयोगियों को शामिल करके इसका पलटवार किया था और एक को बीजेपी नेता के लिए खाली छोड़ दिया था.
जद (यू) प्रमुख राज्य और राष्ट्रीय चुनाव एक साथ कराने के खिलाफ हैं. राज्यों और संसद के चुनाव एक साथ कराने का विचार पीएम मोदी ने किया था, जिसका विपक्ष ने कड़ा विरोध किया है. यह उन मुद्दों में से एक था जहां जद (यू) को विपक्ष के साथ जमीन मिली.
खबरों के मुताबिक नीतीश कुमार अपने मंत्रिमंडल में बीजेपी के मंत्रियों के चयन में एक बड़ा हिस्सा चाहते थे. उनका यह कदम गृह मंत्री अमित शाह की बिहार पर कथित पकड़ को कमजोर करेगा. उदाहरण के लिए बीजेपी के सुशील मोदी, जो नीतीश कुमार के साथ काफी वर्षों तक बिहार के उप मुख्यमंत्री रहे थे, उन को बीजेपी की पार्टी नेतृत्व ने बिहार से बाहर कर दिया.
नीतीश कुमार बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के सहयोगी दलों के नेताओं को केंद्रीय मंत्री के रूप में सांकेतिक प्रतिनिधित्व देने से नाराज हैं. पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह ने केंद्रीय मंत्री बनने के लिए नीतीश कुमार को दरकिनार करते हुए बीजेपी नेतृत्व से सीधे बातचीत की थी. शनिवार (6 अगस्त) को उन्होंने पार्टी छोड़ दी थी. इस बात को लेकर रविवार (7 अगस्त) को जदयू के मौजूदा अध्यक्ष ललन सिंह ने उन पर और बीजेपी का नाम लिए बिना हमला भी बोला था. ललन सिंह ने कहा था, “केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने की क्या जरूरत है? मुख्यमंत्री ने 2019 में फैसला किया था कि हम केंद्रीय मंत्रिमंडल का हिस्सा नहीं होंगे.”
अब सबकी निगाहें नीतीश कुमार के अगले कदम पर है. जदयू के नेता इशारों में कह रहे हैं कि बीजेपी ने पहले चिराग के साथ मिलकर जदयू को चुनाव में कमजोर किया और अब आरसीपी के साथ मिलकर जदयू को ख़त्म करना चाहती है. पार्टी अध्यक्ष लल्लन सिंह अपने बयानों में बहुत कुछ कहते नजर आते हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि बिहार में बड़े बदलाव की सम्भावना है. यह सब अगले लोकसभा चुनाव को लेकर किया जा सकता है.