कांग्रेस की हालत के बारे तो यही कहा जा सकता है कि वह दो कदम आगे बढ़ती है तो चार कदम पीछे हट जाती है. पार्टी अध्यक्ष के चुनाव को लेकर पार्टी के भीतर घमासान मचा हुआ है. गाँधी परिवार के भीतर से कोई भी अध्यक्ष बनने को तैयार नहीं है. गैर गाँधी परिवार से आधा दर्जन लोग अध्यक्ष पद के लिए लाइन लगाए खड़े हैं. लेकिन कांग्रेस की चिंता केवल अध्यक्ष बनाने तक ही सिमित नहीं है. पार्टी की चिंता अगले चुनाव में बेहतर करने की है, ताकि बीजेपी को मात दी जा सके. यह बात और है कि पार्टी के भीतर आज भी राहुल गाँधी को मनाने की कोशिश चल रही है. लेकिन वो अध्यक्ष बनने को तैयार नहीं है. एक खबर यह भी आ रही है कि गैर गाँधी परिवार के हाथ में पार्टी की बागडोर जाते ही, पार्टी टूट सकती है. ऐसे में एक कोशिश यह भी की जा रही है कि सोनिया गाँधी को ही अध्यक्ष बनाये रखा जाए और उनके सहयोग के लिए दो कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्ति किए जाएं. लेकिन यह सब एक सोच तक ही सिमित है. आगे क्या होगा इसे देखना बाकी है लेकिन सत्ता पक्ष की नजरें कांग्रेस के हर चाल पर टिकी है.
उधर पार्टी के भीतर अब भी सबकुछ ठीक नहीं है. हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस को झटका देते हुए उसके वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने रविवार को राज्य के लिए पार्टी की संचालन समिति के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. सूत्रों ने बताया कि शर्मा ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को लिखे एक पत्र में कहा है कि वह अपने आत्मसम्मान से समझौता नहीं कर सकते हैं, और इसलिए इस्तीफा दे रहे हैं. उनका इस्तीफा जी 23 समूह के एक अन्य नेता गुलाम नबी आजाद के कुछ दिनों पहले जम्मू-कश्मीर में अभियान समिति के अध्यक्ष के पद से इस्तीफा देने के तुरंत बाद आया है. उनके इस्तीफे के कई मायने निकाले जा रहे हैं.
आनंद शर्मा ने कांग्रेस प्रमुख से कहा है कि परामर्श प्रक्रिया में उनकी उपेक्षा की गई है. हालांकि, उन्होंने सोनिया गांधी से कहा कि वह राज्य में पार्टी उम्मीदवारों के लिए प्रचार करना जारी रखेंगे. पूर्व केंद्रीय मंत्री और राज्यसभा में कांग्रेस के उपनेता को 26 अप्रैल को हिमाचल प्रदेश में संचालन समिति के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था. आजाद और शर्मा दोनों ही जी 23 समूह के प्रमुख नेताओं में शामिल हैं, जो पार्टी नेतृत्व के फैसलों के आलोचक रहे हैं.
भूपेंद्र सिंह हुड्डा और मनीष तिवारी सहित प्रमुख दिग्गजों का समूह ब्लॉक से लेकर सीडब्ल्यूसी स्तर तक वास्तविक चुनावों पर जोर देता रहा है. शर्मा, जिन्हें हिमाचल प्रदेश के सबसे बड़े नेताओं में से एक माना जाता है, ने कथित तौर पर कांग्रेस अध्यक्ष को अपने पत्र में कहा है कि उनके स्वाभिमान को ठेस पहुंची है. क्योंकि उन्हें पार्टी की किसी भी बैठक के लिए परामर्श या आमंत्रित नहीं किया गया है.
कांग्रेस इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों में हिमाचल प्रदेश में बीजेपी से सत्ता हथियाने की कोशिश कर रही है. शर्मा, जिन्होंने पहली बार 1982 में विधानसभा चुनाव लड़ा था और 1984 में तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी द्वारा उन्हें राज्यसभा का टिकट दिया गया था, तब से राज्यसभा सदस्य हैं और पार्टी में कई प्रमुख पदों पर रहे हैं.
आगे क्या होगा कोई नहीं जानता. लेकिन कांग्रेस के भीतर सब कुछ ठीक नहीं है. अगर पार्टी के वरिष्ठ और बुजुर्ग नेता ऐसे ही पार्टी से नाराज होते रहे तो राहुल गाँधी का अभियान कभी सफल नहीं हो सकता और पार्टी की दुर्गति निश्चित है.