अखिलेश अखिल
बीते मानसून सत्र में गरीबी पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री ने बताया था कि गरीबी को लेकर पिछले एक दशक में कोई आंकलन नही हुआ है. वर्ष 2011 – 2012 में जारी हुए आंकलन में देश में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या 27 करोड़ थी. सरकार ने कहा कि मौजूदा समय में देश में गरीबों की संख्या कुल आबादी की 22 फीसदी है. लेकिन संयुक्त राष्ट्र की हालिया रिपोर्ट कहती है कि भारत ने गरीबी उन्मूलन की कोशिश तो खूब की है लेकिन अभी भी यहां 23 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं. यह भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. हालाकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पिछले तीन सालों के आंकड़े इसमें शामिल नहीं है. अगर इसे भी जोड़ा जाए तो गरीबों की संख्या में भरी बढ़ोतरी हो सकती है.
संयुक्त राष्ट्र की ये रिपोर्ट तब आई है जब पिछले दो साल से सरकार करीब 80 करोड़ लोगो को मुफ्त अनाज देने की बात करती है. सरकार का दावा है कि कोरोना काल में अगर ये अनाज नहीं दिए जाते तो देश भुखमरी की शिकार होता. लेकिन सरकार के इस दावे में भी एक सवाल है. क्या भारत की स्थिति इतनी खराब है कि मुफ्त अनाज नहीं मिलने पर 80 करोड़ लोग भुखमरी के शिकार होते ? यानी देश के 80 करोड़ लोग भी गरीब हैं और उनके पास खाने की कोई अन्य व्यवस्था नहीं है. जाहिर है ये 80 करोड़ लोग बेकार है, बेरोजगार है. और कमाई के किसी भी साधन से अलग.
इसकी तस्दीक अभी हालिया हंगर इंडेक्स से भी हुई है. ग्लोबल हंगर इंडेक्स में कहा गया है कि भारत दुनिया के उन गरीब देशों में भी सबसे नीचे है. जहां भुखमरी की समस्या है. हंगर इंडेक्स में शामिल कुल 123 देशों की सूची में भारत का स्थान 107 भूखे देशों में शामिल है. रिपोर्ट के मुताबिक अफगानिस्तान को छोड़कर भारत के सभी पड़ोसी देशों की हालत हमसे बेहतर है. वहां भारत से कम भुखमरी है. याद रहे 2014 में हंगर इंडेक्स में भारत की स्थिति 55 वे स्थान पर थी.
ऐसे में साफ लगता है कि भारत के भीतर भी दो देश है. एक इंडिया है जो अमीरों का देश है, और एक भारत जैसा गरीब देश है जो गांव से लेकर शहर में बसा तो दिखता है लेकिन उसके पास भूख, गरीबी, कुपोषण, बेकरी, कर्ज और उपेक्षा के अलावा कुछ भी नही. यह भारत झुंड के झुंड नेताओं के लिए वोट तो डालता है, लेकिन पाता कुछ भी नही. कहने के लिए सरकार की सभी योजनाएं भारत के लिए बनती है, लेकिन इंडिया उसे लूट खाता है, और इस लूट में नेता, राजनीति, नौकरशाह और कॉरपोरेट सबकी बराबर भागीदारी है. कह सकते है कि गरीब भारत के लिए यह विष काल है तो इंडिया के लिए अमृतलाल.
कुछ पीछे चले तो इंडिया और भारत की तस्वीर सामने झलकती भी है. एक रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय अरबपतियों की संपत्ति में 2018 में प्रतिदिन 2,200 करोड़ रुपये का इजाफा हुआ है. इस दौरान, देश के शीर्ष एक प्रतिशत अमीरों की संपत्ति में 39 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. जबकि 50 प्रतिशत गरीब आबादी की संपत्ति में महज तीन प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. ऑक्सफैम की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के शीर्ष नौ अमीरों की संपत्ति पचास प्रतिशत गरीब आबादी की संपत्ति के बराबर है.
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में रहने वाले 13.6 करोड़ लोग साल 2004 से कर्जदार बने हुए हैं. यह देश की सबसे गरीब 10 प्रतिशत आबादी है. जाहिर है कि चार साल में आज इसमें बढ़ोतरी हुई होगी.
ऑक्सफैम ने दावोस में मंच की सालाना बैठक के लिए जुटे दुनिया भर के राजनीतिक और व्यावसायिक नेताओं से आग्रह किया था कि वो अमीर और गरीब लोगों के बीच बढ़ रही खाई को पाटने के लिए तत्काल कदम उठाएं. क्योंकि यह बढ़ती असमानता गरीबी के खिलाफ संघर्ष को ही कमतर करके आंक नहीं रही है, बल्कि अर्थव्यवस्थाओं को चौपट कर रही है. विश्वभर में जनाक्रोश भी पैदा कर रही है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘भारत की शीर्ष 10 प्रतिशत आबादी के पास देश की कुल संपत्ति का 77.4 प्रतिशत हिस्सा है. इनमें से सिर्फ एक ही प्रतिशत आबादी के पास देश की कुल संपत्ति का 51.53 प्रतिशत हिस्सा है. वहीं, करीब 60 प्रतिशत आबादी के पास देश की सिर्फ 4.8 प्रतिशत संपत्ति है. देश के शीर्ष नौ अमीरों की संपत्ति पचास प्रतिशत गरीब आबादी की संपत्ति के बराबर है. ऑक्सफैम ने एक अनुमान के अनुसार बताया है कि 2018 से 2022 के बीच भारत में रोजाना 70 नए करोड़पति बनेंगे. ऑक्सफैम की यह रिपोर्ट आज सच के करीब है.
यूएन की ताजा रिपोर्ट में दर्ज है कि भारत के 9.7 करोड़ बच्चे 2021 में गरीबी के चंगुल में थे जो किसी भी अन्य देश में मौजूद कुल गरीबी की संख्या से भी अधिक है. रिपोर्ट बताती है कि तमाम प्रयासों के बाद भी कोविड और खाद्य ईंधन में महंगाई से दिक्कतें बढ़ी है और पौष्टिक आहार का संकट गहराया है. रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 23 करोड़ गरीबी में 90 फीसदी गांव में हैं. साल 2015 में जो दस सूबे यूपी, बिहार, झारखंड, बंगाल, मेघालय, मध्यप्रदेश, असम, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और राजस्थान सबसे गरीब थे. इनमें से केवल बंगाल ही बाहर निकल पाया है. बाकी के सूबे आज भी गोबरपट्टी में शामिल हैं. इन राज्यों में हर पांच साल पर चुनाव होते हैं और लोभ, लालच और वादों के जाल में फंसकर जनता फिर से उसी गरीबी के चक्र में फंस जाती है.