राष्ट्रपति चुनाव के लिए एनडीए उम्मीदवार रही द्रौपदी मुर्मू की जीत के बाद कई राजनीतिक सवाल अब खड़े हो गए हैं. आजाद भारत के सबसे सर्वोच्च पद पर द्रौपदी मुर्मू का आसीन होना आदिवासी समाज के लिए तो गर्व का विषय है ही, भारतीय लोकतंत्र के लिए भी यह गर्व का विषय है. अब यही उम्मीद की जा सकती है कि राष्ट्रपति के रूप में द्रौपदी मुर्मू देश के लोकतंत्र की रक्षा करेंगी और खासकर आदिवासी समाज को आगे बढ़ाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी.
लेकिन द्रौपदी मुर्मू की जीत के बाद अब यह सवाल पूछा जा रहा है कि क्या आगामी लोकसभा चुनाव में विपक्ष की हैसियत अब बीजेपी को टक्कर देने की रह गई है ? जिस तरीके से विपक्ष और खासकर कांग्रेस के विधायक, सांसदों ने राष्ट्रपति चुनाव में क्रॉस वोटिंग की है. उससे साफ़ लगता है कि आने वाले समय में कांग्रेस में सेंध लगेगी और अगले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की परेशानी और भी बढ़ सकती है.
देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति बनने जा रहीं द्रौपदी मुर्मू के चेहरे के आधार पर बीजेपी ने विपक्षी एकता में बड़ी सेंधमारी की है. मुर्मू के पक्ष में 14 राज्यों के 121 विधायकों के क्रॉस वोटिंग करने का दावा किया जा रहा है. खासतौर पर उन राज्यों में क्रॉस वोटिंग ज्यादा हुई है, जहां पर कांग्रेस सत्ता पक्ष या विपक्ष में है. इसके अलावा 17 सांसदों ने भी इस राष्ट्रपति चुनाव में क्रॉस वोटिंग की है.
वर्ष 2022, 2023 और 2024 में होने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनाव के संदर्भ में कांग्रेस के लिए यह खतरे की घंटी है. दिलचस्प यह है कि मुर्मू की जीत के जश्न को जिस तरह से देशभर में बीजेपी मना रही है, यह भी एक बड़ा राजनीतिक मैसेज है. अब इस मैसेज का तोड़ न तो कांग्रेस के पास है और न ही विपक्ष के पास. बीजेपी के इस मैसेज के दो पहलु हैं. पहला तो ये है कि बीजेपी ने पहली दफा किसी आदिवासी समाज की महिला को राष्ट्रपति बनाया है. इससे देश के अधिकतर आदिवासी जो अब तक बीजेपी से कटे हुए थे, वो भी बीजेपी के साथ आ सकते हैं. दूसरा मैसेज है, महिलाओं के लिए. बीजेपी ने कई ऐसी योजनाएं शुरू की है. जिसका प्रभाव महिलाओं पर पड़ा है. और महिलाएं भारी संख्या में बीजेपी की वोटर बनी है. द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के बाद देश की महिलाओं को यह मैसेज देने की कोशिश की गई है कि बीजेपी किसी को उच्च पद पर बैठा सकती है. आगामी चुनाव में इसका बड़ा असर देखने को मिल सकता है. बीजेपी के इस खेल का सबसे बड़ा असर उन राज्यों पर पडेगा. जहां आदिवासी आबादी ज्यादा है. कई राज्य भी बीजेपी के इस खेल से प्रभावित होंगे.
जहाँ तक क्रॉस वोटिंग का सवाल है, सबसे ज्यादा क्रॉस वोटिंग असम में हुई है. हालांकि असम में बीजेपी की सरकार है, लेकिन जिस तरह से कांग्रेस वहाँ संघर्ष कर रही है, क्रॉस वोटिंग के बाद पार्टी में टूट की सम्भावना भी बढ़ गई है. असम में छह फीसदी आबादी आदिवासी समाज की है. राज्य की कई सीटों पर आदिवासी समाज का प्रभाव है. लगातार दो टर्म से कांग्रेस यहां विपक्ष में है. विपक्ष के पास यहां 39 विधायक हैं. इसमें से 25 कांग्रेस के है, जबकि 22 विधायकों ने मुर्मू के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की है. इससे साफ है कि असम के विधायक यशवंत सिन्हा काे प्रत्याशी बनाए जाने से नाराज थे, जिसके कारण उन्हें मजबूर होकर क्रास वोटिंग करना पड़ा. कांग्रेस विधायकों की इस क्रॉस वोटिंग के बाद कांग्रेस को सोचना पड़ेगा.
मध्य प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में से 47 सीटें आदिवासी समाज के लिए आरक्षित हैं. यहां कांग्रेस और विपक्ष के पास 100 विधायक हैं, जबकि वोट 79 ही पड़े. बीजेपी प्रत्याशी के पक्ष में 146 वोट मिले. बताया जा रहा है कि 19 विधायकों ने क्रॉस वोट की है. अगले साल 2023 में यहां विधानसभा के चुनाव भी होंगे. इस लिहाज से कांग्रेस लिए यह अच्छा संकेत नहीं है, जबकि बीजेपी आदिवासी समाज से राष्ट्रपति बनाने के मामले को सियासी तौर पर भुनाने की पूरी कोशिश करेगी. यहां कांग्रेस के लिए बड़ा राज्य है.
राजस्थान की 200 विधानसभा सीटों में से द्रौपद्री मुर्मू के पक्ष में 75 वोट पड़े हैं. जबकि, यहां बीजेपी के पास 70 ही विधायक हैं. ऐसे में पांच वोट अतिरिक्त मिले हैं. इसमें से तीन तो नागौर से सांसद हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी के है. बेनीवाल ने पहले ही यशवंत सिन्हा को वोट न देने के लिए कहा था, जबकि दो वोट सत्ता पक्ष के खेमे से मुर्मू को मिले. राज्यसभा चुनाव के दौरान क्रॉस वोटिंग करने के लिए बीजेपी ने शोभा रानी कुशवाहा को पार्टी से निकाल दिया था. यशवंत सिन्हा को 123 वोट ही मिले.
मध्य प्रदेश के साथ ही छत्तीसगढ़ में भी विधानसभा चुनाव एक साल बाद 2023 में होंगे. इस राज्य में भी आदिवासी समाज का अच्छा प्रभाव है. यहां कांग्रेस की सरकार है. कांग्रेस के 69 विधायक हैं, लेकिन यहां छह वोट बीजेपी को अतिरिक्त मिले हैं. बताया जा रहा है कि छह विधायकों ने क्रॉस वोट किया है. इसमें से दो वोट कांग्रेस के भी शामिल हैं. ऐसे में बीजेपी, आने वाले विधानसभा चुनाव में सियासी लाभ उठाने के लिए ठोस रणनीति बनाएगी.
महाराष्ट्र में सियासी बदलाव इसी महीने हुआ है. शिवसेना के उद्धव ठाकरे के गुट ने पहले ही बीजेपी प्रत्याशी को अपना समर्थन दे दिया था. इसके बावजूद महाराष्ट्र में 16 विधायकों की ओर से क्रॉस वोट करने की खबर है. ऐसे में साफ है कि आदिवासी महिला के नाम पर कांग्रेस और NCP अपने विधायकों को भी एकजुट नहीं रख पाई. इसलिए आने वाले समय में भी कांग्रेस के लिए महाराष्ट्र में सियासी राह आसान नहीं होगी.
2017 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद से ही कांग्रेस विधायकों के टूटने का सिलसिला जारी है. 2022 विधानसभा चुनाव से पहले भी कांग्रेस में जो विधायक बच गए हैं, उनमें से कई ने आदिवासी प्रत्याशी के नाम पर पार्टी लाइन से हटकर द्रौपदी के पक्ष में वोटिंग किया. ऐसे में साफ है कि तीन महीने बाद प्रदेश में जो चुनाव होंगे, उसमें कांग्रेस के लिए आदिवासी समाज के वोट बैंक पर पकड़ बनाना अब आसान नहीं होगा. इस राज्य में 30 से 40 विधानसभा सीटों पर आदिवासी समाज का प्रभाव है.
द्रौपदी मुर्मू झारखंड की राज्यपाल रह चुकी हैं. इस राज्य के विधायकों से मुर्मू के व्यक्तिगत रिश्ते भी हैं. वैसे भी यह राज्य आदिवासी बहुल भी है, जिसको देखते हुए कांग्रेस के साथ गठबंधन की सरकार चलाते हुए भी झारखंड मुक्ति मोर्चा ने मुर्मू के पक्ष में वोटिंग करने का ऐलान किया था, जिससे राज्य के आदिवासी समाज की भावना आहत न हो. 82 सीट वाले विधानसभा में से केवल नौ वोट ही यशवंत सिन्हा को मिले, जबकि 18 विधायक कांग्रेस के और एक-एक सीटें सीपीआई – एनसीपी की हैं. 70 वोट बीजेपी प्रत्याशी को मिले. 10 विधायकों ने क्रॉस वोट किया है. ऐसे में माना जा रहा है, ज्यादातर विधायक कांग्रेस के ही होंगे.
उत्तर प्रदेश में पहले दिन से तय था कि राष्ट्रपति चुनाव में क्रॉस वोटिंग होनी तय है. यूपी में विपक्ष के लगभग 12 विधायकों की ओर से क्रॉस वोट करने का दावा किया जा रहा है. मुलायम सिंह के भाई और अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव पहले ही बोल चुके थे कि वो यशवंत सिन्हा के पक्ष में वोट नहीं करेंगे. पिछले दिनों उनकी मुलाकात यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ से भी हुई थी. इसके अलावा बिहार में 6, गोवा में 4, हिमाचल में 2, मेघालय में 7, अरुणाचल और हरियाणा में एक-एक विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की.
बता दें कि सबसे पहले विपक्ष की ओर से यशवंत सिन्हा के नाम का ऐलान राष्ट्रपति प्रत्याशी के तौर पर किया गया था. बाद में बीजेपी ने ट्रंप कार्ड के तौर पर द्रौपद्री मुर्मू का नाम घोषित किया. मुर्मू आदिवासी समाज से आती हैं. द्रौपदी का नाम सामने आते ही विपक्षी एकता में फूट पड़ गई गई. सबसे पहले बीजेडी और वाईएसआर कांग्रेस ने समर्थन देने का ऐलान किया था. उसके बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा ने समर्थन किया, जबकि झारखंड में कांग्रेस के साथ मिलकर हेमंत सोरेन सरकार चला रहे हैं. जबकि, विपक्षी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा भी झारखंड से ही चुनाव लड़ते रहे हैं. बाद में शिवसेना के उद्धव ठाकरे के गुट ने आदिवासी महिला के नाम पर समर्थन दिया था. बड़ी बात यह है कि कांग्रेस के विधायकों ने पार्टी लाइन से हटकर राष्ट्रपति चुनाव में वोटिंग की है.
हरियाणा में राज्यसभा के बाद राष्ट्रपति चुनाव में भी क्रॉस वोटिंग हुई है. क्रॉस वोटिंग के कारण ही राजस्थान कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी अजय माकन चुनाव हार गए थे, जबकि निर्दलीय प्रत्याशी को जीत मिल गई थी. अभी तक कांग्रेस इस हार से उबर भी नहीं पाई थी कि देश के कई राज्यों में बीजेपी की आदिवासी महिला प्रत्याशी के नाम पर क्रॉस वोटिंग हुई है. इसमें ज्यादातर कांग्रेस के विधायकों की ओर से क्रॉस वोटिंग की खबरें आ रही हैं.