अखिलेश अखिल
एक ज़माना था जब देश के बाहर की दुनिया के बारे में कोई ज्यादा जानकारी नहीं मिल पाती थी और ना ही कोई रखना चाहता था. लेकिन अब ऐसा नहीं है. अब दुनिया एक ग्लोबल समाज का रूप ले चुकी है. किसी भी देश की बड़ी घटना दूसरे देशों को भी प्रभावित करती है. इसलिए जब दुनिया के किसी देश में राजनीतिक और आर्थिक बदलाव के संकेत मिलते हैं, तब इस देश से संबंध रखने वाले देश के भीतर भी सरकार, उद्योगपति, कारोबारी, शिक्षा क्षेत्र से जुड़े लोग और पढ़े लिखे युवा सतर्क हो जाते हैं. मौजूदा समय में हिजाब को लेकर ईरान में नागरिक समाज सड़क पर उतरा हुआ है तो ब्रिटेन के हालिया पीएम को हटाने की संभावना भारत और यहां की सरकार के लिए काफी अहम हो गई है. सत्ता परिवर्तन की चिंगारी तो ईरान में भी भड़की हुई है. लेकिन ब्रिटेन को नई प्रधानमंत्री के खिलाफ जिस तरह से उनकी ही अपनी पार्टी के संसद खड़े है भारत के भी ये काफी अहम हो गया है.
ब्रिटेन में पीएम के खिलाफ तख्ता पलट होता दिख रहा है. उससे साफ है कि ब्रिटेन एक बार फिर से राजनीतिक संकट से जूझ रहा है. यहां हाल ही में निर्वाचित हुईं प्रधानमंत्री लिज ट्रस की कुर्सी खतरे में पड़ गई है. उन्हें इसी सप्ताह पद भी छोड़ना पड़ सकता है. डेली मेल की खबर के मुताबिक, सत्तारूढ़ कंजर्वेटिव पार्टी के 100 से ज्यादा सांसद प्रधानमंत्री लिज ट्रस के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने वाले हैं.
जानकर मान रहे हैं कि अगर ऐसा होता है तो एक महीने के अंदर ही ट्रस को कुर्सी से बेदखल होना पड़ेगा. सूत्रों के मुताबिक, पार्टी के 100 से ज्यादा सांसद ट्रस के खिलाफ जल्द ही अविश्वास प्रस्ताव को समिति के प्रमुख ग्राहम ब्रैटी को सौंपने के लिए तैयार हैं. पत्र के जरिए यह बताने की कोशिश की जाएगी कि ट्रस का समय समाप्त हो गया है, या फिर उनसे अपने समर्थन में विश्वास प्रस्ताव लाने को कहा गया जाएगा.
हालांकि अविश्वास प्रस्ताव समिति के प्रमुख ग्राहम ट्रस को एक और मौका देना चाहते हैं. ग्राहम ब्रैटी सांसदों के इस रुख का कड़ा विरोध कर रहे हैं. उनका मानना है कि ट्रस को अभी एक मौका मिलना चाहिए. उनका कहना है कि नव नियुक्त चांसलर जेरेमी हंट के साथ ट्रस को बजट में आर्थिक रणनीति तय करने का मौका मिलना चाहिए. लेकिन ट्रस के खिलाफ सांसदों का गुस्सा कम नहीं हो रहा है.
बता दें कि ट्रस सरकार द्वारा वापस ली जा चुकी टैक्स कटौती की नीति प्रधानमंत्री की छवि के लिए बेहद हानिकारक साबित हुई है. इस कारण सिर्फ पिछले हफ्ते उनकी लोकप्रियता में दस फीसदी की गिरावट आई है. अब स्थिति यह है कि 63 फीसदी से अधिक लोग ट्रस के काम से असंतुष्ट हैं, जबकि संतुष्ट लोगों की संख्या सिर्फ 16 फीसदी रह गई है. इसका कुल अर्थ यह हुआ कि उनकी लोकप्रियता -47 हो गई है. कंजरवेटिव पार्टी के लिए सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि ट्रस की लोकप्रियता ब्रेग्जिट समर्थक तबकों में तेजी से गिरी है. ये वो तबके हैं, जिन्होंने 2019 के आम चुनाव में कंजरेवेटिव पार्टी को बढ़-चढ़ कर वोट दिया था. पिछला आम चुनाव जॉनसन ने ब्रेग्जिट (यूरोपियन यूनियन से ब्रिटेन के निकलने) की प्रक्रिया पूरा करने के वादे पर लड़ा था.
ट्रस के साथ पार्टी सांसदों का आगे क्या निर्णय होता है, इस पर दुनिया की निगाह लगी है. भारत भी इसे देख रहा है. अगर ट्रस अपने पद से हटती है तो उसे सबसे कम दिनों तक प्रधानमंत्री के पद पर रहने वाली पीएम के रूप में याद किया जाएगा. लेकिन इससे जो पार्टी की लोकप्रियता में कमी आयेगी इसे लेकर पार्टी काफी सतर्क है. अब देखना है कि ट्रस के साथ क्या होता है और वहां की राजनीति क्या करवट लेती है.