अखिलेश अखिल
अगर बिहार में जातीय जनगणना की शुरुआत हो जाती है तो इसके कई परिणाम सामने आएंगे. एक तो बिहार देश का पहला राज्य होगा जो जातीय जनगणना करेगा और इसके साथ ही पहली बार मुसलमानो के भीतर की जातियां भी सामने आएँगी. जानकारी मिल रही है कि अगर जातीय जनगणना की शुरुआत बिहार में होगी तो पहली बार मुसलमानो के भीतर के दलित और ओबीसी भी चिन्हित किये जाएंगे ताकि कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उनको मिल सके. खबर के मुताबिक़ मुसलमानो के भीतर की जातियां भी चिन्हित हों, इसको लेकर बिहार की सभी पार्टियां भी लगभग सहमत दिख रही है.
बता दें कि बिहार में जातीय जनगणना को लेकर 1 जून को सर्वदलीय बैठक होने जा रही है. इससे पहले बिहार राज्य की प्रमुख राजनीतिक पार्टियों के नेताओं ने इंडियन एक्सप्रेस के साथ बातचीत के दौरान कहा कि वो सूबे में प्रस्तावित जातीय जनगणना में मुसलमानों की जातियां गिनने का समर्थन करते हैं.
जेडीयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी ने बताया कि मंडल आयोग ने मुसलमानों के बीच ओबीसी की विधिवत पहचान की. उन्होंने कहा कि जातीय जनगणना या सर्वेक्षण में सभी जातियों को गिनती होनी चाहिए. त्यागी ने कहा कि हालांकि इस तरह के सर्वेक्षण की संवैधानिक वैधता पर सवाल हो सकते हैं, राज्य सरकार नौकरी आरक्षण के लिए अपनी सूची में डेटा का उपयोग कर सकती है.
बिहार बीजेपी, जिसने अपने कुछ केंद्रीय नेताओं को इस मुद्दे पर मतभेद देखा है, ने भी इस विचार का समर्थन किया. बिहार बीजेपी अध्यक्ष डॉ संजय जायसवाल ने कहा कि मुसलमानों में भी जातियों की गिनती की जानी चाहिए. जब आप ओबीसी और ईबीसी (अत्यंत पिछड़ा वर्ग) आरक्षण (मुसलमानों को) दे रहे हैं, तो यह उनकी संख्या से भी उचित होना चाहिए.
चिराग पासवान ने भी कहा कि हमने मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यक समूहों के बीच जातियों की गिनती करने का विचार रखा, क्योंकि हमारे पास एक संघीय ढांचा है और राज्य और केंद्रीय सूचियां हैं. जब तक हम किसी जाति समूह में लाभार्थियों की सही संख्या नहीं जानते, तब तक आरक्षण और कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उन तक नहीं पहुंच पाएगा. अब जब हम अपनी जातीय जनगणना करने के लिए मिल रहे हैं, तो आइए हम सभी की गणना करें, भले ही वह किसी भी जाति और उपजातियां के हों या फिर चाहे उनका धर्म कुछ भी हो.
आरजेडी राष्ट्रीय प्रवक्ता सुबोध कुमार ने कहा कि मुसलमानों के बीच जातियों की गिनती करने में पार्टी को कोई आपत्ति नहीं है. जाति सबसे बड़ा सामाजिक-आर्थिक निर्धारक रही है. हम मुसलमानों में भी जातियों और उपजातियों को गिनने के पक्ष में हैं. मंडल आयोग और सच्चर समिति पहले ही इस पर चर्चा कर चुकी है और मुसलमानों की कई जातियां केंद्र और राज्य की सूची में हैं.