पहली खबर तो ये है कि ममता बनर्जी के साथ अब चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर काम नहीं करेंगे. प्रशांत किशोर का टीएमसी के साथ बंगाल चुनाव तक का अनुबंध था. इसके अलावा प्रशांत किशोर ने ममता को आगे बढ़ाकर अगले लोकसभ चुनाव के लिए एक नई फ्रंट की राजनीति की तलाश की थी. शुरू में ये खेल परवान भी चढ़ा था लेकिन बाद में ममता की अगुवाई वाली राजनीति बेअसर हो गई. ममता कांग्रेस को अलग करके अगले चुनाव विपक्ष की राजनीति को धार देना चाहती हैं जिसे अभी कोई भी विपक्षी पार्टी स्वीकार करने को तैयार नहीं है. अधिकतर विपक्ष मानता है कि कांग्रेस के बिना बीजेपी को हराना कठिन है क्योंकि अभी देश में कोई दो सौ से ज्यादा ऐसी लोकसभ की सीटें हैं जहां बीजेपी का मुकाबला सीधे कांग्रेस से है.
पिछले दिनों प्रशांत किशोर ने ममता को एक पत्र भेजकर टीएमसी के साथ काम नहीं करने की बात कही थी जिसपर ममता ने थैंक्यू कहा था. जाहिर है कि ममता के लिए फिलहाल पीके अब काम नहीं करेंगे. कुछ जानकारों का कहना है कि ममता और उनके भतीजे के बीच जो तल्खी आयी थी उसमे पीके की भूमिका बतायी गई थी. अब बुआ और भतीजा एक साथ आ गए हैं ऐसे में रडार पर पीके चढ़े. माना जा रहा है कि ममता और पीके के बीच के रिश्ते में भी पहले जैसे मधुरता नहीं रही है.
दूसरी खबर है कि पीके अब तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव के साथ काम करेंगे. तेलंगाना के अगले चुनाव के लिए प्रशांत किशोर अब रणनीति बनाएंगे. पिछले महीने पीके और केसीआर के बीच सहमति बनी है और दोनों के बीच लगातार संपर्क भी चल रहे हैं.
पीके की रणनीति के तहत ही पिछले दोनों केसीआर मुंबई पहुंचकर शिवसेना प्रमुख और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से मिले. केसीआर बाद में एनसीपी प्रमुख शरद पवार से भी मिले. इन मुलाकातों में बहुत सी राजनीतिक बाते हुई हैं. कहा जा रहा है कि बीजेपी के खिलाफ एक मोर्चा बनाने की रणनीति पर भी चर्चा हुई. जो काम पहले ममता बनर्जी कर रही थी अब वही काम केसीआर कर रहे हैं. केसीआर इस रणनीति को अंजाम देने के लिए कई और गैर एनडीए सीएम से मिलेंगे। वो बंगाल भी जायेंगे और झारखण्ड भी. बिहार भी जायेंगे और ओडिशा भी. वो तमिलनाडु भी जायेंगे और स्टालिन से मिलेंगे और कर्नाटक में जेडीएस प्रमुख से भी मुलाकात करेंगे. वो दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल से भी मिलेंगे और तेजस्वी यादव से भी मिलेंगे. याद रहे तेजस्वी से केसीआर पहले भी मिल चुके हैं. ये सारी रणनीति प्रशांत किशोर की समझ के मुताबिक चल रही है. प्रशांत किशोर भी चाहते हैं कि अगले चुनाव में बीजेपी को मात दिया जाय. प्रशांत किशोर जानते हैं कि बगैर कांग्रेस के यह सब संभव नहीं है लेकिन उनका खेल ये है कि ऐसा पासा फेंका जाए कि कांग्रेस को फ्रंट को समर्थन देना मज़बूरी हो जाए.
जिस समय केसीआर मुंबई में ठाकरे और पवार से मिल रहे थे ठीक उसी समय पीके भी दिल्ली में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात और गंभीर बातें कर रहे थे. दो दिनों तक पीके की कुमार से मुलाकात और बात हुई. पीके की इसी मुलाक़ात के बाद यह खबर सामने आयी कि 70 साल पार कर चुके नीतीश कुमार को अगले राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाया जा सकता है. नीतीश इस बात पर कितना सहमत है कोई नहीं जानता लेकिन बिहार चुनाव के दौरान नीतीश कुमार यह घोषणा कर चुके हैं अब वो बिहार का चुनाव नहीं लड़ेंगे. बिहार में मौजूदा विधान सभा 2025 तक की है. 2025 के बाद नीतीश कुमार क्या करेंगे एक बड़ा सवाल है. फिर इसी साल राष्ट्रपति चुनाव जुलाई में होने हैं और इसके बाद 2024 में लोकसभा चुनाव. पहले इस तरह की ख़बरें आ रही थी नीतीश कुमार को बीजेपी इस शर्त के साथ उप राष्ट्रपति बना सकती है कि वह बिहार से गठबंधन न तोड़े. लेकिन बिहार में भले ही गठबंधन की सरकार चल रही है लेकिन जदयू और बीजेपी में सामंजस्य नहीं है. कई बार तो खुद नीतीश कुमार भी बीजेपी के बोल और चाल से आहात हुए हैं. नीतीश कुमार के बारे में पिछले दिनों पीएम मोदी ने बड़ा समाजवादी नेता होने का तमगा दिया था लेकिन यह भी सच है कि नीतीश कुमार समाजवादी के साथ ही अवसरवादी भी हैं. उनका यही अवसरवाद देश को बार-बार भ्रमित करता है.
गौरतलब है कि इसी साल जुलाई-अगस्त में राष्ट्रपति का चुनाव होना है. ऐसे में थर्ड फ्रंट के जरिए बिहार के सीएम नीतीश कुमार को राष्ट्रपति चुनाव लड़ाए जाने की खबरें हैं. ये खबरे पीके और केसीआर की तरफ से फैलाई गई है या फैलाने के लिए कहा गया है इसकी पुष्टि भला कौन करेगा. लेकिन इस तरह के खेल चल रहे हैं. संभव है कि पांच राज्यों के चुनाव परिणाम आने के बाद इस खेल पर काम हो और कोई बड़ा राजनीतिक उठापटक भी सामने आये.
नीतीश कुमार आगे क्या निर्णय लेते हैं यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन इसकी फील्डिंग शुरू हो गई है. महाराष्ट्र के एनसीपी नेता और ठाकरे सरकार में मंत्री नवाब मलिक का एक बयान सामने आया और इस बयान के बाद राजनीतिक प्रतिक्रिया भी जदयू के तरफ से आयी है. इससे पता चलता है कि दाल में कुछ काला है. एनसीपी नेता नवाब मलिक ने कहा, “कुछ खबरें आ रही हैं कि नीतीश कुमार जी का नाम सामने आ रहा है. पहले नीतीश कुमार जी भाजपा का साथ छोड़े फिर सोचा जाएगा कि क्या करना है.”
हालांकि अभी नीतीश कुमार की तरफ से कोई बड़ा बयान सामने नहीं आया है. लेकिन जदयू का पक्ष सामने जरूर आया है. जदयू प्रवक्ता नीरज सिंह का कहना है कि 2025 तक नीतीश कुमार को बिहार का सीएम बने रहने के लिए जनादेश मिला हुआ है, ऐसे में अभी राष्ट्रपति चुनाव को लेकर कोई चर्चा नहीं है.
यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि आगे इस फ्रंट में बंगाल की सीएम ममता बनर्जी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी शामिल करने की रणनीति है. बता दें कि केसीआर और प्रशांत किशोर की जोड़ी को लगता है कि भाजपा के खिलाफ राष्ट्रपति चुनाव के लिए नीतीश कुमार का नाम आगे करने पर मजबूरी में कांग्रेस भी अपना समर्थन देगी.
लेकिन असली सवाल ये भी है ममता इस खेल को कितना आत्मसात कर पाती है. देखना ये भी है कि स्टालिन, उद्धव ठाकरे और हेमंत सोरेन कांग्रेस के सह्यपग के बिना कितना आगे बढ़ते हैं. याद रहे ठाकरे और स्टालिन अभी किसी भी सूरत में कांग्रेस के खिलाफ नहीं जा सकते. स्तालिन तो आज की तारीख में राहुल गाँधी के लिए वही भूमिका निभा रहे हैं जो कभी सोनिया गाँधी के लिए लालू प्रसाद निभाया करते थे.
अभी सबकी निगाहें नीतीश कुमार पर एक बार जाकर जरूर टिकी है. पिछली दफा वो संभावित पीएम उम्मीदवार को लेकर सुर्खियां बटोर रहे थे और अब राष्ट्रपति उम्मीदवार को लेकर सामने दिख रहे हैं. केसीआर का खेल यह है कि राष्ट्रपति चुनाव के जरिये ही बीजेपी को पहले घेरा जाए. केसीआर को लगता है कि महाराष्ट्र समेत दक्षिण भारत की लगभग 200 सांसद राष्ट्रपति चुनाव में अहम भूमिका निभाकर बीजेपी की राह रोक सकते हैं. और ऐसा हुआ तो बीजेपी को बड़ा धक्का लोकसभा चुनाव से पहले ही लग सकता है. लेकिन यह सब संभावनाओं पर टिका है. नीतीश कुमार आज भले ही मौन हैं लेकिन इस खेल से वो असहमत नहीं हो सकते. समय आने पर सब कुछ तय होगा, उनकी सोंच यही है.
लगे हाथ पांच राज्यों के चुनाव के बाद की तस्वीर क्या होती है इसे भी देखने की जरूरत है. अगर बीजेपी ने चुनाव में कुछ खोया तो खेल कुछ और भी होगा और बीजेपी ने अपने किले को बचा लिया तो खेल का रंग बदल सकता है. यही हाल कांग्रेस के साथ भी है. पंजाब में कांग्रेस वापस आती है और एक दो राज्यों में भी वह सेंध लगाती है तब देश की राजनीति करवट लेगी और फिर बीजेपी के खिलाफ बड़ा हल्ला बोल हो सकता है. जिसमे थर्ड फ्रंट के सारे वीर सम्मिलित हो सकते हैं. यहां तक कि ममता भी.