Thursday, November 21, 2024
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अब देश में भ्रष्टाचार हमें आहात नहीं करता ——

अखिलेश अखिल

पिछले साल यूपी चुनाव के दौरान करणपुर के एक कारोबारी के यहां से करीब दो सौ करोड़ की नकदी मिली थी. इसके बाद अभी दो महीने पहले झारखंड के आईएएस अधिकारी के सीए के यहाँ से करीब 17 करोड़ की नकदी पायी गई. और अब बंगाल के मंत्री पार्थी चटर्जी के करीबी के यहाँ से 20 करोड़ की नकदी मिलने के बाद यह साफ़ हो गया है कि इस देश का कभी कायाकल्प नहीं हो सकता. नेता, कारोबारी और नौकरशाहों की तिगड़ी ने इस देश का दिवाला निकाल दिया है. लेकिन ये तो चंद कुछ उदहारण मात्र भर हैं. दो-चार करोड़ की नकदी तो इस देश के भीतर दर्जनों मामले में सामने आई है. बिहार के ही लगभग दर्जन भर नौकरशाहों के यहाँ से पिछले कुछ सालों में करोड़ों की नकदी और संपत्ति पायी गई. मजे की बात तो ये है कि बिहार की नीतीश सरकार हो या फिर यूपी की योगी सरकार या फिर बंगाल की ममता सरकार हो या झारखंड की सोरेन सरकार, सभी इस बात की दुदुम्भी पीटते हैं कि उनकी सरकार पाक साफ़ है और उनका राज्य तेजी से आगे बढ़ रहा है.
भ्रष्टाचार की कहानी तो महाराष्ट्र में भी अपने चरम पर है. इसी भ्रष्टाचार के मामले में वहां के कई नेता और नौकरशाह जेल गए हैं. उधर मध्यप्रदेश से लेकर छत्तीसगढ़ में भी भ्रष्टाचार की कहानी मुँह बाए खड़ी है. देश का ऐसा कोई राज्य नहीं, जहां भ्रष्टाचर के उदाहरण सामने नहीं आये हैं. यूपी में तो किस्म – किस्म के भ्रष्टाचार सामने आते दिखते हैं. सरकार के मंत्री ही सरकार की करतूतों की पोल खोल देते हैं.
देश में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कई कानून बने हुए हैं. कई एजेंसियां भी तैनात है. और सबसे ऊपर लोकपाल भी बैठा है. लेकिन भ्रष्टाचार जारी है. जनता के पैसे लूटे जा रहे हैं. यह सब कैसे हो रहा है ?
लोकसभा और राज्यसभा के सदस्यों की क्या स्थिति है सबको पता है. दोनों सभाएं कारोबारियों, करोड़पतियों और दागियों से भरे पड़े हैं. उनके पिछले रिकॉर्ड को देखकर शर्म भी आती है लेकिन चूंकि ये चाहे जैसे भी हों चुनकर आते हैं और हमारे आका कहलाते हैं. इन नेताओं की सच्चाई तो यही है कि ये देश को लुटते हैं और अपनी तिजोरी भरते हैं. हर नेता को चुनाव लड़ने के लिए पैसे की जरूरत होती है. ये पैसे कहाँ से आते हैं ? हमारे देश में चुनाव के दौरान जनता के बीच पैसे बाँटने का चलन है. वोटरों को ठगने के लिए कई तरह के इंतजाम होते हैं. इनमें पैसे खर्च होते हैं. ये पैसे योजनाओं, नियुक्तियों के जरिये ही उगाहे जाते हैं.
हालिया बंगाल की घटना तो बहुत कुछ कहती है. पश्चिम बंगाल में उद्योग मंत्री पार्थ चटर्जी की गिरफ्तारी बता रही है कि ममता बनर्जी भ्रष्टाचार मुक्त शासन के कितने ही दावे क्यों न करें, लेकिन उनके वरिष्ठ मंत्री भी भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के घेरे में घिरे हैं. शिक्षक भर्ती घोटाले की जांच के सिलसिले में शुक्रवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने चटर्जी और शिक्षा राज्य मंत्री परेश चंद्र अधिकारी के यहां छापे मारे थे. ईडी ने चटर्जी से घंटों पूछताछ की. उसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.
यह मामला तब और तूल पकड़ गया जब ईडी ने चटर्जी की करीबी अर्पिता मुखर्जी के यहां से बीस करोड़ रुपए से ज्यादा रकम बरामद किए. खबर के मुताबिक, चटर्जी के यहां छापे के दौरान मिले दस्तावेजों की जांच करती हुई ईडी टीम अर्पिता के घर पहुंची थी. ईडी का दावा है कि यह शिक्षक भर्ती घोटाले की ही रकम है. देखें तो इतनी बड़ी रकम मिलना इसलिए भी गंभीर मामला है कि महिला पार्थ चटर्जी की करीबी बताई जा रही है.
वैसे यह घोटाला का मामला साल 2016 का है. तब पार्थ चटर्जी शिक्षा मंत्री थे. कलकत्ता हाईकोर्ट ने इस मामले की जांच सीबीआइ से कराने का निर्देश दिया था. अदालत ने इस मामले में धनशोधन की आशंका जताई थी. इसी कड़ी में इस साल अप्रैल और मई में सीबीआई ने पार्थ चटर्जी से पूछताछ की और धनशोधन की शिकायत दर्ज करवाई. तभी यह मामला प्रवर्तन निदेशालय के पास चला गया.
ऐसा भी नहीं कि भ्रष्टाचार का यह अकेला मामला हो. ममता सरकार के पिछले दो कार्यकाल में भ्रष्टाचार के कई बड़े मामले सामने आए हैं. सरकार के मंत्रियों को जेल भी भेजा गया है. हालांकि पार्थ चटर्जी के खिलाफ मामला अभी अदालत में चलेगा और जांच एजंसियों को साबित करना होगा कि बीस करोड़ रुपए उसी घूस के हैं जो शिक्षक भर्ती घोटाले में लोगों से लिए गए थे.
हालांकि जांच एजेंसियां ऐसी भारी-भरकम नगदी बरामद करती रहती हैं. ऐसे बेहिसाब धन की बरामदगी भ्रष्टाचार मुक्त शासन का वादा और दावा करने वाली सरकारों पर बड़े सवाल खड़े करती हैं. यानी अगर सरकारों में ईमानदारी से काम हो रहा हो रहा है तो आखिर इतनी बेहिसाब दौलत आ कहां से रही है ? किसी मंत्री के करीबी या रिश्तेदार के पास से इतनी भारी नगदी मिलना संदेह पैदा क्यों नहीं करेगा?

Anzarul Bari
Anzarul Bari
पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.
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