आर्थिक संकट से जूझ रहे पाकिस्तान के बारे में एशिया टाइम्स ने दावा किया है कि जिस तरह से पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय अलगाव का सामना कर रहा है और और बलूचिस्तान इलाके में सीपीईसी का विरोध हो रहा है उससे से इमरान सरकार काफी निराश और हताश हैं। ऐसे में परेशान पाकिस्तान अब अपनी आर्थिक संकट को दूर करने के लिए चीन -पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर यानी सीपीईसी को ख़त्म करने को तैयार है। खबर के मुताबिक़ पकिस्तान को अब यह लगने लगा है कि चीन पर अधिक निर्भरता की वजह से ही अमेरिका समेत दुनिया के बड़े देशों से न सिर्फ उसके सम्बन्ध ख़राब हो रहे हैं बल्कि पकिस्तान कई तरह के प्रतिबंधों का भी सामना कर रहा है। हालांकि एशिया टाइम्स ने यह भी दावा किया है कि पकिस्तान की इमरान सरकार को अगर अमेरिका मदद करने का वैसा ही यकीन करते जैसा की चीन कर रहा है तो इमरान सरकार सीपीईसी को ख़त्म कर सकता है। पकिस्तान के इस रुख का चीन क्या जवाब देगा यह तो बाद की बात है लेकिन आर्थिक संकट से बेहाल पाकिस्तान के पास कोई चारा भी नहीं दिखता। खबर के मुताबिक़ पाकिस्तान की इमरान सरकार ने इस दिशा में काम करना भी शुरू कर दिया है।
दरअसल, पाकिस्तान एक बार फिर अमेरिका के साथ संबंधो को सुधारने की कोशिश कर रहा है। इसीलिए प्रधानमंत्री इमरान खान ने मोईद यूसुफ को पाक नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर यानी एनएसए नियुक्त किया है। एशिया टाइम्स ने अपनी एक रिपोर्ट में यह दावा किया है कि अगर पाकिस्तान को वाशिंगटन से इसी तरह की वित्तीय सहायता मिलती है तो वह चीन के साथ सीपीईसी को खत्म कर देगा। याद रहे इमरान खान कहते आए हैं कि चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर न केवल इस्लामाबाद के लिए बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए भी आर्थिक विकास लाएगा।लेकिन अब इमरान सरकार इस मसले पर फिर से सोंच रहे हैं और अमेरिका की तरफ देख रहे हैं।
इस तरह की कोशिशें पहले भी हुई हैं। जुलाई 2019 में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के बेलआउट पैकेज के अलावा बहुत कुछ हासिल नहीं हुआ। अमेरिका के साथ पाकिस्तान की बेहतर संबंध बनाने की संभावनाएं तब और कम हो गईं जब अमेरिका ने नवंबर 2021 में कतर को अफगानिस्तान में अपना राजनयिक प्रतिनिधि घोषित किया था।
फरवरी की शुरुआत में इमरान खान ने चीन इंस्टीट्यूट ऑफ फुडन यूनिवर्सिटी की सलाहकार समिति के निदेशक एरिक ली के साथ एक इंटरव्यू में कहा था कि “हम सीपीईसी और ग्वादर को भू-अर्थशास्त्र के लिए एक महान अवसर के रूप में देखते हैं।” साथ ही पाकिस्तान ने सीपीईसी के ‘कर्ज के जाल’ होने की खबरों को खारिज किया था। लेकिन अब वही इमरान सरकार को लगने लगा है कि पकिस्तान चीन के जाल में है और समय रहते इसे नहीं सुधारा गया तो आने वाले समय में पकिस्तान की हालत और भी ख़राब हो जाएगी।
उधर ,करीब दो साल से सीपीईसी पर काम बंद होने से चीन काफी नाराज है, क्योंकि वो इस प्रोजेक्ट पर करीब 16 अरब डॉलर खर्च कर चुका है। इमरान सरकार चीन को मनाकर इसे शुरू कराना चाहती है, लेकिन काम शुरू होता इसके पहले ही विरोध शुरू हो रहा है। बलूचिस्तान के ग्वादर में कई दिनों से पॉलिटिकल पार्टीज, सिविल राइट्स एक्टिविस्ट्स, मछुआरे समेत कई अन्य तबकों के लोग सीपीईसी के विरोध में सरकार विरोधी रैलियों में शामिल हो रहे हैं। इस विरोध की वजह से चीन भी नाराज है और पकिस्तान के साथ चीन के सम्बन्ध भी ख़राब हो रहे हैं। यहां के लोगों की मांग है कि सीपीईसी पर कोई भी काम शुरू करने से पहले बुनियादी सुविधाएं दी जाएं। इनमें गैरजरूरी चेक पॉइंट्स हटाना, पीने का पानी और बिजली मुहैया कराना, मछली पकड़ने के बड़े ट्रॉलर हटाना और ईरान बॉर्डर खोलना शामिल है।
अब देखने की बात यह है कि पाकिस्तान आगे क्या निर्णय लेता है। एक तरफ अब चीन भी उससे नाराज है और अगर अमेरिका ने उसकी मदद नहीं की तो पाकिस्तान के सामने संकट और भी गहरा सकते हैं। पाकिस्तान को उम्मीद है कि अमेरिका अगर उससे मदद करने का भरोसा दे तो वह चीन से सम्बन्ध तोड़ सकता है और सीपीईसी योजना को भी ख़ारिज कर सकता है।
पाकिस्तान ने की अमेरिका से मदद की गुहार, सीपीईसी से खींच सकता है हाथ
यूक्रेन सरकार ने लगाई इमरजेंसी, अपने नागरिकों को फौरन रूस छोड़ने की हिदायत की
रूस और यूक्रेन के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है. एक तरफ रूस ने यूक्रेन से अपने राजनयिकों को बुलाने का ऐलान कर दिया है. तो वहीं रूसी हमले के डर से यूक्रेन ने बुधवार को देश में इमरजेंसी का ऐलान कर दिया. इसी के साथ यूक्रेन ने अपने सभी नागरिकों से जल्द से जल्द रूस छोड़ने को कहा है. इससे पहले रूस ने पूर्वी यूक्रेन के उन इलाकों के साथ राजनयिक रिश्ते शुरू भी कर दिए हैं जिन्हें एक दिन पहले रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने स्वतंत्र देश घोषित कर अपनी मान्यता दे दी थी. रूस के इस कदम के बाद यूरोपियन यूनियन, ब्रिटेन और अमेरिका ने रूस पर कई तरह के प्रतिबंधों का एलान किया है.
यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध की आशंका भी बढ़ती जा रही है, लेकिन दूसरी तरफ उस पर साइबर हमले भी तेज हो रहे हैं. एक बार फिर किसी ने यूक्रेन की रक्षा और विदेश मंत्रालय की वेबसाइट को हैक करने की कोशिश की है. रूस से तनाव के बीच ही यूक्रेन की संसद ने देश की ताजा स्थिति पर चर्चा करने के बाद देश में इमरजेंसी लागू करने का एलान कर दिया है.
उधर यूक्रेन और रूस के बीच बढ़ते विवाद को देखते हुए गुरुवार को यूरोपीय संघ भी आपात बैठक बुला कर युक्रेन की ताज़ा स्थिति पर चर्चा करेगा. इस बैठक में रूस को घेरने के लिए आगे की रणनीति तैयार की जाएगी. यूरोपीय संघ के सभी ने स्पष्ट कर दिया है कि 21वीं सदी में ताकत का इस्तेमाल कर बॉर्डर पर स्थिति को बदला नहीं जा सकता है.
वहीं रूस और यूक्रेन के बीच जारी तनाव और जंग से बचने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की एक अहम बैठक शुरू हो चुकी है. बैठक के दौरान वर्तमान परिस्थितियों पर विस्तार से मंथन चल रहा है. रूस के उठाए कदमों पर भी बहस की जा रही है.
इस दौरान तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से कहा है कि उनका देश यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता के खिलाफ रूस के कदम को मान्यता नहीं देता. रूस ने यूक्रेन में विद्रोहियों के वर्चस्व वाले इलाके दोनेत्स्क और लुहान्स्क को मान्यता दे दी है. अर्दोआन ने इस कदम का विरोध जताने के लिए रूसी राष्ट्रपति को फोन किया था.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स की एक खबर के मुताबिक अर्दोआन के दफ्तर की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि तुर्की के राष्ट्रपति ने पुतिन को फोन कर कहा कि इस क्षेत्र में सैन्य संघर्ष से किसी का भला नहीं होगा. उन्होंने इस समस्या के हल के लिए अपनी मदद का प्रस्ताव भी दोहराया.
अर्दोआन ने कहा कि वह क्षेत्रीय मुद्दों पर रूस के सहयोग की कीमत समझते हैं. वह चाहते हैं इन मामलों पर रूस की भूमिका बनी रहनी चाहिए. अर्दोआन ने कहा कि सैन्य संघर्ष के बजाय कूटनीतिक कोशिशों से यूक्रेन-रूस का टकराव टल सकता है. नेटो में भी तुर्की का यह सकारात्मक रुख बरकरार रहेगा.
रूस के युक्रेन पर हमले के बाद औंधे मुँह गिरा शेयर बाज़ार, निवेशकों में मची अफरा तफरी
रूस-यूक्रेन में युद्ध के चलते सेंसेक्स औंधे मुँह गिर कर अब 1814.65 अंक या 3.17% टूटकर 55,417.41 के स्तर पर पहुँच गया है. जबकि निफ्टी में भी गिरावट दर्ज की गई है और ये भी गिर कर 516.85 अंकों के साथ 16,546.40 के स्तर पर आ गया है. अगर एमसीएक्स पर सोने के भाव की बात करें तो 10 ग्राम सोना 1175 रुपये उछल कर 51554 रुपये पर पहुंच गया है जबकि चांदी 65824 रुपये प्रति किलो हो गया है.
उधर अमेरिकी शेयर बाजार में भी गिरावट जारी है. जिसका असर आज सुबह जब बाजार खुला तो उसमें साफ देखा गया. लगातार 6 दिनों की गिरावट के बावजूद आज सातवें दिन भी बाजार खुलते ही सेंसेक्स और निफ्टी में भारी गिरावट देखी गई. बीएसई का 30 शेयरों वाला प्रमुख संवेदी सूचकांक सेंसेक्स सुबह सवा नौ बजे 1813 पॉइंट गिरकर 55418 के स्तर पर खुला. जबकि निफ्टी में भी भारी गिरावट देखी गई.
इसी तरह अमेरिकी बाजार डाऊ जोंस भी बुधवार को 464 अंक गिरकर 33131के स्तर पर बंद हुआ था. वहीं, नैस्डैक में 2.57 फीसद यानी 344 अंकों की गिरवट दर्ज की गई थी. इस गिरावट की वजह से नैस्डेक 13037 के स्तर पर बंद हुआ. यही नहीं एसएंडपी में भी 79 अंकों की गिरावट दर्ज की गई.
शुरुआती कारोबार में सेंसेक्स 1457 अंकों की गिरावट के साथ 55,774.15 के स्तर पर था तो निफ्टी 404 अंक लुढ़क कर 16659 के स्तर पर बना रहा. रूस और युक्रेन के बीच युद्ध के कारण बैंक निफ्टी, निफ्टी प्राइवेट बैंक, निफ्टी ऑटो, निफ्टी फाइनेंशियल सर्विसेज, एफएमसीजी, आईटी इंडेक्स, मेटल, मीडिया, फार्मा, पीएसयू बैंक समेत सभी इंडेक्स में भारी गिरावट देखने को मिल रही है.
अगर घरेलू शेयर बाजारों की बात करें तो यहाँ छठे रोज़ भी भारी दर्ज की गई, और बीएसई सेंसेक्स 68.62 अंक नीचे गिर कर पहुँच गया. रूस – यूक्रेन संकट को लेकर निवेशकों काफी परेशान दिखे. तीस शेयरों पर आधारित सेंसेक्स 68.62 अंक की गिरावट के साथ 57,232.06 अंक पर बंद हुआ. इसी तरह नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी 28.95 अंक टूटकर 17,063.25 अंक पर पहुँच गया. कारोबार के दौरान अच्छी बात यह देखने को मिली कि दोनों इंडेक्स ज्यादातर समय एशिया के अन्य बाजारों की तरह सकारात्मक दायरे में रहे. क्योंकि निवेशकों को यह उम्मीद थी कि यूक्रेन सीमा के पास रूसी सेना की गतिविधियों के बाद रूस पर पश्चिमी देशों की पाबंदियों से राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का रुख नरम पड़ेगा और युद्ध की आशंका दूर होगी, मगर सातवें दिन ऐसा होता हुआ नहीं दिखा. नतीजा यह हुआ की शेयर बाजार भारी गिरावट के साथ ही खुला.
मनी लांड्रिंग केस: कैबिनेट मंत्री नवाब मलिक गिरफ्तार, महाराष्ट्र सरकार बोली, नहीं लेंगे मलिक से इस्तीफा
मुंबई: लंबी पूछताछ के बाद ईडी ने दाऊद इब्राहिम मनी लान्ड्रिंग मामले में महाराष्ट्र के मंत्री नवाब मलिक को बुधवार को गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तारी के बाद एनसीपी नेता मलिक को स्पेशल कोर्ट में पेश किया गया, जिसके बाद अदालत ने नवाब मलिक को तीन मार्च तक के लिए ईडी की हिरासत में भेज दिया है. हालांकि ईडी ने अदालत से मलिक की 14 दिनों की हिरासत मांगी थी जिसे अदालत ने नहीं माना. इस बीच मलिक की गिरफ्तारी के बाद बीजेपी ने उद्धव सरकार से मलिक को तुरंत इस्तीफा लेने की मांग रखी, जिसके बाद शिवसेना नेता संजय राऊत ने कहा है कि राज्य सरकार मलिक का मंत्री पद से इस्तीफा नहीं लेगी. हालांकि उनके इस्तीफे पर NCP प्रमुख शरद पवार, गृहमंत्री दिलीप वलसे पाटिल, सीएम उद्धव ठाकरे की बैठक के बाद ही कोई फैसला लिया जाएगा. इस बीच बीजेपी ने इस्तीफे की मांग को लेकर महाराष्ट्र भर में गुरुवार को आंदोलन करने का एलान किया है तो वहीं शिवसेना के नेतृत्व वाली अघाड़ी सरकार ने भी नवाब मलिक की गिरफ्तारी के खिलाफ गुरुवार को ही प्रदर्शन का एलान किया है.
पेशी के दौरान नवाब मलिक ने कोर्ट में कहा कि प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारी सुबह मेरे घर आए और कुछ देर बाद मुझे ईडी कार्यालय ले गए. इसके बाद मुझे हिरासत में लिया और मेरा बयान दर्ज किया. उन्होंने मुझे कार्यालय में ही समन की कापी दी और उस पर दस्तखत करने के लिए कहा.
ईडी द्वारा मलिक की गिरफ्तारी के बाद मुंबई से लेकर दिल्ली तक सियासी हलचल बढ़ गई है. गिरफ्तारी के बाद बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार से फोन पर बात की है. इस दौरान ममता ने पवार के साथ एकजुटता दिखाते हुए एनसीपी नेता की गिरफ्तारी पर केंद्र के प्रति नाराजगी जताई. ममता ने पवार से कहा कि भाजपा नेतृत्व की मोदी सरकार के जरिए ईडी, सीबीआइ व अन्य केंद्रीय एजेंसियों का विपक्षी दलों के खिलाफ लगातार इस्तेमाल किया जा रहा है. उन्होंने इसके खिलाफ सभी विपक्षी दलों से एकजुट होकर लड़ाई लड़ने की जरूरत पर ज़ोर दिया.
अधिकारियों के मुताबिक, 62 साला मलिक को सुबह करीब आठ बजे पूछताछ के लिए दक्षिण मुंबई स्थित ईडी कार्यालय में लाया गया था, करीब छह घंटे चली पूछताछ के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. इसके बाद मलिक को मेडिकल चेकअप के लिए ले जाए जाने के पहले मलिक ने मीडिया के सामने मुस्कराकर मुट्ठी बांधी, हाथ हिलाया और वाहन के अंदर से ही कहा, ‘हम लड़ेंगे, जीतेंगे और सभी को एक्सपोज़ करेंगे.’
अधिकारियों का कहना है कि उनका बयान प्रिवेंशन आफ मनी लांड्रिंग एक्ट के तहत दर्ज किया गया है. उन्हें इसी के प्रविधानों के तहत गिरफ्तार भी किया गया है क्योंकि वह जवाब देने से बच रहे थे.
बता दें कि अंडरवर्ल्ड की गतिविधियों, संपत्ति की अवैध रूप से कथित खरीद-फरोख्त और हवाला लेनदेन के संबंध में ईडी ने 15 फरवरी को मुंबई में छापेमारी की थी और एक नया मामला दर्ज किया था जिसके बाद मलिक से पूछताछ की गई थी.
इस दौरान करीब 10 जगहों पर छापेमारी की गई थी जिसमें अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम की दिवंगत बहन हसीना पार्कर, भाई इकबाल कासकर और छोटा शकील के रिश्तेदार सलीम कुरैशी उर्फ सलीम फ्रूट के परिसर शमिल हैं. कासकर पहले से जेल में है जिसे जांच एजेंसी ने पिछले हफ्ते ही गिरफ्तार किया था. ईडी ने पार्कर के बेटे से भी पूछताछ की थी.
रूस का यूक्रेन पर हमले का एलान, पुतिन की धमकी, अगर बीच में आया कोई देश तो खुद नतीजा भुगतेगा
रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने यूक्रेन के खिलाफ सैन्य करवाई की घोषणा कर दी है. जिसके राजधानी कीव में क्रूज और बैलिस्टिक मिसाइलें दागी गई है. शहर खर्किव धमाकों से गूंज उठा.बिगड़ते हालात के बीच कीव एयरपोर्ट को खाली करा लिया गया है. वहां मौजूद स्टाफ और यात्रियों को निकाला गया है. फिलहाल वहां विदेश के तीन एयरक्राफ्ट मौजूद हैं.
इस बीच रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने नाटो सभी देशों को खबरदार किया है कोई रूस-युक्रेन युद्ध में ना पड़े, अगर किसी ने यूक्रेन का साथ दिया तो संगीन नतीजे भुगतने होंगे. राष्ट्रपति पुतिन ने कहा कि रूस-युक्रेन युद्ध को टाला नहीं जा सकता है. इसलिए रूस ने स्पेशल मिलिट्री ऑप्रेशन लांच किया है. हालांकि, पुतिन ने ये भी साफ कर दिया है कि उनका यूक्रेन पर कब्जा करने का कोई इरादा नहीं है. रूसी राष्ट्रपति का कहना है कि यूक्रेनी सेना हथियार डाले और वापस जाए.
इस वक्त संयुक्त राष्ट्र में रूस-यूक्रेन के मुद्दे पर अहम बैठक चल रही है, ऐसे में रूस के इस कदम के खिलाफ जवाबी कारवाई भी की जा सकती है. संयुक्त राष्ट्र की तरफ से शांति की अपील की गई है. रूस के खिलाफ रणनीति तय करने के लिए यूरोपीय यूनियन ने गुरुवार को बेहद अहम मीटिंग तलब की है. दिलचस्प बात ये है कि यह बैठक बेलारूस में आयोजित हो रही है, जो पहले ही रूस के साथ है और रूसी फौज बेलारूस की धरती पर मौजूद है.
युद्ध के खतरे के बीच फ्रांस ने भी बुधवार को अपने नागरिकों से बिना देरी किए यूक्रेन छोड़ने को कहा था.
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बुधवार को फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों से मुलाकात की थी. इस मुलाकात में रूस-यूक्रेन संकट, इंडो-पैसिफिक में आपसी सहयोग, भारत और फ्रांस के बीच डिप्लोमैटिक सहयोग बढ़ाने, आर्थिक और रक्षा संबंधों को मजबूत बनाने पर बात हुई थी. भारत ने पूर्वी यूरोप में तनाव कम करने के लिए मैक्रों की कोशिशों की सराहना की.
मोदी सरकार का नकली राष्ट्रवाद खोखला और खतरनाक
पूर्व प्रधानमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मनमोहन सिंह ने मोदी सरकार पर जमकर हमला किया है. उन्होंने कहा है कि “इस सरकार का नकली राष्ट्रवाद जितना खोखला है, उतना ही खतरनाक है. इनका राष्ट्रवाद अंग्रेजों की बांटों और राज करो की नीति पर टिका है. संवैधानिक संस्थाओं को लगातार कमजोर किया जा रहा है. ये सरकार विदेश नीति के मोर्चे पर भी पूरी तरह फेल साबित हुई है.”
मनमोहन सिंह ने कहा, “मुझे लगता है कि पीएम का पद एक विशेष महत्व रखता है. पीएम को इतिहास को दोष देने के बजाय गरिमा बनाए रखना चाहिए. जब मैं 10 साल तक प्रधानमंत्री था, तो मैंने अपने काम के जरिए बात की. मैंने कभी भी देश को दुनिया के सामने प्रतिष्ठा खोने नहीं दिया. मैंने कभी भी भारत के गौरव को कम नहीं किया. मुझे कम से कम इस बात का संतोष है कि मुझ पर कमजोर, शांत और भ्रष्ट होने के झूठे आरोपों के बाद, भाजपा और उसकी बी और सी-टीम देश के सामने बेनकाब हो रही है.”
दो बार देश के प्रधानमंत्री रह चुके मनमोहन सिंह ने सरकार पर वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीनी घुसपैठ को छिपाने की कोशिश करने का भी आरोप लगाया. डॉ सिंह ने कहा “उन्हें (भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार) आर्थिक नीति की कोई समझ नहीं है. यह मुद्दा देश तक सीमित नहीं है. यह सरकार विदेश नीति में भी विफल रही है. चीन हमारी सीमा पर बैठा है और इसे (घुसपैठ) दबाने के प्रयास किए जा रहे हैं.” पूर्व प्रधानमंत्री और कांग्रेस नेता मनमोहन सिंह ने गुरुवार को भाजपा पर निशाना साधा. उन्होंने आरोप लगाया कि कोरोना के दौरान केंद्र सरकार की खराब नीतियों के कारण लोग आर्थिकता, बेरोजगारी और बढ़ती महंगाई से परेशान हैं. मनमोहन सिंह ने कहा, “7.5 साल सरकार चलाने के बाद सरकार अपनी गलती मानने और सुधार करने की बजाए पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को जिम्मेदार ठहराने पर लगी है.”
मनमोहन सिंह ने कहा कि मैं उम्मीद करता हूं कि पीएम समझ गए होंगे कि नेताओं को जबरन गले लगाने, झूले पर झूलने या बिरयानी खिलाने से विदेश नीति नहीं चल सकती. उन्होंने भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार पर “फर्जी राष्ट्रवादी और विभाजनकारी नीतियों” का आरोप लगाया और कहा कि इसकी विदेश नीति विफल रही है. उन्होंने कहा, “हमने राजनीतिक लाभ के लिए देश को कभी विभाजित नहीं किया. हमने कभी सच छिपाने की कोशिश नहीं की. हमने कभी देश के सम्मान या पीएम की स्थिति को कम नहीं किया. आज लोगों को विभाजित किया जा रहा है. इस सरकार का नकली राष्ट्रवाद खोखला और खतरनाक है. उनका राष्ट्रवाद अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति पर आधारित है. संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर किया जा रहा है.”
पंजाब चुनाव से पहले कांग्रेस नेता ने कहा, “कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री की सुरक्षा के नाम पर मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और राज्य की जनता को बदनाम करने की कोशिश की गई थी. किसान आंदोलन के दौरान भी पंजाब और पंजाबियत को बदनाम करने की कोशिश की गई थी. पंजाबियों की बहादुरी, देशभक्ति और बलिदान को दुनिया सलाम करती है, लेकिन एनडीए सरकार ने इस बारे में कोई बात नहीं की. पंजाब के एक सच्चे भारतीय होने के नाते इन सब चीजों ने मुझे बहुत आहत किया.”
क्या नीतीश कुमार थर्ड फ्रंट से राष्ट्रपति उम्मीदवार होंगे ?
पहली खबर तो ये है कि ममता बनर्जी के साथ अब चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर काम नहीं करेंगे. प्रशांत किशोर का टीएमसी के साथ बंगाल चुनाव तक का अनुबंध था. इसके अलावा प्रशांत किशोर ने ममता को आगे बढ़ाकर अगले लोकसभ चुनाव के लिए एक नई फ्रंट की राजनीति की तलाश की थी. शुरू में ये खेल परवान भी चढ़ा था लेकिन बाद में ममता की अगुवाई वाली राजनीति बेअसर हो गई. ममता कांग्रेस को अलग करके अगले चुनाव विपक्ष की राजनीति को धार देना चाहती हैं जिसे अभी कोई भी विपक्षी पार्टी स्वीकार करने को तैयार नहीं है. अधिकतर विपक्ष मानता है कि कांग्रेस के बिना बीजेपी को हराना कठिन है क्योंकि अभी देश में कोई दो सौ से ज्यादा ऐसी लोकसभ की सीटें हैं जहां बीजेपी का मुकाबला सीधे कांग्रेस से है.
पिछले दिनों प्रशांत किशोर ने ममता को एक पत्र भेजकर टीएमसी के साथ काम नहीं करने की बात कही थी जिसपर ममता ने थैंक्यू कहा था. जाहिर है कि ममता के लिए फिलहाल पीके अब काम नहीं करेंगे. कुछ जानकारों का कहना है कि ममता और उनके भतीजे के बीच जो तल्खी आयी थी उसमे पीके की भूमिका बतायी गई थी. अब बुआ और भतीजा एक साथ आ गए हैं ऐसे में रडार पर पीके चढ़े. माना जा रहा है कि ममता और पीके के बीच के रिश्ते में भी पहले जैसे मधुरता नहीं रही है.
दूसरी खबर है कि पीके अब तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव के साथ काम करेंगे. तेलंगाना के अगले चुनाव के लिए प्रशांत किशोर अब रणनीति बनाएंगे. पिछले महीने पीके और केसीआर के बीच सहमति बनी है और दोनों के बीच लगातार संपर्क भी चल रहे हैं.
पीके की रणनीति के तहत ही पिछले दोनों केसीआर मुंबई पहुंचकर शिवसेना प्रमुख और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से मिले. केसीआर बाद में एनसीपी प्रमुख शरद पवार से भी मिले. इन मुलाकातों में बहुत सी राजनीतिक बाते हुई हैं. कहा जा रहा है कि बीजेपी के खिलाफ एक मोर्चा बनाने की रणनीति पर भी चर्चा हुई. जो काम पहले ममता बनर्जी कर रही थी अब वही काम केसीआर कर रहे हैं. केसीआर इस रणनीति को अंजाम देने के लिए कई और गैर एनडीए सीएम से मिलेंगे। वो बंगाल भी जायेंगे और झारखण्ड भी. बिहार भी जायेंगे और ओडिशा भी. वो तमिलनाडु भी जायेंगे और स्टालिन से मिलेंगे और कर्नाटक में जेडीएस प्रमुख से भी मुलाकात करेंगे. वो दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल से भी मिलेंगे और तेजस्वी यादव से भी मिलेंगे. याद रहे तेजस्वी से केसीआर पहले भी मिल चुके हैं. ये सारी रणनीति प्रशांत किशोर की समझ के मुताबिक चल रही है. प्रशांत किशोर भी चाहते हैं कि अगले चुनाव में बीजेपी को मात दिया जाय. प्रशांत किशोर जानते हैं कि बगैर कांग्रेस के यह सब संभव नहीं है लेकिन उनका खेल ये है कि ऐसा पासा फेंका जाए कि कांग्रेस को फ्रंट को समर्थन देना मज़बूरी हो जाए.
जिस समय केसीआर मुंबई में ठाकरे और पवार से मिल रहे थे ठीक उसी समय पीके भी दिल्ली में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात और गंभीर बातें कर रहे थे. दो दिनों तक पीके की कुमार से मुलाकात और बात हुई. पीके की इसी मुलाक़ात के बाद यह खबर सामने आयी कि 70 साल पार कर चुके नीतीश कुमार को अगले राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाया जा सकता है. नीतीश इस बात पर कितना सहमत है कोई नहीं जानता लेकिन बिहार चुनाव के दौरान नीतीश कुमार यह घोषणा कर चुके हैं अब वो बिहार का चुनाव नहीं लड़ेंगे. बिहार में मौजूदा विधान सभा 2025 तक की है. 2025 के बाद नीतीश कुमार क्या करेंगे एक बड़ा सवाल है. फिर इसी साल राष्ट्रपति चुनाव जुलाई में होने हैं और इसके बाद 2024 में लोकसभा चुनाव. पहले इस तरह की ख़बरें आ रही थी नीतीश कुमार को बीजेपी इस शर्त के साथ उप राष्ट्रपति बना सकती है कि वह बिहार से गठबंधन न तोड़े. लेकिन बिहार में भले ही गठबंधन की सरकार चल रही है लेकिन जदयू और बीजेपी में सामंजस्य नहीं है. कई बार तो खुद नीतीश कुमार भी बीजेपी के बोल और चाल से आहात हुए हैं. नीतीश कुमार के बारे में पिछले दिनों पीएम मोदी ने बड़ा समाजवादी नेता होने का तमगा दिया था लेकिन यह भी सच है कि नीतीश कुमार समाजवादी के साथ ही अवसरवादी भी हैं. उनका यही अवसरवाद देश को बार-बार भ्रमित करता है.
गौरतलब है कि इसी साल जुलाई-अगस्त में राष्ट्रपति का चुनाव होना है. ऐसे में थर्ड फ्रंट के जरिए बिहार के सीएम नीतीश कुमार को राष्ट्रपति चुनाव लड़ाए जाने की खबरें हैं. ये खबरे पीके और केसीआर की तरफ से फैलाई गई है या फैलाने के लिए कहा गया है इसकी पुष्टि भला कौन करेगा. लेकिन इस तरह के खेल चल रहे हैं. संभव है कि पांच राज्यों के चुनाव परिणाम आने के बाद इस खेल पर काम हो और कोई बड़ा राजनीतिक उठापटक भी सामने आये.
नीतीश कुमार आगे क्या निर्णय लेते हैं यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन इसकी फील्डिंग शुरू हो गई है. महाराष्ट्र के एनसीपी नेता और ठाकरे सरकार में मंत्री नवाब मलिक का एक बयान सामने आया और इस बयान के बाद राजनीतिक प्रतिक्रिया भी जदयू के तरफ से आयी है. इससे पता चलता है कि दाल में कुछ काला है. एनसीपी नेता नवाब मलिक ने कहा, “कुछ खबरें आ रही हैं कि नीतीश कुमार जी का नाम सामने आ रहा है. पहले नीतीश कुमार जी भाजपा का साथ छोड़े फिर सोचा जाएगा कि क्या करना है.”
हालांकि अभी नीतीश कुमार की तरफ से कोई बड़ा बयान सामने नहीं आया है. लेकिन जदयू का पक्ष सामने जरूर आया है. जदयू प्रवक्ता नीरज सिंह का कहना है कि 2025 तक नीतीश कुमार को बिहार का सीएम बने रहने के लिए जनादेश मिला हुआ है, ऐसे में अभी राष्ट्रपति चुनाव को लेकर कोई चर्चा नहीं है.
यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि आगे इस फ्रंट में बंगाल की सीएम ममता बनर्जी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी शामिल करने की रणनीति है. बता दें कि केसीआर और प्रशांत किशोर की जोड़ी को लगता है कि भाजपा के खिलाफ राष्ट्रपति चुनाव के लिए नीतीश कुमार का नाम आगे करने पर मजबूरी में कांग्रेस भी अपना समर्थन देगी.
लेकिन असली सवाल ये भी है ममता इस खेल को कितना आत्मसात कर पाती है. देखना ये भी है कि स्टालिन, उद्धव ठाकरे और हेमंत सोरेन कांग्रेस के सह्यपग के बिना कितना आगे बढ़ते हैं. याद रहे ठाकरे और स्टालिन अभी किसी भी सूरत में कांग्रेस के खिलाफ नहीं जा सकते. स्तालिन तो आज की तारीख में राहुल गाँधी के लिए वही भूमिका निभा रहे हैं जो कभी सोनिया गाँधी के लिए लालू प्रसाद निभाया करते थे.
अभी सबकी निगाहें नीतीश कुमार पर एक बार जाकर जरूर टिकी है. पिछली दफा वो संभावित पीएम उम्मीदवार को लेकर सुर्खियां बटोर रहे थे और अब राष्ट्रपति उम्मीदवार को लेकर सामने दिख रहे हैं. केसीआर का खेल यह है कि राष्ट्रपति चुनाव के जरिये ही बीजेपी को पहले घेरा जाए. केसीआर को लगता है कि महाराष्ट्र समेत दक्षिण भारत की लगभग 200 सांसद राष्ट्रपति चुनाव में अहम भूमिका निभाकर बीजेपी की राह रोक सकते हैं. और ऐसा हुआ तो बीजेपी को बड़ा धक्का लोकसभा चुनाव से पहले ही लग सकता है. लेकिन यह सब संभावनाओं पर टिका है. नीतीश कुमार आज भले ही मौन हैं लेकिन इस खेल से वो असहमत नहीं हो सकते. समय आने पर सब कुछ तय होगा, उनकी सोंच यही है.
लगे हाथ पांच राज्यों के चुनाव के बाद की तस्वीर क्या होती है इसे भी देखने की जरूरत है. अगर बीजेपी ने चुनाव में कुछ खोया तो खेल कुछ और भी होगा और बीजेपी ने अपने किले को बचा लिया तो खेल का रंग बदल सकता है. यही हाल कांग्रेस के साथ भी है. पंजाब में कांग्रेस वापस आती है और एक दो राज्यों में भी वह सेंध लगाती है तब देश की राजनीति करवट लेगी और फिर बीजेपी के खिलाफ बड़ा हल्ला बोल हो सकता है. जिसमे थर्ड फ्रंट के सारे वीर सम्मिलित हो सकते हैं. यहां तक कि ममता भी.
गुजरात में 6000 करोड़ का कोल घोटाला, कांग्रेस ने बताया चारा घोटाले का बाप
अखिलेश अखिल
दैनिक भास्कर ने गुजरात में कोयला घोटाले का खुलासा कर चुनावी माहौल में सनसनी फैला दी है. यह कोयला घोटाला 6 हजार करोड़ का बताया जा रहा है. दिलचस्प बात ये है कि इस घोटाले को भी बिहार के चारा घोटाला के ही तर्ज पर अंजाम दिया गया है. कांग्रेस ने इस पुरे घोटाले को चारा घोटाला का बाप बताया है. रिपोर्ट के मुताबिक गुजरात सरकार की एजेंसियों ने राज्य की स्मॉल और मीडियम लेवल की इंडस्ट्रीज के नाम पर कोयला मंगाया लेकिन इसे महंगी कीमत पर दूसरे राज्यों को बेच दिया.
कांग्रेस महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला ने एक ट्वीट में कहा, ‘गुजरात सरकार में 6,000 करोड़ रुपये का “कोयला घोटाला”! खदान से 60 लाख टन कोयला आया-हुआ गायब. भाजपा सरकार ने 4 निजी कंपनियों को कोयला लाने के लिए अधिकृत किया, लेकिन तीन का पता नकली निकला. शायद जबाब होगा- ‘न कोई कोयला लाया, न कोयला आया’, मामला बंद, पैसा हज्म!’ उन्होंने साथ ही इस रिपोर्ट को भी ट्वीट किया है. कांग्रेस के एक अन्य नेता संजय निरूपम ने ट्वीट किया, ‘गुजरात का कोयला घोटाला चारा घोटाले का बाप है. खदान से निकला 60 लाख टन कोयला. बीच रस्ते में गायब हो गया. 6000 करोड़ रुपये की लूट. लूट में कौन-कौन शामिल है, इसकी जाँच होनी जरूरी है.’
दैनिक भास्कर की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि गुजरात में करीब 6,000 करोड़ रुपये का कोयला घोटाला सामने आया है. इसमें कहा गया है कि पिछले 14 साल में गुजरात सरकार की कई एजेंसियों ने राज्य की स्मॉल और मीडियम लेवल की इंडस्ट्रीज को कोयला देने के बजाय इसे दूसरे राज्यों के उद्योगों को ज्यादा कीमत पर बेचकर पांच हजार से छह हजार करोड़ रुपये का घोटाला किया है.
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि कोल इंडिया की विभिन्न कोयला खदानों से निकाला गया कोयला उन उद्योगों तक पहुंचा ही नहीं, जिनके लिए उसे निकाला गया था. रिपोर्ट में दस्तावेजों के हवाले से दावा किया गया है कि अब तक कोल इंडिया की खदानों से गुजरात के व्यापारियों, छोटे उद्योगों के नाम पर 60 लाख टन कोयला भेजा गया है. इसकी औसत कीमत 3,000 रुपये प्रति टन के हिसाब से 1,800 करोड़ रुपये होती है, लेकिन इसे व्यापारियों और उद्योगों को बेचने के बजाय 8 से 10 हजार रुपये प्रति टन की कीमत पर अन्य राज्यों में बेचकर कालाबाजारी की गई है.
गुजरात सरकार की ओर से कोल इंडिया को कोयले के लाभार्थी उद्योगों की सूची, जरूरी कोयले की मात्रा, किस एजेंसी से कोयला भेजा जाएगा, ऐसी तमाम जानकारियां भेजनी होती हैं. भास्कर की जांच में कोल इंडिया को भेजी गई जानकारी पूरी तरह झूठी निकली है. कैसे, यह हम आपको बता रहे हैं. गुजरात सरकार द्वारा नियुक्त की गई एजेंसी ‘गुजरात कोल कोक ट्रेड एसोसिएशन’ के निदेशक अली हसनैन दोसानी ने बताया कि हम अपने अधिकांश कोयले की आपूर्ति दक्षिण गुजरात के कपड़ा उद्योगों को करते हैं. इसलिए भास्कर ने साउथ गुजरात टेक्सटाइल प्रोसेसर्स एसोसिएशन के जितेंद्र वखारिया से संपर्क किया, लेकिन वखारिया ने कहा, ‘मैं इस धंधे में 45 साल से हूं. ऐसी योजना के तहत कभी किसी भी प्रकार का कोयला नहीं मिला.’
दस्तावेजों में जिन उद्योगों के नाम पर कोल इंडिया से कोयला निकाला गया, वह उन उद्योगों तक पहुंचा ही नहीं. शिहोर के उद्योग में जय जगदीश एग्रो इंडस्ट्रीज को लाभार्थी दिखाया गया है. इंडस्ट्रीज के जगदीश चौहान ने भास्कर से कहा, ‘मुझे तो यह भी नहीं पता कि हमें सरकार से कोई कोयला मिलता है. अभी तक इस बारे में हमसे कोई संपर्क नहीं किया गया. हम तो स्थानीय बाजार से कोयला खरीदते हैं.’
इसी तरह ए एंड एफ डिहाइड्रेट फूड्स के शानू बादामी ने कहा- ‘ऐसा कोई कोयले का जत्था हमें कभी नहीं मिला है. हम अपनी जरूरत का ज्यादातर कोयला जीएमडीसी की खदानों से खरीदते हैं या हम आयातित कोयला खरीदते हैं. कोयला अब हमारे लिए महंगा पड़ता है.’
जब भास्कर ने उन एजेंसियों की पड़ताल की, जिन्हें गुजरात सरकार ने नियुक्त किया है तो बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आया. एजेंसियों ने अपना जो पता लिखाया है, वहां उस नाम का कोई संगठन ही नहीं है. यहां तक कि पंजीकृत कार्यालय का पता भी गलत है.
काठियावाड़ कोल कोक कंज्यूमर एंड ट्रेडर्स एसोसिएशन नमक इस एजेंसी ने सीजी रोड स्थित एक निजी परिसर में पंजीकृत कार्यालय का पता बताया है, लेकिन दिए गए पते पर अब CA का कार्यालय है, जो 4 साल से चल रहा है. इस परिसर के बनने से पहले यहां एक पत्रिका का कार्यालय हुआ करता था. स्थानीय लोगों ने बताया कि कोयला व्यापार में शामिल किसी संगठन, फर्म या कंपनी का कार्यालय इस ऑफिस में ही नहीं, बल्कि पूरे परिसर में कहीं नहीं है.
इसी तरह गुजरात कोल कोक ट्रेड एसोसिएशन नामक एजेंसी ने अहमदाबाद के एलिस ब्रिज इलाके में अपने कार्यालय का पता बताया है. वहां जाकर जांच की तो पता चला कि वहां ट्रेड एसोसिएशन का ऑफिस तो नहीं है, पर एक ट्रेडिंग एजेंसी ‘ब्लैक डायमंड’ जरूर काम कर रही है. यह भी कोयले के व्यापार से ही जुड़ी है. एजेंसी के मालिक हसनैन अली दोसानी ने कहा, ‘हम दक्षिण गुजरात के व्यापारियों को कोयले की पूरी मात्रा बेचते हैं.’ इसी तरह सौराष्ट्र ब्रिकवेटिंग एजेंसी का पता सीजी रोड पर दिखाया गया है, लेकिन वहां जांच करने पर एक ट्रैवल एजेंसी का ऑफिस मिला है.
चौंकाने वाली बात तो यह है कि इस मामले पर उद्योग विभाग का कोई भी अधिकारी कुछ भी कहने से बच रजा है और एक दूसरे अधिकारी पर पल्ला भी झाड़ रहे हैं.
यूपी में बदलाव की बहार, बीजेपी और योगी नहीं होंगे रिपीट.
अखिलेश अखिल
वैसे 1989 के बाद से यूपी की जनता किसी मुख्यमंत्री और पार्टी को रिपीट नहीं करती और बदल-बदल कर सबको आज़माने में यकीन रखती है. यह बात और है कि यूपी की वही जनता 2014 और 2019 में बीजेपी को जिताने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रही और 2017 के विधान सभा चुनाव में भी बीजेपी को पूर्णबहुमत देकर सत्ता तक पहुंचाने में भी आगे-आगे रही. लेकिन लोकसभा को विधानसभा चुनाव से जोड़ने की बात बेईमानी हो सकती है. यूपी की जनता ने दोनों लोकसभा चुनाव में मोदी की ईमानदारी, हिन्दू धर्म के संरक्षक, विकास पुरुष वाली इमेज और बड़े स्तर पर रोजगार देने के ऐलान पर बीजेपी का साथ दिया था. सभी जाति के लोगों ने मोदी को स्वीकार किया था. इसी बीच मोदी की मकबूलियत का लाभ 2017 में यूपी विधान सभा चुनाव में भी बीजेपी को मिल गया और उसकी सरकार भी बन गई. प्रदेश के लोगों ने योगी के नाम पर तब बीजेपी को वोट नहीं दिया था. तब मुख्यमंत्री के उम्मीदवार कोई और थे. जब योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बनाये गए, लोग निराश हुए और कई जातियों के वोटर हताश भी. पार्टी के भीतर अनबन हुई, सीएम योगी और केशव मौर्य के बीच में आज भी अनबन है. आगे भी चलेगा.
उत्तर प्रदेश में चौथे चरण का मतदान 23 फरवरी को है. इस चरण में लखनऊ, रायबरेली, हरदोई समेत 9 जिलों की 59 सीटों पर वोटिंग होगी. इन 9 में से 7 जिले अवध इलाके में आते हैं. अवध की जंग में इस बार कौन बाजी मारेगा, यह जल्द ही पता चल जाएगा. दूसरी ओर, पांचवें और छठे चरण के लिए चुनावी रैलियां जारी हैं. अयोध्या में चुनाव प्रचार करने पहुंचे सीएम योगी आदित्यनाथ ने एक बार फिर अखिलेश यादव पर आतंकियों से सहानुभूति रखने का आरोप लगाया है. वहीं, शाम को बहराइच में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जनसभा है. प्रयागराज में अमित शाह रोड शो करने पहुंचे. महाराजगंज में केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी, गोरखपुर में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तो छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता भूपेश बघेल बाराबंकी में मौजूद रहे. इनके अलावा, भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा देवरिया में जनसभा करने गए हैं.
उधर सोमवार के सुबह में अखिलेश यादव ने पीएम मोदी पर हमला किया. सपा प्रमुख अखिलेश यादव प्रयागराज में जनसभा करने गए और सीएम योगी पर हमले किये. सीएम योगी आदित्यनाथ पर प्रहार करते हुए उन्होंने कहा कि जो गर्मी निकालने की बात कह रहे थे उन्होंने कभी फौज में भर्ती नहीं निकाली, समाजवादी पार्टी की सरकार बनेगी तो फौज और पुलिस में भर्ती निकालने का काम होगा. ऐसे लोगों का भाप निकलना बहुत जरूरी है.
गौरतलब है कि रविवार को हरदोई में भाजपा प्रत्याशियों के समर्थन में आयोजित एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था, ”जितने भी धमाके हुए सब समाजवादी पार्टी के चुनाव निशान साइकिल पर रखकर किये गये और मैं हैरान हूं कि उन्होंने (आतंकियों) साइकिल को क्यों पसंद किया. 2006 में काशी में बम धमाका हुआ था, संकट मोचन मंदिर में धमाका किया गया, कैंट रेलवे स्टेशन पर हमला किया गया और तब यूपी (उत्तर प्रदेश) में समाजवादी पार्टी की सरकार थी।” उन्होंने कहा था, ”एक समय था जब देश में हर सप्ताह बम धमाके होते थे और हिंदुस्तान के कितने शहरों में निर्दोष नागरिक मारे गये, जब मैं गुजरात का मुख्यमंत्री था और उस दौरान अहमदाबाद में सीरियल बम धमाके हुए थे और उस दिन को कभी भूल नहीं सकता, उस समय जो लोग इन धमाकों में मारे गये थे, मैंने उस रक्त से गीली हुई मिट्टी को उठाकर संकल्प लिया था कि मेरी सरकार इन आतंकवादियों को पाताल से भी खोज कर सजा देगी.” अहमदाबाद सिलसिलेवार बम विस्फोट मामले में अदालत द्वारा 49 लोगों को दोषी ठहराए जाने के अदालत के फैसले का जिक्र करते हुए मोदी ने कहा कि अभी दो दिन पहले ही अहमदाबाद बम धमाके के दोषियों को सजा सुनाई गई है और अनेक आतंकवादियों को फांसी की सजा मिली है.
गौरतलब है कि अहमदाबाद की एक विशेष अदालत ने शहर में 2008 में हुए सिलसिलेवार बम विस्फोट के मामले में 18 फरवरी को आतंकवादी संगठन इंडियन मुजाहिदीन के 38 सदस्यों को मौत की सजा सुनायी है. अदालत ने 11 अन्य दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनायी है.
लेकिन इस पुरे खेल का सच यही है कि अब तक हुए तीन चुनाव में बीजेपी ने बहुत कुछ खो दिया है. कुल 172 सीटों पर हुए अबतक के चुनाव में बीजेपी करीब 100 से ज्यादा सीटें खो सकती है. जिस तरह से मुसलमान और जाट एक होकर बीजेपी के खिलाफ खड़े हुए हैं और फिर जहां यादवो बेल्ट है सपा के साथ खड़े दिखे हैं उससे साफ़ है कि बीजेपी अपना आधार खोती नजर आ रही है. बीजेपी के खिलाफ एक लहर चल गई है और इसका सीधा-सीधा लाभ सपा गठबंधन को होता दिख रहा है. अगर बीजेपी के खिलाफ आगे भी यही लहर चलती रही तो कह सकते हैं कि वह सौ से डेढ़ सौ सीटों पर सिमट सकती है.
बता दें कि तीन चरणों की 172 सीटों पर जहॉं अब तक मतदान हो चुका है, पिछली बार भाजपा को 140 सीटें मिली थीं. केवल 32 सीटें विपक्ष को मिली थीं. जानकारों का मानना है कि इस बार डबल इंजन की सरकार में भाजपा को डबल ऐंटी इंकम्बेंसी का सामना करना पड़ रहा है. इसमें दो राय नहीं कि प्रधानमंत्री मोदी की छवि धीरे-धीरे चंद अडानी-अंबानी जैसे पूँजीपतियों के समर्थकों की हो गई है. अब वह ग़रीबों-पिछड़ों के मसीहा नहीं रहे और न ही गुजरात मॉडल में कोई आकर्षण बचा है. मोदी समर्थक सिर्फ़ इस बात से संतोष कर रहे हैं कि उन्होंने और योगी ने मुसलमानों को सत्ता से दूर और दबाकर रखा है, भले महंगाई बढ़ी या विकास नहीं हुआ पर वह भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने को प्रयत्नशील हैं.
गौरतलब है कि भारतीय जनता पार्टी इस बार एक नई पहचान के दम पर मैदान में चुनौती दे रही है. पहले राज्य में चुनाव दो अस्मिताओं पर होते थे और वो थी जाति और धर्म. जब भी जाति की अस्मिता ज्यादा प्रभावी होती थी बीजेपी रेस से बाहर हो जाती थी और धार्मिक अस्मिता प्रभावी होती थी तो बीजेपी को फायदा होता था. लेकिन इस बार चुनाव में नई पहचान जुड़ी है और वो है लाभार्थी. साल 2017 में लोगों को उम्मीद थी कि बीजेपी अच्छा करेगी. ऐसे में साल 2017 का चुनाव उम्मीद का चुनाव था और 2022 का चुनाव भरोसे का चुनाव है कि सरकार ने जो कहा था वो करके दिखाया. अब इसी का टेस्ट होना है.
छह महीने या साल भर पहले तक सबको लगता था कि उत्तर प्रदेश में विपक्ष बहुत कमज़ोर और निष्क्रिय है और भाजपा सरकार फिर बनेगी. लेकिन एक के बाद एक घटनाक्रम इतनी तेज़ी से बदला कि आज भाजपा की जीत को लेकर संशय भी जताया जाता है. उत्तर प्रदेश का राजनीतिक माहौल बदलने का श्रेय सबसे ज़्यादा पश्चिम में भारतीय किसान यूनियन नेता राकेश टिकैत और पूरब में योगी सरकार में मंत्री रहे सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर को दिया जा सकता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि बिल वापस तो लिया, लेकिन पूरे यूपी में किसान आंदोलनकारियों पर चले दमन चक्र के कारण उसका लाभ नहीं हुआ. राकेश टिकैत के आंसू और जयंत चौधरी पर पुलिस की लाठी से पश्चिम उत्तर प्रदेश में बहुतायत जाट किसान इस बार भाजपा के ख़िलाफ़ लामबंद हो गए. राष्ट्रीय लोकदल और महान दल से समाजवादी पार्टी का गठबंधन हो गया. फिर ओम प्रकाश राजभर, स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान और धर्म सिंह सैनी को तोड़कर सपा अपने साथ लाने में कामयाब हो गई. लालजी वर्मा, राम अचल राजभर, इंद्रजीत सरोज, त्रिभुवन दत्त और पिछड़े तथा दलित समुदाय के कई अन्य नेता पहले ही बहुजन समाज पार्टी छोड़कर समाजवादी पार्टी में आ गए थे.
पिछड़े वर्गों में भाजपा से नाराज़गी का एक कारण जातीय जन गणना से इनकार है. सरकारी कंपनियों का निजीकरण भी आरक्षित वर्गों के लिए चुनाव का मुद्दा है.
इस सबका परिणाम यह हुआ कि सामाजिक न्याय वाली राजनीतिक ताक़तें यानी पिछड़ी जातियों का एक बड़ा हिस्सा एक अरसे बाद समाजवादी पार्टी के साथ फिर से गोलबंद हो गया.
पहले इन ताक़तों को भाजपा ने यह समझाकर अपने पाले में किया था कि पिछड़े वर्गों के सारे लाभ यादव ले जाते हैं. इसका परिणाम यह हुआ कि भाजपा का सामाजिक आधार काफ़ी सिकुड़ गया. न केवल पिछड़े वर्ग का मोहभंग हुआ बल्कि भाजपा समर्थक ऊँची जातियों में भी ब्राह्मण समुदाय को शिकायत है कि मुख्यमंत्री योगी राजपूत ठाकुर बिरादरी को ज़्यादा महत्व दे रहे हैं. एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि इस चुनाव में ऐसे तमाम ग़ैर राजनीतिक संगठन और सिविल सोसायटी के लोग भाजपा के ख़िलाफ़ काम कर रहे हैं जिन्हें लगता है कि मोदी और योगी की जोड़ी देश में लोकतंत्र और सामाजिक सद्भाव के लिए ख़तरा है.
लेकिन इस चुनावी समर में सबसे बड़ी हानि बसपा और कांग्रेस को होती दिख रही है. बसपा ने बड़ी संख्या में मुस्लिम उम्मीदवार खड़े किए, लेकिन अल्प संख्यक समुदाय का रुझान उनकी ओर नहीं हुआ. इसी तरह बसपा ने बड़ी संख्या में ब्राह्मण उम्मीदवार खड़े किए, पार्टी महामंत्री सतीश मिश्र ने राम मंदिर में पूजा कर चुनाव अभियान शुरू किया. लेकिन सत्ता की दौड़ में न दिखायी देने से बसपा के प्रति इस समुदाय का रुझान नहीं हुआ. सच्चाई तो यह है कि तीन फेज के चुनाव में बसपा को अपना कैडर वोट भी नहीं मिला है. बहुत सारे दलित वोटर बसपा को छोड़कर इस बार सपा गठबंधन से जुड़े हैं. यह बसपा के लिए परेशानी वाली बात तो है ही बीजेपी के लिए भी घातक है. उधर, प्रियंका गांधी की तमाम मेहनत के बावजूद कांग्रेस इतनी कमजोर है कि मुस्लिम समुदाय की पसंद नहीं बन सकी. पर कांग्रेस इस बार सभी विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव लड़कर आगे के लिए अपनी चुनाव मशीनरी दुरुस्त कर लेगी और उसके कुछ मतदाता भाजपा से वापस भी आ सकते हैं. 10 फ़रवरी को पहले दौर के मतदान में दिखा कि मुस्लिम समुदाय मुज़फ़्फ़रनगर दंगों का दर्द भुलाकर जाट किसानों के साथ लोक दल और समाजवादी पार्टी गठबंधन के साथ खड़ा रहा. दूसरे दौर में तो मुस्लिम मतदाताओं की तादाद वैसे भी ज़्यादा थी. इसलिए यहाँ भी भाजपा को पहले जीती तमाम सीटें गँवानी पड़ सकती हैं. 20 फ़रवरी को तीसरे चरण के मतदान में झाँसी, जालौन आदि बुंदेलखंड के एक बड़े हिस्से में वोट पड़े. पिछली बार भाजपा ने बुंदेलखंड की सभी 19 सीटें जीती थीं, लेकिनअब ऐसा लगता है कि यहाँ भी भाजपा को आधी सीटों का नुक़सान है.
तीसरे दौर में यादवलैंड के नाम से मशहूर इटावा, फ़िरोज़ाबाद, मैनपुरी, एटा आदि में भी वोट पड़ा. यहीं करहल से अखिलेश यादव पहली बार विधान सभा चुनाव लड़े. भाजपा ने केंद्रीय मंत्री एस पी सिंह बघेल को उतार कर करहल में अखिलेश यादव को घेरने की कोशिश की. लेकिन मुलायम सिंह यादव ने पूरे कुनबे के साथ दौरा करके अखिलेश यादव को जिताने की भावनात्मक अपील की, जिसका असर अगल-बगल के इलाक़ों पर भी पड़ा.
अब चौथे चरण में बीजेपी अपनी खोई प्रतिष्ठा को वापस लाती है या नहीं, कहा नहीं जा सकता. सूबे में बीजेपी के खिलाफ जो लहर चल रही है अगर उसका असर अगले चुनाव तक चलता रहा तो बीजेपी की परेशानी और बढ़ेगी. अगर ऐसा हुआ तो बीजेपी की तमाम साम्प्रदायिक राजनीति को धक्का लगेगा और उसकी अगली राजनीति बाधित होगी.
रूस ने यूक्रेन को बांटा, पूर्वी क्षेत्रों को अलग देश की मान्यता दी
अंज़रूल बारी
रूस के चाल के सामने सब ढेर हो गए. अमेरिका कुछ नहीं कर पाया और पश्चिमी देश मुंह तकते रह गए. दरअसल सोमवार को रूस के राष्ट्रपति विलादेमिर पुतिन ने देश को संबोधित करते हुए यूक्रेन के टुकड़े करने का एलान कर दिया. रूसी राष्ट्रपति ने ऐलान करते हुए यूक्रेन के दो पूर्वी सूबों को स्वतंत्र देश का दर्जा दे दिया. इन दोनों सूबों में रूस समर्थक अलगाववादी पहले ही यूक्रेन से खुद को अलग घोषित कर चुके थे. 2014 में रूस ने पूर्व सोवियत देश यूक्रेन के क्रीमिया पर कब्जा कर लिया था. उस दौरान बड़े पैमाने पर हिंसक झड़पें हुई थी जिसमें हजारों लोग मारे गए थे. इस हिंसा को रोकने के लिए मिंस्क समझौता हुआ था. समझौते के मुताबिक इन क्षेत्रों को यूक्रेन के तहत रहते हुए ही अधिक स्वायत्तता देने की बात थी. रूस ने भी इसे यूक्रेन समस्या का सबसे बेहतर हल बताया था लेकिन अब रूस की तरफ से यूक्रेन के दोनेत्सक और लुहांस्क इलाकों को दो अलग देश घोषित करने के बाद अमेरिका और नाटो देशों ने कहा है कि रूस ने मिंस्क समझौता ख़त्म कर दिया है.
यूक्रेन संकट पर रूस और अमेरिका के बीच हालात संगीन हो गए हैं. इस बीच रूस ने फ्रांस और जर्मनी को बताया कि वह पूर्वी यूक्रेन से अलग होने की घोषणा कर चुके इलाकों को, रूस भी स्वतंत्र देश की मान्यता देने का एलान कर चुका है. माना जा रहा है कि रूस की इस घोषणा का असर दूरगामी होगा.
बता दें कि यूक्रेन के अलगाववादी दोनेत्सक और लुहांस्क क्षेत्रों को एक साथ डोनबास कहा जाता है. यह इलाके यूक्रेनी सरकार के प्रभाव से 2014 में ही अलग हो गए थे. न्यूज़ एजेंसियों के मुताबिक यूक्रेन का दावा है कि 2014 की लड़ाई में हजारों लोग मरे गए थे, रायटर्स ने यूक्रेनी सरकार के हवाले से कहा है कि इस लड़ाई में 15,000 से अधिक लोग मारे गए थे. हालांकि रूस इस लड़ाई में सीधे तौर पर शामिल होने से इंकार करता रहा है लेकिन रूस की तरफ से अलगाववादियों को हथियार और आर्थिक मदद बराबर मिलती रही है. कहा ये भी जाता है कि रूसी सरकार की जानिब से यहां के करीब 8 लाख लोगों को रूसी पासपोर्ट भी दिया जा चुका था. लेकिन फिर भी रूस कहता रहा है कि वो यूक्रेन पर कब्जा करने की योजना नहीं रखता है.
गौर करने की बात तो यह है कि पहली बार रूस ने कहा है कि वो डोनबास को यूक्रेन का का हिस्सा नहीं मानता है. जिसके बाद अब रूस डोनबास में अपनी सेना बगैर किसी परेशानी के भेज सकता है. रूसी संसद के एक सदस्य और दोनेत्सक के पूर्व नेता एलेक्ज़ेंडर बोरोदाई पहले ही कह चुके हैं कि तनाव बढ़ने पर दोनेत्सक और लुहांस्क के लोगों की रूस हर तरह से मदद करेगा. जिसके बाद रूस और यूक्रेन के बीच जंग के हालात बन गए हैं.
उधर पश्चिमी देश लंबे समय से रूस को यह चेतावनी दे रहे हैं कि यूक्रेन के बॉर्डर पर अगर रूस सैन्य कार्रवाई करता है तो उसे सख़्त जवाब मिलेगा और कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए जाएंगे. बावजूद इसके रूस पर इसका कोई असर नहीं है. अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने भी पिछले ही हफ्ते एलान कर दिया था कि अगर रूस यूक्रेन की संप्रभुता और सीमाई अखंडता को कम करने की कोशिश करता है तो इसे अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन माना जाएगा और इस समस्या को कूटनीतिक तरीके से सुलझाने के रास्ते भी बंद हो सकते हैं. साथ ही अमेरिका और उसके सहयोगियों की तरफ से कड़ा जवाब दिया जाएगा.
याद रहे कि रूस पहले भी जॉर्जिया के साथ 2008 में हुई जंग के बाद दो हिस्सों को अलग देश के तौर पर मान्यता दे चुका है. पूर्व सोवियत देश जॉर्जिया भी नाटो में शामिल होने की महत्वकांक्षा रखता था. लेकिन रूस ने जॉर्जिया से उसकी सीमाओं का पूरा नियंत्रण छीन कर नाटो में उसके शामिल होने की संभावनाओं को अनिश्चितकाल के लिए विलंबित कर दिया. अब यूक्रेन के मामले में भी यही होता नज़र आ रहा है.
दूसरी ओर रूस पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध लगेंगे और मिंस्क प्रक्रिया को समर्थन देने के बाद उसे छोड़ देने के लिए कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ेगा. साथ ही आठ साल की जंग के बोझ तले दबे डोनबास में रूस की आर्थिक ज़िम्मेदारी भी बढ़ा जाएगी. अब देखना ये है कि रूस अगला कदम क्या उठता है और दुनिया भर के देश रूस के कदम को किस रूप में लेते हैं. लेकिन सबसे बड़ी बात तो यूक्रेन को लेकर है. यूक्रेन क्या करेगा और उसके साथ कौन खड़ा होता है यह सबसे अहम् है.