Friday, October 18, 2024
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बच्चों और नौजवानों के लिए उर्दू कंटेंट तैयार करने पर NCPUL ने किया वर्कशॉप

नई दिल्ली: बच्चों और युवा पाठकों के लिए उर्दू में अच्छा कंटेंट तैयार करने के सिलसिले में नेशनल काउंसिल फॉर प्रमोशन ऑफ उर्दू लैंग्वेज (ncpul) द्वारा क्या गया तीन दिन का वर्कशाप कामयाबी से पूरा हो गया है।

वर्कशॉप के पहले दिन, मशहूर लेखकों जैसे ज़किया मशहदी, अबीद सूरती, और मरियम करीम अहलावत ने बच्चों की सोच और समझ को ध्यान में रखते हुए टॉपिक ज़बान और अल्फाज़ के चयन पर खास ध्यान देने और एहतियात बरतने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया था। वर्कशॉप में पढ़ी गई ज़्यादा तर कहानियाँ उस कसौटी पर खड़ी उतरती हुई नज़र आईं है।

पिछले तीन दिनों में सबसे ज़्यादा दाद वसूल करने वाली कहानियों में ज़किया मशहदी की ” एक सच् मुच के राजकुमार की कहानी,” डॉ. शहनाज़ रहमान की “शान-ए-सुल्तानी,” इक़बाल बरकी की “रोबोट,” डॉ. निगार अज़ीम की “दोस्त,” प्रोफ़ेसर शरवतुननिसा की “प्रेम दीवानी :मीरा,” डॉ. मोहम्मद अलीम की “तानसेन: एक अज़ीम मौसीकार,” नईमा जाफ़री पाशा की “हैरतअंगेज कारनामा ,” खुर्शीद अकरम की “शरारती डेनिस,” प्रोफेसर ग़ज़नफ़र की “फूली हुई लोमड़ी,” और मुश्ताक़ अहमद नूरी की “गुफ़्तगू” शामिल हैं, जिन्हें खूब सराहा गया।

वर्कशॉप में इंटरएक्टिव सेशन भी आयोजित किए गए, जहां एक्सपर्ट्स और स्कूल के बच्चों ने पढ़ी गई कहानियों पर खुल कर अपने विचार दिए। मुश्ताक अहमद नूरी की पैगंबर मोहम्मद के ज़िंदगी पर आधारित कहानी को खास तौर से बच्चों ने बहुत पसंद किया, और एक्सपर्ट्स ने भी इत्तेफ़ाक किया कि आज के दौर में इस तरह की कहानियां सुनाने की बहुत ज़रूरत है।

हिंदुस्तान के कोने कोने से आए लेखकों ने वर्कशॉप की कामयाबी पर खुशी का इज़हार किया, क्योंकि इसमें हिस्सा लेने वालों में बच्चों से लेकर 90 साल की उम्र तक के लोग शामिल थे। बच्चों द्वारा पूरे एतेमाद और जुस्तजू के साथ कहानियों पर पूछे गए सवाल बहुत ही दिलचस्प थे। बच्चों के लिए लिखने वालों को आज के बच्चों की सोच और समझ के लेवल के बारे में अच्छी जानकारियां मिलीं। यहां मौजूद लेखकों अनुसार, NCPUL की यह पहल नए लेखकों को अपनी तैयारी करने और बच्चों के लिए उर्दू में सीख से भरी उमदा कहानियां लिखने में मदद करेगी, जो दूसरी ज़बानों के हमपल्ला होंगी।

NCPUL के डायरेक्टर डॉ. मोहम्मद शम्स इक़बाल ने अपना विज़न साझा करते हुए कहा, “उर्दू ज़बान में उमदा कंटेंट तो है, लेकिन इसके प्रेजेंटेशन में कमी है। इसलिए, हम चुनी हुई कहानियों को अच्छी क्वालिटी वाली किताबों में रंगीन तस्वीरों के साथ प्रीमियम पेपर पर छापेंगे ताकि बच्चों को इसकी तरफ लुभाया जा सके। नेशनल बुक ट्रस्ट में अपने 25 सालों के तजरूबे के साथ, मैं बच्चों की ऐसी किताबें तैयार करने की कोशिश में हूँ, जो उनके दिमाग की खिड़की को तो खोलें ही, एक विकसित समाज के निर्माण के लिए समझ के द्वार भी खोलें, ताकि 2047 तक विकसित भारत के सपने को साकार करने में हम अपना भी योगदान दे सकें”।

वर्कशॉप का समापन करते हुए असिस्टेंट डायरेक्टर शमा कौसर यज़दानी ने मुकाबले में शामिल लेखकों और इसमें शरीक सभी लोगों का शुक्रिया अदा किया । काउंसिल के सभी स्टाफ भी मुबारकबाद के मुस्तहक हैं जिनकी अनथक मेहनत की वजह से यह वर्कशॉप इतना कामयाब रहा।

Anzarul Bari
Anzarul Bari
पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.
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