अखिलेश अखिल
दो अक्टूबर को गाँधी जयंती के अवसर पर संघ और मोदी सरकार के वरिष्ठ और काम करने वाले मंत्री माने जाने वाले नितिन गडकरी ने मोदी सरकार की बखिया उघेड़ का रख दिया. देश की बजबजाती हालत, ख़राब हो चली अर्थव्यवस्था और गरीबी-बेरोजगारी से हलकान जनता की तस्वीर को सामने लाते हुए संघ के महासचिव दत्तात्रेय होसबोले और मोदी सरकार के मंत्री गडकरी ने मोदी सरकार के उन तमाम भोंपू मंत्रियों, नेताओं और प्रवक्ताओं की बैंड बजायी है जो अक्सर विपक्ष की आवाज को दबाने के लिए हर तरह का तिकड़म करने से बाज नहीं आते. होसबोले और गडकरी ने उन गोदी मीडिया और अंधभक्तों पर भी प्रहार किया है जो आये दिन देश के असली सवाल से इतर देश को बाँटने वाली राजनीति को आगे बढ़ाते रहते है. होसबोले और गडकरी की जगह अगर यही बात किसी विपक्षी नेता ने कही होती तो सरकार के दलाल पत्रकार, एंकर – भोपू प्रवक्ता अबतक एक नया माहौल खड़ा कर देते. सरकार के गुलाम नेता, मंत्री और आईटी सेल झूठ से जुड़े ढेरों डाटा पेश कर दिए होते लेकिन जब संघ और गडकरी ही देश की गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई और जनता की सच्चाई सामने रख रहे हैं तो मोदी सरकार मौन हो गई है. सरकार से उम्मीद की जानी चाहिए कि वह होसबोले और गडकरी के सवालों का जबाब दे और यह माने कि देश रसातल की तरफ है.
गडकरी की बात को छोड़ भी दें तो संघ के नामी नेता दत्तात्रेय के सवालों का ही जबाब सरकार को देना चाहिए. गडकरी तो अक्सर सरकार से सवाल करते रहे हैं और मोदी भक्त उन्हें नाराज बताते रहे हैं. लेकिन क्या हसबोले भी मोदी सरकार से नाराज हैं ? और संघ यदि मोदी सरकार से नाराज है तो कोई बड़ा एक्शन क्यों नहीं लेता. बड़ा सवाल तो यही है.
दत्तात्रेय होसबोले ने देश में बेरोजगारी और बढ़ती आय असमानता पर चिंता व्यक्त की है. उन्होंने कहा कि गरीबी हमारे सामने ‘दानव जैसी चुनौती’ बन रही है. हालांकि, होसबोले ने कहा कि इस चुनौती से निपटने के लिए पिछले कुछ वर्षों में कई कदम उठाए गए हैं, लेकिन हालत में कोई सुधार नहीं आया है. स्वदेशी जागरण मंच द्वारा आयोजित एक वेबिनार में बोलते हुए हसबोले ने कहा, “…हमें इस बात का दुख होना चाहिए कि 20 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं. और 23 करोड़ लोग प्रतिदिन 375 रुपये से भी कम कमा रहे हैं. गरीबी हमारे सामने एक दानव जैसी चुनौती है. यह महत्वपूर्ण है कि हम यह दानव मौत के घाट उतार दें.”
होसबोले यही नहीं रुके. उन्होंने आगे कहा कि गरीबी के अलावा, “असमानता और बेरोजगारी अन्य दो चुनौतियां हैं. जिन्हें संबोधित करने की जरूरत है”. उन्होंने कहा,”देश में चार करोड़ बेरोजगार हैं, ग्रामीण क्षेत्रों में 2.2 करोड़ और शहरी क्षेत्रों में 1.8 करोड़. श्रम बल सर्वेक्षण में बेरोजगारी दर 7.6 प्रतिशत आंकी गई है … हमें न केवल अखिल भारतीय योजनाओं की आवश्यकता है, बल्कि रोजगार पैदा करने के लिए स्थानीय योजनाओं की भी आवश्यकता है.“
होसबोले ने कुटीर उद्योगों को पुनर्जीवित करने और ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी पैठ बढ़ाने के लिए कौशल विकास क्षेत्र में और पहल करने का भी सुझाव दिया. असमानता के बारे में बात करते हुए होसाबले ने सवाल किया कि क्या यह अच्छा है कि शीर्ष छह अर्थव्यवस्थाओं में से एक होने के बावजूद, देश की आधी आबादी को कुल आय का केवल 13 प्रतिशत ही मिलता है. उन्होंने कहा, “… भारत दुनिया की शीर्ष छह अर्थव्यवस्थाओं में से है. भारत की शीर्ष एक प्रतिशत आबादी के पास देश की आय का पांचवां हिस्सा है. और साथ ही देश की 50 प्रतिशत आबादी को केवल 13 प्रतिशत ही मिलता है. उन्होंने पूछा, क्या यह “अच्छी स्थिति है?”
उधर, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भी देश में बेरोजगारी, भूखमरी और महंगाई के मुद्दे पर एक बार फिर से मोदी सरकार पर तीखी चोट की और आगाह भी किया है. उन्होंने कहा कि हम मातृ भूमि को सुखी, समृद्ध और शक्तिशाली बनाना चाहते हैं. लेकिन देश तो धनवान हो गया पर जनता आज भी गरीब है, इसलिए देश के विकास के लिए गंभीरता से सोचना होगा कि किस रास्ते जाना है. एक कार्यक्रम में बोलते हुए केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा, आज भी भारत की जनता भूखमरी, गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी से त्रस्त है. भारत विश्व की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था है. इसके बावजूद देश की जनसंख्या भूखमरी, गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी, जातिवाद और अपृश्यता का सामना कर रही है, जो कि देश की प्रगति के लिए ठीक नहीं है.”
गडकरी ने आगे कहा कि देश में गरीब और अमीर के बीच गहरी खाई है, जिसे पाटने और समाज के बीच सामाजिक व आर्थिक समानता पैदा करना जरूरी है. समाज के इन दो हिस्सों के बीच खाई बढ़ने से आर्थिक विषमता और सामाजिक असामनता की तरह है.
उन्होंने कहा, “हमारे समाज मे दो विशेष रूप से वर्गों का अंतर बहुत ज्यादा है. जिससे सामाजिक विषमता है वैसे आर्थिक विषमता भी बढ़ी है. हमारे देश में 124 जिले ऐसे हैं, जो सामाजिक आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े हुए हैं. वहां, स्कूल, अस्पताल नहीं हैं, युवाओं के लिए रोजगार नहीं हैं और गांव जाने के लिए रास्त नहीं हैं, किसानों को फसलों के सही दाम नहीं मिल रहे.”
याद रहे यही सवाल जब विपक्ष और नागरिक समाज उठाता है तो मोदी सरकार के लोगों की परेशानी बढ़ जाती है. सवाल करने वालों पर मुक़दमे दर्ज किये जाते हैं और ऐसे ही सवाल के कारण आज भी सैकड़ों लोग जेल में बंद है. इन्ही सवालों की वजह से विपक्ष की कई पार्टियां सरकार के घेरे में है और कई पार्टियां खुद को जिन्दा रहने के लिए भटकती फिर रही है.
गडकरी ने कहा, “हमारे देश में शहरी क्षेत्र में ज्यादातर हम काम करते हैं इसलिए वहां ज्यादा विकास हुआ है, लेकिन 1947 में 90 प्रतिशत आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती थी. अब 25-30 प्रतिशत माइग्रेशन हुआ है. ये लोग जो गांव छोड़कर बड़े शहरों दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, चेन्नई में शिफ्ट हुए हैं. ये खुशी से नहीं मजबूरी से आए हैं. क्योंकि गांवों में अच्छी शिक्षा, रोजगार नहीं हैं इस कारण लोग गांव छोड़कर शहरों में आए हैं, जिससे शहरों में भी समस्याओं का निर्माण हुआ है. इसलिए भारत का विकास करने के लिए गंभीरता से सोचना होगा कि हमें किस मार्ग से जाना है.”
सालों भर चुनाव में व्यस्त रहने वाली बीजेपी के नेता, प्रवक्ता और भोपू मीडिया गडकरी और होसबोले के सवालों पर क्या रुख रखते हैं इसे बताना होगा. और ऐसा नहीं हुआ तो भले ही भक्ति में डूबे इस देश में बीजेपी चुनाव जीतती रहे, इसका इकबाल नहीं बचेगा. और फिर एक दिन ऐसा आएगा जब देश बर्बादी के कगार पर पहुंचेगा और गृह युद्ध की स्थिति पैदा हो जाएगी. आखिर असमानता और गरीबी की गहरी खाई कबतक सहन की जा सकती है.