Thursday, November 21, 2024
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हिंसा और संघर्ष से साढ़े तीन करोड़ बच्चे विस्थापित हो गए !

 

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष यूनिसेफ ने कहा है कि संघर्ष, हिंसा और अन्य संकटों ने, वर्ष 2021 के अन्त तक रिकॉर्ड तीन करोड़ 65 लाख बच्चों को उनके घरों से विस्थापित कर दिया था, जोकि दूसरे विश्व युद्ध के बाद से दर्ज सबसे उच्च संख्या है. इस संख्या में एक करोड़ 37 लाख ऐसे बच्चे भी शामिल हैं जो शरणार्थी हैं या शरण इच्छुक हैं, और लगभग 2 करोड़ 28 लाख ऐसे बच्चे भी, जो संघर्ष और हिंसा के कारण अपने ही देश के भीतर विस्थापित हुए हैं.

बता दें कि जलवायु और परियावरणीय झटकों या आपदाओं के कारण विस्थापित हुए बच्चों की संख्या इस रिकॉर्ड संख्या में शामिल नहीं हैं. और वर्ष 2022 के दौरान विस्थापित हुए बच्चों की संख्या भी इस पूर्ण संख्या में शामिल नहीं हैं और ना ही यूक्रेन पर रूस के हमले से विस्थापित हुए बच्चे, इस संख्या में शामिल हैं.

यूनीसेफ़ का कहना है कि विस्थापित हुए बच्चों की ये रिकॉर्ड उच्च संख्या, विनाशकारी संकटों का सीधा नतीजा है, जिनमें अफ़ग़ानिस्तान जैसे देशों में लम्बे समय से जारी गम्भीर और भीषण संघर्ष शामिल हैं, और काँगो लोकतांत्रिक गणराज्य, या यमन जैसे संघर्ष भी शामिल हैं. जिनमें जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभावों से और भी ज़्यादा बढ़ोत्तरी हुई है. यूएन बाल एजेंसी का कहना है कि बाल विस्थापन तेज़ी से फैल रहा है. पिछले वर्ष के दौरान, दुनिया भर में विस्थापित बच्चों की संख्या में 22 लाख की वृद्धि हुई.

यूनीसेफ़ की कार्यकारी निदेशिका कैथरीन रसैल का कहना है, “हम साक्ष्य की अनदेखी नहीं कर सकते. संकट व आपदाओं के कारण विस्थापित हो रहे बच्चों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है – और इसीलिये, उन तक पहुँचना हमारी ज़िम्मेदारी है.’ उन्होंने कहा, “मुझे उम्मीद है कि ये चिन्ताजनक संख्या, सरकारों को, प्रथमतः बच्चों का विस्थापन रोकने के लिये सक्रिय करेगी, और जब बच्चे विस्थापित हो जाते हैं तो सरकारें उनके लिये शिक्षा, संरक्षण और अन्य अति महत्वपूर्ण सेवाओं की सुलभता सुनिश्चित करेंगी, जिनसे बच्चों का सम्पूर्ण कल्याण और विकास, वर्तमान व भविष्य के लिये सुनिश्चित हो.”

यूक्रेन युद्ध जैसी आपदाएँ, 20 लाख से ज़्यादा बच्चों के देश के बाहर विस्थापन के लिये ज़िम्मेदार हैं, साथ ही फ़रवरी से लेकर 30 लाख बच्चे, देश के भीतर ही विस्थापित हुए हैं, जोकि गत वर्ष विस्थापित हुए बच्चों से अलग संख्या है.

यूनीसेफ़ का कहना है कि इन कारणों के अलावा, बच्चे व परिवार, चरम मौसम की घटनाओं के कारण भी अपने घर छोड़ने को विवश हो रहे हैं, जिनमें हॉर्न ऑफ़ अफ़्रीका व सहेल क्षेत्रों में गम्भीर सूखा, और बांग्लादेश, भारत और दक्षिण अफ़्रीका में बाढ़ जैसी स्थितियाँ शामिल हैं. वर्ष 2021 के दौरान, प्राकृतिक आपदाओं के परिणाम स्वरूप भी 73 लाख बच्चों का नया विस्थापन हुआ. पिछले दशक के दौरान वैश्विक शरणार्थी संख्या दोगुनी हो गई है, जिनमें लगभग आधी संख्या बच्चों की है.

एजेंसी का ये भी कहना है कि एक तरफ़ तो विस्थापित और शरणार्थी बच्चों की संख्या रिकॉर्ड ऊँचाई पर पहुँच रही है, वहीं दूसरी तरफ़ सेवास्थ्य देखभाल, शिक्षा और संरक्षण जैसी आवश्यक सेवाओं की उपलब्धता कम हो रही है. केवल आधे शरणार्थी बच्चे प्राइमरी के लिये पंजीकृत हैं, जबकि शरणार्थी किशोर बच्चों की एक चौथाई से भी कम संख्या सैकण्डरी शिक्षा के लिये पंजीकृत है.

अपने स्थानों से बेदख़ल हुए बच्चे, चाहे वो शरणार्थी हों, शरण इच्छुक या अपने देशों के भीतर हुए विस्थापित बच्चे, उन सभी के लिये कल्याण व सुरक्षा के गम्भीर जोखिम दरपेश हैं.

ये बात विशेष रूप से उन लाखों बच्चों के लिये ज़्यादा सही है जो अकेले हैं, या अपने परिजन व सम्बन्धियों से बिछड़ गए हैं. जिनके लिये तस्करी, शोषण, हिंसा और उत्पीड़न का बहुत जोखिम है. दुनिया भर में तस्करी का शिकार होने वाले इनसानों में, 28 प्रतिशत संख्या बच्चों की होती है.

यूनीसेफ़ ने सदस्य देशों से, तमाम विस्थापित हुए बच्चों के अधिकार सुनिश्चित करने के अपने संकल्पों पर अमल करने का आग्रह किया है. जिनमें वैश्विक शरणार्थी कॉम्पैक्ट और वैश्विक प्रवासन कॉम्पैक्ट के तहत लिये गए संकल्प भी शामिल हैं. एजेंसी ने साथ ही, शरणार्थी, प्रवासी और विस्थापित बच्चों के सामने दरपेश मुद्दों की वास्तविक गम्भीरता को सामने लाने के लिये, और ज़्यादा शोध व डेटा एकत्र करने के प्रयासों में संसाधान निवेश करने का भी आग्रह किया है.

Anzarul Bari
Anzarul Bari
पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.
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